टिकटॉक ने दो साल के भीतर ही अमरीका में कैसे मचा दिया तहलका
जानिए टिकटॉक की क़ामयाबी की कहानी और समझिए इसके साथ भविष्य में क्या हो सकता है.
अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि अगर टिक टॉक के अमरीकी ऑपरेशन को किसी अमरीकी कंपनी ने नहीं ख़रीदा, तो वो इस पर प्रतिबंध लगा देंगे.
ऐसे कैसे हुआ कि दो साल के भीतर एक ऐप ने करोड़ों यूज़र बना लिए और अब उसे देश की सुरक्षा के लिए ख़तरा माना जा रहा है.
एक मंद रोशन मंच पर एक लाल भालू अकेला खड़ा है और पीछे अडेल की आवाज़ में गीत चल रहा है. और फिर अदृश्य दर्शक अगली पंक्ति में सुर में सुर मिलाते हैं, कैमरा पैन आउट करता है और सैकड़ों भालू चर्चित गीत समवन लाइक यू गाते हुए दिखते हैं.
ये वीडियो बेतुका है, प्यारा है और इसे बार-बार देखा जा सकता है. और वीडियो ऐप टिक टॉक के लिए 15 सेकंड का ये वीडियो वो काम करता है. जिसके लिए दसियों लाख का बजट चाहिए होता है.
इस वीडियो को दिसंबर 2018 में टिक टॉक पर पोस्ट किया गया था और अब तक इसे कई करोड़ बार देखा जा चुका है.
हज़ारों लोगों ने इस वीडियो की नकल करके इसे दूसरे सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर भी पोस्ट किया था.
दुनिया को टिक टॉक के आने की ख़बर मिल गई थी और उसके बाद से टिक टॉक ने दुनियाभर में करोड़ों रचनात्मक और युवा लोगों को अपनी ओर आकर्षित किया.
हम स्टार्ट अप की क़ामयाबी की परीकथा जैसी कहानियाँ सुनते रहे हैं. लेकिन टिक टॉक की शुरुआत ऐसे नहीं हुई थी.
शुरू होने की कहानी
दरअसल टिक टॉक की कहानी तीन अलग-अलग ऐप के साथ शुरू हुई थी.
पहला ऐप था म्यूज़िकली, जो शंघाई में साल 2014 में लाॉन्च हुआ था. इस ऐप के अमरीका के साथ मज़बूत बिज़नेस रिश्ते थे और बाज़ार में इसके अच्छे दर्शक थे.
साल 2016 में चीन की बड़ी टेक कंपनी बाइटडांस ने ऐसी ही एक ऐप चीन में लॉन्च किया. इसका नाम था डूयिन. एक साल के भीतर ही चीन और थाइलैंड में इस ऐप ने दस करोड़ यूज़र बना लिए.
बाइटडांस ने अपने कारोबार को किसी और नाम- टिकटॉक के साथ बढ़ाने का फ़ैसला किया. उसने म्यूज़िकली को ख़रीदा और दुनियाभर में टिकटॉक का विस्तार शुरू किया.
टिकटॉक की क़ामयाबी का राज संगीत के इस्तेमाल और बेहद शक्तिशाली एल्गोरिदम में छिपा है. टिकटॉक बहुत जल्द ये जान जाती है कि उसके किस यूज़र को किस तरह का कंटेंट पसंद आ रहा है. फिर यूज़र को वैसा ही कंटेंट दिखाया जाता है. बाक़ी ऐप्स के मुक़ाबले ये इस मामले में काफ़ी तेज़ है.
यूज़र्स अपने वीडियो बनाने के लिए गानों, फ़िल्टर्स और मूवी क्लिप्स के बड़े डेटाबेस से अपनी पंसद का संगीत चुन सकते हैं.
टिकटॉक पर कई बड़े ट्रेंड शुरू हुए जैसे लिल नास एक्स का ओल्ड टाउन रोड और कर्टिस रोच का बोर्ड इन द हाउस बहुत चर्चित हुए. ब्रितानी लोगों ने कोरोना अपडेट के साथ बीबीसी न्यूज़ की ट्यून भी ख़ूब वायरल की.
छाया हुआ है टिकटॉक
टिकटॉक पर बहुत से लोग फ़ॉर यू पेज पर सबसे ज़्यादा वक़्त बिताते हैं. ये वो जगह है, जहाँ टिकटॉक की एल्गोरिदम यूज़र्स के सामने देखने के लिए कंटेंट परोसती है. ये कंटेंट पहले से देखे गए कंटेंट के आधार पर पेश किया जाता है.
ये ही वो जगह भी होती है, जहाँ टिकटॉक वो कंटेंट परोसती है, जो उसे लगता है वायरल हो सकता है. इसके पीछे विचार ये है कि अगर कंटेंट अच्छा है, तो वो देखा जाएगा और इस बात से कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि किसी कंटेंट क्रिएटर के कितने फ़ॉलोअर हैं.
टिकटॉक पर कई कम्यूनिटी भी बनीं हैं. इनका आधार वो कंटेंट है, जो इनमें शामिल लोगों को साझा तौर पर पसंद आता है. एक जैसा कंटेंट देखने वाले लोग एक साथ आते हैं.
ऑल्ट और डीप जैसी कम्यूनिटी ऐसे कंटेंट क्रिएटर को फ़ीचर करती हैं, जो टिकटॉक पर पैसा कमाने के बजाए अपनी रचनात्मकता दिखाने आते हैं. ये लोग मज़ेदार और जानकारी वाला वीडियो बनाते हैं. इन लोगों का मक़सद बड़े ब्रांड्स को अपनी ओर खींचने के बजाए अपने जैसे विचारों वाले लोगों तक पहुँचना होता है.
टिकटॉक और उसकी सिस्टर ऐप डूयिन का सफ़र शानदार रहा है. दोनों ऐप ने बेहद कम समय में बड़ी तादाद में यूज़र बनाए हैं.
पिछले साल जुलाई तक ही टिकटॉक को दुनियाभर में 100 करोड़ बार डाउनलोड किया जा चुका था, जबकि ऐप के 50 करोड़ एक्टिव यूज़र थे. एक साल बाद यानी इस साल जुलाई में ऐप के दो सौ करोड़ डाउनलोड और 80 करोड़ एक्टिव यूज़र थे.
टिकटॉक के तेज़ी से आगे बढ़ने ने इस ऐप को नेताओं के दिमाग़ में भी ला दिया.
चीन के एक ऐप के देश के लोगों के जीवन का इतनी जल्दी हिस्सा बन जाने के मायने क्या हैं?
हालाँकि टिकटॉक पर लगे आरोपों में बहुत दम नहीं है, लेकिन भारत और अमरीका जैसे देशों को लगता है कि टिकटॉक यूज़र का जो डेटा इकट्ठा कर रही है, उसका इस्तेमाल चीन की सरकार कर सकती है.
टिकटॉक को लेकर चिंताएँ
ऐसे आरोप हैं कि चीन की हर बड़ी कंपनी का एक अंदरूनी सेल होता है, जो सीधे तौर पर कम्यूनिस्ट पार्टी को जवाबदेह होता है.
चीन की सत्ताधारी पार्टी के कई एजेंटों का काम ख़ुफ़िया जानकारियाँ इकट्ठा करना होता है.
भारत में अप्रैल 2019 में टिकटॉक पर प्रतिबंध लग गया था. तब टिकटॉक पर अश्लीलता फैलाने के आरोप लगे थे. हालाँकि ये प्रतिबंध अपील में ख़ारिज हो गया था.
लेकिन इसी साल जून में जब भारत ने टिकटॉक समेत चीन के दर्जनों अन्य ऐप्स पर रोक लगाई, तो सरकार ने तर्क दिया कि ये ऐप डेटा चुरा रहे हैं और देश की सुरक्षा के लिए ख़तरा हैं.
वर्ष 2019 में ही अमरीका की सरकार ने टिकटॉक की राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से समीक्षा शुरू की थी. डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन सीनेटरों ने तर्क दिया था कि ये ऐप सुरक्षा के लिए ख़तरा है.
हाल ही में अमरीकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने एक बयान में कहा है कि टिकटॉक ऐसे चीनी ऐप्स में शामिल है, जो सीधे तौर पर चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी को अपना डेटा भेजती हैं.
ब्रिटेन के इंफोर्मेशन कमिश्नर का दफ़्तर और ऑस्ट्रेलिया की ख़ुफ़िया एजेंसियाँ भी टिकटॉक की पड़ताल कर रही हैं. हालाँकि अभी इन्होंने ये नहीं बताया है कि वो जाँच किस बात की कर रही हैं.
यहाँ ग़ौर करने वाली बात ये भी है कि इन दिनों इन देशों के बीच रिश्तों में तनाव है. अमरीका व्यापार को लेकर चीन के आमने-सामने हैं, भारत और चीन के बीच सीमा पर हिंसक झड़पें हुई हैं और ब्रिटेन हॉन्गकॉन्ग में नए सुरक्षा क़ानून का विरोध कर रहा है.
टिकटॉक डेटा के साथ करती क्या है, इसे लेकर विवाद है.
टिकटॉक की प्राइवेसी पॉलिसी से पता चलता है कि वो बहुत सा डेटा इकट्ठा करती है, जिनमें ये जानकारियाँ शामिल हैं.
- यूज़र कौन से वीडियो देख रहा है और किन पर कमेंट कर रहा है
- यूज़र की लोकेशन क्या है?
- फ़ोन किस मॉडल का है और ऑपरेशन सिस्टम क्या है
- जब लोग टाइप करते हैं, तो क्या-क्या बटन दबाते हैं
ये भी पता चला है कि यूज़र फ़ोन पर क्या कॉपी और पेस्ट करते हैं और क्लिपबोर्ड में क्या डेटा रहता है उसे भी ऐप पढ़ता है.
लेकिन रेडिट, लिंक्डइन और बीबीसी न्यूज़ ऐप जैसी दर्जनों ऐप भी ऐसा करते हैं. ऐसे में टिकटॉक के ऐसा करने के पीछे कुछ बड़ा राज़ नहीं मिला.
अधिकतर सबूत ये बताते हैं कि टिकटॉक भी ऐसे ही यूज़र का डेटा इकट्ठा करती है, जैसे फ़ेसबुक जैसे डेटा के भूखे प्लेटफॉर्म करते हैं.
हालाँकि, अपने अमरीका स्थित प्रतिद्वंदियों के उलट टिकटॉक का कहना है कि वो अभूतपूर्व पारदर्शिता लागू करने को तैयार है ताकि उसके डेटा कलेक्शन और कामकाज को लेकर जो चिंताएँ हैं, वो दूर हो सकें.
टिकटॉक के नए सीईओ केविन मेयर का कहना है कि वो विशेषज्ञों को टिकटॉक के एल्गोरिदम की जाँच करने की अनुमति देने के लिए तैयार हैं. केविन मेयर पहले डिज़्नी के सीईओ थे. एक ऐसी इंडस्ट्री, जिसमें डेटा और कोड की कड़ी सुरक्षा की जाती है, वहाँ टिकटॉक का ऐसा करना बड़ी बात है.
हालाँकि चिंता सिर्फ़ इस बात की नहीं है कि टिकटॉक क्या डेटा इकट्ठा करती है. चिंता इस बात की भी है कि क्या चीन की सरकार बाइटडांस को डेटा साझा करने के लिए मजबूर कर सकती है.
टिकटॉक का क्या है कहना
ऐसी ही चिंता चीन की कंपनी ख़्वावे के प्रति भी ज़ाहिर की गई है.
चीन में 2017 में पारित हुआ राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून देश की प्रत्येक कंपनी और नागरिक को सरकार के ख़ुफ़िया काम में मदद करने और सहयोग करने के लिए बाध्य करता है.
हालाँकि चीन की बड़ी टेक कंपनी ख़्वावे और टिकटॉक के शीर्ष अधिकारी बार बार कहते रहे हैं कि अगर सरकार ने कभी उनसे डेटा मांगा, तो वो इनकार कर देंगे.
दूसरी चिंताएँ सेंसरशिप और टिकटॉक के लोगों के विचारों और बहसों को प्रभावित करने की क्षमता से जुड़ी हुई हैं.
टिकटॉक ऐसा पहला प्लेटफार्म होगा, जहाँ बहुत से युवा कार्यकर्ता अपने विचार रखने के लिए सबसे पहले आएँगे.
मई में टिकटॉक पर ब्लैकलाइव्समैटर ट्रेंड को प्रोमोट किया गया था. इस हैशटेग के साथ पोस्ट किए गए वीडियो दसियों करोड़ बार देखे गए. लेकिन ये आरोप भी लगे कि कंटेंट बनाने वाले काले लोगों के कंटेंट को दबाया गया और प्रदर्शनों से जुड़े हैशटेग को छुपाया गया.
ये पहली बार नहीं है, जब कंटेंट के चयन के लिए टिकटॉक की एल्गोरिदम की आलोचना हुई हो.
द इंटरसेप्ट की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ मॉडरेटरों से ऐसे लोगों के कंटेंट को दबाने के लिए कहा गया था, जो या तो ग़रीब दिखते हैं या बदसूरत.
अमरीका में टिकटॉक का भविष्य
बीते साल गार्डियन की एक रिपोर्ट में दावा किया गया था कि टिकटॉक ने ऐसे कंटेंट को सेंसर किया, जो राजनीतिक था. इसमें तिब्बत की आज़ादी की मांग और टिएनामेन चौक से जुड़ी सामग्री शामिल थी.
वॉशिंगटन पोस्ट की एक रिपोर्ट बताती है कि कंपनी के चीन में बैठे मॉडरेटर ही ये अंतिम फ़ैसला करते हैं कि क्या सामग्री जाएगी और क्या रोक दी जाएगी.
बाइटडांस का कहना है कि पहले के दिशानिर्देश अब हटा दिए गए हैं और अब कंटेंट का मॉडरेशन चीन के बाहर ही होता है.
इसी बीच टिकटॉक के अमरीकी कारोबार को ख़रीदने में माइक्रोसॉफ्ट की दिलचस्पी की रिपोर्टें आ रही हैं, जो बताती हैं कि टिकटॉक हाल के सालों का सबसे अहम तकनीकी प्रॉडक्ट है.
टिकटॉक 25 साल से कम उम्र के युवाओं की पहली पसंदीदा जगह बनता जा रहा है. ट्विटर और इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफ़ॉर्म को परिपक्व लोगों का प्लेटफ़ॉर्म माना जाने लगा है.
लेकिन ऐसे लोग, जिन्होंने टिकटॉक को अपनी आवाज़ बनाया है, उनके लिए प्रतिबंध की ख़बरें किसी बड़े नुक़सान जैसी हैं.
अमरीका में टिकटॉक की प्रतिद्वंदी ऐप बाइट और ट्रिलर के डाउनलोड की संख्या बढ़ी है. ये ऐप शॉर्ट वीडियो ऐप के कारोबार में कूद रही हैं.
लेकिन अमरीका में बहुत से लोग टिकटॉक के साथ अंतिम पलों तक बने रहेंगे, अगर वो अंतिम पल कभी आए तो.