जॉर्ज एच डब्ल्यू बुश: सोवियत संघ के विघटन से लेकर खाड़ी युद्ध तक, बुश के वो निर्णायक फैसले जिसने दुनिया पर असर डाला
वॉशिंगटन। अमेरिका के 41वें राष्ट्रपति जॉर्ज एच डब्लूय बुश का पार्किंसन की बीमारी के चलते एक दिसंबर को निधन हो गया। बुश 94 वर्ष के थे और वह अमेरिका के 43वें राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के पिता थे। बुश सीनियर के नाम से विशेषज्ञों के बीच मशहूर जॉर्ज बुश ने अपने कार्यकाल में कई ऐसे फैसले लिए जिन्होंने दुनिया की राजनीति को बदलकर रख दिया। 90 के दशक का खाड़ी युद्ध आज तक कोई नहीं भुला पाया है। साथ ही सोवियत संघ का विघटन भी सबको याद है। खाड़ी युद्ध बुश की सबसे बड़ी परीक्षा थी और इसमें भी उन्होंने अपने तेज दिमाग का परिचय दिया था। यह भी पढ़ें-फाइटर जेट उड़ाते समय एंट्री एयरक्राफ्ट गन से बुश पर हुआ था हमला
सोवियत संघ की समाप्ति
26 दिसंबर 1991 को सोवियत संघ की समाप्ति हो गई। साल 1989 में जब बुश अमेरिका के राष्ट्रपति बने तो उस समय से ही सोवियत यूनियन के साथ रिश्ते खराब होने लगे थे। बतौर उप-राष्ट्रपति बुश ने साल 1988 में तत्कालीन राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन और सोवियत के प्रधानमंत्री मिखाइल गोर्बाचेव के बीच हुए सम्मेलन में शिरकत की थी। बुश ने हमेशा ही रिश्ते नरम होने की बात कही थी और उनका दावा था कि रिश्तों में एक नई हवा महसूस की जा सकती है। साथ ही उन्होंने कहा कि दुनिया के दो महान देश आजादी के दरवाजे के रास्ते लोकतंत्र की तरफ बढ़ रहे हैं। दिसंबर 1989 में बुश और गोर्बाचेव के बीच माल्टा में सम्मेलन हुआ और यहां पर दोनों नेताओं ने रिश्तों को मजबूत करने पर जोर दिया। इस सम्मेलन में दोनों नेताओं ने एक समझौता साइन किया जिसके तहत कई परमाणु हथियार को कम करने जैसे कई बिंदुओं पर सहमति बनी थी। गोर्बाचेव के विरोधी उनका तख्तापलट की तैयारी कर रहे थे लेकिन यह प्रयास असफल हो गया।यहीं से सोवियत यूनियन के खत्म होने का रास्ता खुला। 25 दिसंबर 1991 को यूक्रेन, रूस और बेलारूस ने ऐलान कर दिया कि वह एक नए देश में तब्दील हो रहे हैं।
कुवैत से बाहर हुआ इराक
साल 1990 में इराक के शासक रहे सद्दाम हुसैन के 10 लाख सैनिक कुवैत में दाखिल हो गए और वह सऊदी अरब की तरफ बढ़ने लगे थे। अगर इराक, सऊदी अरब में भी दाखिल हो जाता तो फिर दुनिया के 40 प्रतिशत ऑयल रिजर्व पर इराक का नियंत्रण होता। इस समय जॉर्ज बुश ने इराक को खदेड़ने का वादा किया और उन्होंने कहा, 'दिस विल नॉट स्टैंड,' यानी कुवैत के खिलाफ यह आक्रामकता ज्यादा दिन तक नहीं टिक पाएगी। इसके बाद जॉर्ज बुश ने 32 देशों की एक गठबंधन सेना तैयार की ताकि इराकी सेना को बाहर निकाला जा सके। इसके बाद 425,000 अमेरिकी सैनिक जिन्हें 118,000 गठबंधन सैनिकों का साथ मिला, कुवैत में दाखिल हुए। इसे 'ऑपरेशन डेजर्ट स्टॉर्म' नाम दिया गया था। इस ऑपरेशन ने सद्दाम की मिलिट्री की कमर तोड़ दी लेकिन उन्हें सत्ता से बेदखल नहीं किया जा सका। जमीन और आसमान से इराकी सैनिकों पर दिन-रात हमले हुए। हालांकि सद्दाम को 12 वर्ष बाद बुश सीनियर के बेटे जॉर्ज डब्लूय बुश ने सत्ता से बेदखल करने में सफलता हासिल की।
मैड्रिड कॉन्फ्रेंस, इजरायल और फिलीस्तीन
खाड़ी युद्ध में मिली सफलता के बाद बुश और उनके एडमिनिस्ट्रेशन में विदेश मंत्री रहे जेम्स बेकर ने साल 1991 में मैड्रिड कॉन्फ्रेस को आयोजित किया। इस कॉन्फ्रेंस के तहत अरब देशों और इजरायल के बीच शांति की प्रक्रिया को शुरू करना था। यह कॉन्फ्रेंस सफल नहीं हो सकी लेकिन इस कॉन्फ्रेंस के दो वर्ष बाद ओस्लो एकॉर्ड के रास्ते खोल दिए थे। ओस्लो एकॉर्ड 13 सितंबर 1992 को व्हाइट हाउस में इजरायल के तत्कालीन पीसम यीथजहाक राबिन और फिलीस्तीन के नेगोशिएटर महमूद अब्बास के बीच साइन हुआ था। इसके तहत स्व-शासन के कुछ सिद्धांत तय हुए थे जिसे दोनों देशों को मानना था। सन् 1989 के अंत में बुश ने अमेरिकी सेनाओं को पनामा भेजा और यह कदम मैनुएल नोरिएगा को सत्ता से बाहार करना था। नोरिएगा पनामा के तानाशाह थे और उन्होंने साल 1983 से 1989 तक देश पर शासन किया। अमेरिकी इंटेलीजेंस एजेंसियों के साथ उनका लंबा साथ था। अमेरिका ने उन पर ड्रग स्मलिंग का आरोप लगाया था। साथ ही अमेरिकी इंटेलीजेंस एजेंसियों ने यह भी कहा था कि नोरिएगा लोकतंत्र को देश में दबा रहे हैं और पनामा में रहने वाले 35,000 अमेरिकी नागरिकों के लिए खतरा पैदा कर रहे हैं।