ईरान ने जानकर अमरीकी कैंपों को बचाते हुए लगाए निशाने?
8 जनवरी 2020 के शुरुआती घंटों में ईरान ने क़रीब दो दर्जन बैलिस्टिक मिसाइलों से इराक़ में स्थित दो अमरीकी कैंपों को निशाना बनाया और कहा कि ये हमले कमांडर जनरल क़ासिम सुलेमानी की हत्या का बदला लेने के लिए किए गए. सुलेमानी बीते शुक्रवार इराक़ के बग़दाद शहर में अमरीकी ड्रोन हमले में मारे गए थे. उनकी मौत के बाद ईरान ने कहा था कि अमरीका को इसकी भारी क़ीमत चुकानी होगी.
8 जनवरी 2020 के शुरुआती घंटों में ईरान ने क़रीब दो दर्जन बैलिस्टिक मिसाइलों से इराक़ में स्थित दो अमरीकी कैंपों को निशाना बनाया और कहा कि ये हमले कमांडर जनरल क़ासिम सुलेमानी की हत्या का बदला लेने के लिए किए गए.
सुलेमानी बीते शुक्रवार इराक़ के बग़दाद शहर में अमरीकी ड्रोन हमले में मारे गए थे. उनकी मौत के बाद ईरान ने कहा था कि अमरीका को इसकी भारी क़ीमत चुकानी होगी.
लेकिन ईरान की ओर से दी गई उग्र चेतावनियों के बावजूद अमरीका का कोई सैनिक आहत नहीं हुआ. अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने अपने बयान में इसकी पुष्टि की है.
तो क्या ईरान ने जानबूझकर अमरीकी कैंपों में तैनात सैनिकों को बचा दिया?
ईरान और अमरीका ने क्या कहा?
ईरान के इस्लामिक रेवॉल्यूशनरी गार्ड्स कॉर्प्स (IRGC) ने कहा है कि ईरान ने बुधवार को सतह से सतह पर मार करने वाली क़रीब बीस मिसाइलें छोड़ी थीं जिन्होंने इराक़ में अमरीकी कब्ज़े वाले अल-असद कैंप को निशाना बनाया.
अल-असद पश्चिमी इराक़ में अमरीका का एक मज़बूत कैंप है जहाँ से अमरीका सैन्य अभियान करता है.
ईरान की तस्नीम समाचार एजेंसी जिसे IRGC का क़रीबी कहा जाता है, उसने रिपोर्ट की है कि इस हमले में ईरान ने फ़तेह-313 और क़ियाम मिसाइल का इस्तेमाल किया. अमरीकी सेना इन मिसाइलों को रोकने में नाकाम रही क्योंकि इनपर 'क्लस्टर वॉरहेड' लगे थे. इन्हीं की वजह से अल-असद में दसियों विस्फोट हुए.
अमरीकी डिफ़ेंस विभाग ने कहा है कि ईरान ने एक दर्जन से ज़्यादा बैलिस्टिक मिसाइलें छोड़ीं जिन्होंने अर्द्ध स्वायत्त कुर्दिस्तान क्षेत्र में स्थित दो इराक़ी सैन्य ठिकानों- इरबिल और अल-असद को निशाना बनाया.
अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने कहा है कि अमरीकी फ़ौज का एक भी सदस्य आहत नहीं हुआ. सैन्य बेस में भी मामूली नुक़सान हुआ है.
टीवी पर बयान देते हुए ट्रंप ने कहा कि सावधानी बरतने से, सैन्य बलों के फैलाव से और वॉर्निंग सिस्टम के सही से काम करने के कारण क्षति नहीं हुई.
हालांकि, अमरीका के शीर्ष सैन्य अधिकारी, आर्मी जनरल मार्क मिले का मानना है कि हमला वाक़ई जानलेवा था.
उन्होंने कहा, "हमारा व्यक्तिगत आकलन यह है कि ईरान ने वाहनों, उपकरणों और विमानों को नष्ट करने और सैन्य कर्मियों को मारने के लिए हमला किया था."
मिसाइलों ने वास्तव में किसे हिट किया?
इराक़ की सेना ने भी कहा है कि उनका कोई सैनिक हताहत नहीं हुआ.
इराक़ी सेना के अनुसार बुधवार सुबह 1:45 से 2:15 के बीच इराक़ में 22 मिसाइलें गिरीं जिनमें से 17 मिसाइलें अल-असद एयर बेस की ओर फ़ायर की गई थीं.
मिडिलबरी इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंटरनेशनल स्टडीज़ के लिए व्यवसायिक कंपनी प्लैनेट लैब्स द्वारा ली गईं सैटेलाइट तस्वीरों में दिखाया गया है कि अल-असद एयर बेस में कम से कम पाँच ढांचे ध्वस्त हुए हैं.
मिडलबरी इंस्टीट्यूट के एक विश्लेषक डेविड श्मर्लर ने बताया है कि "सैटेलाइट तस्वीरों में कई ऐसी जगहें दिखाई देती हैं जिन्हें देखकर लगता है कि निशाना बिल्कुल ढांचे के केंद्र में लगा."
लेकिन यह भी स्पष्ट है कि कुछ मिसाइलें एयर बेस में नहीं गिरीं. इराक़ी सेना के अनुसार अल-असद कैंप को निशाना बनाकर छोड़ी गईं दो मिसाइलें हीत क्षेत्र के हितान गाँव के पास गिरीं और फटी नहीं.
इनमें से एक मिसाइल की कुछ तस्वीरें सोशल मीडिया पर शेयर भी की गई हैं जिनमें मिसाइल तीन टुकड़ों में टूटी हुई दिखाई देती है.
इराक़ी सेना का कहना है कि ईरान ने पाँच मिसाइलें इरबिल एयर बेस की तरफ भेजी थीं जो कि उत्तरी कुर्दिस्तान में स्थित है.
यह फ़िलहाल नहीं कहा जा सकता कि इनमें से कितनी मिसाइलें एयर बेस में गिरीं, पर इराक़ के सरकारी टीवी चैनल के अनुसार इन पाँच में से दो मिसाइलें इरबिल शहर से क़रीब 16 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में स्थित सिडान गाँव में गिरीं.
कुछ रिपोर्टों में यह भी कहा गया है कि इरबिल कैंप की तरफ भेजी गई मिसाइलों में से एक मिसाइल इरबिल शहर से 47 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में गिरी थी.
क्या ईरान ने जानबूझकर ऐसा किया?
अमरीका और यूरोपीय सरकारों के सूत्रों ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा है कि उन्हें विश्वास है कि ईरान ने जानबूझकर ऐसा किया है ताकि कम से कम नुक़सान हो और ईरान ने इस हमले में अमरीकी कैंपों को काफ़ी हद तक बचा दिया ताकि जो संकट मंडरा रहा है वो नियंत्रण से बाहर ना हो जाए, जबकि दोनों देशों के बीच अभी भी समाधान का संकेत मिल रहा है.
अमरीकी न्यूज़ चैनल सीएनएन के पत्रकार जेक टैपर ने पेंटागन के एक वरिष्ठ अधिकारी के हवाले से ट्वीट किया है कि ईरान ने जानकर ऐसे टारगेट चुने जहाँ जान-माल का न्यूनतम नुक़सान हो.
अमरीकी अख़बार 'द वॉशिंगटन पोस्ट' ने अपनी एक रिपोर्ट में लिखा है कि अमरीकी अधिकारियों को मंगलवार दोपहर को ही पता चल गया था कि ईरान इराक़ में स्थित अमरीकी ठिकानों पर हमला करने का मन बना चुका है, लेकिन यह अंदाज़ा नहीं था कि ईरान किस कैंप पर हमला करेगा.
अख़बार ने लिखा है, "अमरीका को इराक़ से अपने खुफ़िया सूत्रों के ज़रिये यह चेतावनी मिल गई थी कि ईरान कोई स्ट्राइक करने वाला है."
अमरीका में बीबीसी के सहयोगी न्यूज़ चैनल सीबीएस के संवाददाता डेविड मार्टिन ने एक वरिष्ठ रक्षा अधिकारी के हवाले से कहा है कि अमरीका को हमले से कई घंटे पहले चेतावनी मिल गई थी, जिसकी वजह से अमरीकी सैनिकों को बंकरों में शरण लेना का पर्याप्त समय मिला.
रक्षा विभाग के इस सूत्र ने कहा है कि अमरीका को यह चेतावनी सैटालाइटों और सिग्नलों के कॉम्बिनेशन की मदद से मिली. ये वही सिस्टम है जो उत्तर कोरिया के मिसाइल परीक्षणों पर नज़र रखता है.
ये अधिकारी इस अटकल से सहमत नहीं थे कि ईरान ने जानकर निशाने ग़लत लगाए.
मार्टिन ने कहा कि उन्हें अमरीकी रक्षा विभाग का कोई ऐसा वरिष्ठ अधिकारी नहीं मिला जो यह बता सके कि इराक़ के प्रधानमंत्री द्वारा भी अमरीका को कोई पूर्व-सूचना दी गई थी.
इस अमरीकी अधिकारी ने कहा कि हमारे सैनिक अपनी जगहें बदलने की वजह से सुरक्षित रहे.
बीबीसी के डिफ़ेंस संवाददाता जॉनाथन मार्कस कहते हैं, "वजह डिज़ाइन की थी या फिर ईरानी मिसाइलों के निर्माण की जिसकी वजह से निशाना सटीक नहीं था, यह अभी तक स्पष्ट नहीं है. हालांकि अमरीकी सैन्य ठिकानों के ख़िलाफ़ लंबी दूरी की मिसाइलें लॉन्च करना ईरान के लिए जोखिम भरा रास्ता था."
बीबीसी संवाददाता ने कहा, "प्रारंभिक सैटेलाइट तस्वीरों को देखकर लगता है कि अल-असद एयर बेस पर ईरानी मिसाइलों ने कई ढांचों को नुक़सान पहुँचाया है, लेकिन अगर इस हमले में सैनिक हताहत नहीं हुए तो इसकी वजह डिज़ाइन में कोई कमी नहीं, बल्कि सैनिकों की किस्मत लगती है."