अमरीका में राष्ट्रपति चुनाव आख़िर कैसे होगा: दुनिया जहान
एक तरफ़ कोरोना महामारी, दूसरी तरफ़ वोटिंग से जुड़ी दिक़्क़तें और राजनीति का चक्रव्यूह.
नवंबर में होने वाला अमरीकी राष्ट्रपति का चुनाव इस बार कुछ अधिक जटिल और विवादित हो सकता है. कोरोना महामारी के बीच कई तरह की दिक़्क़तें चुनाव प्रक्रिया और नतीजों पर असर डाल सकती हैं.
उदाहरण के लिए, राष्ट्रपति चुनाव से पहले न्यूयॉर्क प्राइमरी में उम्मीदवार चुनने के लिए 23 जून को लोगों ने वोटिंग की. इस चुनाव का नतीजा आमतौर पर उसी दिन घोषित हो जाता है, लेकिन इस बार दो-चार दिन नहीं बल्कि पूरे छह हफ़्ते का वक़्त लग गया.
देरी की वजह थी पोस्टल वोट्स, जिसके साथ बड़ी दिक़्क़तें पेश आईं. कोरोना महामारी की वजह से ज़्यादातर लोगों ने पोस्टल वोटिंग का विकल्प चुना, जिसे सिस्टम संभाल नहीं पाया.
लेकिन ये सिर्फ़ देरी की बात नहीं थी. राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा कि पोस्टल वोटिंग में धोखाधड़ी की आशंका है, इसलिए वोटिंग का ये विकल्प सुरक्षित नहीं है.
दूसरी ओर डेमोक्रेट्स को लगता है कि राष्ट्रपति ट्रंप पोस्टल सर्विस को दुरुस्त ना करके लोगों को पोस्टल वोटिंग से रोकने की कोशिश कर रहे हैं. इस मुद्दे पर अमरीकी राजनीति में काफ़ी बहस हुई है.
सवाल है कि एक तरफ़ कोरोना महामारी, दूसरी तरफ़ वोटिंग से जुड़ी दिक़्क़तें और राजनीति का चक्रव्यूह, ऐसे में अमरीका में इस साल राष्ट्रपति चुनाव आख़िर कैसे होगा?
आटे में नमक बराबर
'मैंने यहां अपना पूरा जीवन इस काम में लगाया है कि पोस्टल वोटिंग सेफ़ और सरल बनी रहे, ताकि अमरीका में ज़्यादा से ज़्यादा लोग वोटिंग करें. लेकिन अब ये सुनकर बहुत दुख होता है कि इलेक्शन वर्कर्स ठीक से वोट नहीं गिनते, ये सुरक्षित नहीं है, इसमें धोखाधड़ी होती है. ये सारे आरोप एकदम निराधार हैं.'
ये दावा है ओडरी क्लाइन का जो अमरीका में 'द नेशनल वोट एट होम इंस्टीट्यूट' की नेशनल पॉलिसी डायरेक्टर हैं.
वो कहती हैं, 'हमारा मानना है कि पोस्टल सर्विस में काम करने वाले ये लोग दरअसल डेमोक्रेसी के सुपर-हीरोज़ हैं. ये लोग हर दिन काम करते हैं, ताकि सुनिश्चित किया जा सके कि हर वोट सही तरीक़े से गिना जाए.'
ओडरी क्लाइन, कोलोराडो में पली-बढ़ी हैं और वहीं रहती हैं. वो अपने परिवार का उदाहरण देते हुए बताती हैं कि पोस्टल वोटिंग अमरीका में क्यों महत्वपूर्ण है.
'मेरी दिवंगत मां को पार्किंसंस की बीमारी थी. लेकिन पोस्टल वोटिंग की वजह से वो घर बैठे वोटिंग कर सकती थीं. मेरे पिता ट्रक ड्राइवर थे. चुनाव के दिन वो कहां होंगे, पता नहीं होता था. मेरा भाई पुलिस ऑफ़िसर है, उसे भी अपनी जॉब की वजह से मुश्किल होती है. लेकिन पोस्टल वोटिंग सारी दिक़्क़तें दूर कर देती है.'
कोलोराडो, अमरीका के उन नौ राज्यों में से एक है जहां सभी मतदाताओं को राष्ट्रपति चुनाव में अपना वोट पोस्टल वोटिंग के ज़रिए देने का विकल्प होगा.
कोलोराडो अमरीका के उन 'पर्पल स्टेट्स' में से एक है, जहां वोटर्स रिपब्लिकन और डेमोक्रेट्स में बराबर-बराबर बंटे हुए हैं. इसलिए जब नवंबर के चुनाव में वोट काउंटिंग होगी, कोलोराडो पर सबकी नज़र होगी.
ओडरी क्लाइन का मानना है कि पोस्टल वोटिंग, वोटर्स को वोटिंग के लिए उत्साहित करती है.
'हमने देखा है कि पोस्टल वोटिंग की वजह से अफ्रीकी-अमरीकी वोटर्स, लैटिन वोटर्स और यंग वोटर्स का वोटिंग पर्सेंटेज़, 16 पर्सेंट तक बढ़ जाता है.'
और यही वो ग्रुप है जिसकी पहली पसंद डेमोक्रेट पार्टी को माना जा रहा है. पोस्टल वोटिंग को बढ़ावा देने पर इसका सीधा नुक़सान डोनाल्ड ट्रंप और उनकी रिपब्लिकन पार्टी को हो सकता है.
ध्यान देने वाली दूसरी बात ये है कि कोरोना महामारी के दौर में पोस्टल वोटिंग का आसान विकल्प मिलने पर ज़्यादा से ज़्यादा लोग वोट देना चाहेंगे.
हालांकि राष्ट्रपति ट्रंप को इसमें धोखाधड़ी की ज़्यादा आशंका नज़र आती है. लेकिन ओडरी क्लाइन इसे सिरे से ख़ारिज करती हैं. वैसे एक रिसर्च के मुताबिक़ पोस्टल वोटिंग में धांधली की गुंजाइश आटे में नमक के बराबर हो सकती है, उससे अधिक नहीं.
राजनीति का तड़का
बीबीसी के नॉर्थ अमरीका रिपोर्टर एंथनी जर्चर का मानना है कि साल 1776 में आज़ादी मिलने के ऐलान के बाद अमरीकी नेताओं ने यूएस पोस्टल सर्विस का महत्व ठीक तरह से समझा और ये महकमा अमरीका में आम लोगों की ज़िंदगी का एक अहम हिस्सा रहा है.
एंथनी जर्चर कहते हैं, 'उन्होंने इसे देश को एक सूत्र में बांधने वाले संस्थान के तौर पर देखा. बीते कुछ वर्षों के दौरान अमरीकियों को कभी-कभी इससे कुछ शिकायतें रही हैं, इसके बावजूद ये सबसे लोकप्रिय सरकारी संस्थानों में से एक रहा है.'
नवंबर में होने वाले अमरीकी चुनाव की वजह से यूएस पोस्टल सर्विस पर काम का बोझ बढ़ सकता है. लेकिन ये सर्विस पहले ही ऑपरेशनल दिक़्क़तों से जूझ रही है.
कम्युनिकेशन में ईमेल का इस्तेमाल बढ़ने की वजह से बीते 20 साल के दौरान यूएस पोस्टल सर्विस में गिरावट आई है. कोरोना महामारी की वजह से इसकी समस्याएं और बढ़ी हैं. एक अनुमान के मुताबिक़ यूएस पोस्टल सर्विस को 13 अरब डॉलर तक का नुक़सान हो सकता है.
यूएस पोस्टल सर्विस की कमान फ़िलहाल लुइस डिजॉय के हाथ में हैं जो राष्ट्रपति ट्रंप के समर्थक हैं.
सर्विस की ख़स्ताहाल होती हालत को सुधारने के लिए डेमोक्रेट्स ने एक्स्ट्रा फ़ंडिग के लिए एक बिल पेश किया, जिसे राष्ट्रपति ट्रंप ने नकार दिया. डेमोक्रेट्स को लगता है कि ऐसा करके राष्ट्रपति ट्रंप ने पोस्टल वोटिंग को प्रभावित करने की कोशिश की है.
वॉशिंगटन डीसी में बीबीसी संवाददाता एंथनी जर्चर के मुताबिक़, 'पोस्टल वर्कर्स का ओवर-टाइम कम कर दिया गया है. सड़कों पर दौड़ते उनके ट्रक कम कर दिए गए हैं. सॉर्टिंग मशीनों को हटाया गया है. हालांकि यूएस पोस्टमास्टर जनरल ने कांग्रेस को भरोसा दिलाया है कि राष्ट्रपति चुनाव में कोई दिक़्क़त नहीं होगी. लेकिन इस दौरान हुई कोई भी गड़बड़ी अमरीकी चुनाव के नतीजों को प्रभावित कर सकती है.'
दिक़्क़त किस हद तक हो सकती है, जून में हुआ न्यूयॉर्क प्राइमरी चुनाव इसका बेहतरीन उदाहरण है.
कोरोना महामारी की वजह से दस गुना ज़्यादा पोस्टल वोटिंग हुई, लेकिन जब काउंटिंग हुई तो न्यूयॉर्क में प्रत्येक पाँच में से एक पोस्टल वोट रिजेक्ट हो गया.
कई पोस्टल वोट्स देर से पहुंचे और कई ग़लत तरीक़े से भरे होने की वजह से किसी काम के नहीं थे.
निष्कर्ष ये निकला कि न्यूयॉर्क का पोस्टल वोटर अपने वोट का इस्तेमाल नहीं कर पाया और सिस्टम इस ज़िम्मेदारी को संभाल नहीं पाया.
बीबीसी संवाददाता एंथनी जर्चर के मुताबिक़, 'हज़ारों पोस्टल वोट, इलेक्शन डे के बाद पहुंचे. पोस्टल सर्विस यदि सही तरीक़े से काम कर पा रही होती, तो ये वोट सही समय पर सही जगह पहुंचते. वैलिड वोट्स, काउंटिंग में शामिल ही नहीं हो सके. ये चिंता की बात है, क्योंकि इससे ऐसा लगता है कि अमरीका की सही आवाज़ को अनसुना किया जा रहा है.'
कई जानकारों का मानना है कि पोस्टल सर्विस की समस्या में राजनीति का तड़का लगा दिया गया है, क्योंकि रिपब्लिक पार्टी के समर्थकों की तुलना में डेमोक्रेट पार्टी के समर्थक पोस्टल वोटिंग को ज़्यादा पसंद करते हैं. ये रुझान जो बाइडन के पक्ष में है जो ट्रंप को टक्कर दे रहे हैं.
वोट की चोरी
'जितने ज़्यादा लोग यूएस पोस्टल सर्विस के ज़रिए वोट देंगे, उतने अधिक लोगों के वोट बर्बाद होंगे, क्योंकि उनकी गिनती ही नहीं होगी.'
ये दावा है हंसफंस पकोवस्की का जो कंसरवेटिव थिंक टैंक- 'द हैरिटेज फ़ाउंडेशन' में सीनियर फ़ेलो हैं. पोस्टल वोटिंग पर उन्हें हमेशा संदेह रहा है.
उनका मानना है कि पोस्टल वोटिंग की प्रक्रिया इतनी लंबी होती है कि उसमें गड़बड़ी की गुंजाइश अपने आप बढ़ जाती है.
वो कहते हैं, 'आशंका इस बात की होगी कि वोट सही समय पर सही जगह नहीं पहुंचेगा तो गिनती में शामिल ही नहीं होगा. या फिर सारी ज़रूरी जानकारी नहीं देने पर चुनाव अधिकारी पोस्टल वोट को रद्द कर देंगे. इससे बेहतर होता है ख़ुद जाकर वोट देना जहां आप अपने हाथ से बैलेट बॉक्स में वोट डालते हैं. मेरी दूसरी चिंता ये है कि पोस्टल बैलेट, चुनाव अधिकारियों की निगरानी में नहीं होते हैं. इसमें पारदर्शिता नहीं होती, जिसकी चुनाव में सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती है.'
गड़बड़ी के आरोपों को बल मिलता है साल 2018 के कांग्रेशनल इलेक्शन से, जब नॉर्थ कैरोलाइना में पोस्टल बैलेट्स लोगों के घर के पते पर भेजे गए, लेकिन कथित तौर पर ग़लत हाथों में पड़ गए. इससे चुनाव के नतीजों पर असर पड़ा.
हंसफंस पकोवस्की के मुताबिक़, 'गड़बड़ी करने वालों ने लोगों की ग़ैर-मौजूदगी में, उनके घर से पोस्टल बैलेट कलेक्ट किए और जाली दस्तख़त करके अपनी पंसद के उम्मीदवार को वोट दे दिया. इसका मतलब ये हुआ कि आपका वोट किसी और ने चुरा लिया.'
लेकिन फिर भी कोरोना महामारी के बीच जोखिम मोल लेकर कोई व्यक्ति पोलिंग स्टेशन जाकर वोट देने की ज़हमत क्यों उठाना चाहेगा ?
इस सवाल पर हंसफंस पकोवस्की कहते हैं, 'मैं ये बात समझता हूं लेकिन लोगों को भी ये समझने की ज़रूरत है कि महामारी के दौरान भी सुरक्षित तरीक़े से वोट दिया जा सकता है. जब आप रोज़मर्रा की चीज़ें लेने के लिए बाहर निकल सकते हैं तो वोट देने के लिए क्यों नहीं जा सकते.'
चुनाव मतलब राजनीति
'मुझे लगता है कि ज़्यादातर लोग इस ट्रेंड को मानते हैं कि वोटिंग प्रोसेस जब आसान होती है, तो डेमोक्रेट्स को ज़्यादा और रिपब्लिकंस को कम वोट मिलते हैं.'
ये मानना है एंड्रयू हा का जो स्टेनफ़र्ड यूनिवर्सिटी में पॉलिटिकल साइंस के प्रोफ़ेसर हैं.
एंड्रयू हा के मुताबिक़, 'जब आप रणनीति के हिसाब से इसका विश्लेषण करेंगे तो पाएँगे कि डेमोक्रेट्स, वोटिंग प्रोसेस को आसान बनाना चाहते हैं ताकि यंग वोटर ज़्यादा वोट करें. जबकि रिपब्लिकंस इसका उल्टा चाहेंगे.'
शायद इसी वजह से राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इस बात पर ज़ोर देते रहे हैं कि ज़्यादा पोस्टल वोटिंग रिपब्लिकंस के लिए घातक होगी. लेकिन प्रोफ़ेसर एंड्रयू हा का मानना है कि इसका मतलब धांधली या गड़बड़ी नहीं होती.
वो कहते हैं, 'पोस्टल वोट में धांधली के दावों पर मुझे तो संदेह होता है. ज़्यादा पोस्टल वोट ग़लत होने की वजह से रद्द भी हो सकते हैं. सही और ग़लत के बीच कितना फ़ासला हो सकता है, कहा नहीं जा सकता. लेकिन कोरोना महामारी की वजह से ज़्यादा लोग पोस्टल बैलेट का इस्तेमाल करना चाहेंगे और इससे निश्चित तौर पर फ़र्क़ पड़ेगा.'
फिर भी डेमोक्रेट्स किसी फ़र्क़ के फेर में ना पड़कर वोटर्स से अपील कर रहे हैं कि ऐसे या वैसे, चाहे जैसे वोट करें, लेकिन वोट ज़रूर दें.
एंड्रयू हा के मुताबिक़, 'ओबामा और अन्य डेमोक्रेट नेता आगे आकर वोटर्स से बात कर रहे हैं. वो ये नहीं कह रहे हैं कि ये अच्छा है वो बुरा है. महत्वपूर्ण है संवाद जो वो कर रहे हैं, वो बस उन दिक़्क़तों की बात कर रहे हैं जो मौजूदा हालात में हो सकती हैं.'
इसमें संदेह नहीं कि नवंबर में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के लिए अमरीका में पहली बार अधिक से अधिक लोगों के पास पोस्टल वोटिंग का विकल्प होगा और इसके पीछे वजह होगी कोरोना महामारी.
चुनाव का नतीजा चाहे जो निकले, लेकिन इतना पक्के तौर पर कहा जा सकता है कि जब ज़्यादा लोग पोस्टल वोटिंग करेंगे तो काउंटिंग और नतीजे आने में भी देरी होगी.
दूसरी संभावना ये होगी कि देरी की वजह से नतीजों पर विवाद हो सकता है जिसके समाधान के लिए अदालत का दरवाज़ा खटखटाना पड़ सकता है.
और यही वजह है कि अमरीकी राष्ट्रपति का चुनाव इस बार पहले से कहीं ज़्यादा जटिल और दिलचस्प नज़र आ रहा है.