मंदिरों के शहर में दरगाहों पर भी जुटती है भीड़?
मंदिरों के एक शहर में हिंदू और सिख समुदाय के लोग दरगाहों पर क्यों आते हैं.
भारत प्रशासित जम्मू कश्मीर के जम्मू शहर को अकसर मंदिरों का शहर भी कहा जाता है. लेकिन मंदिरों के इस शहर की हर दूसरी-तीसरी गली में आपको मुसलमानों के किसी न किसी पीर फ़क़ीर की दरगाह ज़रूर मिलती है.
हिंदु बहुल आबादी वाले इस शहर में दरगाहों की इस लोकप्रियता की क्या वजह हो सकती है?
अफ़ाक़ काज़मी जम्मू के पुराने शहर में रहते हैं और सामाजिक कार्यकर्ता हैं. उनसे हम शहर के चर्चित पीर, पीर मीठा के मज़ार पर मिले.
उनका कहना है कि यहां लोगों का विश्वास है कि दरगाहों पर, मज़ारों पर जाकर उनकी मन्नतें, मुरादें पूरी होती हैं.
इसलिए धर्म, समुदाय या फिरके की परवाह किए बिना लोग यहां आते हैं और अपनी मुरादें मांगते हैं.
उनका कहना है कि यहां आप जितना नया काम देख रहे हैं ये सब ग़ैर मस्लिम लोगों ने कराया है, किसी मुसलमान ने नहीं.
हिंदुओं और सिखों का विश्वास
1947 में होने वाले बंटवारे से पहले जम्मू में हिंदुओं और मुसलमानों की आबादी लगभग बराबर थी, लेकिन अब शहर में क़रीब दस फ़ीसदी मुसलमान ही रह गए हैं. ऐसे में ये दरगाहें हिंदुओं और सिखों के विश्वास की वजह से ही आबाद हैं.
सतवारी में बाबा बूढ़न शाह की दरगाह पर हमें सरदार अमरवीर सिंह जी मिले जो स्वंय भी एक गुरुद्वारे में रागी हैं.
"बाबा के सामने हम कोई भी फ़रियाद करते हैं तो वो पूरी हो जाती है. मेरी बच्ची के बाजू में समस्या रहती थी. मैं कई डॉक्टरों के पास गया, वो दवा देते, लेकिन दवा बंद करते ही समस्या फिर लौट आती. फिर मैं अपनी बच्ची को यहां लेकर आया, इसके बाद किसी दवा दारू की ज़रूरत नहीं हुई."
पुराने शहर के इलाक़े गोमठ में ठीक एक मंदिर के सामने सतगज़े पीर की मज़ार पर हमें शशि कोहली मिलीं.
हम ने उनसे जब ये पूछा कि वो मज़ार पर क्यों आती हैं तो उन्होंने कहा, "यहां आकर दिल को सुकून मिलता है. मेरा भाई बेरोज़गार था, मैं यहां आने जाने लगी तो मेरा भाई काम पर लग गया. बस उसी की मेहरबानी है."
जहां एक तरफ़ कुछ विशेषज्ञ पूरे इलाक़े में कट्टरपंथी ताक़तों की कामयाबी और मुसलमानों के ख़िलाफ़ बनने वाले माहौल पर चिंता व्यक्त करते हैं, वहीं एक सदियों पुरानी, मिली-जुली तहज़ीब के ताने-बाने आज भी साफ़ नज़र आते हैं.
1947 के ख़ूनख़राबे ने जम्मू शहर को बदल कर रख दिया और यहां तक कि हिंदू और मुसलमानों के बीच साफ़ तौर एक अंधेरी खाई पैदा कर दी. मगर जम्मू की दरगाहों को देखकर ऐसा लगता है कि इन अंधेरों में विश्वास के दिए अब भी रोशन हैं.