कितनी मुश्किल में हैं इसराइली प्रधानमंत्री नेतन्याहू
लेकिन हरेंद्र मिश्रा ये भी कहते हैं कि बदलाव भरा रवैया भारत की ओर से ही नज़र आता है जबकि इसराइल हमेशा भारत के लिए गर्मजोशी भरा रुख़ रखता रहा है.
वह कहते हैं, "जहां तक इसराइल का संबंध है तो यहां का नेतृत्व भारत के प्रति गर्मजोशी का रवैया रखता है, फिर चाहे यहां का प्रधानमंत्री कोई भी हो. इसराइल दरअसल भारत को एक बहुत महत्वपूर्ण मित्र राष्ट्र समझता है और उसके साथ ख़ास संबंध बनाकर रखना चाहता है."
इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू के कारण उनकी सरकार पर भी ख़तरा मंडरा रहा है.
इसराइल की पुलिस ने कहा है कि प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू की जांच करने पर पता चला है कि उन्हें धोखाधड़ी और रिश्वत के मामले में अभियुक्त बनाने के लिए पर्याप्त सबूत हैं.
इसराइल में मौजूद वरिष्ठ पत्रकार हरेंद्र मिश्रा बताते हैं, "नेतन्याहू के ख़िलाफ़ कई मामलों में जांच जारी है. पुलिस ने ऐसे चार में से तीन मामलों में रिपोर्ट दर्ज की है और कहा है कि उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई की जा सकती है. मगर यह फ़ैसला अटॉर्नी जनरल को करना है कि नेतन्याहू के ख़िलाफ़ आगे अदालती कार्रवाई करनी है या नहीं."
नेतन्याहू पर बेज़ेक़ नाम की एक टेलिकॉम कंपनी को लाभ पहुंचाने के लिए नियमों में बदलाव करने का भी आरोप है. कथित तौर पर यह बदलाव इसलिए किए गए ताकि बदले में एक न्यूज़ वेबसाइट पर उनकी और उनकी पत्नी की ज़्यादा सकारात्मक कवरेज हो.
ऐसे में पुलिस को मुक़दमा चलाने लायक सबूत मिलना नेतन्याहू की मुश्किलों को बढ़ा सकता है.
कितनी मुश्किल में हैं नेतन्याहू?
वरिष्ठ पत्रकार हरेंद्र मिश्रा बताते हैं, "अटॉर्नी जनरल ने पिछले कुछ मामलों में बयान नहीं दिया है मगर इस मामले को काफ़ी गंभीर माना जा रहा है. रविवार को नेतन्याहू जब कैबिनेट मीटिंग में गए तो उनके मंत्रियों ने उन्हें समर्थन दिया. इसके जवाब में नेतन्याहू ने कहा कि आप लोग इस मामले को लेकर ज़्यादा ही गंभीर हो रहे हैं मगर यह इतना गंभीर नहीं जितना आप समझते हैं."
सरकार में अपने सहयोगियों को भले ही नेतन्याहू भरोसा दिलाने की कोशिश कर रहे हों मगर उनकी सरकार मज़बूत स्थिति में नहीं दिख रही है.
पिछले दिनों ही ग़ज़ा में संघर्ष विराम करने के नेतन्याहू के फ़ैसले से नाराज़ उनके रक्षा मंत्री एविदगोर लिबरमैन ने इस्तीफ़ा दे दिया था. इसके बाद से उनकी सरकार अल्पमत में आने से बाल-बाल बची हुई है.
वरिष्ठ पत्रकार हरेंद्र मिश्रा कहते हैं, "यहां पर नेतन्याहू की गठबंधन वाली सरकार काफ़ी कमज़ोर हो गई है. उसे 120 में से मात्र 61 सदस्यों का समर्थन हासिल है. ऐसे में अगर अटॉर्नी जनरल कहते हैं कि नेतन्याहू के ख़िलाफ़ मामले को आगे बढ़ाया जाना चाहिए तो सरकार पर ख़तरा मंडरा सकता है."
हालांकि हरेंद्र मिश्रा कहते हैं कि फ़िलहाल सरकार गिरने के आसार नज़र नहीं आ रहे. वह कहते हैं, "वैसे भी यहां ज़्यादातर लोगों का मानना है कि चुनाव तय समय से पहले हो जाएंगे और नेतन्याहू अभी बेशक इसके ख़िलाफ़ हैं, मगर वह भी कुछ महीनों में जल्द चुनावों का समर्थन करेंगे."
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सरकार गिरी तो?
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू एक दूसरे को 'दोस्त' कहकर संबोधित करते रहे हैं.
बीते साल जुलाई में नरेंद्र मोदी इसराइल की यात्रा पर जाने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री बने थे. इसके बाद नेतन्याहू ने भी भारत की यात्रा की थी.
भारत और इसराइल के बीच वैसे तो 25 से अधिक सालों के राजनयिक संबंध थे मगर मोदी और नेतन्याहू की मुलाक़ातों को दोनों देशों के संबंधों के नए अध्याय के रूप में देखा गया था.
दोनों देश लंबे समय से चरमपंथ के ख़िलाफ़ लड़ाई, सुरक्षा, कृषि, पानी और ऊर्जा सेक्टर में साथ मिलकर वर्षों से काम कर रहे थे और नेतन्याहू-मोदी ने इस सहयोग को और आगे बढ़ाया है.
अगर इन हालात में नेतन्याहू की सरकार गिरती है तो क्या उससे इसराइल के भारत के साथ संबंधों पर असर पड़ेगा?
इस संबंध में पत्रकार हरेंद्र मिश्रा कहते हैं, "भारत और इसराइल के संबंधों में काफ़ी गर्माहट नज़र आती है. जब नरेंद्र मोदी यहां आए थे तो कहा जा रहा था कि आज़ादी के बाद पहले भारतीय प्रधानमंत्री यहां आए हैं और इसे लेकर काफ़ी गर्मजोशी थी. दूसरी बात यह है कि नेतन्याहू यहां साल 2009 से प्रधानमंत्री हैं और लंबे समय से भारत जाना चाहते थे. मगर वह भारत तभी जा पाए जब नरेंद्र मोदी सत्ता में आए. ऐसे में ज़ाहिर है कि अगर प्रधानमंत्री बदल जाएं तो ऐसी गर्मजोशी शायद नज़र न आए."
लेकिन हरेंद्र मिश्रा ये भी कहते हैं कि बदलाव भरा रवैया भारत की ओर से ही नज़र आता है जबकि इसराइल हमेशा भारत के लिए गर्मजोशी भरा रुख़ रखता रहा है.
वह कहते हैं, "जहां तक इसराइल का संबंध है तो यहां का नेतृत्व भारत के प्रति गर्मजोशी का रवैया रखता है, फिर चाहे यहां का प्रधानमंत्री कोई भी हो. इसराइल दरअसल भारत को एक बहुत महत्वपूर्ण मित्र राष्ट्र समझता है और उसके साथ ख़ास संबंध बनाकर रखना चाहता है."
हरेंद्र मिश्रा बताते हैं कि इसकी ख़ास वजह है- भारत का इसराइल के हथियारों का सबसे बड़ा ख़रीददार होना. वह कहते हैं कि इसराइल की डिफ़ेंस इंडस्ट्री के लिए भारत और इसराइल के दोस्ताना संबंध बहुत महत्व रखते हैं.
ऐसे में हरेंद्र मिश्रा के मुताबिक़, अगर नेतन्याहू की सरकार गिरती है तो भारत और इसराइल के द्विपक्षीय संबंधों पर कोई ख़ास असर नहीं होगा.
वह कहते हैं, "भारत और इसराइल के संबंध स्वतंत्र हैं और वे नेतृत्व के ऊपर उतने निर्भर नहीं है, जितना समझा जा रहा है."
(बीबीसी संवाददाता आदर्श राठौर से बातचीत पर आधारित)
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