ग्राउंड रिपोर्ट: उत्तर कोरिया बॉर्डर की सुरंगे, बंकर और लैंडमाइन
उत्तर कोरिया के एक सीमावर्ती गांव में बीबीसी संवाददाता नितिन श्रीवास्तव ने क्या-क्या देखा.
दक्षिण कोरिया के एक गाँव में सुबह के साढ़े दस बजे हैं. सीमा पर बसे इस आख़िरी गाँव में सन्नाटा पसरा हुआ है जिसे एक-आधा बख़्तरबंद गाड़ियों कभी-कभार तोड़ देती हैं.
योंगाम री गाँव के बाद से ही उत्तर और दक्षिण के बीच का डिमिलिट्राइज़्ड ज़ोन (विसैन्यीकृत क्षेत्र) शुरू हो जाता है.
अनुमान है कि इस ज़ोन में दस लाख से भी ज़्यादा लैंडमाइन्स का जाल बिछा हुआ है.
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गाँव के चेहरों पर आज भी दहशत
इधर गाँव के ओल्ड-एज होम (वृद्धाश्रम) में क़रीब एक दर्जन महिलाएं खाना परोसे जाने के इंतज़ार में हैं.
कई किस्म की सूखी मछलियां, पोर्क-चावल, किमची सलाद और कोरिया की 'राष्ट्रीय शराब' सोजू आज मेज़ पर है.
ये वो लोग हैं जिन्होंने देश के हिंसक बंटवारे को देखा है और इनके चेहरों पर आज भी दहशत की छाप है.
90 साल की ली सुन जा ने 1950 में इसी गाँव में लोगों का क़त्ले-आम देखा था.
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डर लगता है कि जंग दोबारा न छिड़ जाए
"मेरे पति अब नहीं रहे और बच्चे बड़े होकर दूसरी जगहों पर जाकर बस चुके हैं. पिछले वर्षों में तनाव भी बढ़ा है. अब मैं अपनी जगह तो नहीं छोडूंगी लेकिन हाँ, रोज़ दिमाग में ये बात ज़रूर उठती रहती है कि जंग दोबारा न छिड़ जाए. ज़ाहिर है, डर भी लगता है".
ली सुन जा इस वृद्धाश्रम में अकेली महिला थीं जो हमसे बात करने को तैयार हुईं.
दूसरों ने उत्तर कोरिया के बारे में कोई भी टिप्पणी करने से साफ़ मना कर दिया क्योंकि इनमें से कई वहीँ से आए हैं और कुछ के रिश्तेदार अभी भी वहीँ हैं.
लेकिन ली सुन जा इस बात से बिल्कुल अनजान हैं कि उत्तर कोरिया के शासक किम जोंग-उन मिसाइल पर मिसाइल टेस्ट करते जा रहे हैं.
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किम के बारे में बातें कम
उन्होंने कहा, "मैं टेलीविज़न तो देखती हूँ, लेकिन किम के बारे में बहुत कम ही बात होती है. वैसे उत्तर कोरिया हमेशा से जंग-पसंद रहा है. चिंता भी इसी बात की ही है".
योंगाम री जैसे दर्जनों गाँव उत्तर कोरिया सीमा के नज़दीक बसे हुए हैं.
हर गाँव में बड़े-बड़े बंकर तैयार हैं और बताया जाता है कि इनमें चले जाने पर परमाणु या रसायन हमले से भी बचा जा सकता है.
काफ़ी मिन्नतों के बाद हमें एक बंकर में जाने और फ़िल्म करने की इजाज़त मिली.
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बर्फ़ीली सर्द हवाओं से जूझना पड़ता है
लोहे और कंक्रीट की बनी दीवारें चार फ़ीट से ज़्यादा मोटी हैं और इन अंडरग्राउंड बंकरों में मोमबत्तियों और टॉर्च के अलावा बिजली और जेनरेटर भी हैं.
बड़े-बड़े फ्रिजों में तीन महीने तक के खाने का सामान, कम्बल और बैटरी से चलने वाले शॉर्टवेव रेडियो भी मौजूद हैं जिससे जंग के हालात में बाहरी दुनिया से संपर्क बना रहे.
हर गाँव में डिजिटल स्क्रीन और विशालकाय लाउडस्पीकर अलार्म भी हमेशा तैयार रहते हैं.
दक्षिण कोरिया की राजधानी से चार घंटे दूर बसे इस इलाके में पहुँचने के लिए बर्फ़ीली हवाएं, ख़त्म न होने वाली सुरंगें और -10 डिग्री तक के तापमान से निपटना पड़ता है.
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तोप के सामने, फिर भी एक इंच हिलना नापसंद
इन सभी गांवों का निकटतम शहर है चुनचियों.
जैसे-जैसे शहर क़रीब आता है आम नागरिक कम और फ़ौजी ज़्यादा दिखाई पड़ने लगते हैं.
पांच लाख से ज़्यादा दक्षिण कोरियाई सैनिक इस बॉर्डर पर दिन रात तैनात रहते हैं.
बॉर्डर के दूसरी ओर उत्तर कोरिया की तोपों के मुहाने भी इसी ओर मुड़े हुए हैं.
इसके बावजूद जो सीमा पर रहते रहे हैं, वे एक इंच भी हिलना नापसंद करते हैं.