16 साल बाद सत्ता त्याग रही हैं जर्मन चांसलर एंजला मर्केल, जानिए क्यों कहा जाता है 'लीडर ऑफ फ्री वर्ल्ड'
एंजला मर्केल के बारे में कहा जाता है कि 16 साल पहले जर्मनी में उनकी जो इज्जत और प्रसिद्धि थी, वो आज भी मौजूद है और अगर वो चुनाव में उतरतीं, तो उन्हें कोई नहीं हरा सकता था।
बर्लिन, सितंबर 26: उन्हें उस वक्त 'दुनिया का स्वतंत्र' नेता कहा गया था, जब यूरोपीय देशों के साथ साथ अमेरिका में भी सत्तावादी विचारधारा हावी हो रही थी। लेकिन, 16 सालों तक जर्मनी की सत्ता में लगातार रहने के बाद भी ना ही उन्हें एक बार भी तानाशाह कहा गया, ना सत्तावादी कहा गया और नाही उनके ऊपर किसी भी तरह के कोई इल्जाम लगे। विश्व की राजनीति को नई सीख देकर जर्मनी की चांसलर एंजला मर्केल अब सक्रिय राजनीति को अलविदा कह रही हैं। आखिर क्यों दुनियाभर के नेताओं को एंजला मर्केल से राजनीति की पाठ सीखनी चाहिए, इसकी बानगी आप एंजला मर्केल की राजनीति को जानकर समझ जाएंगे।
16 सालों तक रही चांसलर
आधुनिक दुनिया में एंजला मर्केल और जर्मनी...ये दोनों नाम एक दूसरे का पर्याय बन चुका है। जर्मनी का जिक्र होते ही एंजला मर्केल का नाम अपनी जुबान पर आता है और लोग लोकतंत्र के प्रति आस्थावान हो जाते हैं। क्योंकि एंजला मर्केल ने उस जर्मनी में लोकतांत्रिक सरकार का संचालन किया है, जहां पर हिटलर जैसा बदनाम पैदा हुआ था। पद पर इतने लंबे समय तक रहने की वजह से एंजला मर्केल को जर्मनी की "शाश्वत चांसलर" करार दिया गया। एंजला मर्केल 67 साल की हो चुकी हैं, लेकिन देश हो या विदेश...उन्हें हर जगह एक ही जैसा सम्मान हासिल है। जर्मनी के विपक्षी नेता भी मानते हैं कि अगर वो चुनाव लड़तीं, तो पांचवीं बार भी रिकॉर्ड मतों से उन्हीं को जीत हासिल होता। लेकिन, मर्केल ने उम्र के इस पड़ाव पर सत्ता को त्यागने का फैसला किया है।
कौन होगा अगला चांसलर?
जर्मनी में एंजला मर्केल के बाद अगला चांसलर कौन होगा, इसके लिए वोटिंग की जा रही है। देश के मतदाता अगले चार सालों के लिए सरकार का चुनाव कर रहे हैं और इसके साथ ही देश में एंजला मर्केल युग का अंत हो रहा है। आज जर्मनी के करीब 6 करोड़ मतदाता चुनाव में हिस्सा ले रहे है। हालांकि, एंजला मर्केल के हटने के साथ ही जर्मनी में चुनावी मुकाबला इतना कड़ा हो चुका है कि किसी के लिए अनुमान लगाना भी कठिन है कि कि देश का अगला चांसलर कौन बनेगा। एंजला मर्केल सेन्ट्रल-राइट क्रिश्चियन डेमोक्रेट्स (सीडीयू) पार्टी की नेता हैं, लेकिन उनके पद से हटने का ऐलान करते ही उनकी पार्टी चुनाव में संघर्ष करने लगी है।
कैसे होता है जर्मनी में चुनाव?
जर्मनी में चुनाव भी साधारण शब्दों में कहें तो भारत की तरफ ही होते हैं। जिस तरह से भारत में सीधे प्रधानमंत्री का चुनाव नहीं होता है, उसी तरह से जर्मनी में भी सीधे तौर पर जनता देश के लिए चांसलर का चुनाव नहीं करती है। भारत में जिस तरह से अलग अलग लोकसभा क्षेत्रों से सांसद चुने जाते हैं, उसी तरह से जर्मनी में भी सांसदों का चयन किया जाता है। ये सांसद चार साल के लिए चुने जाते हैं। जर्मनी की संसद को बुंडेसटाग कहा जाता है। अपने अपने क्षेत्र से चुने जाने के बाद तमाम प्रतिनिधि संसद पहुंचते हैं और फिर वहां पर सांसद देश के लिए चांसलर का चुनाव करते हैं। जर्मनी में कुल 47 राजनीतिक पार्टियां चुनावी मैदान में हैं और वहां की चुनावी व्यवस्था भी काफी दिलचस्प है।
जर्मनी में चुनावी तरीके को समझिए
जर्मनी में एक मतदाता को एक बार में दो वोट देने का अधिकार होता है। एक वोट में वो अपने संसदीय क्षेत्र के लिए प्रतिनिधि का चुनाव करता है और दूसरे वोट में वो अपने संसदीय क्षेत्र के लिए राजनीतिक पार्टी का चुनाव करता है। जर्मनी में पहले वोट को एर्सटश्टिमें कहा जाता है, जबकि दूसरे वोट को स्वाइटेश्टिमें कहा जाता है। जर्मनी में सांसदों के लिए 229 सीटें होती हैं और संसद में कुल 598 सीटें होती हैं। लोग जो दूसरा वोट डालते हैं, वो पार्टी को डालते हैं और बाकी बची सीटों पर कौन सी पार्टी जीतेगी इसका फैसला किया जाता है। यानि, बाकी बचे 269 सीटों के लिए भी जनता 47 पार्टियों के बीच फैसला करती है कि किस पार्टी को संसद में भेजा जाए। अब संसद में जिस पार्टी को सबसे ज्यादा जिलों के लोगों ने चुना है, वो पार्टियां और सांसद मिलकर तय करेंगे, कि देश का नया चांसलर कौन बनेगा। संसद के पास 30 दिनों में नया चांसलर चुनने का विकल्प होता है और जो चांसलर चुना जाता है, वही अपने लिए मंत्रियों का चुनाव करता है।
राजनीतिक तौर पर सख्त नेता
जर्मनी और वैश्विक नेता भी मानते हैं कि एंजला मर्केल एक सख्त नेता हैं और उन्होंने दुनिया के सभी नेताओं के साथ एक जैसा ही व्यवहार किया है। पिछले 16 सालों में अमेरिका के अंदर कई कई राष्ट्रपति आए और सभी राष्ट्रपतियों की विचारधारा अलग अलग रही है, लेकिन मर्केल अपनी विचारधारा के साथ आगे बढ़ीं। इसी तरह से उन्होंने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को भी हैंडल किया है। कहा जाता है कि पुतिन के साथ एंजला मर्केल के तो काफी अच्छे संबंध थे, लेकिन एंजला मर्केल ही एक ऐसी नेता हैं, जिसकी सारी बातें पुतिन बहुत ध्यान से सुनते हैं और मर्केल पुतिन के सामने सख्स शब्द इस्तेमाल करने से भी नहीं हिचकती हैं। लेकिन, पुतिन उनकी बातों का बुरा नहीं मानते हैं। इसी हफ्ते प्यू रिसर्च सेंटर के एक सर्वेक्षण ने दुनिया भर के अधिकांश लोकतांत्रिक देशों में वैश्विक मामलों को लेकर सही फैसला लेने वाले नेताओं में सबसे ज्यादा वोट एंजला मर्केल को ही मिले हैं। जब अगस्त महीने में अफगानिस्तान में तालिबान ने वापसी की, तो इसके लिए उन्होंने अपनी जिम्मेदारी की भी बात कही और उन्होंने अमेरिकी और नाटो सेना की वापसी को भयानक कहा था।
एंजला मर्केल की जीवनी
एंजला मर्केल का जन्म 17 जुलाई, 1954 को बंदरगाह वाले शहर हैम्बर्ग में एक लूथरन पादरी और एक स्कूली शिक्षक के घर में हुआ था। उसके पिता बाद में परिवार को लेकर पैरिश शहर में आ गये, जहां कम्यूनिस्टों का बोलबाला था और हजारों लोग उस क्षेत्र को छोड़कर दूसरी तरफ जा रहे थे। एंजला मर्केल ने पढ़ाई के दौराण गणित और रूसी भाषा में काफी अच्छा प्रदर्शन किया, जिसकी बदौलत उन्होंने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ राजनीतिक रिश्ते बनाए। जब 1989 में बर्लिन की मशहूर दीवार को गिराई जा रही थी, उस वक्त व्लादिमीर पुतिन रूसी खुफिया एजेंसी केजीबी के अधिकार थे और उसी वक्त से एंजला मर्केल और पुतिन की पहचान हो गई। बर्लिन की दीवार गिरने के बाद एंजला मर्केल राजनीति में गईं और उन्होंने कोहल के क्रिश्चियन डेमोक्रेट्स पार्टी में शामिल हो गईं।
एंजला मर्केल की राजनीति
पार्टी में एंजला मर्केल ने खुद अपनी बदौलत अपनी पहचान बनानी शुरू कर दी और धीरे धीरे उन्हें शक्ति हासिल होने लगा। कहा जाता है कि पार्टी के कई नेता उन्हें पीठ पीछे 'मुट्टी' (जर्मन भाषा में मम्मी) बुलाते थे। कुछ पूर्व राजनेताओं का कहना है कि एंजला मर्केल काफी तीव्र दिमाग वाली नेता हैं और उन्होंने भांप लिया था कि पार्टी के अंदर उनके खिलाफ कुछ हो रहा है और उन्होंने धीरे धीरे पार्टी के अंदर मौजूद सभी विरोधियों को साइड कर दिया। कुछ आलोचकों का कहना है कि उन्होंने 'बेरहमी' से विरोधी नेताओं को अपने रास्ते से हटा दिया और फिर एक दिन जर्मनी की चांसलर बन गईं। कहा जाता है कि भले ही उन्होंने कई नेताओं को साइड किया, लेकिन उन्होंने उन नेताओं की सभी बातों को सुनना जारी रखा। और अब उन्होंने सत्ता को अलविदा कह दिया है।