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चीन-ईरान की सामरिक साझेदारी से कैसे बदल जाएगी मध्य पूर्व की सूरत

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नई दिल्ली- चीन और ईरान के बीच गुपचुप तरीके से एक बहुत बड़ा सैन्य और व्यापारिक समझौता होने की बातें सामने आ रही हैं। इस डील के तहत चीन आने वाले 25 वर्षों में ईरान में 400 अरब डॉलर का निवेश करेगा। अमेरिकी अधिकारियों की मानें तो इस डील में यह भी व्यवस्था है कि इसकी वजह से चीन को ईरान में अपना मिलिट्री बेस तैयार करने का भी मौका मिल जाएगा। जाहिर है कि अगर ऐसा हुआ तो आने वाले वर्षों में मध्य पूर्व की पूरी जियोपॉलिटी ही बदल जाने के आसार बन जाएंगे। कहा जा रहा है कि इस डील की नींव तभी पड़ गई थी, जब 2016 में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग तेहरान की यात्रा पर गए थे। खबरों के मुताबिक ताजा प्रस्ताव को ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी और विदेश मंत्री मोहम्मद जवाद जारीफ ने दो हफ्ते पहले ही मंजूरी दी है।

चीन-ईरान की सामरिक साझेदारी के मायने ?

चीन-ईरान की सामरिक साझेदारी के मायने ?

न्यू यॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक आने वाले 25 वर्षों तक चीन, ईरान के बैंकिंग, टेलिकम्युनिकेशन (5जी), पोर्ट, रेलवे से लेकर दर्जनों प्रोजेक्ट में अपनी मौजूदगी बढ़ाएगा। इसके बदले में ईरान चीन को आने वाले 25 साल तक बहुत ही मामूली कीमत पर तेल की सप्लाई की गारंटी देगा। लेकिन, ईरान-चीन की इस साझेदारी में सबकी नजर उस डिफेंस डील के मसौदे को लेकर है, जो मध्य पूर्व के जियोपॉलिटी में तो उलटफेर करेगा ही, अमेरिका-यूरोप से लेकर दक्षिण-पूर्वी एशिया पर भी प्रभाव डाल सकता है। क्योंकि, दोनों देशों के बीच जो मसौदा तैयार हुआ है, उसमें सैन्य सहयोग बढ़ाने (प्रशिक्षण और युद्धाभ्यास) से लेकर साझा रिसर्च और वेपन डेवलपमेंट प्रोग्राम में हाथ मिलाना भी शामिल है।

कैसे बदल जाएगी मध्य पूर्व की सूरत

कैसे बदल जाएगी मध्य पूर्व की सूरत

गौर करने वाली बात ये है कि दोनों देशों में यह डील ऐसे वक्त में हो रही है, जब अमेरिकी पाबंदियों के चलते ईरान की अर्थव्यवस्था डगमाग चुकी है। अमेरिका धमका चुका है कि जो भी कंपनी ईरान में कारोबार करेगी, उसे वैश्विक वित्तीय व्यवस्था से काट दिया जाएगा। वैसे इस डील पर अभी ईरान की संसद की मुहर लगनी बाकी है, लेकिन उसके अधिकारी सार्वजनिक तौर पर इस तरह की खिचड़ी पकने की बात कबूल कर चुके हैं। इस डील का जो प्रस्तावित ड्राफ्ट है, उसमें दोनों देशों को एशिया के प्राचीन संस्कृति वाला देश बताया गया है, जो व्यापार, अर्थव्यवस्था, राजनीति, संस्कृति और सुरक्षा जैसे मसलों पर आपसी समजबूझ के साथ रणनीतिक साझेदारी की इच्छा रखते हैं। कुल मिलाकर इस प्रस्ताव के करीब 100 प्रोजेक्ट हैं, जिसमें चीन निवेश करेगा और जाहिर है कि इसके जरिए चीन अपने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) को भी आगे बढ़ाने की कोशिश करेगा, जो पूरे यूरेशिया क्षेत्र पर सामरिक रूप से प्रभाव डाल सकता है।

'ईरान की हताशा ने उसे चीन की बाहों में धकेल दिया'

'ईरान की हताशा ने उसे चीन की बाहों में धकेल दिया'

न्यू यॉर्क टाइम्स लिखता है कि कई दशकों से मध्य पूर्व में अमेरिकी फॉज का दबदबा बना हुआ था। लेकिन, इस करार से चीन इस क्षेत्र में अपना दबदबा बढ़ाना शुरू कर देगा। वह इस इलाके में कई पोर्ट विकसित करेगा और जाहिर है कि उसके साथ ही वह यहां अपनी सैन्य क्षमता का भी विस्तार करना शुरू कर दे। ऐसे में तेल के लिए इस अहम क्षेत्र पर धीरे-धीरे चीन का दखल बढ़ सकता है। न्यू यॉर्क टाइम्स ने इस स्थिति के लिए इशारों में अमेरिका राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों पर भी उंगली उठाई है। अखबार ने लिखा है कि 2017 में सत्ता में आने के बाद वे 2015 के ईरान परमाणु समझौते से अलग हो गए। इसकी वजह से उसका न्यूक्लियर प्रोग्राम ठप पड़ गया। इसके बाद उन्होंने ईरान पर पाबंदियां लगाकर उसकी अर्थव्यवस्था तबाह कर दी। अखबार लिखता है कि अब 'तेहरान की हताशा ने इसे चीन की बाहों में धकेल दिया है।' जाहिर है कि इस वक्त चीन और ईरान दोनों अमेरिका को सबक सिखाना चाहते हैं, इसलिए दोनों ने हाथ मिला लिया है। क्योंकि, इससे पहले ईरान व्यापार और निवेश के लिए यूरोपीय देशों के ही ज्यादा करीब था, लेकिन उसकी स्थिति ऐसी हो गई है कि आज वह ड्रैगन की गोद में बैठने जा रहा है।

इसे भी पढ़ें- भूटान के जिस 'येति क्षेत्र' पर चीन ने जताया था दावा, वहां पर सड़क बनाएगा भारत

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English summary
How will the Middle East change with China-Iran strategic partnership
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