आसमान में उड़ती जिस चीज को लोगों ने समझा विमान या पक्षी, वो पता करने पर निकली गूगल बलून
केन्या। अफ्रीकी देश केन्या में मंगलवार को इंटरनेट पर कुछ तस्वीरें तेजी से वायरल हुईं, जिसमें आसमान में सफेद रंग का कुछ उड़ता हुआ दिखाई दे रहा है। इसे इंटरनेट पर लोग अलग-अलग नाम दे रहे हैं। लेकिन आपको बता दें ये गूगल बलून है। जिसके माध्यम से केन्याई लोगों को इंटरनेट सेवा मिल पाएगी। इससे हजारों लोग पहली बार इंटरनेट सेवाओं का लाभ उठा पाएंगे। गूगल बलून ने ये सेवा देना शुरू भी कर दिया है। इसकी सहायता से सेंट्रल और वेस्टर्न केन्या के 31 हजार स्कवायर मीटर के इलाके में 4जी एलटीई नेटवर्क कनेक्शन उपलब्ध कराया जाएगा।
35 बलून लॉन्च किए गए
गूगल की पेरेंट कंपनी एल्फाबेट की यूनिट लून ने बीते महीनों में 35 बलून लॉन्च किए हैं। कंपनी ने ये काम टेलिकम्यूनिकेशन कंपनी टेल्कम केन्या के साथ मिलकर किया है। इससे पहले इस तरह के बलून का इस्तेमाल केवल आपातकाल के समय ही किया जाता था। साल 2017 में प्यूटोरिको में मारिया नामक तूफान के आने से सेल टावरों को काफी नुकसान पहुंचा था, जिसके बाद इन बलून्स का इस्तेमाल किया गया था। लून दूरस्थ क्षेत्रों में लोगों तक इंटरनेट को कठिन चुनौतियों में भी पहुंचाने का काम करती है।
पॉलीएथिलीन शीट से बने बलून
कई तकनीक विशेषज्ञों ने इस तरह के उपायों को बेहतर बताया है। वैसे तो इस देश में बड़ी संख्या में लोगों तक इंटरनेट की पहुंच है लेकिन लून के लीडर्स ने कहा कि उन्होंने नई तकनीकों को अपनाने के लिए खुलेपन के कारण केन्या को चुना है। इन्होंने दो साल के परीक्षण के बाद बलून सेवा को लॉन्च किया है। इनका कहना है, केन्या आबादी को जोड़ने के नए तरीके खोजने के बारे में अविश्वसनीय रूप से इनोवेटिव है। वहीं इन बलून्स को पॉलीएथिलीन शीट के माध्यम से बनाया गया है। जो सौर पैनलों द्वारा संचालित होते हैं और जमीन पर सॉफ्टवेयर द्वारा नियंत्रित होते हैं।
अफ्रीका में प्रभावी हो सकता है तरीका
वहीं हवा में ये उड़ते हुए सेल टावर लगते हैं। ये धरती पर आने से पहले करीब 100 दिनों तक इंटरनेट सेवा दे सकते हैं। फोन कंपनियों को अपनी कवरेज का विस्तार करने की अनुमति देकर जहां जरूरत होती है, बलून केबल बिछाने या सेल टावर बनाने की तुलना में एक सस्ता विकल्प प्रदान करते हैं। यह अफ्रीका में प्रभावी हो सकता है, जहां 2019 में महाद्वीप के 1.3 बिलियन लोगों में से केवल 28 फीसदी ही इंटरनेट का उपयोग कर रहे थे। संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी, नेशनल टेलीकम्यूनिकेशन यूनियन के अनुसार ये आंकड़ा दुनियाभर के किसी भी क्षेत्र के मुकाबले सबसे कम है।