सिकुड़ रहे हैं मर्दों के लिंग, नपुंसकता-बांझपन का खतरा बढ़ा, इंसानों के अस्तित्व पर संकट की रिपोर्ट जारी
न्यूयॉर्क: पुरुषों का लिंग दिनों दिन सिकुड़ता जा रहा है और लोगों के गुप्तांग खराब हो रहे हैं, और इनकी वजह पोल्यूशन है, वैज्ञानिकों के प्रदूषण को लेकर इंसानी समाज के लिए नई चेतावनी जारी की है। पर्यावरण वैज्ञानिकों ने रिसर्च के बाद एक नई किताब में इंसानी समाज पर मंडरा रहे खतरे को लेकर दुनिया को आगाह किया है। वैज्ञानिकों ने कहा है कि धीरे धीरे स्थिति ये बन गई है कि तेजी से एक बड़ा वर्क नपुंसक होता जा रहा है और उनमें प्रजनन की क्षमता तेजी से कम हो रही है।

सिकुड़ रहा है आदमियों का लिंग
इंग्लैंड की प्रसिद्ध पर्यावरण वैज्ञानिक डॉ. शन्ना स्वान ने अपनी किताब में रिसर्च के आधार पर इसे इंसानों के लिए 'अस्तित्व पर संकट' करार दिया है। उन्होंने लिखा है कि इंसानों की प्रजनन क्षमता में तेजी से गिरावट दर्ज की जा रही है जिसकी वजह से इंसानों द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला वो कैमिकल है जो प्लास्टिक बनाने में उपयोग में लाया जाता है। ये कैमिकल इंसानों के अंदर का हॉर्मोंस इंडोक्रीन सिस्टम को डैमेज कर रह है। उन्होंने अपनी रिसर्च के आधार पर दावा किया है कि प्रदूषण की वजह से जो नये बच्चे जन्म ले रहे हैं, उनका लिंग छोटा हो रहा है।

‘काउंटडाउन’ किताब में दावे
वैज्ञानिक डॉ. शन्ना स्वान ने अपनी किताब 'काउंटडाउन' में प्रदूषण और उससे इंसानों के ऊपर पड़ने वाले प्रभावों को लेकर कई विस्तृत बातें लिखी गई हैं। उन्होंने अपनी किताब में लिखा है कि 'हमारा आधुनिक समाज बुरी तरह से स्पर्म को खराब कर रहा है, जो मेल और फिमेल दोनों के लिए प्रजनन करने की क्षमता पर खतरे की घंटी है, और ये संकट आने वाले वक्त में इंसानों के अस्तत्व पर ही संकट पैदा कर देगा'। डॉ. शन्ना स्वान का रिसर्च थैलेट सिंड्रोम के साथ शुरू होता है। उन्होंने अपना रिसर्च एक चूहे पर किया है, जिसमें उन्होंने पाया है कि जब प्रदूषण की वजह से गर्भाषय एक्सपोज होता है और कैमिकल के संपर्क में आता है तो वो गर्भ में पल रहे बच्चों का लिंग छोटा कर देता है। इस रिसर्च के मुताबिक कैमिकल की वजह से एनोजेनिटल डिस्टेंस छोटा हो जाता है और नतीज गर्भ में पल रहे बच्चे पर पड़ता है।

ह्यूमन्स के लिए डेंजरस कैमिकल्स
डॉ. शन्ना स्वान ने रिसर्च के दौरान पाया है कि प्लास्टिक बनाने के जिन कैमिकल्स का इस्तेमाल किया जाता है वो खिलौने के जरिए, प्लास्टिक के जरिए या फिर खाने के जरिए इंसानी शरीर में आ जाता है और फिर इंसानों का विकास रोकने लगता है। ये कैमिकल गर्भाशय में जाने के बाद हॉर्मोन्स को बनने से रोकता है और धीरे धीरे महिलाएं के ऊपर बांझ होने का खतरा मंडराने लगता है। रिसर्च के दौरान डॉ. शन्ना स्वान ने पाया कि इस कैमिकल का प्रभाव गर्भाशय के अंदर शिशुओं का लिंग विकास होने से रोकता है तो ये कैमिकल ब़ड़े लोगों के स्वभाव को भी बदल देता है। डॉ. शन्ना स्वान न्यूयॉर्क के नाउंट सिनाई अस्पताल में पर्यावरण एंड मेडिसिन की डॉक्टर और प्रोफेसर हैं। और उन्होंने काफी कठिन मेहनत के बाद ये खुलासे किए हैं।

स्पर्म लेवल में 50% गिरावट
2017 में पब्लिश एक रिपोर्ट में कहा गया था कि वेस्टर्न कंट्रीज में मर्दों के स्पर्म लेवल में पिछले 40 वर्षों में 50 प्रतिशत से ज्यादा गिरावट आई है। ये रिसर्च 185 स्टडीज के आधार पर 45000 से ज्यादा स्वस्थ मर्दों पर ये रिसर्च किया गया है। डॉ. शन्ना स्वान दिनों दिन इंसानी जमात में फैलती हुई नपुंशकता की बीमारी से काफी चिंतित हैं। उन्होंने कहा है कि 2045 तक ज्यादातर मर्दों के स्पर्म में प्रजनन करने की क्षमता नहीं होगी।
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