तो क्या सौदेबाजी करती है टाइम मैग्जीन? ट्रंप ने लगाए आरोप, मोदी के साथ भी दो बार किया 'धोखा'
नई दिल्ली। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक बार फिर विवादों में हैं। यह मामला जुड़ा है 'Time Person of the Year' को लेकर। ट्रंप ने ट्वीट कर लिखा, 'टाइम मैग्जीन ने मुझसे कहा कि वे मुझे पिछले साल की तरह 'टाइम पर्सन ऑफ ईयर' चुन सकते हैं, लेकिन इसके लिए मुझे मैग्जीन को इंटरव्यू देने के साथ ही फोटोशूट के लिए हामी भरनी होगी। मैंने ऑफर ठुकराया और पल्ला झाड़ लिया। खैर धन्यवाद।' कुल मिलाकर ट्रंप का ट्वीट कहता है कि टाइम मैग्जीन ने उन्हें 'पर्सन ऑफ द ईयर' बनाने के लिए इंटरव्यू और फोटोशूट की शर्त रखी थी। दूसरी ओर टाइम मैग्जीन ने ट्रंप के आरोप को सिरे से खारिज कर दिया है। मैगजीन ने ट्वीट कर लिखा, 'राष्ट्रपति को पता नहीं है कि हम (टाइम मैग्जीन) पर्सन ऑफ द ईयर का चुनाव कैसे करते हैं। टाइम तब तक अपनी पसंद का खुलासा नहीं करती, जब तक कि मैग्जीन पब्लिश नहीं हो जाती है। पर्सन ऑफ द ईयर का अंक 6 दिसंबर को प्रकाशित होगा।'
वोट ज्यादा मिले थे मोदी को लेकिन चुने गए ट्रंप
ट्रंप का दावा सही है या टाइम मैग्जीन की सफाई में दम है। यह कहना तो कठिन है, लेकिन इस घटनाक्रम ने 'टाइम पर्सन ऑफ ईयर' के चुनाव की निष्पक्षता को लेकर सवाल तो खड़े कर ही दिए हैं। 2016 में टाइम मैग्जीन के रीडर्स पोल में पीएम नरेंद्र मोदी को सबसे ज्यादा 18 प्रतिशत वोट मिले थे, जबकि डोनाल्ड ट्रंप को महज 7 प्रतिशत, इसके बाद भी ट्रंप को टाइम पर्सन ऑफ द ईयर चुना गया था। ऐसे में सवाल उठता है कि पिछले साल जब ट्रंप को चुना गया था, तब क्या कोई डील हुई थी? या इससे पहले भी हस्तियों के चुनाव में टाइम मैग्जीन 'फायदे का सौदा' जैसी बात देखती है। टाइम पर्सन ऑफ ईयर चुने जाने का उसका तरीका भी उसकी मंशा पर सवाल उठाता है। आइए आपको बताते हैं टाइम पर्सन ऑफ ईयर चुने जाने का पूरा प्रोसेस क्या है?
वोट ज्यादा मिले थे मोदी को लेकिन चुने गए ट्रंप
ट्रंप का दावा सही है या टाइम मैग्जीन की सफाई में दम है। यह कहना तो कठिन है, लेकिन इस घटनाक्रम ने 'टाइम पर्सन ऑफ ईयर' के चुनाव की निष्पक्षता को लेकर सवाल तो खड़े कर ही दिए हैं। 2016 में टाइम मैग्जीन के रीडर्स पोल में पीएम नरेंद्र मोदी को सबसे ज्यादा 18 प्रतिशत वोट मिले थे, जबकि डोनाल्ड ट्रंप को महज 7 प्रतिशत, इसके बाद भी ट्रंप को टाइम पर्सन ऑफ द ईयर चुना गया था। ऐसे में सवाल उठता है कि पिछले साल जब ट्रंप को चुना गया था, तब क्या कोई डील हुई थी? या इससे पहले भी हस्तियों के चुनाव में टाइम मैग्जीन 'फायदे का सौदा' जैसी बात देखती है। टाइम पर्सन ऑफ ईयर चुने जाने का उसका तरीका भी उसकी मंशा पर सवाल उठाता है। आइए आपको बताते हैं टाइम पर्सन ऑफ ईयर चुने जाने का पूरा प्रोसेस क्या है?
टाइम मैग्जीन का सलेक्शन फंडा
टाइम के अनुसार अगर कोई व्यक्ति विशेष, ग्रुप, आइडिया और ऑब्जेक्ट प्रभाव छोड़ता है, तो उसे पर्सन् ऑफ द ईयर चुना जा सकता है। एक सच यह भी है कि इन सभी के केंद्र में अमेरिका होना चाहिए। टाइम ने अब तक जिन लोगों को यह अवॉर्ड दिया, उनमें अमेरिका केंद्र में रहा। यह बात और है कि मैग्जीन खुद को अंतरराष्ट्रीय मानती है, लेकिन फैसले अमेरिकी हितों के हिसाब से ही करती है।
रीडर्स पोल तो महज दिखावा
यह बात सच है कि टाइम मैग्जीन पर्सन ऑफ द ईयर चुनने से पहले रीडर्स पोल कराती है, लेकिन अंतिम फैसला जनता की राय से नहीं होता है, फाइनल कॉल एक कमेटी ही लेती है टाइम के एडिटर रह चुके जिम केली ने पीएम मोदी को 2014 में नहीं चुने जाने के वक्त कहा था, 'मोदी हार गए, क्योंकि एडिटर्स ग्रुप ने उन्हें शॉर्टलिस्ट कर दिया था। 'पर्सन ऑफ द ईयर' वोटिंग से नहीं चुना जाना था। यह फैसला तो टाइम मैगजीन के एडिटर्स की च्वाइस का है. लास्ट कॉल उन्हें लेना होता है।
'पर्सन ऑफ ईयर' के बारे में दिलचस्प बातें
- टाइम मैग्जीन की शुरुआत वर्ष 1927 में हुई थी। इसी साल चार्ल्स लिंडनबर्ग अटलांटिक महासागर को बगैर रुके पार करने वाले विश्व के पहले अकेले पायलट बने थे।
- चार्ल्स उस समय पूरी दुनिया में चर्चा का केंद्र थे, लेकिन टाइम मैग्जीन ने उन पर स्टोरी नहीं की थी। इस वजह से मैग्जीन की काफी आलोचना हो रही थी। टाइम ने आलोचना से बचने के लिए चार्ल्स पर कवर स्टोरी की, जिसे 'मैन ऑफ द ईयर' के नाम से छापा गया था। यहीं से साल के न्यूज मेकर के नाम यानि पर्सन ऑफ द ईयर की शुरुआत हुई, जिसे शुरुआती दौर में मैन ऑफ द ईयर कहा जाता था।
- टाइम मैग्जीन 1999 तक 'मैन ऑफ ईयर' नाम से ही अवॉर्ड देता थी, जिसे बाद में 'पर्सन ऑफ द ईयर' कर दिया गया
- 1930 में महात्मा गांधी को 'मैन ऑफ द ईयर' चुना गया था।
- टाइम ने जब से इस अवॉर्ड की शुरुआत की, तब से लेकर अब तक अपने कार्यकाल के दौरान कम से कम एक बार हर अमेरिकी राष्ट्रपति 'पर्सन ऑफ द ईयर' चुना जस चुका है।
- 1989 में टाइम ने मिखाइल गोर्वाचोव को 'मैन ऑफ डेकेड' चुना था।
- 1999 में एल्बर्ट आइंस्टाइन को टाइम ने 'मैन ऑफ द सेंचुरी' चुना था। आपको जानकर हैरानी होगी कि पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रेंकलिन डी रूजवेल्ट और महात्मा गांधी भी इस रेस में शामिल थे और रनर-अप चुने गए थे।
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