नेट न्यूट्रैलिटी न हो तो आप पर होगा क्या असर?
अमरीकी सरकार ने इंटरनेट न्यूट्रैलिटी के ख़िलाफ़ फ़ैसला दिया है लेकिन इसका मतलब क्या है...
अमरीका में नेट न्यूट्रैलिटी से जुड़े एक कानून को रद्द करने का फ़ैसला किया गया है. दुनिया के कई देशों में इसे लेकर बहस जारी है. भारत भी ऐसे ही कुछ देशों में शामिल है.
दरअसल ये एक ऐसा मुद्दा है जो भारत में हर आय वर्ग के व्यक्ति के साथ सीधे जुड़ा हुआ है. इसके बावजूद आम लोगों में इस मुद्दे को लेकर ज़्यादा समझ विकसित नहीं हो पाई है.
'नेट न्यूट्रैलिटी' का मतलब आख़िर है क्या?
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ऐसे में अगर नेट न्यूट्रैलिटी, फ़्री इंटरनेट, नेटवर्क इक्वैलिटी और ओपन इंटरनेट जैसे शब्द के आस-पास बुनी ये बहस आपको परेशान करती हो तो ये जानकारी आपकी मदद कर सकती है.
क्या है इंटरनेट न्यूट्रैलिटी?
इंटरनेट यूज़र्स के लिए समान स्पीड और समान कीमत पर इंटरनेट उपलब्ध रहने का विचार ही इंटरनेट न्यूट्रैलिटी यानी इंटरनेट तटस्थता है.
इसे आप इस तरह समझ सकते हैं. मसलन, वॉट्सऐप के डेटा पैक की कीमत 65 रुपये और ट्विटर वाले डेटा पैक की कीमत 250 रुपये हो.
जबकि दोनों मोबाइल ऐप के इस्तेमाल के लिए आपको एक ही इंटरनेट की जरूरत होती है. ऐसे में कंपनियां इंटरनेट की उपलब्धता को कीमत से प्रभावित करके आपके चुनने की शक्ति को प्रभावित कर सकती हैं.
दरअसल, नेट न्यूट्रैलिटी (इंटरनेट तटस्थता) वो सिद्धांत है जिसके तहत माना जाता है कि इंटरनेट सर्विस प्रदान करने वाली कंपनियां इंटरनेट पर हर तरह के डेटा को एक जैसा दर्जा देंगी.
इंटरनेट सर्विस देने वाली इन कंपनियों में टेलीकॉम ऑपरेटर्स भी शामिल हैं. इन कंपनियों को अलग अलग डेटा के लिए अलग-अलग कीमतें नहीं लेनी चाहिए.
चाहे वो डेटा अलग-अलग वेबसाइटों पर विजिट करने के लिए हो या फिर अन्य सेवाओं के लिए.
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उन्हें किसी सेवा को न तो ब्लॉक करना चाहिए और न ही उसकी स्पीड स्लो करनी चाहिए. ये ठीक वैसा ही है कि सड़क पर हर तरह की ट्रैफिक के साथ एक जैसा बर्ताव किया जाए.
कारों से उनके मॉडल या ब्रांड के आधार पर पेट्रोल की अलग-अलग कीमतें या अलग रेट पर रोड टैक्स नहीं वसूले जाते हैं.
टेलिकॉम कंपनियां क्यों हैं इसके ख़िलाफ़
ऐसे में ये सवाल उठता है कि टेलीकॉम कंपनियां इंटरनेट नेटवर्क की तटस्थता के ख़िलाफ़ क्यों हैं?
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वे इस बात से परेशान हैं कि नई तकनीक ने उनके कारोबार के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं. उदाहरण के लिए एसएमएस सेवा को व्हॉट्सऐप जैसे लगभग मुफ़्त ऐप ने लगभग मार ही डाला है.
इसलिए वे ऐसी सेवाओं के लिए ज़्यादा रेट वसूलने की कोशिश में हैं जो उनके कारोबार और राजस्व को नुकसान पहुंचा रही हैं.
हालांकि, इंटरनेट सर्फिंग जैसी सेवाएं कम रेट पर ही दी जा रही हैं.
अहम क्यों है इंटरनेट न्यूट्रैलिटी?
एक सवाल ये भी है कि इंटरनेट तटस्थता आपके लिए महत्वपूर्ण क्यों है? इससे मुकरने का एक मतलब ये भी है कि आपका खर्च बढ़ सकते हैं और विकल्प सीमित हो सकते हैं.
उदाहरण के लिए स्काइप जैसी इंटरनेट कॉलिंग सुविधा की वजह से मोबाइल कॉल्स पर असर पड़ सकता है क्योंकि लंबी दूरी की फ़ोन कॉल्स के लिहाज़ से वे कहीं सस्ती हैं.
ये टेलीकॉम सर्विस देने वाली कंपनियों के राजस्व को नुकसान पहुंचा रहा था.
इस नई हक़ीक़त के मुताबिक खुद को ढालने के बजाय कंपनियों ने स्काइप पर किए जाने वाले फ़ोन कॉल्स के लिए डेटा कीमतें बेतहाशा बढ़ा दीं.
इंटरनेट पर फ़ोन कॉल की क्रांति नहीं होती. एयरटेल ने 2015 में कहा था कि वह इंटरनेट कॉल के लिए थ्री-जी यूजर से 10 केबी के चार पैसे या दो रुपये प्रति मिनट की दर से शुल्क वसूलेगा. इंटरनेट पर एक मिनट के कॉल में तकरीबन 500 केबी डाटा खर्च होता है.
इससे उपजी आलोचनाओं की बाढ़ के बाद कंपनी ने बढ़ी दरों को वापस ले लिया और इसके ठीक बाद ट्राई ने इंटरनेट की तटस्थता के सवाल पर एक कंसल्टेशन पेपर जारी कर दिया.
इंटरनेट की तटस्थता के ख़िलाफ़ तर्क
इंटरनेट की तटस्थता के ख़िलाफ़ एक मज़बूत तर्क ये दिया जा रहा है कि सरकार को मुक्त बाज़ार के कामकाज में दखल नहीं देना चाहिए.
यह भी कहा जाता है कि प्रतिस्पर्धा वाले मुक्त बाज़ार में जो सबसे कम कीमतों पर सबसे अच्छी सेवाएं देगा, उसे जीतना चाहिए.
हालांकि इस बात के ख़तरे भी हैं कि कंपनियां अपना एकाधिकार बनाए रखने के लिए गठजोड़ कर लें, खासकर उन बाज़ारों में जहां प्रतिस्पर्धा कम है, जैसे मोबाइल डेटा का बाज़ार.
ऑपरेटर्स का दूसरा तर्क ये है कि उन्होंने अपना नेटवर्क खड़ा करने में हज़ारों करोड़ रुपये खर्च किए हैं जबकि व्हॉट्सऐप जैसी सेवाएं जो मुफ़्त में वॉइस कॉल की सर्विस देकर उनके उन्हीं नेटवर्क्स का मुफ़्त में फ़ायदा उठा रही हैं.
इससे टेलीकॉम कंपनियों के कारोबार को नुकसान पहुंच रहा है.
अगर इंटरनेट न्यूट्रैलिटी ख़त्म हुई तो?
अगर इंटरनेट तटस्थता ख़त्म होती है तो ऑपरेटर इंटरनेट कॉलिंग सर्विस के एवज़ में डेटा कीमतों के अलावा इसके लिए ज़्यादा पैसे वसूल सकते हैं. या फिर इन सेवाओं के लिए अलग से डेटा कीमतें तय की जा सकती हैं.
वे कुछ सेवाओं को ब्लॉक कर सकते हैं या उनकी स्पीड को सुस्त कर सकते हैं ताकि यूजर के लिए इनका इस्तेमाल मुश्किल हो जाए.
उदाहरण के लिए व्हॉट्सऐप की डेटा स्पीड को धीमा करके या फिर इसे महंगा करके यूज़र के लिए इसकी कॉलिंग सर्विस का मज़ा किरकिरा किया जा सकता है.