इन 8 मर्दानियों ने कोरोना के कहर से कुछ यूं बचाया अपने देश को
नई दिल्ली। अब महिलाओं ने सत्ता के संचालन में भी अपना सिक्का जमा लिया है। आमतौर पर महिलाओं के राजनीतिक कौशल को पुरुषों की तुलना में कमतर आंका जाता रहा है। लेकिन अब यह मिथक भी टूट गया। कोरोना संकट से निबटने में महिला शासनाध्यक्षों ने पुरुष समकक्षों से बेहतर प्रदर्शन किया है। जर्मनी, न्यूजीलैंड, डेनमार्क, नार्वे, फिनलैंड, आइसलैंड, सर्विया और स्लोवाकिया जैसे देशों में महिला शासकों ने कोरोना के खिलाफ सफल लड़ाई लड़ी है। इनके सामने अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, इंग्लैंड के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन, इटली के प्रधानमंत्री ग्यूसेप कोंते और स्पेन के प्रधानमंत्री पेट्रो सांचेज भी फीके पड़ गये हैं।
जर्मनी की चांसलर एजेला मर्केल
जर्मनी
की
चांसलर
एजेला
मर्केल,
उम्र
65
साल
कोरोना
संक्रमित
-
1.59
लाख,
मौत-
6126
कोरोना
संकट
के
दौर
में
एंजेला
मर्केल
दुनिया
की
सबसे
मजबूत
नेता
के
रूप
में
उभरी
हैं।
उन्होंने
कोरोना
संक्रमण
को
रोकने
के
लिए
त्वरित
फैसले
लिये।
बेबाकी
से
अपनी
बात
कही।
उन्होंने
लॉडाउन
जैसे
शब्दों
का
इस्तेमाल
नहीं
किया।
केवल
इतना
ही
कहा
था,
वे
समझती
हैं
कि
आजादी
कितनी
जरूरी
है,
लेकिन
उससे
भी
जरूरी
इंसान
की
जिंदगी
है।
आइसोलेशन
और
फिजिकल
डिस्टेंसिंग
पर
अधिक
जोर
दिया
गया।
जर्मनी
की
न्यूनतम
कोरोना
मृत्यु
दर
दुनिया
भर
में
चर्चा
का
विषय
है।
अमेरिका
या
इंग्लैंड
में
अक्सर
ये
पूछा
जा
रहा
है
कि
कोरोना
से
निबटने
में
क्यों
नहीं
जर्मनी
मॉडल
को
अपनाया
जा
रहा
है।
एंजेला
पिछले
15
साल
से
सत्ता
में
हैं।
पिछले
कुछ
समय
से
उनकी
राजनीतिक
स्थिति
कमजोर
हो
रही
थी।
लेकिन
कोरोना
महामारी
के
समय
उन्होंने
जो
नेतृत्व
कौशल
दर्शाया
उससे
जर्मनी
के
नागरिक
उनके
मुरीद
हो
गये।
उन्होंने
जनवरी
के
शुरू
में
ही
कोरोना
टेस्ट
किट
तैयार
करने
का
आदेश
दे
दिया
था।
जनवरी
के
अंत
तक
जांच
भी
शुरू
हो
गयी
थी।
घर-घर
जांच
करने
के
लिए
उपकरणों
से
लैस
टैक्सियां
चलायीं
गयीं।
एक
सप्ताह
में
ही
एक
लाख
से
अधिक
लोगों
की
जांच
हो
गयी।
अधिक
जांच
और
समय
पर
आइसोलेट
होने
के
कारण
जर्मनी
कोरोना
के
कहर
को
एक
हद
तक
रोकने
में
सफल
रहा।
न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जेसिंडा अर्डर्न
न्यूजीलैंड
की
प्रधानमंत्री
जेसिंडा
अर्डर्न,
उम्र
39
साल
कोरोना
संक्रमित-
1472,
मौत-
19
जब
चीन
में
कोरोना
ने
मौत
का
तांडव
शुरू
किया
था
तब
जेसिंडा
ने
ही
सबसे
पहले
उसके
संकट
को
पहचाना
था।
न्यूजीलैंड
ने
22
जनवरी
से
ही
कोरोना
की
जांच
शुरू
कर
दी
थी।
जब
कि
जनवरी
में
भारत,
अमेरिका
और
इंग्लैंड
जैसे
आधिकांश
देश
आराम
की
मुद्रा
में
थे।
इन
देशों
में
सघन
जांच
की
व्यवस्था
लागू
नहीं
हो
पायी
थी।
जब
न्यूजीलैंड
ने
जनवरी
में
जांच
शुरू
की
थी
तब
कोई
संक्रिमत
नहीं
मिला
था।
इसके
बाद
भी
जांच
प्रक्रिया
शिथिल
नहीं
की
गयी
थी।
कोरोना
का
मरीज
मिले
या
नहीं
मिले,
जांच
जारी
रही।
यह
सावधानी
कम
आयी।
एक
महीने
दो
दिन
के
बाद
यानी
26
फरवरी
को
न्यूजीलैंड
में
पहला
पोजिटिव
केस
मिला।
इसके
बाद
सतर्कता
और
बढ़ा
दी
गयी।
न्यूजीलैंड
की
कामयाबी
में
तीन
चीजों
का
अहम
योगदान
है-
भौगोलिक
स्थिति,
कम
आबादी
और
समय
पर
फैसला।
फिनलैंड - सना मरिन- दुनिया की सबसे युवा प्रधानमंत्री
सना
मरिन-
दुनिया
की
सबसे
युवा
प्रधानमंत्री
उम्र
34
साल
कोरोना
संक्रमित
-
4695,
मौत-
193
फिनलैंड
उत्तरी
यूरोप
का
एक
खुशहाल
देश
है।
इसकी
आबादी
करीब
55
लाख
है।
पूरब
में
इसकी
सीमा
रूस
से
और
पश्चिम
में
नार्वे
से
मिलती
है।
फिनलैंड
में
कोरोना
का
पहला
कंफर्म
केस
29
जनवरी
को
मिला
था।
पहली
संक्रमित
महिला
चीन
की
थी
और
वुहान
की
यात्रा
कर
फिनलैंड
लौटी
थी।
इसके
बाद
प्रधानमंत्री
सना
मारिन
ने
सभी
अस्पतालों
में
अधिक
अधिक
से
क्वारेंटाइन
वार्ड
बनाने
का
निर्देश
दिया।
स्थिति
से
निबटने
के
लिए
सरकार
ने
16
मार्च
को
इमरजेंसी
लागू
कर
दी।
देश
की
सीमा
सील
कर
दी
गयी।
(13
अप्रैल
के
बाद
सीमा
खोल
दी
गयी)
कोरोना
संकट
से
निबटने
के
लिए
12
खरब
42
अरब
रुपये
(15
बिलियन
यूरो)
के
पैकेज
की
घोषणा
की
गयी।
केवल
55
लाख
की
आबादी
वाले
देश
में
इतनी
विशाल
धनराशि
के
सपोर्ट
पैकेज
से
हर
काम
आसान
हो
गया।
कोरोना
की
जांच
और
इलाज
पर
भरपूर
पैसा
खर्च
किया
गया।
खाने-पीने
की
कोई
कमी
नहीं
रही।
वुहान
से
लौटी
चीनी
महिला
फिनलैंड
तबाही
फैला
सकती
थी
लेकिन
प्रधानमंत्री
सना
मारिन
ने
सही
समय
पर
सटिक
फैसला
लेकर
अपने
देश
को
बचा
लिया।
एक
ऐसी
प्रधानमंत्री
जिसकी
उम्र
सिर्फ
34
साल
है,
उसने
योग्यता
से
परिपक्व
नेताओं
को
भी
पीछे
छोड़
दिया।
डेनमार्क- प्रधानमंत्री- मेट्टे फ्रेडेरिकसेन- 41 साल
डेनमार्क-
प्रधानमंत्री-
मेट्टे
फ्रेडेरिकसेन-
41
साल
कोरोना
संक्रमित-
8698,
मौत-
427
41 साल की मेट्टे फ्रेडेरिकसेन डेनमार्क की सबसे युवा प्रधानमंत्री हैं। उन्होंने फरवरी में कोरोना से निबटने की तैयारी तेज कर दी थी। डेनमार्क में पहला कोरोना संक्रमित 27 फरवरी को मिला था। संक्रमण रोकने के लिए 13 मार्च को कठोर लॉकडाउन लागू किया गया। डेनमार्क यूरोप का दूसरा देश था जिसने सबसे पहले लॉकडाउन लागू किया था। एक महीने तक क्वारेंटाइन और फिजिकल डिस्टेंसिंग का कड़ाई के साथ पालन किया गया। एक महीने बाद जब कोरोना का असर कम हुआ तो लॉकडाउन में कुछ छूट दी गयी। 15 अप्रैल से पांचवीं कक्षा तक के स्कूल खुल गये। निर्देश के मुताबिक बच्चे दूरी बना कर पढ़ रहे हैं। 10 से अधिक लोग एक जगह जमा नहीं होंगे। शुरू में फैसला लेने की वजह से डेनमार्क में कोरोना मौत की संख्या बहुत कम रही। देश के नागरिकों ने प्रधानमंत्री मेट्टे फ्रेडेरिकसेन के कामकाज पर संतोष जताया है। एक सर्वे के मुताबिक मेट्टे फ्रेडेरिकसेन की लोकप्रियता पहले से दोगुनी हो गयी है।
नार्वे की प्रधानमंत्री इरना सोलबर्ग
नार्वे
की
प्रधानमंत्री
इरना
सोलबर्ग,
उम्र
59
साल
कोरोना
संक्रमित
7599
,
मौत-
205
नोर्वे में कोरोना की महामारी फरवरी में शुरू हुई थी। जब कोरोना का संक्रमण तेजी से फैलने लगा तो 12 मार्च से फिजिकल डिस्टेंसिंग को कठोरतापूर्वक लागू कर दिया गया। वहां इटली और ऑस्ट्रिया से आने वाले पर्यटकों की वजह से कोरोना का फैलाव हुआ था। 13 मार्च से सभी हवाई यात्रा पर रोक लगा दी गयी। देश के अंदर किसी विदेशी के आने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। सुरक्षा उपायों पर सख्त अनुपालन की वजह से कोरोना के पांव उखड़ने लगे। प्रधानमंत्री इरना सोलबर्ग की सरकार ने 6 अप्रैल को घोषित किया कि अब कोरोना कंट्रोल में है। एक दिन बाद से लॉकडाउन को शिथिल किया जाने लगा। प्रधानमंत्री इरिना ने देश के नागरिकों से अपील की है कि वे शारीरिक दूरी बना कर ही लॉकडाउन की छूट का फायदा उठा सकते हैं। 15 जून तक भीड़ के इकट्ठा होने पर रोक है। इस दौरान किसी तरह का समारोह नहीं हो सकता।
आइसलैंड – प्रधानमंत्री कैटरिन जैकोबस्डोटिर
आइसलैंड
-
प्रधानमंत्री
कैटरिन
जैकोबस्डोटिर,
उम्र
44
साल
कोरोना
संक्रमित-
1792,
मौत-
10
आइसलैंड
उत्तर
पूर्वी
यूरोप
का
एक
देश
है
जो
अटलांटिक
महासागर
में
अवस्थिति
एक
द्वीप
है।
इस
देश
की
आबादी
केवल
3
लाख
60
हजार
है।
आइसलैंड
दुनिया
का
वह
देश
हैं
जहां
से
बसे
अधिक
कोरोना
टेस्ट
किये
गये
हैं।
एक
तो
इस
देश
की
आबादी
बहुत
ही
कम
है
ऊपर
से
यहां
आने
के
लिए
केवल
एक
ही
रास्ता
है।
आइसलैंड
में
केवल
एक
ही
एयरपोर्ट
है
जहां
विमान
से
कोई
देश
में
आ
या
जा
सकता
है।
अमेरिका
के
प्रोफेसर
जॉन
इयोनिडिस
का
मानना
है
कि
अभी
दुनिया
में
सबसे
बेहतरीन
प्रयोगशाला
आइसलैंड
में
ही
है।
यह
देश
वैज्ञानिकों
का
घर
माना
जाता
है।
अनुवांशिक
विज्ञान
की
खोज
में
यह
देश
सबसे
आगे
है।
वैज्ञानिकों
का
देश
होने
की
वजह
से
आइसलैंड
में
कोरोना
की
सबसे
अधिक
जांच
हुई।
चूंकि
देश
में
बाहर
से
आने
वाले
लोगों
की
संख्या
बहुत
कम
थी
इसलिए
उनकी
म़ॉनिटरिंग
आसान
रही।
प्रधानमंत्री
कैटरिन
जैकोबस्डोटिर
(Katrin
Jakobsdottir)
देश
के
सभी
नागरिकों
के
लिए
फ्री
टेस्ट
की
सुविधा
उपलब्ध
करायी।
जिनमें
कोरोना
के
लक्ष्ण
थे
या
नहीं
थे,
सभी
की
जांच
हुई।
इसका
नतीजा
है
कि
आज
आइसलैंड
में
कोरोना
से
कवल
10
ही
मौत
हुई
है।
सर्बिया की प्रधानमंत्री- एना बर्नाबिक
सर्बिया
की
प्रधानमंत्री-
एना
बर्नाबिक
उम्र
45
साल
कोरोना
संक्रिमत-
8275
,
मौत-
162
वैसे
तो
सर्विया
में
शासन
की
शक्तियां
राष्ट्रपति
में
निहित
हैं
लेकिन
प्रधानमंत्री
एना
बर्नाबिक
ने
कोरोना
की
रोकथाम
के
लिए
शानदार
काम
किया
है।
फोर्ब्स
मैगजीन
ने
उन्हें
दुनिया
की
21वीं
सबसे
शक्तिशाली
महिला
राजनीतिज्ञ
करार
दिया
है।
सर्विया
में
कोरोना
से
लड़ने
के
लिए
जो
क्राइसिस
कमेटी
बनायी
गयी
है
उसकी
कमान
एना
ब्रनाबिक
के
ही
हाथ
में
है।
यूरोप
में
जिस
तरह
से
कोरोना
ने
मौत
का
तांडव
किया
उससे
अपने
देश
को
बचा
कर
एना
ने
अपनी
राजनीतिक
योग्यता
सिद्ध
कर
दी
है।
एना
जितनी
प्रखर
प्रशासक
हैं
उतनी
ही
बोल्ड
भी
हैं।
उन्होंने
खुद
को
समलैंगिक
कहने
का
साहस
दिखाया
है।
वे
सर्बिया
की
और
दुनिया
की
पहली
समलौंगिक
प्रधानमंत्री
हैं।
स्लोवाकिया की राष्ट्रपति जुजाना कैपुटोवा
स्लोवाकिया
की
राष्ट्रपति
जुजाना
कैपुटोवा,
उम्र
46
साल
कोरोना
संक्रिमत
-1381,
मौत-
18
जुजाना
कैपुटोवा
स्लोवाकिया
की
पहली
महिला
राष्ट्रपति
हैं।
उन्होंने
कोरोना
की
रोकथाम
के
लिए
अनोखा
रास्ता
अपनाया
था।
जब
अधिकतर
लोगों
ने
मास्क
और
दस्तानों
के
इस्तेमाल
में
दिलचस्पी
नहीं
दिखायी
तो
कैपुटोवा
ने
इस
अभियान
को
स्टाइल
स्टेटमेंट
बना
दिया।
उन्होंने
अपने
गुलाबी
ड्रेस
के
साथ
मैचिंग
मास्क
और
दस्ताने
पहन
एक
तस्वीर
जारी
की।
कोरोना
के
खौफ
के
बीच
फैशन
की
एक
नयी
राह
निकल
गयी।
उनकी
इस
तस्वीर
के
सार्वजनिक
होते
ही
लोग
अपने
कपड़ों
के
साथ
मैचिंग
मास्क
पहनने
लगे।
स्लोवाकिया
में
कोरोना
का
संक्रमण
कुछ
देर
से
हुआ
था।
पहला
मामला
6
मार्च
को
सामने
आया
था।
संक्रमण
रोकने
के
लिए
12
मार्च
से
देश
में
आपातकाल
लगा
दिया
गया।
विदेश
से
आने
वालों
को
अनिवार्य
रूप
से
क्वारेंटाइन
में
भेजा
जाने
लगा।
25
मार्च
से
फेस
मास्क
पहनना
जरूरी
हो
गया।
जब
कोरोना
का
प्रभाव
कम
हुआ
तो
22
अप्रैल
से
लॉकडाउन
में
कुछ
छूट
दी
गयी
है।