चीन से इन मुद्दों पर नहीं बन रही बात, लद्दाख में कड़ाके की ठंड में बनी रहेंगी दोनों देशों की सेनाएं
नई दिल्ली। India China Military Talk: भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में लंबे समय से जारी तनाव के बीच वर्तमान में दोनों देशों के बीच अगले स्तर की सैन्य अधिकारियों की बातचीत के कोई संकेत नहीं मिल रहे हैं। जबकि दोनों देश तनाव कम करने के लिए चल रही कूटनीतिक वार्ता में कॉर्प्स कमांडर स्तर की बातचीत पर सहमत हुए थे।
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बीते दिनों 18 दिसम्बर को सीमा के मुद्दों पर बातचीत के लिए बने परामर्श और समन्वय कार्यतंत्र (Working Mechanism for Consultation and Coordination) की बैठक में दोनों देशों ने इस बात पर सहमति जताई थी कि एलएसी पर 'सैनिकों के जल्द और पूर्ण डिसएंगेजमेंट' के लिए सीनियर कमांडरों की बैठक होनी चाहिए।
नहीं
दिख
रहा
हल
उच्च
पदस्थ
सूत्रों
के
मुताबिक
अभी
तक
किसी
भी
पक्ष
ने
सैन्य
स्तर
की
वार्ता
के
लिए
किसी
भी
तिथि
का
प्रस्ताव
नहीं
दिया
है।
वहीं
सैन्य
विशेषज्ञों
का
मानना
है
कि
बिना
राजनीतिक
या
कूटनीतिक
हस्तक्षेप
के
सीमा
पर
चल
रहे
इस
तनाव
को
कोई
हल
होता
नहीं
दिखाई
दे
रहा
है।"
अभी
तक
पूर्वी
लद्दाख
में
विवाद
के
बाद
से
दोनों
पक्षों
के
बीच
8
राउंड
की
सैन्य
कमांडर
स्तर
की
बातचीत
हो
चुकी
है
लेकिन
डिसएंगेजमेंट
को
लेकर
कोई
हल
नहीं
निकल
सका
है।
आठवें दौर की वार्ता के दौरान भारतीय सेना और चीन की पीपल्स लिबलेशन आर्मी (पीएलए) ने कहा कि वे अंग्रिम पंक्ति के सैनिकों की गतिविधियों पर नियत्रंण रखने और गलतफहमी से बचने के लिए सुनिश्चित करने को कहेंगे। वहीं हाल में बातचीत रुकने के पीछे विशेषज्ञ दोनों पक्षों में विरोधाभासों को वजह बता रहे हैं।
बातचीत
फेल
होने
की
वजह
दरअसल
दोनों
देशों
के
बीच
डिजएंगेजमेंट
की
शर्तों
में
भारी
अंतर
है।
एक
तरफ
चीन
भारतीय
सेना
को
पहले
रणनीतिक
रूप
से
बहुत
ही
महत्वपूर्ण
कैलाश
रेंज
से
हटने
को
कह
रही
है
जबकि
चीनी
देपसांग
क्षेत्र,
जहां
पीएलए
को
बढ़त
मिली
है,
पर
बातचीत
को
लेकर
पीएलए
खास
दिलचस्पी
नहीं
दिखा
रही
है।
भारतीय
सेना
ने
29
अगस्त
की
रात
में
महत्वपूर्ण
अभियान
करके
रणनीतिक
रूप
से
बढ़त
वाली
चौकियों
पर
कब्जा
कर
लिया
था
जिसके
पीएलए
को
दक्षिणी
किनारे
पर
भारतीय
क्षेत्र
में
बढ़ने
से
रोका
जा
सकता
है।
ऐसा लग रहा है कि भारत और चीन दोनों पूर्वी लद्दाख में लंबे समय तक टिके रहने का मूड बना चुके हैं और कड़ाके की जानलेवा सर्दियों में भी दोनों देशों की सेनाएं दुनिया के सबसे ऊंचे मैदानों में आमने-सामने डटी रहेंगी।
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