एक स्कूल ड्रॉपआउट ने नेपाल की ओली सरकार को कोरोना पर कार्रवाई के लिए कैसे मजबूर कर दिया
नई दिल्ली- नेपाल की केपी शर्मा ओली सरकार भारत से बेवजह सीमा विवाद पैदा करने और अपनी सरकार बचाने में जुटी रही और वहां कोरोना वायरस की वजह से हालात बेकाबू होते चले गए। नेपाली युवाओं ने शुरू में सरकार की सारी बातें मानीं। लॉकडाउन का पूरा पालन किया। लेकिन, जब उन्हें लगा कि ओली तो दूसरी ही दुनिया में खोए हुए हैं, तब उन्होंने प्रदर्शन करना भी शुरू किया। उनका प्रदर्शन शांतिपूर्ण था, लेकिन फिर भी कई बार उनके खिलाफ पुलिस कार्रवाई की गई। इन्हीं प्रदर्शनकारियों में 29 साल एक शख्स भी था, जिसके एक बुलावे पर सैकड़ों लोग प्रदर्शन के लिए जुटते रहे। उसने दो-दो बार लंबी भूख हड़ताल भी की। उसके पक्ष में लोगों के जुटने का असर यह हुआ कि नेपाल सरकार को आखिरकार उसी के साथ लिखित समझौता करना पड़ा और तब जाकर नेपाल में कोरोना को कंट्रोल करने के प्रयास शुरू हो पाए हैं।
नेपाल ने पहले युवाओं पर की सख्ती
नेपाल में जब कोरोना वायरस का संक्रमण तेजी से फैलता जा रहा था, तब प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की सरकार अपनी सरकार और भारत से सीमा विवाद में उलझी हुई थी। ये वही दौर था, जब कोरोना वायरस को कंट्रोल करने की मांग करने वालों पर नेपाल की दंगा पुलिस डंडे बरसा रही थी और पानी की बौछारें छोड़ रही थी। कई को पुलिस की लाठियां लगीं, कितनों को हिरासत में लिया गया और एक युवा नेता की तो भूख हड़ताल पर बैठने से जान जाते-जाते बची। सरकार ने लॉकडाउन की घोषणा तो मार्च में ही कर दी थी, लेकिन भारत से आने वाले हजारों नेपालियों की क्वारंटीन का कोई इंतजाम नहीं किया। ऊपर से सरकार जो विदेशों से मेडिकल उपकरण और बाकी सामान मंगवा रही थी, उसपर स्थानीय मीडिया में अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे थे।
'एनफ इस एनफ' का कैंपेन चला
महीनों तक यही खेल चलता रहा। नेपाल सरकार सस्ते टेस्टिंग किट के भरोसे बैठी रही और मामला हाथ से निकलता चला गया। 29 साल के फिल्ममेकर रॉबिक उपाध्याय कहते हैं, 'महीनों तक हम घरों में बंद रहे और सरकार के आदेशों के पालन में अपना सहयोग करते रहे, लेकिन लॉकडाउन के दौरान हमने महसूस किया कि सरकार कोरोना वायरस से पैदा हो रही परिस्थितियों से निपटने में सक्षम नहीं है। ' उपाध्याय ने सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए 'एनफ इस एनफ' का कैंपेन चलाया और हजारों लोग ऑनलाइन सपोर्ट मे उतरने लगे। इसमें लोगों को सड़कों पर प्रदर्शन करने के लिए कहा जा रहा था। 3 करोड़ से कम आबादी वाले देश में इस प्रकार से समर्थन मिलना ही बड़ी बात थी।
ईह ने सरकार के खिलाफ खोला मोर्चा
इसी दौरान हाई स्कूल ड्रॉपआउट 29 साल के ईह नाम के एक शख्स ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट डाला, जिसके बुलावे पर पहली ही बार में 400 प्रदर्शनकारी प्रदर्शन के लिए जुट गए। ईह वही शख्स है, जिसने जातीय अल्पसंख्यकों के पक्ष में भी कैंपेन चलाया था। ईह को पुलिस ने हिरासत में ले लिया। ईह के मुताबिक, 'कई हफ्तों के लॉकडाउन के बाद हमने सोचा कि सिर्फ वर्चुअल माध्यमों से प्रदर्शन करना काफी नहीं है यह जीने और मरने का मसला था, इसीलिए मैंने इंस्टाग्राम पर कहा कि क्या कोई बाहर आने के लिए तैयार है। 400 लोग इसके लिए तैयार हो गए।' लेकिन, फिर भी ओली सरकार समझने के लिए तैयार नहीं हुई। उसने जून में पहले 12 दिनों की और फिर जुलाई में 23 दिनों के लिए भूख हड़ताल भी की और जब उसकी तबीयत बिगड़ी तो अस्पताल में दाखिल करवाना पड़ा।
ईह के साथ नेपाल सरकार का समझौता
आखिरकार ओली सरकार जनता के दबाव में झुकने के लिए मजबूर हुई। उसने 9 अगस्त को ईह के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसमें कोविड-19 के रैपिड डायगनोसिस टेस्ट बंद करने और उसके बदले में बेहतर पीसीआर टेस्ट करने को राजी हो गई। सरकार अच्छी पीपीई किट भी हेल्थ वर्करों को मुहैया कराने को राजी हुई। उनके लिए नियमित स्वास्थ्य विशेषज्ञों की सलाह की भी व्यवस्था की गई। इस समझौते में मरीजों की बेहतर देखभाल और दवा उपलब्ध करवाने का भी वादा किया गया। त्रिभूवन यूनिवर्सिटी के समाजशास्त्री दिनेश प्रासैन कहते हैं, 'कई देशों में सरकारों ने कोरोना वायरस के हालात को बिगाड़ा है, लेकिन नेपाल में युवाओं का एकजुट होना अनोखा था, जो कि गलतियों के खिलाफ गैर-राजनीतिक शांतिपूर्ण प्रदर्शन के द्वारा उन्हें स्वीकारने और ठीक करने को मजबूर किया। '
वादे से मुकरने पर फिर प्रदर्शन की चेतावनी
नेपाल में कोरोना के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। 1 जून को वहां सिर्फ 1,798 केस और 8 मौतें थीं, जो 8 सितंबर को बढ़कर 48,138 केस और 306 मौते हो चुकी थी। देश के कई हिस्सों में फिर से पाबंदियां लगानी पड़ी हैं। प्रदर्शनकारियों ने सरकार को सख्त चेतावनी दी हुई है कि अगर वादे से मुकरे तो वह भी सड़कों पर उतर आएंगे।
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