#70yearsofpartition: शरीफ़ के लिए धड़कता है पंजाब के इस गांव का दिल
क्या वह भारत की एकमात्र दीवार है जिस पर शाहबाज़ या नवाज़ शरीफ़ की तस्वीर टांगी गई हो?
विभाजन के 70 साल बाद भी भारतीय पंजाब के एक छोटे से का दिल शरीफ़ परिवार के लिए धड़कता है.
अमृतसर के पास स्थित जाति उमरा, नवाज़ शरीफ़ के परिवार का पैतृक गांव है जिसका एकमात्र गुरुद्वारा उनके पुश्तैनी मकान में है.
गांव के सरपंच दिलबाग सिंह के घर पहुंचा तो एक दीवार पर शाहबाज़ शरीफ़ की एक तस्वीर टंगी हुई थी. मेरे मन में यह सवाल पैदा हुआ कि क्या यह भारत की एकमात्र दीवार है जिस पर शाहबाज़ या नवाज़ शरीफ़ की तस्वीर टांगी गई हो?
दिलबाग सिंह कहते हैं कि उनके पिता और मियां मोहम्मद शरीफ़ दोस्त थे. वह मुझे गांव का गुरुद्वारा दिखाने ले गए. स्थानीय ग्रन्थी ने मुझे बताया कि कुछ समय पहले शरीफ़ परिवार ने खुद गुरुद्वारे को अपनी ज़मीन भेंट कर दी थी.
पाकिस्तान में होती है ख़ातिरदारी
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ के पिता 1947 के विभाजन से पहले ही यहां से चले गए थे लेकिन उन्होंने गांव से नाता नहीं तोड़ा और अब स्थानीय लोग अपने पूर्व पड़ोसियों से मिलने पाकिस्तान जाते रहते हैं.
दिलबाग सिंह कहते हैं, "हम जब भी वहाँ जाते हैं तो बड़ा आदर-सम्मान होता है, वे कहते हैं कि कम से कम सौ लोग तो आते, हमारे रहने खाने-पीने का अच्छा प्रबंधन किया जाता है, बहुत ख़ातिर होती है."
सन 2013 में पाकिस्तानी पंजाब के मुख्यमंत्री शाहबाज़ शरीफ़ यहां आए तो राज्य सरकार ने गांव का हुलिया ही बदल दिया.
दिलबाग सिंह के अनुसार शाहबाज़ शरीफ़ ने कहा, "इस धरती पर सजदा करने का दिल करता है... हम कहां से कहां पहुंच गए."
गुरुद्वारे में हुई उनके लिए प्रार्थना
जब नवाज़ शरीफ़ पहली बार चुनाव जीते तो पूरे गांव ने मिलकर जश्न मनाया था और ग्रन्थी इंद्रजीत सिंह ने मुझे बताया, "जब उनकी सरकार का तख़्ता पलटा गया तो गुरुद्वारे में उनके लिए प्रार्थना हुई और आख़िरकार वह निर्वासन समाप्त करके पाकिस्तान लौट सके."
मैंने पूछा कि जब पाकिस्तान से आकर उग्रवादी भारत में कोई हमला करते हैं तो उन्हें कैसा लगता है तो इंद्रजीत सिंह ने कहा, "वहाँ जो भी प्रधानमंत्री बनता है उसके बस में थोड़ी बात रह जाती है, आतंकवाद फैलाने वालों के हाथ में अधिक है..."
"लेकिन हम यह चाहते हैं कि वे अपने सभी विकल्पों का उपयोग करके दोनों देशों के बीच प्रेम भाव पैदा करे."
दिलबाग सिंह ने मझे गांव के बाहर एक कुआं भी दिखाया जो उनके अनुसार एक बार शरीफ़ परिवार का एक ऊँट उसमें गिर गया था जो उस समय व्यापार के लिए इस्तेमाल किया जाता था.
उन्होंने कहा, "जब सीमा पर लोग मरते हैं तो बड़ी तकलीफ़ होती है, हम बस यही सोचते हैं कि जितना प्यार वह जाती उमरा से करता है उतना ही दोनों देशों के बीच भी होना चाहिए.
जाती उमरा एक मामूली सा गांव है जो विभाजन के 70 साल बाद भी अपने एक परिवार की असाधारण यात्रा पर गर्व करता है.