ब्रिटेन में पहला भारतीय रेस्टोरेंट खोलने वाले पटना के शेख दीन मोहम्मद को गूगल डूडल का सलाम
कैलिफोर्निया। गूगल डूडल ने ब्रिटेन में पहला इंडियन रेस्टोरेंट खोलने वाले एंग्लो-इंडियन शेख दीन मोहम्मद को सलाम किया गया है। मंगलवार को गूगल का डूडल उनके इस प्रयास को ही समर्पित था। एक व्यवसायी और एक सर्जन, मोहम्मद को 19वीं सदी में ब्रिटेन में कई भारतीय व्यंजनों और भारतीय थेरेपी मसाज को लाने का श्रेय दिया जाता है। मोहम्मद ने ब्रिटेन में सन् 1810 में पहला इंडियन रेस्टोरेंट खोला था और इसका नाम हिन्दुस्तानी कॉफी हाउस था।
पटना में हुआ था जन्म
मोहम्मद का जन्म बिहार की राजधानी पटना में सन् 1759 में हुआ था। सिर्फ 10 वर्ष की उम्र में उनके पिता का देहांत हो गया और फिर उन्हें ब्रिटिश आर्मी में जगह मिली। उन्होंने सन् 1872 तक ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी में ट्रेनी सर्जन के तौर पर काम किया। इसके बाद यहां से इस्तीफा देकर वह ब्रिटेन चले गए। सन् 1794 में मोहम्मद ने भारत में अपने रोमांचक किस्सों पर एक ऑटोबायोग्राफी लिखी जिसका नाम था, 'द ट्रैवल्स ऑफ दीन मोहम्मद।' इस किताब में उन्होंने सेना में अपने समय के बारे में तो लिखा ही था साथ में उन्होंने कई भारतीय शहरों और मिलिट्री कैंपेन्स के बारे में भी बताया। एक रिपोर्ट के मुताबिक सन् 1794 में मोहम्मद पहले ऐसे भारतीय लेखक भी बने जिनकी कोई किताब इंग्लिश में पब्लिश हुई थी।
लंदन में मशहूर होने लगा रेस्टोरेंट
सन् 1810 में वह लंदन आ गए और यहां पर उन्होंने पोर्टमैन स्क्वायर में हिन्दुस्तानी कॉफी हाउस की शुरुआत की। रेस्टोरेंट को बेहतर क्वालिटी वाला हाई-प्रोफाइल रेस्टोरेंट माना गया था। इसके अलावा यहां पर स्टाफ के अच्छे और नरम रवैये को भी आसपास लोकप्रियता मिलने लगी थी। एपिक्यूर एलमानाक में लिखा है कि यह रेस्टोरेंट ब्रिटिश गाइड्स के बीच बहुत पॉपुलर था। लोग यहां पर भारतीय व्यंजनों के साथ हुक्का और तंबाकू से भरी चिलत का मजा लेने के लिए आते थे।
लोग बुलाने लगे डॉक्टर
सन् 1814 में वह ब्रिघटन चले गए और यहां पर उन्होंने पहले कमर्शियल शैंपूइंग बाथ को शुरू किया। यह दरअसल स्टीम बाथ और भारतीय मसाज का एक प्रकार था। धीरे-धीरे उनका बिजनेस बढ़ने लगा और वह कई तरह प्रकार के दर्द से छुटकारा दिलाने वाले फिजियो के तौर पर मशहूर हो गए। वह इतने सफल हो गए थे कि लोगों ने उन्हें डॉक्टर ब्रिघटन के नाम से बुलाना शुरू कर दिया। अस्पताल में मरीजों को उनके पास जाने की सलाह दी जाने लगी। इसके साथ ही उन्हें ब्रिटेन के राजा जॉर्ज फोर्थ और विलियम फिफ्थ का शैंपूइंग सर्जन नियुक्त कर दिया गया। सन् 1851 में 92 वर्ष की आयु में ब्रिघटन में ही उनका निधन हो गया था।