'येरूशलम अगर इसराइल की राजधानी बना तो गंभीर परिणाम होंगे'
ट्रंप के येरूशलम को इसरायल की राजधानी बनाने के दावे से अटकलें लगातार बढ़ रही हैं.
संभावना है कि अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप बुधवार को अपने संबोधन में येरूशलम को इसराइल की राजधानी की मान्यता देने की घोषणा करें.
इसे लेकर अरब और व्यापक मुस्लिम जगत में विरोध बढ़ रहा है.
ख़बरों में कहा गया है कि राष्ट्रपति इसकी घोषणा इसी सप्ताह करेंगे, लेकिन अमरीकी दूतावास को येरूशलम ले जाने की मांग पर कार्रवाई में देरी होगी.
अरब लीग के मुखिया, तुर्की, जॉर्डन और फ़लस्तीनी नेताओं ने इसके 'गंभीर परिणाम' की चेतावनी दी है.
इसराइल और अरबों के बीच इस शहर के भविष्य को लेकर तीखा मतभेद रहा है. ट्रंप की संभावित घोषणा को लेकर इसराइल सरकार ने कोई टिप्पणी नहीं की है.
अमरीकी दूतावास को इसराइल की राजधानी तेल अवीव से येरूशलम ले जाने को टालने के मसौदे पर ट्रंप को हस्ताक्षर करना है और इसकी समय सीमा सोमवार को ख़त्म हो गई है.
दूतावास को येरूशलम ले जाने के लिए अमरीकी कांग्रेस ने 1995 में एक क़ानून पारित किया था और तबसे ट्रंप समेत सभी राष्ट्रपति हर छह महीने में देरी की अनुमति देते आ रहे हैं.
ट्रंप ने अपने चुनावी अभियान में दूतावास को येरूशलम ले जाने का बार-बार वादा किया था. हालांकि वो अभी अपनी बात पर अड़े हुए हैं, लेकिन उन्होंने अभी तक ऐसा किया नहीं है.
येरूशलमः मध्यपूर्व के तनाव की प्रमुख वजह
येरूशलम अरबों और इसराइलियों के बीच विवाद का एक प्रमुख मुद्दा रहा है. शहर के पूर्व में यहूदी, इस्लाम और ईसाई धर्म के पवित्र धर्म स्थल स्थित हैं.
साल 1967 में मध्य पूर्व युद्ध के दौरान इसराइल ने इस इलाक़े पर कब्ज़ा कर लिया था और पूरे शहर को अपनी अविभाज्य राजधानी घोषित कर दिया था.
फ़लस्तीनी पूर्वी येरूशलम को अपने भविष्य के राज्य की राजधानी होने का दावा करते रहे हैं.
1993 में इसराइल और फ़लस्तीन के बीच हुए शांति समझौते के अनुसार, इस शहर के बारे में भविष्य की शांति वार्ताओं में तय किया जाना था.
हालांकि येरूशलम पर इसराइली अधिकार को कभी भी अंतरराष्ट्रीय मान्यता नहीं मिल पाई और सभी देश यहां तक कि इसराइल के सबसे क़रीबी देश अमरीका ने भी अपना दूतावास तेल अवीव में ही बनाए रखा.
लेकिन 1967 के बाद इसराइल ने यहां पर कई नई बस्तियां बसाई हैं जिनमें क़रीब दो लाख यहूदी रहते हैं.
अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों के मुताबिक, इन्हें अवैध निर्माण माना जाता है हालांकि इसराइल इससे इनकार करता है.
इसरायल-फलस्तीन के बीच शांति समझौता कराएंगे ट्रंप?
https://twitter.com/AymanHsafadi/status/937456932394323968
गंभीर परिणाम की चेतावनी
अगर अमरीका येरूशलम को इसराइल की राजधानी की मान्यता दे देता है तो ये अंतराष्ट्रीय समुदाय से अलग कदम होगा और इसराइल के इस दावे को और समर्थन हासिल होगा कि पूर्वी शहर की नई बस्तियां वैध हैं.
इससे ये भी सवाल खड़ा होगा कि अमरीका संयुक्त राष्ट्र में पूर्वी येरूशलम को लेकर हुई संधियों पर अपना क्या रुख़ अख़्तियार करता है.
अमरीका के पास वीटो अधिकार है और भविष्य में पूर्वी इलाक़े में इसराइली नीतियों को रोकने के लिए लाए गए प्रस्तावों पर वो वीटो कर सकता है.
मध्यपूर्व में अमरीका के सहयोगी देश भी उससे नाखुश हैं और वॉशिंगटन के ख़िलाफ़ उनका विरोध बढ़ रहा है.
येरूशलम में पवित्र इस्लामिक धर्म स्थल के संरक्षक जॉर्डन ने चेतावनी दी है कि अगर ट्रंप आगे बढ़ते हैं तो इसके गंभीर परिणाम होंगे. उसने प्रमुख क्षेत्रीय और अरब लीग और ऑर्गेनाइजेशन ऑफ़ द इस्लामिक कांफ़्रेंस की एक आपात बैठक बुलाई है.
अरब लीग के मुखिया अबुल गेथ ने चेतावनी दी है कि इस तरह के कदम से कट्टरपंथ और हिंसा को बढ़ावा मिलेगा.
तुर्की के उप मुख्यमंत्री बेकिर बोज़दाग ने इसे बड़ा विनाश बताया और कहा कि पहले से ही बहुत नाज़ुक दौर में चल रही शांति वार्ता को ये पूरी तरह बर्बाद कर देगा और नए संघर्ष को जन्म देगा.
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फ़लस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने विश्व नेताओं से हस्तक्षेप की अपील की है.
उन्होंने कहा है कि अमरीका का ये क़दम शांति वार्ता को पटरी से उतार देगा और इलाक़े में अशांति बढ़ाएगा.
अमरीका दशकों से इस मामले में जब तब मध्यस्थता करता रहा है और ट्रंप प्रशासन इस बारे में एक ताज़ा शांति प्रस्ताव पर काम भी कर रहा है.
लेकिन येरूशलम को इज़राइल की राजधानी की मान्यता देने के बाद फ़लस्तीनियों की नज़र में अमरीका निष्पक्ष नहीं रह जाएगा.
हालांकि ये अभी साफ़ नहीं है कि ट्रंप अपने संबोधन में ऐसी कोई घोषणा करेंगे भी या नहीं.
व्हाइट हाउस ने राष्ट्रपति की मंशा की न तो पुष्टि की है और ना ही इनकार किया है और रविवार को एक समारोह में ट्रंप के दामाद और उनके निजी सलाहकार जैरेड कुशनर ने भी इस पर कुछ कहने से इनकार कर दिया था.
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