किम जोंग उन अब इतने क्रूर नहीं रहे, मून ने बदल डाला पूरे कोरियाई प्रायद्वीप का नजारा
नई दिल्ली। कोरियाई प्रायद्वीप में पिछले 10 महीनों में जो अभूतपूर्व परिवर्तन देखने को मिला है, इसके लिए साउथ कोरिया के राष्ट्रपति मून जे-इन की कोशिशों को हमेशा याद किया जाएगा। कोरियाई प्रायद्वीप में अस्थिरता का खतरा एशिया से होकर अमेरिका तक बढ़ता चला जाता है, इसलिए सबसे खतरनाक सीमा मानी जाने वाली डिमिलिट्रिलाइज जोन पर अगर शांति है, तो पूरी दुनिया के लिए अच्छा संकेत है। इस साल यह तीसरी बार है जब साउथ कोरिया और नॉर्थ कोरिया के राष्ट्रपतियों के बीच मुलाकात हो रही है। दशकों बाद पहली बार साउथ कोरियाई राष्ट्रपति मून जे-इन के प्योंगयांग पहुंचे हैं।
इस साल किम की ना धमकी ना टेस्ट
पिछले साल कोरियाई प्रायद्वीप में सबसे ज्यादा तनाव देखने को मिला। इस दौरान नॉर्थ कोरिया राष्ट्रपति किम जोंग उन और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कई बार न्यूक्लियर अटैक की धमकी दे चुके थे। न्यूक्लियर अटैक की धमकियों के बीच किम ने कई नई और खतरनाक मिसाइलों का टेस्ट कर कोरियाई प्रायद्वीप को युद्ध की ओर धकेल कर एक खतरनाक स्थिति पैदा कर दी थी। पिछले साल किम जोंग उन ने 15 से भी ज्यादा मिसाइलें टेस्ट की, जिसमें एक विनाषकारी हाइड्रोजन बम भी शामिल था। किम ने तो यहां तक दावा किया था कि उन्होंने अमेरिका पर अटैक करने वाली मिसाइल भी बना दी है। लेकिन इस बार किम ने ना तो कोई धमकी दी और ना ही एक छोटी सी मिसाइल का टेस्ट किया।
ट्रंप और किम के बीच मून बने मीडिएटर
पूरी दुनिया जानती है कि ट्रंप और किम दोनों ही एक उत्तेजित व्यवहार के नेता है। पिछले साल जब दोनों ही नेता एक-दूसरे को मरने व मारने की धमकी दे रहे थे, तभी बीच में साउथ कोरियाई राष्ट्रपति बार-बार शांति की भूमिका निभा रहे थे। बीबीसी ने अपनी एक रिपोर्ट में लिखा है कि साउथ कोरियाई राष्ट्रपति मून ने ट्रंप और किम के वार्ता के बीच एक शानदार मीडिएटर की भूमिका निभाई है। इस साल सिंगापुर में हुई ट्रंप और किम के बीच की सफल वार्ता के लिए मून के योगदान को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
मून को अपने पड़ोसी पर भरोसा
अपने भड़काऊ पड़ोसी मुल्क के साथ किस तरह से व्यवहार किया जा सकता है और अपने पड़ोसी नेता पर कैसे विश्वास किया जा सकता है, वह मून से सीखे जाने की जरुरत है। जून में सिंगापुर वार्ता में ट्रंप के सामने जब किम ने वादा किया कि वह अपने सभी न्यूक्लियर हथियारों को खत्म कर देगा, तब दुनिया को विश्वास नहीं हुआ। कई विशेषज्ञों ने माना कि किम क्यों अपनी दशकों की मेहनत को बर्बाद कर न्यूक्लियर और खतरनाक मिसाइलों खत्म करना चाहेगा। हालांकि, अभी तक यह पता नहीं चल पाया है कि किम अपने वादों पर कितने खरे उतर पाए हैं, लेकिन मून को किम पर अमेरिका से भी ज्यादा भरोसा और वह मानकर चल रहे हैं नॉर्थ कोरिया जल्द ही पूर्ण रूप से अपने आप को एक परमाणु मुक्त देश होने की घोषणा करेगा।
अमेरिका से संपर्क में रहते हैं मून
साउथ कोरियाई राष्ट्रपति लगातार दोनों देशों से संपर्क में रहते हैं, ताकि छोटी सी भी चूक या गलतफहमी ना पैदा हो। अपने तीन दिन के दौरे पर गए मून प्योंगयांग में किम से द्विपक्षीय वार्ता खत्म करने के बाद यूएनजीए (यूनाइटेड नेशनल जनरल असेंबली) की तरफ रवाना हो जाएंगे, जहां वे ट्रंप से मुलाकात कर कोरिया प्रायद्वीप पर अगली योजना के बारे में चर्चा कर सकते हैं। यह गौर करने वाली बात है कि अमेरिका और साउथ कोरिया ने नॉर्थ कोरिया के साथ किसी भी बड़े डिवलेपमेंट से पहले या उसके तुरंत बाद विस्तार से चर्चा की है।
व्यापार और वार्ता मे मून का विश्वास
मून जे-इन का परिवार नॉर्थ कोरिया से ताल्लुक रखता है, जिन्होंने रोह मू- ह्योन (पूर्व साउथ कोरियाई राष्ट्रपति) के पर्सनल एडवाइजर के रूप में अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी। अपने पड़ोसी देश नॉर्थ कोरिया के साथ शांति की पहल करना मून ने ह्योन से ही सीखा है। मून अपने 'नए इकनॉमिक मैप' में नॉर्थ कोरिया तक पहुंचाने के लिए सड़क और रेलवे लिंक से लेकर पाइपलाइनों को बिछा रहे हैं, रूसी गैस को साउथ कोरिया से होकर ट्रांसपोर्ट किया जा सके। व्यापार और वार्ता में विश्वास करने वाले मून चाहते हैं कि दोनों देशों के बीच नए इकनॉमिक रिलेशन की शुरुआत हो। इस बार मून अपने साथ कई बड़ी कंपनियों के एक्जीक्यूटर्स को भी साथ लेकर गए हैं, जो नॉर्थ कोरिया में निवेश करने की योजना पर काम करेंगे। इसके अलावा मून नॉर्थ कोरिया में साउथ कोरियाई पर्यटन को फिर से जीवित करना चाहते हैं। धीरे-धीरे ही सही नॉर्थ कोरिया में बहुत कुछ बदल रहा है। मून ने साबित कर दिया है कि बातचीत से ही दोनों देशों के लोगों का फायदा है। मून की कोशिश काम आ रही है।