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भू-उपयोग पर IPCC की रिपोर्ट- तथ्‍य जो आपको जरूर जानने चाहिये

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बेंगलुरु। जब-जब जलवायु परिवर्तन यानी क्लाइमेट चेंज की बात आती है, तब तब हर किसी के ज़हन में केवल धुएं से होने वाला प्रदूषण ज़हन में आता हे। क्या आप जानते हैं केवल प्रदूषण ही जलवायु में परिवर्तन के भू-संपदा का अनियमित दोहन भी जिम्‍मेदार है, जो हम सब मिलकर कर रहे हैं। संयुक्त राष्‍ट्र के इंटरगवर्नमेंटल पैनल फॉर क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) ने दुनिया भर के वैज्ञानिकों के जरिेये दुनिया भर में भूमि के प्रयोग पर अध्‍ययन किया है। उसी अध्‍ययन की रिपोर्ट आज जिनेवा में जारी की गई है।

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इस रिपोर्ट को 52 देशों के 107 वैज्ञानिकों ने मिलकर लिखा है। साथ ही देश के 96 वैज्ञानिकों ने अपनी राय इसमें रखी है। इस रिपोर्ट को बनोन में 7000 से अधिक अध्‍ययन शामिल किये गये और पूरी दुनिया के वैज्ञानिकों व सरकारों के 28,275 कमेंट के बाद रिपोर्ट को अंतिम रूप दिया गया। इस रिपोर्ट में कुछ तथ्‍य हैं, जो हम सभी से जुड़ी हुई हैं।

कुछ जरूरी बातें जो आपको जाननी चाहिये

  • इंसान की गतिविधियां जमीन की परत को 75 प्रतिशत प्रभावित करती हैं, जिसकी वजह से बड़े पैमाने पर जमीन की गुणवत्‍ता निरंतर घट रही है। जमीन की गुणवत्‍ता खराब होने, मरुस्‍थलीकरण और कार्बन उत्‍सर्जन के लिये कृषि और टिम्‍बर/लॉगिंग मुख्‍य कारण हैं। इसका प्रभाव जलवायु पर पड़ता है।
  • पैरिस जलवायु समझौते अनेक देशों की सरकारों ने यह संकल्‍प लिया है वे 2030 तक कार्बन उत्सर्जन में बढ़ोत्तरी को पूरी तरह रोकेंगे। भूमि का प्रयोग किस तरह किया जाये, यह भी इस समझौते में शामिल है।
  • जमीन, भू-उपयोग तथा भू-प्रबन्‍धन हमारे जलवायु तंत्र का महत्‍वपूर्ण हिस्‍सा हैं। धरती की मिट्टी, जंगल तथा अन्‍य पौधे, उसकी भू प्रणाली वगैरह ग्रीनहाउस गैसों का उत्‍सर्जन करते हैं लेकिन वे उन गैसों को सोखते भी हैं। कार्बन जमीन और पर्यावरण के बीच चक्रानुसार घूमता है और यह मिट्टी तथा बायोमास में भरा रहता है। जब जमीन क्षतिग्रस्‍त या खराब होती है, जब मिट्टी की परत पतली हो जाती है, जब जंगल काटे जाते हैं, या फिर उनके स्‍थान पर पौधे लगाये जाते हैं तब वह खराब हो चुकी जमीन अपने पास जमा कार्बन को छोड़ना शुरू करती है। इससे ग्रीनहाउस गैस के बढ़े हुए उत्‍सर्जन के कारण जलवायु परिवर्तन की रफ्तार तेज हो जाती है।
  • जमीन ग्रीनहाउस गैसों का एक महत्‍वपूर्ण जरिया है। आपको मालूम होना चाहिये कि प्रदूषणकारी तत्‍वों के कुल उत्‍सर्जन में 24 प्रतिशत हिस्‍से के लिये केवल मनुष्‍य जिम्‍मेदार है।

बढ़ रही कार्बन डाईऑक्‍साइड और मीथेन

एक अनुमान के मुताबिक वर्ष 2007 से 2016 के बीच इंसान द्वारा छोड़ी गयी कुल कार्बन डाई ऑक्‍साइड में से 12 प्रतिशत के बराबर उत्‍सर्जन जमीन से हुआ है। यानी हमने जिस तरह से पेड़ों को काट कर कॉन्‍क्रीट के जंगल खड़े कर रहे हैं। जिस तरह से हम बिजली बनाने के लिये कोयले को भरपूर तरीके से जला रहे हैं। जिस तरह से हमारे वाहन धुआं छोड़ रहे हैं। ये सब उन गतिविधियों में शामिल हैं, जो घातक गैसों उत्‍सर्जन के लिये जिम्‍मेदार हैं।

भूमि का उपयोग ठीक तरीके से नहीं करने के कारण मीथेन (CH4) और नाइट्रस ऑक्‍साइड (N2o) भी उत्‍सर्जित होती है और ये दोनों ही शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैसें हैं। खेती इन दोनों का ही प्रमुख स्रोत है। वर्ष 1961 से 2016 के बीच कृषि से होने वाले उत्‍सर्जन की मात्रा तकरीबन दो गुनी हो गयी है।

आज खेती से होने वाला उत्‍सर्जन एशिया (43%), अमेरिका (26%), अफ्रीका (15%) और यूरोप (12%) में बंटा हुआ है। पशुधन (66%) और चावल उत्‍पादन (24%) भी मीथेन के उत्‍सर्जन के प्रमुख स्रोत हैं। वहीं नाइट्रस ऑक्‍साइड उत्‍सर्जन का दो-तिहाई हिस्‍सा खाद के उपयोग और उर्वरक के प्रबन्‍धन से जुड़ा है।

हालांकि इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि जमीन कार्बन के शुद्ध सिंक का काम जारी रखेगी, क्‍योंकि जलवायु परिवर्तन से ही तय होगा कि प्राकृतिक प्रणालियां कैसे काम करेंगी। पर्यावरण में ज्‍यादा कार्बन डाइ ऑक्‍साइड की मौजूदगी से पौधों के विकास में तेजी आ सकती है, जिससे वातावरण से और अधिक मात्रा में कार्बन को सोखा जाएगा, मगर जलवायु परिवर्तन से जमीन की कार्बन को अपने अंदर सोखने की क्षमता में भी कमी आयेगी, जिससे उल्‍टा असर पड़ेगा। अब भविष्‍य में जमीन कार्बन को सोखने वाली बनेगी या फिर कार्बन उत्‍सर्जन का स्रोत बनेगी, यह अनिश्चितता के घेरे में है।

जमीन पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव

व्‍यापक रूप से देखें तो अक्‍सर भू-उपयोग में बदलाव से भी जलवायु परिवर्तन होता है, और जलवायु परिवर्तन भी भू-उपयोग में बदलाव का कारण बनता है। जलवायु परिवर्तन मौसम की तर्ज में बदलाव, खासकर मौसम सम्‍बन्‍धी चरम स्थितियों के जरिये भूमि पर प्रभाव डालता है। कुछ प्रभाव इस प्रकार हैं-

  • बारिश होने के तौर-तरीकों में बदलाव और बेहद मूसलाधार बारिश होने से भूमि की गुणवत्‍ता खराब होने का खतरा बढ़ जाता है। ऐसा चट्टानें खिसकने, मिट्टी की परत हटने की चरम स्थितियों या अचानक आयी बाढ़ से हो सकता है।
  • भीषण गर्मी और सूखा जैसी चरम मौसमी स्थितियां जंगलों में आग लगने की घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता को बढ़ाती हैं। ब्राजीली एमेजॉन में वर्ष 2015 में पड़े सूखे के दौरान जंगल काटे जाने की घटनाओं में कमी होने के बावजूद जंगलों में आग लगने की घटनाओं में 36 प्रतिशत तक बढ़ोत्‍तरी हुई थी।

भविष्य में दिख सकते हैं ये प्रभाव

भविष्य में क्या होगा यह इस पर निर्भर करेगा कि तापमान में कितनी बढ़ोतरी होती है, वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा कितनी ज्यादा बढ़ती है। जलवायु परिवर्तन को सीमित करने का कोई भी प्रयास ना होने की स्थिति में वर्ष 2100 तक वैश्विक तापमान में 2 से 7.8 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ोतरी होने की आशंका है। अगर तापमान इतनी वृद्धि हुई तो उसकी अधिकतम सीमा विनाशकारी हो सकती है।

दुनिया भर में 40 से 60 करोड़ लोग कुपोषण का शिकार हो सकते हैं। साथ ही ज्यादातर स्थानों पर पानी की किल्लत खड़ी हो सकती है। तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोत्‍तरी की स्थिति में बायो एनर्जी और बीएससीसीएस को वर्ष 2100 तक 1500 मिलियन हेक्टेयर जमीन की आवश्यकता पड़ सकती है। यह स्पेन के क्षेत्रफल का 3 गुना होगी।

दुनिया के कई देशों में सूखे की मार अभी से दिखाई देने लगी है। आने वाले समय में सूखे की पुनरावृत्ति अधिक हो जायेगी। इसका सीधा असर कृषि उत्‍पादन पर पड़ेगा। अगर पृथ्‍वी का तापमान 2 डिग्री और बढ़ गया तो समुद्र जल स्‍तर बढ़ेगा। साथ ही और भी ज्यादा विनाशकारी चक्रवात आयेंगे, जिसका असर लगभग सभी देशों पर पड़ेगा।

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English summary
International Panel for Climate Change (IPCC) warns that we are making enormous and unsustainable demands on the Earth’s land. The way we treat land can either help or harm the climate, and unless we rapidly change course, we won’t be able to prevent the climate crisis.
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