ईरान किस तरह से बढ़ाएगा अपनी न्यूक्लियर ताकत
ईरान ने कहा है कि 2015 में दुनिया की कई बड़ी शक्तियों के साथ हुए परमाणु समझौते में वो अपनी प्रतिबद्धताओं को कम करेगा और परमाणु संवर्धन के लिए शोध और विकास कार्यों से जुड़ी सभी सीमाओं को ख़त्म करेगा.
राष्ट्र के नाम जारी एक संदेश में राष्ट्रपति हसन रूहानी ने समझौते में शामिल अन्य देशों को अपनी-अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए दो महीनों का वक़्त दिया है.
ईरान ने कहा है कि 2015 में दुनिया की कई बड़ी शक्तियों के साथ हुए परमाणु समझौते में वो अपनी प्रतिबद्धताओं को कम करेगा और परमाणु संवर्धन के लिए शोध और विकास कार्यों से जुड़ी सभी सीमाओं को ख़त्म करेगा.
राष्ट्र के नाम जारी एक संदेश में राष्ट्रपति हसन रूहानी ने समझौते में शामिल अन्य देशों को अपनी-अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए दो महीनों का वक़्त दिया है.
ईरान ने कहा है कि परमाणु कार्यक्रमों पर निगरानी करने वाली संयुक्त राष्ट्र की संस्था इसकी निगरानी कर सकती है और ईरान अपने क़दम तभी पीछे हटाएगा जब समझौते पर सभी सदस्य पूरी तरह अमल नहीं करेंगे.
बीते साल अमरीका ने 2015 में हुए परमाणु समझौते से ख़ुद को अलग कर लिया था और ईरान पर कई पाबंदियां लगा दी थीं.
इसके बाद ईरान ने समझौते का उल्लंघन करने की घोषणा की और समझौते के तहत यूरेनियम इकट्ठा करने की निर्धारित मात्रा बढ़ाई.
ईरान कहता रहा है कि उसका परमाणु कार्यक्रम पूरी तरह शांतिपूर्ण है. लेकिन अमरीका का मानना है कि ईरान परमाणु हथियार विकसित कर सकता है.
राष्ट्रपति रूहानी ने कहा है कि इसी सप्ताह शुक्रवार से ईरान यूरेनियम संवर्धन बढ़ाएगा और इसके लिए नए सेंट्रीफ्यूज बनाए जाएंगे.
कहां बनाए जाएंगे नए सेंट्रिफ्यूज
बीते साल ईरान की परमाणु एजेंसी के प्रमुख ने संवाददाताओं से कहा कि 'नतांज़' परमाणु केंद्र में आधुनिक सेंट्रीफ्यूज को विकसित करने वाले ढांचे पर वो काम कर रहे हैं.
तेहरान से क़रीब 200 मील की दूरी पर मौजूद नतांज़ परमाणु केंद्र ईरान का मुख्य यूरेनियम संवर्धन केंद्र रहा है.
न्यूक्लियर थ्रेट इनिशिएटिव के अनुसार यहां ज़मीन के भीतर तीन और ऊपर छह बड़ी इमारतें हैं और जहां एक साथ क़रीब 50,000 सेंट्रीफ्यूज रखे जा सकते हैं.
यूरेनियम के अयस्क में दो तरह के आइसोटोप ( समस्थानिक ) होते हैं- यू 235 और यू 238.
एक तत्व के परमाणु जिनकी परमाणु संख्या समान होती हैं, परन्तु भार अलग-अलग होता है, उन्हें आइसोटोप कहा जाता है.
माना जाता है कि यू-235 का इस्तेमाल हथियार बनाने या ऊर्जा के उत्पादन के लिए किया जाता है.
लेकिन अयस्क में यू-238 की मात्रा अधिक होती है. इस कारण यू-235 को अलग करने के लिए ख़ास तरह के सेंट्रीफ्यूज की ज़रूरत होती है.
माना जाता है कि ईरान के नतांज़ परमाणु केंद्र अस्तित्व के बारे में 2002 में ही पता चला था लेकिन ईरान ने 2003 में इसके अस्तित्व को स्वीकार किया था.
क्यों अचानक रुका नतांज़ में काम
नतांज़ ईरान का सबसे बड़ा गैस सेंट्रीफ्यूज यूरेनियम संवर्धन केंद्र है जहां 2007 से काम शुरू हुआ था.
इस केंद्र में ईरान को तब अपना काम अचानक धीमा करना पड़ा जब कई सेंट्रीफ्यूज एक के बाद एक लगातार ख़राब होने लगे. अस्थायी तौर पर ईरान को इस केंद्र पर काम बंद भी करना पड़ा.
'ईरान्स न्यूक्लियर ओडेसी: कॉस्ट एंड रिस्क' के अनुसार 2010 में स्टूक्सनेट नाम के एक कंप्यूटर वायरस ने नतांज़ केंद्र पर हमला किया और इस कारण यहां के करीब 20 फ़ीसदी सेंट्रीफ्यूज पूरी तरह ख़राब हो गए.
इस वायरस ने एक तरह से ईरान के परमाणु कार्यक्रम को ही कुछ साल पीछे धकेल दिया.
वैज्ञानिकों की भी हत्या की गई
स्टूक्सनेट वायरस को दुनिया का पहला साइबर हथियार माना गया था. नतांज़ तक पहुंचाने से पहले इस वायरस को क़रीब ऐसे कंप्यूटर्स में डाला गया जो नतांज़ से जुड़े तो थे लेकिन उसके भीतर नहीं थे.
2012 में छपी एक रिपोर्ट ने अमरीकी ख़ुफ़िया विभाग के अधिकारियों के हवाले से कहा कि इसराइल के लिए काम करने वाले एक अमरीकी ने ख़ुद को ईरानी बताते हुए इस केंद्र में मौजूद सेंट्रीफ्यूज़ से जुड़े कंप्यूटर्स में वायरस डालने की सफल कोशिश की. इस काम को एक वायरस वाले पेन ड्राइव के ज़रिए अंजाम दिया गया था.
रिपोर्ट के अनुसार ईरान परमाणु कार्यक्रम से जुड़े वैज्ञानिकों की भी हत्या की गई ताकि ईरान की परमाणु इच्छाओं पर रोक लगाई जा सके.
ये वायरस पहले पंद्रह मिनट तक सेंट्रीफ्यूज को तय सीमा से काफ़ी तेज़ चलाता था जिसके बाद वो फिर सेंट्रीफ्यूज को साधारण स्पीड पर चलाता था. क़रीब एक महीने के बाद ये सेंट्रीफ्यूज की स्पीड काफ़ी कम कर देता था. नतीजा ये हुआ कि इस कारण सेंट्रीफ्यूज के पुर्जे ख़राब हो गए.
हालांकि इसके पुख्ता सबूत नहीं मिले लेकिन इस क़दम के पीछे अमरीका और इसराइल का हाथ होने की बात कइयों ने कही. एनपीआर की एक रिपोर्ट के अनुसार ये वायरस सीआईए की मदद से इसराइल ने ये वायरस 2009 में बनाया था.
न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार ईरान का बम बनाने की क्षमता को रोकने के लिए स्टूक्सनेट का टेस्ट इसराइल में किया गया था.
हाल में आई एक ख़बर के अनुसार कथित तौर पर नीदरलैंड्स के एक ख़ुफ़िया अधिकारी की भी इसमें अहम भूमिका रही थी.
इस अकेले वायरस ने नतांज़ में क़रीब एक हज़ार सेंट्रीफ्यूज तबाह किए.
नतांज़ में फिर काम शुरू
इस कारण लगे झटके के बाद ईरान ने एक बार फिर नतांज़ में नए आधुनिक सेंट्रिफ्यूज बनाने के काम शुरू किया. बीते साल जून में ईरान के एटोमिक एनर्जी ऑर्गेनाइज़ेशन के प्रमुख अली अकबर सालेही ने कहा था कि नतांज़ को इसके लिए तैयार किया जा रहा है.
इसके लिए ईरान ने 2011 से ही कोशिशें शुरू कर दी थीं. उसने देश के भीतर ही सेंट्रीफ्यूज के लिए ज़रूरी रोटर में लगने वाले कार्बन फाइबर बनाना शुरू कर दिया था.
उस वक़्त ये उम्दा क्वालिटी का नहीं था और माना जा रहा था कि ईरान को इसके लिए दूसरों पर निर्भर रहना पड़ेगा. लेकिन जल्द ही ईरान ने बड़े पैमाने पर (एक दिन में 60 रोटर) का उत्पादन भी शुरू किया.
2018 जून में देश में बनाए गए तीन तरह के सेंट्रीफ्यूज भी एक टेलीविज़न कार्यक्रम में दिखाए गए थे, जिसके बाद एक तरह से ये बात स्पष्ट हो गई थी कि वो अब दूसरों पर निर्भर नहीं करेगा.
इसके बाद अटकलें लगनी शुरू हो गई थीं कि ईरान अपने सेंट्रीफ्यूज ख़ुद बनाने की कोशिश करेगा और प्रत्यक्ष रूप से किसी देश की मदद नहीं लेगा.
इसी साल जनवरी में अली अक़बर सालेही ने कहा था कि ईरान अपनी ख़ुद की परमाणु तकनीक विकसित कर रहा है. उनका कहना था, "हम ख़ुद यूरेनियम खनन करते हैं, अपने सेंट्रिफ्यूज ख़ुद बना रहा है और इस बार सही तरीक़े से ऐसा कर रहे हैं." अब राष्ट्रपति रुहानी ने कहा है कि ईरान 'यूरेनियम संवर्धन बढ़ाने के लिए नए सेंट्रिफ्यूज बनाएगा'.
उसके इस बयान से अब साफ़ हो गया है कि ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम को लेकर अब कोई और ख़तरा मोल लेना नहीं चाहता अब अपने भरोसे ही आगे बढ़ना चाहता है.