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'तुम बिल्‍कुल हम जैसे निकले', वाली शायरा फहमीदा रियाज का लाहौर में इंतकाल

By वरिष्ठ पत्रकार अनिल जैन की फेसबुक वॉल से साभार
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नई दिल्ली। भारतीय उपमहाद्वीप की मशहूर और मकबूल शायरा फहमीदा रियाज नहीं रहीं। बुधवार शाम 72 वर्ष की उम्र में लाहौर में उनका निधन हो गया। उनका जन्म पाकिस्तान में हुआ था लेकिन जडें हिंदुस्तान में ही थीं। हालांकि गूगल पर उनको मेरठ में ही जन्मा बताया जा रहा है, लेकिन हकीकत यह है कि उनका खानदान मेरठ का रहने वाला था और आजादी से पहले 1930 के दशक में ही सिंध में जा बसा था। भारत से उनका गहरा लगाव था और वे अक्सर भारत आती रहती थीं।

 नई दिल्ली। भारतीय उपमहाद्वीप की मशहूर और मकबूल शायरा फहमीदा रियाज नहीं रहीं। बुधवार शाम 72 वर्ष की उम्र में लाहौर में उनका निधन हो गया। उनका जन्म पाकिस्तान में हुआ था लेकिन जडें हिंदुस्तान में ही थीं। हालांकि गूगल पर उनको मेरठ में ही जन्मा बताया जा रहा है, लेकिन हकीकत यह है कि उनका खानदान मेरठ का रहने वाला था और आजादी से पहले 1930 के दशक में ही सिंध में जा बसा था। भारत से उनका गहरा लगाव था और वे अक्सर भारत आती रहती थीं। पाकिस्तान में जिया उल हक की तानाशाही के दौर में उन्हें निर्वासित होकर भारत आना पडा था और वे लगभग सात वर्षों तक यहां रही थीं। भारत में दाऊदी बोहरा समुदाय में धर्मगुरू वर्ग की ज्यादतियों के खिलाफ डॉ. असगर अली इंजीनियर की अगुवाई में शुरू हुए सुधारवादी आंदोलन से भी उनका गहरा जुडाव था। इस सिलसिले में 1989 में अहमदाबाद और 1992 में मुंबई में आयोजित विश्व दाऊदी बोहरा सुधारवादी सम्मेलन’ में शिरकत करने वे भी आई थीं। वे पाकिस्तान में धर्मांधता, फिरकापरस्ती और आतंकवाद के खिलाफ बुलंद आवाज थीं। इस सिलसिले में हिंदुस्तानियों को भी उन्होंने अपनी एक नज्म के जरिये नसीहत दी थी। ये रही उनकी मशहूर नज्म- तुम बिल्‍कुल हम जैसे निकले अब तक कहाँ छिपे थे भाई वो मूरखता, वो घामड़पन जिसमें हमने सदी गंवाई आखिर पहुँची द्वार तुम्‍हारे अरे बधाई, बहुत बधाई। प्रेत धर्म का नाच रहा है कायम हिंदू राज करोगे ? सारे उल्‍टे काज करोगे ! अपना चमन ताराज़ करोगे ! तुम भी बैठे करोगे सोचा पूरी है वैसी तैयारी कौन है हिंदू, कौन नहीं है तुम भी करोगे फ़तवे जारी होगा कठिन वहाँ भी जीना दाँतों आ जाएगा पसीना जैसी तैसी कटा करेगी वहाँ भी सब की साँस घुटेगी माथे पर सिंदूर की रेखा कुछ भी नहीं पड़ोस से सीखा! क्‍या हमने दुर्दशा बनाई कुछ भी तुमको नजर न आयी? कल दुख से सोचा करती थी सोच के बहुत हँसी आज आयी तुम बिल्‍कुल हम जैसे निकले हम दो कौम नहीं थे भाई। मश्‍क करो तुम, आ जाएगा उल्‍टे पाँव चलते जाना ध्‍यान न मन में दूजा आए बस पीछे ही नजर जमाना भाड़ में जाए शिक्षा-विक्षा अब जाहिलपन के गुन गाना। आगे गड्ढा है यह मत देखो लाओ वापस, गया ज़माना एक जाप सा करते जाओ बारम्बार यही दोहराओ कैसा वीर महान था भारत कैसा आलीशान था-भारत फिर तुम लोग पहुँच जाओगे बस परलोक पहुँच जाओगे हम तो हैं पहले से वहाँ पर तुम भी समय निकालते रहना अब जिस नरक में जाओ वहाँ से चिट्ठी-विठ्ठी डालते रहना।

पाकिस्तान में जिया उल हक की तानाशाही के दौर में उन्हें निर्वासित होकर भारत आना पडा था और वे लगभग सात वर्षों तक यहां रही थीं। भारत में दाऊदी बोहरा समुदाय में धर्मगुरू वर्ग की ज्यादतियों के खिलाफ डॉ. असगर अली इंजीनियर की अगुवाई में शुरू हुए सुधारवादी आंदोलन से भी उनका गहरा जुडाव था। इस सिलसिले में 1989 में अहमदाबाद और 1992 में मुंबई में आयोजित 'विश्व दाऊदी बोहरा सुधारवादी सम्मेलन' में शिरकत करने वे भी आई थीं।

वे पाकिस्तान में धर्मांधता, फिरकापरस्ती और आतंकवाद के खिलाफ बुलंद आवाज थीं। इस सिलसिले में हिंदुस्तानियों को भी उन्होंने अपनी एक नज्म के जरिये नसीहत दी थी। ये रही उनकी मशहूर नज्म-

तुम बिल्‍कुल हम जैसे निकले
अब तक कहाँ छिपे थे भाई
वो मूरखता, वो घामड़पन
जिसमें हमने सदी गंवाई
आखिर पहुँची द्वार तुम्‍हारे
अरे बधाई, बहुत बधाई।

प्रेत धर्म का नाच रहा है
कायम हिंदू राज करोगे ?
सारे उल्‍टे काज करोगे !
अपना चमन ताराज़ करोगे !

तुम भी बैठे करोगे सोचा
पूरी है वैसी तैयारी
कौन है हिंदू, कौन नहीं है
तुम भी करोगे फ़तवे जारी
होगा कठिन वहाँ भी जीना
दाँतों आ जाएगा पसीना
जैसी तैसी कटा करेगी
वहाँ भी सब की साँस घुटेगी
माथे पर सिंदूर की रेखा
कुछ भी नहीं पड़ोस से सीखा!

क्‍या हमने दुर्दशा बनाई
कुछ भी तुमको नजर न आयी?
कल दुख से सोचा करती थी
सोच के बहुत हँसी आज आयी
तुम बिल्‍कुल हम जैसे निकले
हम दो कौम नहीं थे भाई।
मश्‍क करो तुम, आ जाएगा
उल्‍टे पाँव चलते जाना
ध्‍यान न मन में दूजा आए
बस पीछे ही नजर जमाना
भाड़ में जाए शिक्षा-विक्षा
अब जाहिलपन के गुन गाना।

आगे गड्ढा है यह मत देखो
लाओ वापस, गया ज़माना
एक जाप सा करते जाओ
बारम्बार यही दोहराओ
कैसा वीर महान था भारत
कैसा आलीशान था-भारत
फिर तुम लोग पहुँच जाओगे
बस परलोक पहुँच जाओगे
हम तो हैं पहले से वहाँ पर
तुम भी समय निकालते रहना
अब जिस नरक में जाओ वहाँ से
चिट्ठी-विठ्ठी डालते रहना।

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English summary
Fahmida Riaz Noted pakistani progressive poet writer passes away at 72 in lahore
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