कोयले से बनने वाली बिजली के उत्पादन में वैश्विक गिरावट
बेंगलुरु। जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभावों को रोकने के लिये पूरी दुनिया अब एक जुट होने लगी है। कार्बन और ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को रोकने के लिये लगभग सभी देश प्रयास रहत हैं। वैसे सच पूछिए तो कार्बन उत्सर्जन में कुछ हद तक सफलता मिली है। यह सफलता कोयले के प्रयोग को कम करके पायी गई है, खास कर बिजली बनाने में। वैसे यह जरूरी भी है, क्योंकि कोयले से बिजली बनाने से ना केवल कार्बन उत्सर्जन होता है, बल्कि उसकी राखड़ से आस-पास के लोगों के स्वास्थ्य पर भी गंभीर प्रभाव पड़ते हैं।
कार्बन ब्रीफ द्वारा तैयार की गई "ग्लोबल कोल पॉवर सेट फॉर रिकॉर्ड फाल" नामक रिपोर्ट में कहा गया है कि कोयले से बनने वाली बिजली के वैश्विक उत्पादन में वर्ष 2019 में करीब 3 प्रतिशत की गिरावट आई है। यानी कोयला निर्मित बिजली के उत्पादन में 300 टेरावॉट (टीडब्ल्यूएच) की गिरावट। जोकि जर्मनी, स्पेन और ब्रिटेन द्वारा पिछले साल किये गये कुल कोयला बिजली उत्पादन से भी ज्यादा है। चलिये देखते हैं इस रिपोर्ट में और क्या-क्या कहा गया है। खास तौर से भारत के संदर्भ में क्या बातें सामने रखी गई हैं।
पैसा बचा रहे थर्मल पावर प्लांट, कीमत चुका रहे लोग
सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एण्ड क्लीनएयर (सीआरईए) में प्रमुख विश्लेषक लॉरी मैलिविता, सैंडबैग में विद्युत और कोयले से जुड़े विषयों के विश्लेषक डेव जोन्स, इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एण्ड फिनेंशियल एनालीसिस (आईईईएफए) में ऑस्ट्रेलिया/दक्षिण एशिया ऊर्जा वित्त स्टडीज के निदेशक टिम बकले ने मिल कर यह रिपोर्ट तैयार की है। यह विश्लेषण साल के शुरुआती 7 से 10 महीनों के दौरान दुनिया भर में यथासम्भव उपलब्ध हुए बिजली क्षेत्र के प्रतिमाह आंकड़ों पर आधारित है।
अमेरिका में बंद हो रहे कोयला आधारित पावर प्लांट
जर्मनी समेत विकसित देशों, पूरे यूरोपीय यूनियन और दक्षिण कोरिया में भी रिकॉर्ड गिरावट। इनके मुकाबले कहीं भी कोयला निर्मित बिजली के उत्पादन में बढ़ोत्तरी नहीं हो रही है। सबसे बड़ी गिरावट अमेरिका में हो रही है, जहां कोयले से चलने वाले अनेक बिजली प्लांट्स बंद हो रहे हैं। भारत में बहुत तेजी से बदलाव आ रहा है। यहां कोयले से बनने वाली बिजली के उत्पादन में पिछले करीब तीन दशकों में पहली बार गिरावट का रुख है। चीन में कोयला निर्मित बिजली का उत्पादन धीमा पड़ना।
दक्षिण-पूर्वी एशिया में कोयले के उत्पादन में लगातार हो रही बढ़ोत्तरी एक प्रमुख रुकावट बनी हुई है, मगर कुल वैश्विक मांग के मुकाबले इन देशों से कोयले की मांग अब भी अपेक्षाकृत बहुत कम है। कोयले से बनने वाली बिजली के उत्पादन में वैश्विक स्तर पर गिरावट होने का मतलब है कि कोयला बिजली प्लांट्स को आर्थिक झटका लगेगा। यह गिरावट ऐतिहासिक रूप से सबसे ज्यादा होने जा रही है। वर्ष 2019 में कोयला संयंत्रों से बनने वाली बिजली के उत्पादन में रिकॉर्ड गिरावट होने से कार्बन डाई ऑक्साइड के वैश्विक उत्सर्जन में भी कमी आने की सम्भावनाएं पैदा हुई हैं। फिर भी, दुनिया में कोयले का इस्तेमाल और उससे होने वाला प्रदूषण इतनी ज्यादा मात्रा में हो रहा है कि वह पैरिस समझौते के तहत निर्धारित किये गये लक्ष्यों की प्राप्ति के लिहाज से अब भी बहुत ज्यादा है।
बिजली की मांग में भी गिरावट
पिछले साढ़े तीन दशकों के दौरान ऐसे सिर्फ दो साल ही गुजरे हैं जब कोयले से बनने वाली बिजली के उत्पादन में गिरावट हुई है। वर्ष 2009 में पूरी दुनिया में छाये वित्तीय संकट के दौरान हुई 148 टीडब्ल्यूएच की गिरावट और 2015 में चीन में आयी मंदी के बाद हुई 217 टीडब्ल्यूएच की कमी। कोयले से बनने वाली बिजली में इस साल होने वाली ऐतिहासिक गिरावट के मुख्य कारण अलग-अलग देश के हिसाब से एक-दूसरे से जुदा हैं। खास बात यह है कि इस गिरावट के बाद तमाम देशों में या अक्षय ऊर्जा, परमाणु ऊर्जा और गैस से बनने वाली बिजली के उत्पादन में हुई बढ़ोत्तरी भी हुई है।
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साथ मिलकर ओईसीडी का गठन करने वाले विकसित देशों में वर्ष 2019 में सौर तथा वायु बिजली उत्पादन में खासी मजबूत बढ़ोत्तरी हो रही है। साथ ही उनमें वैश्विक आर्थिक विकास और व्यापार की गति धीमी होने की वजह से बिजली की मांग में गिरावट का रुख भी है।
खासतौर से जापान और दक्षिण कोरिया (ओईसीडी एशिया ओसीनिया, बांयें सबसे नीचे) में कोयले से बनने वाली बिजली की मांग में स्पष्ट कमी आयी है। यहां निर्यात में तेजी से गिरावट आयी है। इन दोनों ही देशों में परमाणु ऊर्जा उत्पादन में उल्लेखनीय बढ़ोत्तरी हुई है, नतीजतन कोयला का इस्तेमाल कम हुआ है। उत्तरी अमेरिका में बिजली बनाने के लिये गैस को अपनाये जाने की वजह से कोयले के प्रयोग में करीब 60 फीसद की गिरावट हुई है, क्योंकि नये गैस प्लांट खुल रहे हैं और कोयला प्लांट बंद हो रहे हैं।
भारत का हाल
- वर्ष 2019 के शुरुआती 10 महीनों के दौरान भारत में बिजली की मांग में बढ़ोत्तरी अब कम है।
- अक्टूबर में पिछले साल इसी महीने के मुकाबले बिजली की मांग में 13.2% की गिरावट आई।
- जनवरी से सितंबर के बीच कोयला रहित बिजली संयंत्रों से होने वाले बिजली उत्पादन में करीब 12% की बढ़ोत्तरी हुई है।
- अक्टूबर में कोयले से बनने वाली बिजली के उत्पादन में साल दर साल 19% की गिरावट हुई है जो वर्ष 2014 से अब तक का न्यूनतम स्तर है।
- भारत में थर्मल पावर प्लांट की उपयोगिता का औसत 58% से कम है। इसका मतलब यह है कि यहां पर्याप्त मात्रा में कोयला बिजली उत्पादन क्षमता बेकार पड़ी है।
जानिए क्या चल रहा है अन्य देशों में
चीन- चीन में बिजली की मांग में बढ़ोत्तरी की दर इस साल 3 प्रतिशत कम हुई है। यह पिछले दो वर्षों के दौरान 6.7 प्रतिशत से नीचे आयी है। बिजली की मांग में बढ़ोत्तरी को गैर-जीवाश्म स्रोतों के जरिये पूरा किया गया है। वर्ष 2017-18 में कोयले से बनने वाली बिजली के उत्पादन में साल दर साल 6.6 प्रतिशत के औसत से बढ़ोत्तरी हुई। बहरहाल, वर्ष 2019 में अभी तक परमाणु, वायु तथा पनबिजली उत्पादन में मजबूती आयी है और बिजली बनाने में कोयले के इस्तेमाल में गिरावट आने के साथ-साथ कुल मिलाकर बिजली की मांग में बढ़ोत्तरी में तुलनात्मक रूप से कमी हुई है।
बंद होने की ओर अग्रसर कोयला आधारित पावर प्लांट
पिछले साल पूरे यूरोप में लगाए गए 17000 मेगावाट उत्पादन क्षमता वाले अक्षय ऊर्जा संयंत्रों में से पोलैंड में केवल 39 मेगावाट, चेकिया में 26 मेगावाट, रोमानिया में 5 मेगावाट और बुल्गारिया में 3 मेगावाट उत्पादन क्षमता वाली इकाइयां लगाई गयीं। पोलैंड के प्लॉक में गैस से बिजली बनाने का संयंत्र लगने से कोयले के इस्तेमाल में 6% की गिरावट हुई है। वहीं, ग्रीस में गैस के उत्पादन में बढ़ोतरी की वजह से कोयले का प्रयोग 16% घटा है। स्लोवेनिया और बुल्गारिया में कोयले के उत्पादन में हल्की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है।
वहीं अमेरिका इस साल कोयले से बनने वाली बिजली के उत्पादन में सबसे बड़ी सालाना गिरावट की राह पर है। अगस्त 2019 की ईयर टू डेट से अमेरिका में वर्ष 2018 में इसी अवधि के मुकाबले कोयले से बनने वाली बिजली का उत्पादन 13.9% गिरा है। अगस्त 2019 के महीने में कोयले से बनने वाली बिजली के उत्पादन में साल दर साल 18.2% की गिरावट दर्ज की गई है।