जानिए कैसे रूस, ब्रिटेन और अमेरिका की जासूसी करती है जिनपिंग की पार्टी, हनी ट्रैप में उस्ताद हैं चीनी एजेंट्स
नई दिल्ली। चारों तरफ विवाद से घिरा चीन, सिर्फ अपनी 'विस्तारवादी नीतियों' को ही आगे नहीं बढ़ा रहा है बल्कि जासूसी की तरकीबों से दूसरे देशों को खतरे में भी डाल रहा है। ताजा विवाद है चाइनीज टेलीकॉम कंपनी हुआवे का जिसे यूनाइटेड किंगडम से लेकर अमेरिका और अब भारत में भी शक की नजरों से देखा जा रहा है। इस पर बैन तक की बातें होने लगी हैं। हुआवे के साथ ही उस एक ऐसे राज से पर्दा उठा है जो चीन के जासूसी यानी स्पाइंग वर्ल्ड से जुड़ा है। चीन कैसे दूसरे देशों की जासूसी करता है और इसके लिए वह कैसे कंपनियों को तैयार करता है, हुआवे उसका ताजा उदाहरण है।
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ब्रिटिश जासूस ने खोली पोल
ब्रिटेन की इंटेलीजेंस एजेंसी MI6 के जासूस रहे ऑफिसर की मदद से एक डॉजियर तैयार किया गया है। इस डॉजियर में इस इंटेलीजेंस ऑफिसर ने बताया है कि चीन कैसे यूके की शख्सियतों जिसमें राजनेता तक शामिल हैं, उन्हें ब्रिटेन में हुआवे का बिजनेस शुरू करने में मदद करने के लिए लुभाने की कोशिशें कर रहा है। ऑफिसर के मुताबिक हर बड़ी चीनी कंपनी के पास उसकी एक इंटर्नल सेल होती है। दुनिया के किसी भी देश में स्थित कंपनी की इस सेल को सत्ताधारी चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) को उसके राजनीतिक एजेंडे से जुड़े सवालों के जवाब देने होते हैं। साथ ही कंपनी को यह सुनिश्चित करना होता है कि कंपनी राजनीतिक दिशा-निर्देशों के तहत ही काम करेगी।
CCP के लिए बिजनेस और राजनीति एक ही
इस एक वजह से विशेषज्ञ कहते हैं कि सीसीपी, ब्रिटेन में भी अपना संचालन कर रही है। चीन की पार्टी सीसीपी बिजनेस की आड़ में अपने एजेंडे को पूरा कर रही है। एक चीनी विशेषज्ञ की मानें तो सीसीपी की मशीन हर जगह है और चीन के लिए राजनीति को बिजनेस से अलग करना नामुमकिन है। सीसीपी के पास 93 मिलियन सदस्य हैं। इनमें से कई ऐसे हैं जिन्हें या तो दूसरे देशों में पोस्टिंग दी गई है या फिर उन्हें छिपाकर रखा गया है। इन सदस्यों पर सीक्रेट्स इकट्ठा करने का जिम्मा होता है और टेक्नोलॉजी सेक्टर जिसमें टेलीकॉम भी शामिल है, उसके राज को भी संभालना इनकी जिम्मेदारी होती है।
हनी ट्रैप का ललचाने वाला ऑफर
विशेषज्ञों
की
मानें
तो
एजेंट्स
के
तौर
पर
ये
सदस्य
विदेशी
कंपनियों
में
अहम
पदों
पर
बैठे
किसी
व्यक्ति
को
भी
निशाने
पर
लेते
हैं।
कई
तरीकों
से
इन्हें
लुभाने
की
कोशिशें
की
जाती
हैं।
इसमें
से
पहला
तरीका
होता
है,
'हनीट्रैप'
और
इसे
'पॉजिटिव
इनसेंटिव'
के
तौर
पर
जाना
जाता
है,
खासतौर
पर
अगर
टारगेट
कोई
गैर-चीनी
है।
पश्चिमी
देशों
इस
ऑफर
को
किसी
बिजनेस
मीटिंग
के
लिए
लुभावना
ऑफर
समझा
जाता
है।
इसे
एक
ऐसे
ऑफर
के
तौर
पर
जाना
जाता
है
तो
मुश्किलों
में
फंसी
कंपनी
की
आर्थिक
मदद
करने
में
भी
सफल
रहता
है।
इसके
अलावा
बोर्ड
में
नॉन-एग्जिक्यूटिव
डायरेक्टर
के
पद
का
ऑफर
भी
दिया
जाता
है।
कभी-कभी
इतने
पैसों
का
ऑफर
सीसीपी
की
तरफ
से
दिया
जाता
है
जो
किसी
की
भी
जिंदगी
बदल
सकता
है।
10 से 15 सालों से आई ट्रेंड में तेजी
ब्रिटेन में अब सीसीपी हनीट्रैप को बढ़ावा दे रही है और 10 से 15 सालों के अंदर इस ट्रेंड में तेजी देखी गई है। वहीं चीन के अंदर ये तरीके बदल जाते हैं। परिवार के सदस्यों पर दबाव डालना जिसमें ब्लैकमेलिंग से लेकर हनीट्रैप्स तक शामिल हैं, उनके जरिए पश्चिमी देशों के बिजनेसमेन को टारगेट किया जाता है। सीसीपी की तरफ से एक आकर्षक महिला को भेजा जाता है जिसे 'कोमप्रोमैट' के तौर पर प्रयोग किया जाता है। यानी ऐसा मटैरियल जिसे बाद में ब्लैकमेलिंग या दूसरे कामों के लिए प्रयोग किया जा सके। एक ब्रिटिश बिजनेसमैन का कहना है कि चीनी इस मकसद में काफी हद तक सफल हैं। वो अपनी सीमा में हनी ट्रैप करने में काफी माहिर हैं।
शंघाई से लेकर बीजिंग तक में ऑफिस
ब्रिटिश बिजनेसमैन की मानें तो इस पूरे काम को चीन की स्टेट मिनिस्ट्री ऑफ सिक्योरिटी की तरफ से अंजाम दिया जाता है। चीन के अलग-अलग प्रांतों में ऑपरेशंस के लिए सिक्योरिटी ब्यूरो बने हुए हैं और हर ब्यूरो दुनिया में भौगोलिक स्थिति के मुताबिक प्लानिंग करता है। उदाहरण के लिए शंघाई के ब्यूरो से अमेरिका को कवर किया जाता है, बीजिंग से रूस और वो सभी हिस्से जो कभी सोवियत संघ में आते थे, उन्हें कवर किया जाता है। इसके अलावा तियानजिन से जापान और कोरिया और दुनिया के दूसरे हिस्सों को कवर किया जाता है। यूके के सिक्योरिटी एक्सपर्ट्स की मानें तो चीन, रूस के बाद सबसे बड़ा खतरा है।