Germany: एंजेला मर्केल की जगह कौन लेगा ? गद्दी के लिए 5 दावेदारों में कड़ा मुकाबला
Germany New Leader: बर्लिन। जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल दुनिया के लिए जैसे जर्मनी की पहचान बन गई थीं। पिछले 15 साल से जर्मनी का नेतृत्व कर रहीं मर्केल ने जर्मनी को यूरोप के नेतृत्वकर्ता देश में खड़ा किया है। लेकिन अब जर्मनी अपने लिए नया नेता चुनने जा रहा है जो मर्केल की जगह लेगा। शनिवार को जर्मनी के राजनीतिक भविष्य का फैसला करने के लिए एंजेला मर्केल की क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन (CDU) के 1001 प्रतिनिधि नये नेता का चुनाव करेंगे जो जर्मनी का अगले चुनाव में पार्टी का नेतृत्व करेगा। इस रेस में तीन नेताओं के बीच कड़ा मुकाबला है लेकिन दो अन्य नेताओं पर भी सभी की नजर बनी है जो चौंका सकते हैं। जर्मनी के सबसे ताकतवर राजनीतिक दल में पिछले कई महीने से नये नेता चुने जाने को लेकर मंथन चल रहा था। आइए देखते हैं कि कौन लोग हैं जो जर्मनी में मर्केल की जगह ले सकते हैं।
अर्मिन लैशेट
मर्केल के सहयोगी और उनकी प्रवासी नीति का बचाव करने वाले अर्मिन जर्मनी के सबसे ज्यादा जनसंख्या वाले राज्ये उत्तरी राइन-वेस्टफेलिया के गवर्नर हैं। 2017 में उन्होंने सोशल डेमोक्रेट को हराकर इस राज्य में क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन का झंडा फहरा दिया। सीडीयू के सबसे बड़े क्षेत्र का प्रमुख होने के चलते उनकी दावेदारी अपने आप में महत्वपूर्ण हो जाती है।
59 वर्षीय लैशेट एक उदारवादी और यूरोप के एकीकरण के लिए प्रतिबद्ध राजनेता हैं। यही वजह है कि मर्केल की विरासत संभालने के लिए उन्हें काफी योग्य माना जा रहा है। हालांकि कोरोना वायरस महामारी के दौरान उनकी चमक फीकी पड़ी है। उत्तरी राइन वेस्टफेलिया महामारी से सबसे ज्यादा प्रभावित है और यहां पर लोग सरकार के प्रयासों से नाराज भी है।
बर्लिन के मंझे हुए राजनीतिक परिदृश्य में लैशेट को कभी आजमाया नहीं गया है। ऐसे में उनके समर्थक उम्मीद कर रहे हैं कि अगर वह जीतते हैं तो अपने पार्टी के सहयोगी की तरह संघर्ष नहीं करेंगे। उनकी उम्मीद है कि लैशेट का हाल मर्केल के उस उत्तराधिकारी की तरह नहीं होगा जिसे उन्होंने 2018 में चुना था और पार्टी की कमान भी दी थी लेकिन बाद में दबाव पड़ने पर उसने पद छोड़ दिया।
फ्रेडरिक
मर्ज़,
मर्केल
के
प्रतिद्वंदी
मैदान
में
दावेदारों
में
सबसे
अधिक
65
साल
के
मर्ज़
लंबे
समय
से
मर्केल
प्रतिद्वंद्वी
हैं।
सीडीयू
की
विचारधारा
को
मर्केल
प्रतिनिधित्व
करती
हैं
मर्ज
को
उसका
विरोधी
माना
जाता
है।
पार्टी
के
रूढ़िवादी
राजनीति,
उद्योगपतियों
का
समर्थन
करने
वाले
मर्ज
को
पार्टी
का
उदारवादी
धड़ा
ओल्ड
स्कूल
क्लब
के
सदस्य
के
रूप
में
देखता
है।
कहा
जाता
है
कि
अगर
मर्ज
के
हाथ
में
पार्टी
की
कमान
जाती
है
तो
सीडीयू
के
विपक्ष
का
सत्ता
में
आने
जैसा
होगा।
चांसलर मर्केल ने एक समय मर्ज के राजनीतिक कैरियर पर ग्रहण लगा दिया था लेकिन 2018 में एक बार वह फिर पटल पर वापस आए जब उन्होंने पार्टी पर नियंत्रण करने की कोशिश की। हालांकि कड़े मुकाबले में वे मर्केन की पसंद क्रैम्प-कर्नबाउर से पिछड़ गए। लेकिन कर्नबाउर पार्टी में आगे का दबाव नहीं झेल पाए और वापस अपने कॉरपोरेट वकील के पेशे में लौट गए। जिसके बाद अब मर्ज एक बार फिर पूरी तैयारी से मुकाबले में हैं।
नॉर्बेट
रॉटजेन
नॉर्बेट
को
पार्टी
का
बगावती
तेवर
वाला
नेता
कहा
जाता
है।
वे
इकलौते
कैबिनेट
सदस्य
हैं
जिसे
मर्केल
ने
बिल्कुल
ने
निकाल
दिया
था।
कभी
चांसलर
के
कृपापात्र
समझे
जाने
वाले
नॉर्बेट
ने
2010
में
खुद
को
साबित
किया
जब
उन्होंने
उत्तरी
राइन-वेस्टेफलिया
में
सीडीयू
की
कमान
संभाली।
खास
बात
थी
कि
उन्होंने
अर्मिन
लैशेट
को
हराया
था।
लेकन
दो
साल
बाद
एक
क्षेत्रीय
चुनाव
में
वह
बुरी
तरह
से
विफल
हो
गए।
राष्ट्रीय
स्तर
पर
उनसे
पर्यावरण
मंत्री
के
रूप
में
पद
छोड़ने
को
कहा
गया
जिससे
उन्होंने
इनकार
कर
दिया
और
उन्हें
हटा
दिया
गया।
रॉटजेन ने सीडीयू के अंदर उस विरोधी आवाज को नेतृत्व दी थी जिसने मर्केल की चीन की हुवावे टेक्नॉलॉजी को लेकर उदासीनता को लेकर कड़ा हमला बोला था। साथ ही जर्मनी और रूस के बीच गैस पाइप लाइन को लेकर भी असहमति जताई थी। रॉटजेन के साथ अच्छी बात ये है कि पार्टी प्रतिनिधि इस बात के लिए भरोसा जता सकते हैं कि उनके आने से नीतियों में परिवर्तन तो होगा लेकिन वे पूरी तरह से दक्षिणपंथी नहीं होंगे।
मार्कस
जोडर
मार्कस
जोडर
सीडीयू
की
सहयोगी
क्रिश्चियन
सोशल
यूनियन
(CSU)
के
प्रमुख
हैं।
जर्मनी
के
दक्षिण
में
स्थित
आर्थिक
रूप
से
समृद्ध
बवेरिया
ऐसा
राज्य
है
जहां
पर
मर्केल
की
पार्टी
सीडीयू
नहीं
है।
वजह
1957
के
बाद
से
ही
इस
राज्य
में
सीएसयू
सरकार
बनाती
रही
है।
जोडर
2003
में
ही
पार्टी
के
महासचिव
बन
गए
थे
लेकिन
उन्हें
लंबा
इंतजार
करना
पड़ा
और
2018
में
वे
राज्य
के
प्रमुख
बन
सके।
जोडर
न
सिर्फ
प्रदेश
के
गवर्नर
बने
बल्कि
पार्टी
की
कमान
भी
उनके
हाथ
में
आ
गई।
उन्हें
सीएसयू
के
महत्वाकांक्षी
नेताओं
में
गिना
जाता
है।
अब
देखना
है
कि
वे
नेतृत्व
के
लिए
कितना
विश्वास
जगा
पाते
हैं।
कोरोना
संकट
के
दौरान
सबसे
पहले
कदम
उठाने
के
लिए
उनकी
काफी
तारीफ
हुई
थी।
बवेरिया
पहला
राज्य
था
जिसने
सबसे
पहले
स्कूल,
कॉलेज
और
स्टेडियम
तक
बंद
कर
दिए
थे।
जेन्स
स्पॉन
स्वास्थ्य
मंत्री
जेंस
स्पॉन
का
नाम
भी
चांसलर
रेस
के
लिए
चर्चा
में
सुनाई
दे
रहा
है।
हालांकि
उन्होंने
पहले
अपना
नाम
खींच
लिया
था
और
लैशेट
को
समर्थन
देने
की
बात
कही
थी
लेकिन
कोरोना
वायरस
महामारी
के
दौरान
कई
नेताओं
की
प्रतिष्ठा
को
नुकसान
पहुंचा
हैं
वहीं
जेंस
की
छवि
सुधरी
है।
एक
सर्वे
में
उन्होंने
एंजेला
मर्केल
को
भी
पीछे
छोड़
दिया
था।
40
वर्षीय
जेंस
स्पॉन
खुले
तौर
पर
गे
हैं
और
उन्होंने
2018
में
पार्टी
नेतृत्व
के
चुनाव
में
हिस्सा
लिया
था।
वे
तीसरे
नंबर
पर
रहे
थे
यही
वजह
है
कि
उन्हें
कई
पार्टी
नेताओं
का
समर्थन
भी
है।
पीएम मोदी ने जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल से बातचीत की, कोरोना वैक्सीन पर भी हुई चर्चा