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जलवायु परिवर्तन के लिये जिम्मेदार अस्पताल भी, जानिए कैसे?

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बेंगलुरु। आम तौर पर हम सोचते हैं कि केवल कोयला जलाने, वाहन के धुएं और लकड़ी आदि जलाने से ही प्रदूषण होता है। और हम यह सोचने लगते हैं कि कोयले से संचालित विद्युत संयंत्रों को बंद कर देना चाहिये। लेकिन क्या आप जानते हैं, अस्‍पताल भी जलवायु परिवर्तन के लिय जिम्मेदार हैं। आप यह जानकर हैरान रह जायेंगे कि दुनिया भर में उत्सर्जित होने वाली ग्रीनहाउस गैसों का 4.4 प्रतिशत भाग स्वास्‍थ्‍य सेवाओं से आता है। यानी अस्‍पतालों, दवा कंपनियों, दवा फैक्ट्रियों, क्लीनिक, आदि से। यही नहीं अगर पूरी दुनिया के सभी अस्‍पतालों को मिलाकर एक देश मान लिया जाये तो वह देश दुनिया में पांचवा सबसे ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाला देश होगा।

Hospital

इतिहास में पहली बार स्‍वास्‍थ्‍य क्षेत्र के वैश्विक जलवायु फुटप्रिंट को एक रिपोर्ट के रूप में प्रस्‍तुत किया गया है। लंदन में जारी इस रिपोर्ट को हेल्‍थ केयर विदाउट हार्म नाम के एक संगठन ने तैयार किया है। इस रिपोर्ट में दुनिया भर में स्‍वास्‍थ्‍य क्षेत्र में बड़े बदलाव की जरूरत को जाहिर किया गया है। ऐसे बदलाव जो पेरिस समझौते के अनुरूप हों और वैश्विक तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने में मददगार साबित हों।

स्वास्थ्‍य क्षेत्र से होने वाले उत्सर्जन से जुड़ी खास बातें-

1. स्वास्थ्‍य क्षेत्र के कार्बन फुटप्रिंट शुद्ध वैश्विक उत्‍सर्जन के 4.4 प्रतिशत हैं।

2. स्‍वास्‍थ्‍य क्षेत्र से उत्सर्जित ग्रीनहाउस गैस करीब दो गीगाटन कार्बन डाई ऑक्‍साइड के बराबर हैं।

3. जीवाश्‍म ईंधन को जलाने से पैदा होने वाला उत्‍सर्जन स्‍वास्‍थ्‍य क्षेत्र के वैश्विक फुटप्रिंट के आधे से ज्‍यादा है।

4. स्‍वास्‍थ्‍य क्षेत्र से होने वाला कुल उत्सर्जन, कोयले से चलने वाले 514 बिजली संयंत्रों द्वारा हर साल छोड़ी जाने वाली ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा के बराबर है।

5. पूरी दुनिया में स्‍वास्‍थ्‍य क्षेत्र से होने वाले उत्सर्जन में 75 प्रतिशत योगदान टॉप 10 देशों से होता है- अमेरिका, चीन, यूरोपीय यूनियन, जापान, रूस, जापान, ब्राज़ील, भारत, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया।

कहां से उठता है सबसे अधिक प्रदूषण

अगर स्‍वास्‍थ्‍य क्षेत्र की बात की जाये तो सबसे पहले दवाओं की फैक्ट्रियों को ले लीजिये। उसके बाद हर बड़े अस्पताल में ऑक्सीजन प्लांट लगे होते हैं। उनमें से भारी मात्रा में कार्बन उत्सर्जन होता है। उसके अलावा कई मशीनें भी इसमें शामिल हैं जो आमतौर पर अस्‍पतालों में इस्‍तेमाल होती हैं। अंत में आता है बिजली सप्लाई।

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हेल्‍थ केयर विदाउट हार्म के इंटरनेशनल डायरेक्‍टर ऑफ प्रोग्राम तथा इस रिपोर्ट के सह-लेखक जोश कार्लिनर ने कहा कि "न सिर्फ डॉक्‍टर, नर्स और स्‍वास्‍थ्‍य सेवाएं जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति जवाबदेह हैं, बल्कि अस्‍पताल और स्‍वास्‍थ्‍य प्रणाली भी विरोधाभासी तरीके से जलवायु सम्‍बन्‍धी संकट में बड़ा योगदान करते हैं। स्‍वास्‍थ्‍य क्षेत्र की बिजली सम्‍बन्‍धी व्‍यवस्‍था को स्‍वच्‍छ अक्षय ऊर्जा पर आधारित करने तथा वर्ष 2050 तक ग्रीनहाउस गैसों के उत्‍सर्जन को शून्‍य स्‍तर तक पहुंचाने के लिये अन्‍य प्राथमिक रोकथाम रणनीतियों को लागू करने की जरूरत है। स्‍वास्‍थ्‍य क्षेत्र को जलवायु परिवर्तन रूपी आफत टालने के लिये अपनी जिम्‍मेदारी निभाने के मकसद से आगे आना चाहिये, क्‍योंकि जलवायु परिवर्तन पूरी दुनिया में मानव स्‍वास्‍थ्‍य के लिये विनाशकारी होगा।"
क्या कहता है विश्‍व स्वास्थ्‍य संगठन

विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन के महानिदेशक टेड्रो अधानम गेब्रियेसेस ने इस पर एक बयान जारी करते हुए कहा कि स्‍वास्‍थ्‍य क्षेत्र में कार्यरत संगठनों, विभागों व इकाईयों की एक बड़ी जिम्मेदारी जिंदगी बचाने की है। लेकिन जलवायु परिवर्तन के इस कारक को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता। लिहाजा लोगों को इलाज प्रदान वाली जगहों को बीमारी का बोझ बढ़ाने के बजाय उसे कम करने के लिये ही आगे आना चाहिये।

क्या कहते हैं विशेषज्ञ

पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के डा. श्रीनाथ रेड्डी कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन इस वक्त पृथ्‍वी के लिये सबसे बड़ा खतरा है। और इसमें कोई शक नहीं कि जिन तकनीकियों को स्‍वास्‍थ्‍य क्षेत्र में इस्‍तेमाल किया जा रहा है, उनसे कार्बन एमिशन होता है। लिहाजा इस चुनौती से निबटने का एक ही तरीका है, वो है ईको-फ्रेंडली तकनीक का प्रयोग। सरकारों व निजल अस्‍पतालों के प्रबंधन को इस दिशा में बड़े कदम उठाने चाहिये।

सेंटर फॉर इंवॉयरनमेंटल हेल्थ की सह निदेशक डा. पूर्णिमा प्रभाकरन कहती हैं कि भारत में पूरे हेल्थकेयर सिस्टम को बदलने की जरूरत है। इसके लिये जिम्मेदार इकाईयों, निकायों व संगठनों को आगे आकर ऐसा रोडमैप तैयार करने की जरूरत है, जिसमें जीरो कार्बन एमिशन हो। केवल राष्‍ट्रीय स्‍तर पर ही नहीं बल्कि प्रादेशिक स्‍तर पर भी कई बदलावों की जरूरत है। और हेल्‍थ सेक्टर में फंड प्रदान करने वाली एजेंसियों को भी इस क्षेत्र में कदम बढ़ाने की जरूरत है।

एसोसिएशन ऑफ हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स- इंडिया के अध्‍यक्ष डा. एलेक्स थॉमस का कहना है कि भले ही भारत में स्‍वास्‍थ्‍य क्षेत्र से कार्बन एमीशन उतना नहीं है, लेकिन बाकी स्रोतों से भारत पहले ही उत्सर्जन में बड़ा भागीदार है। अगर स्‍वास्‍थ्‍य क्षेत्र में छोटे-छोटे कदम भी उठाये जायें, तो उसके बड़े परिणाम मिल सकते हैं। अब छत्तीसगढ़ के प्राथमिक स्‍वास्‍थ्‍य केंद्रों को ही ले लीजिये। यहां सभी नये स्‍वास्‍थ्‍य केंद्रों में रूफ टॉप बिजली संयंत्र लगाकर बिजली सप्‍लाई की जा रही है। कहने को यह छोटा सा कदम है, लेकिन अगर देश के सभी राज्यों के पीएचसी में इसे अपनाया जाये या फिर सभी सरकारी व प्राइवेट अस्‍पतालों की छतों पर सौर्य ऊर्जा के प्लांट लगा दिये जायें तो भारी मात्रा में एमिशन को रोका जा सकता है।

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English summary
According to the latest report, the global health care climate footprint is equivalent to the annual greenhouse gas emissions from 514 coal-fired power plants.
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