अमरीकी फंड रुकने से कितनी कमज़ोर होगी पाक सेना?
रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि इसका पाकिस्तानी सैन्य शक्ति पर ख़ासा असर देखने को मिलेगा.
अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने पाकिस्तान के प्रति कड़ा रुख अपनाते हुए उसे दी जाने वाली सैन्य मदद रोकने का फ़ैसला किया है.
अमरीकी प्रशासन का कहना है कि जब तक पाकिस्तान अपनी ज़मीन से चरमपंथी संगठनों के ख़िलाफ़ कार्रवाई नहीं करेगा तब तक यह मदद बंद रहेगी.
अमरीका का तरफ़ से कुल कितनी आर्थिक मदद पर रोक लगेगी अभी इसकी घोषणा होना बाकी है, लेकिन रक्षा विशेषज्ञों की माने तो यह रोक 900 मिलियन डॉलर से ज़्यादा हो सकती है.
इसमें 255 मिलियन डॉलर पाकिस्तानी सेना को फॉरेन मिलिट्री फाइनेंसिंग फंड (एफ़एमएफ़) के तहत हथियारों और ट्रेनिंग के लिए दिए जाते हैं जबकि 700 मिलियन डॉलर गठबंधन सहायता फंड (सीएसएफ़) के तहत चरमपंथी संगठनों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने के लिए दिए जाते हैं.
रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि अमरीका के बदले रुख का पाकिस्तानी सैन्य शक्ति पर ख़ासा असर देखने को मिलेगा.
अमरीका की मदद पर कितना निर्भर है पाकिस्तान
रक्षा विशेषज्ञों की मानें तो इस रोक की वजह से पाकिस्तानी सेना पर थोड़े समय के लिए सही, लेकिन असर ज़रूर पड़ेगा.
प्रोफेसर हसन अस्कारी रिज़वी रक्षा विशेषज्ञ हैं और उन्होंने 'पाकिस्तान मिलिट्री, स्टेट एंड सोसाइटी इन पाकिस्तान' नाम से एक किताब भी लिखी है.
रिज़वी बताते हैं, ''अगर अमरीका से आने वाली सैन्य मदद रुक जाएगी तो पाकिस्तानी सेना के लिए तत्काल इससे उबरना मुश्किल होगा. साथ ही इसका असर लंबे वक़्त तक सेना की तैयारियों पर दिखेगा क्योंकि भले ही चीन पाकिस्तान की कितनी भी मदद कर ले वह अमरीका की तरफ़ से मिलने वाली आर्थिक मदद की पूर्ति नहीं कर सकता.''
वहीं पाकिस्तान के राजनेताओं ने अमरीका के इस क़दम की आलोचना करने में ज़रा भी वक्त नहीं गंवाया. पाकिस्तानी विदेश मंत्री ख़्वाजा आसिफ़ ने पाकिस्तान को 'दोस्त का क़ातिल' बताया और कहा कि अमरीका का रवैया न तो दोस्त जैसा है और ना ही किसी सहयोगी जैसा.
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अब तक अमरीका से कितना पैसा ले चुका है पाकिस्तान?
'थोड़ा बहुत बदलाव ज़रूर आएगा'
पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय का कहना है कि उसने पिछले 15 सालों में पूरे क्षेत्र में शांति स्थापित करने के कई प्रयास किए हैं, इन प्रयासों में उसने खुद से ही लगभग 120 बिलियन डॉलर खर्च किए.
हालांकि पाकिस्तानी सेना के प्रवक्ता ने बीबीसी को एक लिखित जवाब में बताया कि 'पाकिस्तान ने कभी भी पैसों के लिए लड़ाई नहीं की वह हमेशा शांति के लिए लड़ा.'
विशेषज्ञों का कहना है कि टीवी स्क्रीन पर भले ही पाकिस्तानी सेना और अमरीका के बीच तगड़ी बयानबाजी दिख रही है लेकिन पाकिस्तानी सेना भी चाहती है कि अपनी ज़मीन में पनप रहे चरमपंथी संगठनों पर वह लगाम लगाए.
प्रोफेसर रिज़वी कहते हैं, ''भले ही वे टीवी के सामने कुछ भी कहें लेकिन चरमपंथियों के प्रति सेना के रवैए में बदलाव जरूर आएगा, कम से कम इतना तो होगा ही कि वे हक्कानी नेटवर्क जैसे संगठनों को कुछ वक्त के लिए बंद करने की बात कहेंगे.''
क्या पाकिस्तान बदला लेने की कोशिश करेगा?
अमरीका के सामने आर्थिक रूप से तो पाकिस्तान काफी कमज़ोर है लेकिन अपनी भौगोलिक स्थिति और अफ़ग़ानिस्तान में अपनी भूमिका के चलते वह अमरीका के लिए हमेशा महत्वपूर्ण बना रहता है.
सवाल यह उठता है कि क्या पाकिस्तान अमरीका के इस कदम का बदला लेने की कोशिश करेगा? क्या वह अफ़ग़ानिस्तान में अपनी पहुंच के चलते अमरीका को नुकसान पहुंचा पाएगा?
पाकिस्तान इससे पहले भी ऐसा कर चुका है. साल 2011 और 2012 में कई महीनों तक पाकिस्तान ने अफ़ग़ानिस्तान की तरफ़ जाने वाले रास्ते को रोक दिया था, जिस वजह से अमरीकी सैन्य टुकड़ियों को परेशानी झेलनी पड़ी थी.
पाकिस्तान की ओर से यह कदम तब उठाया गया था जब अमरीकी मरीन्स ने अपने गुप्त अभियान में ओसामा बिन लादेन को मार गिराया था और वहीं पाकिस्तान की चौकियों पर भी अमरीका ने बमबारी की थी जिसमें 20 पाकिस्तानी सैनिक मारे गए थे.
असैन्य सहायता जारी
लेकिन प्रोफेसर रिज़वी मानते हैं कि पाकिस्तान इस बार शायद ऐसा कदम नहीं उठाएगा. क्योंकि 2011 में यूएस मरीन के अभियान और पाकिस्तानी चौकियों पर बमबारी के चलते अमरीका ने थोड़ा उदार रुख अपनाया था लेकिन मौजूदा वक्त में गुस्सा अमरीका के खेमे में है. और इन हालात में अगर पाकिस्तान अपनी तरफ़ से कोई कड़ा कदम उठाया तो हालात बद से बदतर हो जाएंगे.
प्रोफेसर रिज़वी कहते हैं, ''शायद पाकिस्तान कुछ बाधाएं जरूर खड़ी कर सकता है, लेकिन वह पूरी तरह सप्लाई के रास्तों को नहीं रोकेगा, क्योंकि इससे अमरीका पाकिस्तान के साथ बाकी संबंध भी ख़त्म कर सकता है.''
फ़िलहाल अमरीका की तरफ़ से पाकिस्तान को असैन्य सहायता जारी है. लेकिन हालात ज़्यादा खराब होने पर अमरीका इसमें कुछ कटौती कर सकता है. ऐसा भी हो सकता है कि अमरीका पाकिस्तान को अपने गैर-नाटो सहयोगी राष्ट्रों की सूची से निकाल दे और उसे चरमपंथी को बढ़ावा देने वाले राष्ट्र के तौर पर शामिल कर दे.
हालांकि न तो पाकिस्तान और न ही अमरीका आपसी संबंधों को इस हद तक गिराना चाहेंगे.