अफ़ग़ानिस्तान में वजूद की लड़ाई लड़ते हिन्दू और सिख
अफ़ग़ानिस्तान में किसी सिख का निर्विरोध चुनाव जीतना बड़ी बात लगती है.
लेकिन थोड़ा रुकिए! बात इतनी सीधी भी नहीं है.
हिंदू और सिख अफ़ग़ानिस्तान के धार्मिक अल्पसंख्यक हैं और ये दोनों समुदाय मिलकर अपना एक प्रतिनिधि अफ़ग़ानिस्तान के केंद्रीय संसद में भेज सकते हैं.
अफ़ग़ानिस्तान में किसी सिख का निर्विरोध चुनाव जीतना बड़ी बात लगती है.
लेकिन थोड़ा रुकिए! बात इतनी सीधी भी नहीं है.
हिंदू और सिख अफ़ग़ानिस्तान के धार्मिक अल्पसंख्यक हैं और ये दोनों समुदाय मिलकर अपना एक प्रतिनिधि अफ़ग़ानिस्तान के केंद्रीय संसद में भेज सकते हैं.
20 अक्टूबर को होने जा रहे संसदीय चुनाव नरिंदर सिंह खालसा निर्विरोध निर्वाचित हो गए हैं.
नरिंदर सिंह पेशे से एक व्यापारी हैं और कोई राजनीतिक तजुर्बा नहीं रखते हैं, लेकिन अगले कुछ दिनों में अफ़ग़ानिस्तान की सर्वोच्च विधायिका (संसद) के सदस्य बन जाएंगे. वो अवतार सिंह खालसा के बड़े बेटे हैं.
भारत में इलाज
अवतार सिंह खालसा ने अफ़ग़ानिस्तान के संसदीय चुनाव के लिए नामांकन किया था और नामांकन के कुछ ही दिन बाद इसी साल जून के महीने में हुए जलालाबाद शहर के एक आत्मघाती हमले में मारे गए थे.
पिता की मौत के बाद नरिंदर सिंह खासला ने हिंदू और सिख समुदाय के सहयोग से उनकी जगह पर संसदीय चुनाव के लिए नामांकन किया है.
नरिंदर सिंह ने बताया, "पिताजी के साथ हिंदू और सिख समुदाय के एक सम्मेलन में भाग लेने के लिए जलालाबाद गया था. वहीं पर एक आत्मघाती बम हमला हुआ जिसमें 19 लोग मारे गए. मारे गए लोगों में मेरे पिता भी थे."
इस हमले में नरिंदर सिंह ख़ुद भी बुरी तरह ज़ख़्मी हो गए थे.
अवतार सिंह खालसा की मौत के बाद नरिंदर को इलाज के लिए भारत ले जाया गया था.
हिंदुओं और सिखों की समस्या
इलाज के बाद जब वे वापस अफ़ग़ानिस्तान लौटे तो हिंदू और सिख समुदाय के लोगों ने दिवंगत अवतार सिंह खालसा की जगह पर चुनाव लड़ने का प्रस्ताव रखा.
नरिंदर बताते हैं, "इसके अलावा मेरे पास और कोई उपाय भी नहीं था. क्योंकि नंगरहार के इस आत्मघाती हमले में दोनों समुदायों के अधिकांश बड़े-बूढ़े लोग मारे गए थे."
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अफ़ग़ानिस्तान के दूसरे लाखों नौजवानों की तरह अल्पसंख्यक समुदाय के युवा भी पिछले 40 साल से चल रहे संघर्ष और हिंसा के कारण पिछड़ेपन का शिकार हैं.
38 साल के नरिंदर सिंह चार बेटों के पिता हैं. न तो उनके बच्चे और न ही अल्पसंख्यक समुदाय के दूसरे लोगों के बच्चों के लिए अफ़ग़ानिस्तान में हालात एसे हैं कि वे अच्छी तालीम हसिल कर सकें.
अफ़ग़ानिस्तान का गृह युद्ध
नरिंदर कहते हैं कि उनके लोग तो अपने धार्मिक रस्मो रिवाज़ और पर्व त्योहार भी बड़ी कठिनाई से मना पाते हैं.
"इन अल्पसंख्यकों की केवल यही समस्या नहीं हैं बल्कि इन 40 सालों के दौरान हमारे लोगों की ज़मीन और दूसरी संपत्तियां हड़प ली गई हैं."
अफ़ग़ानिस्तान के हिंदू और सिख समुदाय के लोगों का मुख्य पेशा व्यापार और पारंपरिक यूनानी दवाइयां का कारोबार है.
नरिंदर सिंह खालसा भी कारोबार ही करते हैं. वे कहते हैं, "राजनीति में मैं केवल हिंदुओं और सिखों के लिए नहीं बल्कि मुल्क के सभी लोगों के लिए काम करूंगा."
"हिंदू और सिख सदियों से अफ़ग़ानिस्तान में रहते आ रहे हैं. अफ़ग़ानिस्तान की अंदरूनी लड़ाई में इन दोनों समुदायों की कोई भागीदारी नहीं है लेकिन इसके बावजूद हमारे बहुत से लोग मारे गए हैं."
"मेरे ही परिवार के नौ लोगों ने अब तक इस युद्ध में अपनी जान गंवाई है."
अवतार सिंह खालसा की मौत
नरिंदर सिंह कहते हैं कि उनका परिवार कई पीढ़ियों से इसी मुल्क में रहता आ रहा है और इसी वतन का हिस्सा है.
वो कहते हैं, "सरकार और विश्व बिरादरी को चाहिए कि हम लोगों को हमारा अधिकार दे और ये गर्व की बात है कि सिख और हिंदू समुदाय अपना प्रतिनिधि मजलिस (संसद) में भेज रहे हैं.
नरिंदर सिंह के पिता अफ़ग़ानिस्तान के सीनेटर और संसद के सदस्य रह चुके थे.
इसी साल जुलाई के पहले हफ़्ते में अफ़ग़ानिस्तान के पूर्वी शहर जलालाबाद में एक आत्मघाती बम हमले में कम से कम 19 लोग मारे गए थे.
मरने वालों में से अधिकतर लोग अल्पसंख्यक सिख समुदाय के थे जो राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी से मिलने के लिए एक गाड़ी में सवार होकर जा रहे थे. उसी समय उन्हें हमले का निशाना बनाया गया.
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बीबीसी को आख़िरी इंटरव्यू
अवतार सिंह खलसा ने बीबीसी को दिए अपने अंतिम इंटरव्यू में कहा था, "अपने परिवार के आठ लोगों को अब तक खो चुका हूं और अगर बाक़ी 14 लोगों को अफ़ग़ानिस्तान के लिए जान देनी पड़ी तो हम इसके लिए पीछे नहीं हटेंगे."
"हम इसी मुल्क में रहेंगे और कभी अफ़ग़ानिस्तान छोड़कर नहीं जाएंगे. अपने वतन के लिए सीने में गोली खाने पर हमें गर्व होगा."
निर्विरोध चुनाव कैसे?
अफ़ग़ानिस्तान में हिंदू और सिख लोग आने वाले चुनाव में पूरे देश में केवल एक ही सीट के लिए चुनाव लड़ सकते हैं.
आप इसे यूं समझ सकते हैं कि अल्पसंख्यकों के लिए पूरा मुल्क ही महज एक निर्वाचन क्षेत्र है.
इन अल्पसंख्यकों में से अधिकांश काबुल, ग़ज़नी, हेलमंद, ख़ोस्त और नंगरहार सूबों में रहते हैं.
लेकिन केवल हेलमंद, काबुल और नंगरहार में अल्पसख्यक समुदाय के 1100 वोटरों ने वोट देने के लिए अपना रजिस्ट्रेशन करवाया है.
नरिंदर सिंह पूरे अफ़ग़ानिस्तान में इन दोनों समुदायों के एक मात्र प्रत्याशी हैं, इसलिए वे निर्विरोध चुने जाएंगे.
अब जब कि उनके सामने कोई प्रतिद्वंद्वी नहीं है, इसलिए चुनाव प्रचार का कोई ख़ास इंतज़ाम भी नहीं किया है.
नरिंदर सिंह कहते हैं, "मैं भी चाहता हूं कि चुनाव प्रचार करूं और अपने लोगों से मिलूं, लेकिन सुरक्षा कारणों से ऐसा नहीं कर सकता."
अफ़ग़ानिस्तान में अल्पसंख्यक समुदाय
हिंदू और सिख अल्पसंख्यक अफ़ग़ानिस्तान में राजनीतिक और सामाजिक भेदभाव का शिकार रहे हैं.
सत्तर के दशक में इनकी एक बड़ी संख्या देश छोड़कर चली गई. लेकिन अवतार सिंह खलसा ने बीबीसी को बताया था कि तालिबान के समय लगभग दो हज़ार हिंदू दोबारा अफ़ग़ानिस्तान लौट आए थे.
नरिंदर सिंह का कहना है, "अब जब कि मैं संसद का सदस्य बन गया हूं तो हिंदुओं की हड़प ली गई संपत्ति वापस कराने और इन लोगों की अन्य सहायता के लिए हर तरह से कोशिश करूंगा."
"सिख और हिंदू अफ़ग़ानिस्तान में सदियों से उपेक्षा के शिकार रहे हैं और उनकी कोशीश होगी कि ये लोग भी मुल्क के अन्य नागरिकों की तरह सरकारी सुविधाओं का लाभ उठाएं."
इससे पहले सिखों और हिंदुओं का अफ़ग़ानिस्तान के संसद में कोई प्रतिनिधि नहीं होता था.
केवल दोनों समुदयों का एक प्रतिनिधि सीनेट में होता था.
नरिंदर सिंह अल्पसंख्यकों के पहले प्रतिनिधि होंगे जो 'वलसी जिरगा' में दोनों समुदायों का प्रतिनिधित्व करेंगे.
ये क़ानून अफ़ग़ानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करज़ई के समय पारित किया गया था, जिसके कारण आज अफ़ग़ानिस्तान में सिख और हिंदू अल्पसख्यकों को ये हक हासिल हुआ है.
अफ़ग़ानिस्तान की मजलिस (संसद) की 250 सीटों के लिए 20 अक्टूबर को वोट डाले जाएंगे.
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