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GROUND REPORT: क्या हिंदू-क्या मुसलमान, बर्मा बन गया बैरी

बांग्लादेश में शरणार्थी शिविरों में रह रहे हिंदू-मुसलमान क्यों नहीं लौटना चाहते बर्मा.

By BBC News हिन्दी
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रूपा बाला, nitin srivastava bbc
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रूपा बाला, nitin srivastava bbc

बांग्लादेश के कॉक्स बाज़ार से क़रीब डेढ़ घंटे का ही सफ़र हुआ था कि एक शरणार्थी कैंप का बोर्ड दिख गया. साफ़-साफ़ लिखा था 'म्यांमार से आए हिंदू शरणार्थियों का अस्थाई शिविर.'

भीतर दाखिल होते ही देखता हूँ, एक महिला कुल्हाड़ी लेकर लकड़ियां काट रही है. ये रूपा बाला की ज़िंदगी का एक और दिन है.

दो वक्त खाना पकाने की जद्दोजहद और अगले दिन फिर से मुफ़्त मिलने वाले राशन की कतार में लगने की जल्दी.

ससुर, पति और तीन बच्चों के साथ बर्मा के रखाइन प्रांत से भागी रूपा न वापस जा सकती हैं, न ही यहाँ खुश हैं.

उन्होंने कहा, "वहां पर हमारा अब कुछ नहीं बचा है. अपने गाँव वापस नहीं जाना चाहते क्योंकि वहां सुरक्षा नहीं होगी. दोनों देशों की सरकारों को दो साल के राशन और मुआंग्डो शहर में छत देने का वादा करना होगा, तभी हम वापस जाएंगे."

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हिंदू शरणार्थियों का अस्थाई शिविर, nitin srivastava bbc
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हिंदू शरणार्थियों का अस्थाई शिविर, nitin srivastava bbc

'अनिश्चित भविष्य'

बांग्लादेश और म्यांमार की सरकारें लगातार रोहिंग्या शरणार्थियों के वापस रखाइन भेजे जाने की रूप-रेखा की बात करती रही हैं, लेकिन मामला अभी तक अटका पड़ा है.

लाखों रोहिंग्या लोग अभी भी रेफ़्यूजी कैंपों में रह रहे हैं और अपने भविष्य को लेकर अनिश्चित हैं.

इधर रूपा बाला के बेटे का बायां हाथ हमेशा के लिए टेढ़ा हो चुका है. वो बताती हैं, "यहाँ पर भी दिक्कत कम नहीं. दो महीने पहले बेटे के हाथ की हड्डी टूटी थी, अच्छे डॉक्टर न होने की वजह से हड्डी ग़लत जोड़ दी गई. अब ये रात भर कराहता रहता है".

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शिशु शील, nitin srivastava bbc
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शिशु शील, nitin srivastava bbc

रूपा की तरह ही कम से कम पांच सौ लोग इस कैंप में चार महीने से रह रहे हैं.

इससे पहले सभी लोगों को पास ही के एक दूसरे फ़ार्म पर शरण मिली थी. उनमें से एक अनिका धर थीं जो गर्भवती थीं. बीबीसी में आई खबर के बाद चंद दूसरे लोगों के साथ इन्हें बर्मा भेज दिया गया था. उन्हें मेडिकल सुविधाओं की सख़्त ज़रूरत थी.

लेकिन ज़्यादातर अभी यहीं हैं. कुछ, संकट शुरू होने से ठीक पहले रोज़ी के लिए बर्मा से भाग कर आए थे, लेकिन अब फँस गए हैं. कहते हैं वहां भी यहाँ जैसा ही हाल है.

शिशु शील, बर्मा के बोली बाज़ार इलाके के रहने वाले हैं और उस दिन को कोस रहे हैं जिस दिन उन्होंने अवैध तरीके से सीमा पार की थी.

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उन्होंने कहा, "सेफ़ तो यहाँ पर भी नहीं है हम लोग. हम किसी जगह पर जा नहीं सकते, खाना नहीं है तो ठीक तरह से खा नहीं सकते. कुछ भी नहीं है हमारे पास. किसी-किसी जगह पर खाना सरकार देती है और किसी जगह नहीं भी देती".

दरअसल ये बेघर लोग अपने आप को उम्मीद और नाउम्मीदी के एक पेंडुलम से बंधा हुआ पा रहे हैं.

म्यांमार वापस जाने में अड़चने आने के अलावा, वहां जान-माल की सुरक्षा की गारंटी के बिना ये लोग यहाँ से हिलने को भी तैयार नहीं.

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कुतुपालोंग कैंप
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शरणार्थी शिविर की दिक़्क़तें

सात लाख से ज़्यादा रोहिंग्या मुसलमान भी इसी कश्मकश में हैं. कच्चे कैंप अब पक्के हो चले हैं, लेकिन न इनसे बाहर जा सकते हैं और न ही खुद खा-कमा सकते हैं.

दिक्कतें कम हुई हैं लेकिन मांगे वही हैं. कुटापलोंग कैंप इस समय दुनिया का सबसे बड़ा रेफ़्यूजी कैंप है. भीतर का माहौल थोड़ा बेहतर चुका है लेकिन लोगों के चेहरों पर मायूसी पहले से भी ज़्यादा है.

हमारी मुलाक़ात मोहम्मद यूनुस नाम के एक व्यक्ति से हुई जो तीन वर्षों तक मलेशिया में बतौर इलेक्ट्रीशियन काम कर, पिछले साल जून में ही बर्मा लौटे थे.

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रखाइन प्रांत में जब इनसे पहले के दो गाँवों में आग जलती दिखी, ये अपने बीवी-बच्चों के साथ बांग्लादेश की तरफ़ भागे.

मोहम्मद यूनुस ने कहा, "जब तक रखाइन की मस्जिदों में नमाज़ पढ़ने की इजाज़त नहीं मिलेगी, जब तक हमें बिना रोक-टोक दुकान चलाने की इजाज़त नहीं मिलेगी, हम लोग वापस नहीं जाएंगे. खुद बर्मा के राष्ट्रपति को ये लिखित तौर पर देना होगा. अगर नहीं देंगे तो हम यहीं रहेंगे".

शरणार्थियों के वापस भेजे जाने पर राय भी बँटी है. अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं और कुछ देशों ने बर्मा लौटने पर इनकी सुरक्षा पर सवाल उठाए हैं.

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कैरोलाइन ग्लक, nitin srivastava
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कैरोलाइन ग्लक, nitin srivastava

शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त कैरोलाइन ग्लक का मानना है कि दो देशों के अलावा ये लाखों इंसानों के भविष्य का सवाल है.

उन्होंने कहा, "बर्मा में हालात अभी भी सामान्य नहीं हैं. रखाइन में आवाजाही की इजाज़त नहीं है. मानवाधिकार सुरक्षा मुहैया कराए बगैर इनका वहां जाना सही नहीं रहेगा".

इधर वापस जाने और न जाने के बीच जो लोग दोनों देशों के बीच फंसे हुए हैं हुए हैं, उनके लिए हर दिन एक नई चुनौती के समान है.

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English summary
GROUND REPORT Did Hindus Become a Muslim Burma
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