पाकिस्तान कैसे दे रहा है कोरोना वैक्सीन, क्या है रूस और चीन का रोल
पाकिस्तान में कोरोना संक्रमण के अब तक पाँच लाख 45 हज़ार मामले सामने आए हैं और 12 हज़ार से ज़्यादा लोगों की मौत हुई है.
पाकिस्तान ने अपने यहां राष्ट्रीय स्तर पर तीन फ़रवरी को कोरोना टीकाकरण अभियान की शुरुआत की थी. एक दिन पहले यानी कि दो फ़रवरी को उसे चीन से कोरोना वैक्सीन की पहली खेप मिली थी.
स्वास्थ्यकर्मी और जिन्हें सबसे ज़्यादा ख़तरा है सबसे पहले उन्हें टीका दिया जा रहा है.
अब तक पाकिस्तान में कोरोना संक्रमण के पाँच लाख 45 हज़ार मामले सामने आए हैं और अब तक क़रीब 12 हज़ार लोगों की कोरोना से मौत हुई है.
पाकिस्तान में कोरोना के यह आंकड़े वैश्विक औसत आंकड़े से बहुत कम हैं, लेकिन इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि पाकिस्तान में कोरोना टेस्टिंग कम हो रही है और कोरोना से मरने वालों की संख्या भी सही तरीक़े से दर्ज नहीं हो रही है.
पाकिस्तान में सरकार को एक तरफ़ अपनी विशाल आबादी के लिए कोरोना वैक्सीन की ख़ुराक जुटाने में मुश्किल हो रही है तो दूसरी तरफ़ सरकार के सामने एक दूसरी मुश्किल यह भी है कि पाकिस्तान में आम लोगों में वैक्सीन को लेकर काफ़ी शक-ओ-शुब्हा पाया जाता है और कई लोग तो टीकाकरण का विरोध करते हैं.
टीकाकरण की योजना क्या है?
पाकिस्तान ने अपनी 22 करोड़ आबादी की कम से कम 70 फ़ीसद आबादी को मुफ़्त में कोरोना वैक्सीन देने की योजना बनाई है और इसके लिए सरकार ने 15 करोड़ डॉलर अलग कर लिए हैं.
चीन ने पाकिस्तान को वैक्सीन की पाँच लाख ख़ुराक दी है जबकि ब्रिटेन ने दो करोड़ 80 लाख ख़ुराक वैक्सीन देने का वादा किया है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के कोवैक्स योजना के तहत एस्ट्राज़ेनेका वैक्सीन की 56 लाख ख़ुराक मार्च के आख़िर तक पाकिस्तान पहुँच जाएगी.
पाकिस्तान के ड्रग नियामक संस्थान ने रूस के स्पुतनिक V वैक्सीन के इमरजेंसी इस्तेमाल को मंज़ूरी दे दी है और चीनी कंपनी कैनसाइनो बायोलॉजिक्स आख़िरी क्लीनिकल ट्रायल कर रही है.
क्या भारत भी इसमें शामिल हैं?
भारत ने अपने दक्षिण एशियाई साथी देशों को वैक्सीन की लाखों ख़ुराक सप्लाई दी है लेकिन उसने पाकिस्तान को वैक्सीन नहीं दिया है.
कुछ लोगों ने इसे भारत की तरफ़ से पाकिस्तान की अनदेखी क़रार दिया है लेकिन भारत का कहना है कि पाकिस्तान की तरफ़ से कोरोना वैक्सीन की माँग के बारे में उसके पास कोई जानकारी नहीं है.
अगर यह सही है तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है.
कश्मीर को लेकर दोनों देशों के बीच दशकों से चले आ रहे तनाव ने साल 2019 में क़रीब-क़रीब सैन्य युद्ध की शक्ल ले लिया था. पाकिस्तान भारत की कश्मीर नीति का कड़ा आलोचक रहा है और वो भारत प्रशासित कश्मीर के मुद्दे पर भारत के ख़िलाफ़ अंतरराष्ट्रीय समर्थन जुटाने में लगा हुआ है.
भारत के ज़रिए दक्षिण एशियाई देशों के लिए कोविड-19 फ़ंड लॉन्च किए जाने पर हफ़्तों तक आगे-पीछे करने के बाद पाकिस्तान ने इस फ़ंड में 30 लाख डॉलर देने का फ़ैसला किया है.
भारत ने एक करोड़ डॉलर के शुरुआती फ़ंड से इसे लॉन्च किया है.
हालांकि भारत और पाकिस्तान के बीच सुलह-सफ़ाई के भी संकेत मिल रहे हैं. वैक्सीन की क्षमता के अध्ययन के लिए संयुक्त प्रयास और दक्षिण एशिया में आने-जाने के लिए स्वास्थ्यकर्मियों के लिए स्पेशल वीज़ा जारी किए जाने के भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सुझाव का पाकिस्तान ने समर्थन किया है.
क्या हैं चुनौतियां?
पाकिस्तान को अपने सभी नागिरकों को कोरोना का टीका देने में सालों लग सकते हैं, ख़ासकर पाकिस्तान के लोगों के वैक्सीन के प्रति पहले भी देखी गई नफ़रत को देखते हुए.
स्वास्थ्य के मामले में प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के विशेष सहायक फ़ैसल सुलतान ने उर्दू न्यूज़ चैनल दुनिया टीवी से कहा कि कई स्वास्थ्यकर्मी भी टीका नहीं लेना चाहते हैं. हालांकि इनमें से कई दूसरी परेशनियों की वजह से टीका नहीं लेना चाहते हों.
अर्थशास्त्री इज्ज़ा आफ़ताब और सदफ़ अकबर ने संयुक्त बाइलाइन के साथ द नेशन अख़बार में हाल ही में एक लेख लिखा था. उसमें उन्होंने लिखा था, "अविश्वास बहुत गहरा है. स्वास्थ्यकर्मियों को विदेशी एजेंट समझा जाता है और वैक्सीन बनाने में जिन चीज़ों का इस्तेमाल किया जाता है उनपर सवाल उठाए जाते हैं."
इनमें अगर चरमपंथियों से ख़तरे और व्यापक झूठी ख़बरों को जोड़ दिया जाए तो हालात और ख़राब हो जाते हैं.
वैक्सीन को लेकर यह संकोच बताता है कि पाकिस्तान आख़िरकार सालों तक मेहनत करने के बावजूद पोलियो को पूरी तरह से ख़त्म क्यों नहीं कर सका है.
दिसंबर में आईपीएसओएस (IPSOS) के ज़रिए किए गए एक सर्वे ने पाया था कि क़रीब 40 फ़ीसद पाकिस्तानी कोविड-19 की वैक्सीन नहीं लेना चाहते हैं.
वैक्सीन के प्रति लोगों की उदासीनता को ख़त्म करने के लिए सरकार ने सप्लाई बढ़ाने का फ़ैसला किया है.
पाकिस्तान के निजी कंपनियों को वैक्सीन आयात करने की अनुमति के फ़ैसले ने विवाद खड़ा कर दिया है. कई जानकारों का कहना है कि इस फ़ैसले से वैक्सीन तक लोगों की पहुँच में ग़ैर-बराबरी को बढ़ावा मिलेगा.
लेकिन कई लोग इस फ़ैसले का समर्थन भी कर रहे हैं.
अंग्रेज़ी अख़बार द एक्सप्रेस ट्रिब्यून के संपादकीय पेज पर सैय्यद मोहम्मद अली ने अपने लेख में लिखा है, "कई ग़रीब देशों में वैक्सीन को लेकर कमियां सामने आने लगी हैं. निजी कंपनियां वैक्सीन आयात कर उन लोगों तक टीका पहुँचा सकती हैं जो इसके लिए पैसे ख़र्च कर सकते हैं."
पाकिस्तान ने 65 वर्ष से अधिक लोगों को टीका देने के लिए पंजीकरण शुरू कर दिया है.
ख़ैबर पख़्तूख़्वान प्रांत के स्वास्थ्य मंत्री तैमूर ख़ान झागरा ने ट्वीट किया, "अगले कुछ महीनों में हम देखेंगें कि वैक्सीन अभियान तेज़ी से काम कर रहा है."