देखते-देखते कैसे समुद्र में डूब गया सौ लोगों को लिए एक जहाज़
सूडान और लीबिया से हज़ारों लोग भूमध्य सागर पार कर यूरोप पहुंचना चाहते हैं लेकिन कोरोना महामारी के दौर में यहां एनजीओ के बचाव दल नहीं पहुंच पा रहे हैं.
वो रविवार की भोर थी जब उसने मुझे फ़ोन किया. अंधेरा अभी तक छटा नहीं था.
बाहर तेज़ हवाएं चल रही थीं और बारिश हो रही थी. घर के कमरे में पड़ी टेबल पर काफ़ी सारा समान बिखरा पड़ा था. कहीं फ़ोन था, कहीं लैपटॉप तो कहीं कॉफ़ी के कप.
जैसिंडा और कार्लोस ने पूरी रात फ़ोन कॉल्स का जवाब देते हुए बिताई थी. और अब सवेरे एक बार फिर फ़ोन की घंटी बजी थी.
दूसरी तरफ़ एक व्यक्ति था जो टूटी-फूटी अंग्रेज़ी में बात कर रहा था. जैसिंडा कहती हैं, "मुझे याद नहीं कि उसकी आवाज़ कैसी थी लेकिन उसकी आवाज़ में एक अजीब तरह की शांति थी."
उस फ़ोन कॉल का उत्तर कार्लोस ने दिया. कार्लोस के हैलो के उत्तर में उस व्यक्ति ने कार्लोस का हालचाल पूछा.
जब कार्लोस ने उस व्यक्ति के फ़ोन करने की वजह पूछी तो उसने कहा, "मैं एक नाव से बात कर रहा हूं. इस्टैमोस इन डेन्जर. (मेरी नाव ख़तरे में है.)"
उसने कहा, "हम भूमध्य सागर में बीचों बीच फंसे हैं. हमारी जान बचा लीजिए प्लीज़."
इसके बाद फ़ोन कॉल कट गई लेकिन कुछ सेकंड बाद उस व्यक्ति ने फिर हमें फ़ोन किया. जैसिंडा और कार्लोस ने उस व्यक्ति के साथ बात की. वो जानना चाहते थे कि वो व्यक्ति कौन हैं और उनका नाम क्या है. लेकिन उन्हें उस व्यक्ति के नाम का कभी पता नहीं चल पाया.
माहेर और उनके भतीजे के कहानी
इस घटना के तीन रात पहले फरवरी 6 तारीख़ को फ़ोन पर उन्हें माहेर नाम के एक व्यक्ति की आवाज़ सुनाई दी थी जो चीख रहे थे "मुझे मेरा बेटा दो, मुझे मेरा मुज़्म्मिल दो."
माहेर गाराबुली शहर में लीबिया के तट के नज़दीक भूमध्य सागर में तट पर थे. वो अपने भांजे की बात कर रहे थे.
अपने भांजे के साथ दो साल बिताने के बाद वो उसे अपना बेटा मानने लगे थे. उन्हें चिंता थी कि उसका 18 साल के भांजा समंदर के सफ़र को कितना झेल पाएगा.
माहेर जंगल में उस जगह के नज़दीक खड़े एक व्यक्ति पर चिल्ला रहे थे जिसे स्थानीय लोग फ़ील्ड के नाम से जानते हैं. कुछ लोग यहीं से ग़ैर-क़ानूनी तरीके से प्रवासियों को को भूमध्य सागर पार करा कर यूरोप तक पहुंचाते हैं.
माहेर कहते हैं कि वो चाहते थे कि उनका भतीजा यूरोप चला जाए लेकिन वो इसमें जल्दबाज़ी नहीं करना चाहते थे. उन्होंने इसके लिए एक डीलर से बात की थी लेकिन उस पर उन्हें भरोसा नहीं था.
वो कहते हैं, "उनके नाव मज़बूत नहीं थे और छोटे इंजनों के सहारे उन्हें समंदर का पांच सौ किलोमीटर का रास्ता पार करना होता था."
वो खुद एक बार लीबिया छोड़ कर जा चुके थे और उन्हें वापस लाकर यहीं छोड़ दिया गया था.
माहेर ने फ़ील्ड में प्रवासियों को दूसरी तरफ पहुंचाने वाले एक व्यक्ति से गुज़ारिश की कि वो मुज़्म्मिल से उनकी बात करा दे.
फ़ोन पर मुज़्म्मिल से उन्होंने कहा कि वो यूरोप न जाए. लेकिन युवा मुज़्म्मिल के लिए यूरोप जाना उसकी ज़िंदगी का लक्ष्य बन चुका था.
माहेर बताते हैं, "उसे रात में नींद नहीं आती थी. उसके सारे दोस्त यूरोप जा चुके थे लेकिन वो नहीं गया था. ये चिंता उसे खाए जा रही थी."
दो बार मुज़्म्मिल ने यूरोप जाने की कोशिश की लेकिन उसकी नाव को दोनों बार लीबियाई कोस्ट गार्ड ने बीच में ही रोक दिया.
मुश्किल ज़िंदगी और ख़तरनाक सफ़र के बीच का चुनाव
सीमा पर नज़र रखने वाली यूरोपीय संघ की एजेंसी फ्रनटेक्स, भूमध्य सागर में आवाजाही पर आकाश से नज़र रखती है और लीबियाई कोस्ट गार्ड को प्रवासियों के नावों के बारे में जानकारी देती है.
मुज़म्मिल की नाव को भी ऐसे एक विमान से देखा गया था जिसके बाद उनका नाव को रोक दिया गया. उसे वापस लीबिया लाया गया जहां उसे राजधानी त्रिपोली के नज़दीक एक डिटेन्शन सेंटर में रखा गया.
प्रवासियों के बीच ये डिटेन्शन सेंटर ख़तरनाक जगह माने जाते हैं. कहा जाता है कि जहां यौन हिंसा और उत्पीड़न होता है. मुज़म्मिल दो महीने के लिए यहां थे.
दूसरी बार तट पर पहुंचने के बाद मुज़म्मिल किसी तरह भागने में सफल रहा लेकिन एक बार फिर वो यूरोप जाने की कोशिश करने के बारे सोचने लगा था.
माहेर बताते हैं कि मुज़म्मिल मूल रूप से सूडान से था और उसका परिवार ज़मज़म में रहता था. दार्फूर में हुई लड़ाई के बाद उसे एक शरणार्थी कैंप में भेज दिया गया था.
वो डॉक्टर बनना चाहता था लेकिन उसका ये सपना कभी पूरा नहीं हुआ. 15 साल की उम्र में ही उसे स्कूल छोड़ना पड़ा था. वो विदेश जा कर पढ़ाई कर के वापस अपने देश में अस्पताल खोलना चाहता था.
माहेर कहते हैं, उसे लगता था कि अगर को 18 साल की उम्र से पहले ब्रिटेन पहुंच गया तो वो अपनी पढ़ाई पूरी कर सकेगा.
सूडान के ही अली इब्राहीम भूमध्य सागर पार करने की कोशिश में तीन साल से लीबिया में रह चुके हैं. वो कहते हैं यहां क़ानून का नामोनिशान नहीं है.
अली इब्राहिम कहते हैं लंबे वक्त तक गृहयुद्ध की स्थिति से जूझ चुके इस देश में लगातार किसी न किसी तरह के हमले का डर बना रहता है.
वो कहते हैं, "हर जगह, हर किसी के हाथ में हथियार हैं. वो लोग आपके कपड़े, जूते सब ले जाते हैं."
वो एक सुपरमार्केट में लोगों के लिए ठेलागाड़ी खींचने का काम करते थे. वो कहते हैं कि पुरुषों से उन्हें कम ही पैसे मिलते थे जबकि महिलाएं हमेशा पैसे देती थीं.
अली इब्राहिम फ़िलहाल फ्रांस में रहते हैं. अपनी दूसरी कोशिश में वो माल्टा तक जाने में सफल हुए थे.
'नाव में पानी भर आया है'
इधर कार्लोस इस्टैमोस नाव पर सवार उस व्यक्ति से लगातार बात करने की कोशिश कर रहे हैं. वो उसे बताते हैं "हम कोस्ट गार्ड से बात करने की कोशिश कर रहे हैं. हम आपको बचाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं."
उस व्यक्ति ने बताया, "नाव में पानी भर आया है."
जैसिंडा और कार्लोस अलार्म फ़ोन नाम के एक समूह के लिए काम करते हैं जो समंदर में फंसे प्रवासियों की मदद के लिए इमर्जेंसी हेल्पलाइन चलाती है.
वो समझाते हैं, "जब भी कोई हमें फ़ोन करता है हम उसकी जगह का पता लगाते हैं और फिर कोस्ट गार्ड को इस बारे में ख़बर देते हैं."
इस बार जिस नाव पर सवार व्यक्ति से उनकी बात हो रही थी उसमें 91 पुरुष, पांच महिलाएं और सात बच्चे सवार थे. अक्सर जिन नावों से उन्हें फ़ोन आते हैं उनसे पास थोड़ा समय होता है, लेकिन इस बार मामला अलग था.
नाव पर सवार व्यक्ति ने उन्हें बताया था, "हमारी नाव टूट गई है, हमें तुरंत मदद की ज़रूरत है. हमें बचा लीजिए."
जो जानकारी मिली उसके अनुसार लीबिया के तट से दूर ये नाव अंतरराष्ट्रीय समुद्र में थी.
जैसिंडा ने बताया कि उन्होंने लीबयाई कोस्ट गार्ड और लीबियाई रेस्क्यू सेंटर से संपर्क करने की लेकिन संपर्क नहीं हो सका. वे कहती हैं "हमने माल्टा और इटली में भी प्रशासन से संपर्क किया लेकिन हमें कोई उत्तर नहीं मिला."
साल 2014 तक, यूरोपीय संघ से समर्थन से यूरोपीय संघ और इतालवी कोस्ट गार्ड भूमध्य सागर क्षेत्र में व्यापक बचाव अभियान चलाते थे.
उस वक्त लीबिया का खोज और बचाव क्षेत्र छोटा था और इसके कोस्ट गार्ड भी उतना व्यापक काम नहीं करते थे.
2018 में जब हज़ारों की संख्या में प्रवासी यूरोप का रूख़ करने लगे तब ये एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन गया और यूरोपीय संघ ने अपनी क्षमता बढ़ाने के लिए लीबिया में 100 मिलियन अमरीकी डॉलर का निवेश किया.
डूबती नाव को बचाने की कोशिश
जैसिंडा और कार्लोस ने रोम में मौजूद सी रेस्क्यू कोर्डिनेशन सेंटर के साथ भी संपर्क साधा. उन्होंने कहा कि उन्हें जानकारी तो हैं लेकिन मदद भेजी जा रही है या नहीं इसके बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं है.
नाव पर मौजूद व्यक्ति से जैसिंडा और कार्लोस ने एक बार फिर बात की और जानना चाहा कि क्या उन्हें कही दूर कोई रोशनी दिखाई दे रही है. उस व्यक्ति ने कहा, कि चारों तरफ घुप्प अंधेरा है.
कुछ देर बाद व्यक्ति की बात का लहज़ा बदल गया, वो चिल्ला रहा था कि लोग पानी में डूब रहे हैं, कई पहले ही मर चुके हैं. जैसिंडा को पीछे से लोगों की चीख-पुकार स्पष्ट सुनाई दे रही थी.
इसके साथ ही फ़ोन लाइन कट गई. जैसिंडा और कार्लोस ने फिर फ़ोन करने की कोशिश की लेकिन संपर्क नहीं हो पाया.
सवेरे आठ बजे के आसपास उनकी बात कर्नल अब्दुल समद से हुई और उन्होंने बताया कि कोस्ट गार्ड से बात कर वो खोजी दल समंदर में भेज सकेंगे.
इसके बाद उन्हें जानकारी मिली कि जो नाव की तलाश करने करे लिए जो खोजी दल भेजे गए थे लेकिन उन्हें पानी में किसी का कोई नामोनिशान नहीं मिला.
बीबीसी ने कर्नल अब्दुल समद से भी बात करने की कोशिश की लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो सका.
किसी को नहीं पता नाव कहां गई
फ़ोन लाइन कटने के बाद से उस नाव का कोई अता-पता नहीं है.
इस बात के कोई सबूत नहीं हैं कि जिस नाव से जैसिंडा और कार्लोस को फ़ोन किया गया था उसमें मुज़्म्मिल सवार था भी या नहीं.
लेकिन माहेर ने अपने भतीजे का और रास्ते का जो विवरण दिया और नाव से फ़ोन आने का वक्त सब इस और इशारा करते हैं कि हो सकता है कि मुज़्म्मिल उस नाव पर हो.
उस रात तीन नावों को बचाया गया था- एक माल्टा के अधिकारियों ने, दूसर आइटा मारी नाम के एक एनजीओ ने और तीसरा लीबियाई कोस्ट गार्ड ने बचाया था.
लेकिन उन नावों पर सवार लोगों के बारे में जानकारी, उनके जीपीएस कोर्डिनेट यानी लोकेशन उस नाव से मेल नहीं खाते जिससे जैसिंडा और कार्लोस को फ़ोन आया था. और ऐसे लगता ही मुज़्म्मिल बचाए गए किसी नाव पर सवार नहीं थे.
सी रेस्क्यू कोर्डिनेशन सेंटर ने बीबीसी को बताया कि अंतरराष्ट्रीय नियमों के अनुसार वो दूसरे बचाव दलों के साथ जानकारी साझा करते हैं, जो उन्होंने किया.
इंटरनेशनल माइग्रेशन ऑफ़िस का कहना है कि लीबिया में सुरक्षा के बिगड़ते हालातों के कारण प्रवासन की समस्या बढ़ी है. लेकिन कोरोना महामारी के कारण माल्टा और इटली ने अपने पोर्ट बंद कर दिए हैं और ऐसे में एनजीओ करे राहत और बचाव दल केलिए समंदर में जाना मुश्किल हो गया है.
इंटरनेशनल माइग्रेशन ऑफ़िस के अनुसार इस साल की शुरूआत से अब तक भूमध्य सागर में 258 लोगं की मौत दर्ज की गई है, जो पिछले साल के मुक़ाबले कम है.
माहेर को लगता है कि जो नाव डूबी उसमें उनका भांजा मुज़्म्मिल सवार था, लेकिन वो ये मानने को तैयार नहीं कि वो मर चुका है.
माहेर कहते हैं कि जब उसका लाथ मिली ही नहीं तो हम कैसे मान लें कि वो मर चुका है.
वो अब भी खुद यूरोप जाना चहते हैं. भूमध्य सागर में कम राहत और बचाव नावों की बात सुन कर वो थोड़ा चिंतित तो हैं.
लेकिन वो कहते हैं, "जब आप समंदर में जाते हैं तो आप जिंदगी और मौत के बीच ही होते हैं."
रेखांकन: चार्ली न्यूलैंड
ऑनलाइन प्रोड्यूसर: जेम्स पर्सी
एडिशन : सारा बकले