रूस-यूक्रेन तनाव के पीछे की असल कहानी क्या है? जानिए क्यों पुतिन पर लग रहे हैं जंग थोपने के इल्जाम
यूक्रेन के डोनेट्स्क और लुहान्स्क क्षेत्रों में कीव से स्वतंत्रता की घोषणा करने के लिए रूसी समर्थक अलगाववादियों के कदम के बाद कई महीनों तक भीषण रक्तपात किया गया था, जिसमें हजारों लोग मारे गये थे।
मॉस्को/कीव, जनवरी 23: पिछले एक साल से ज्यादा वक्त से रूस की सेना यूक्रेन की सीमा पर बोरिया बिस्तर डालकर बैठी है और आशंका है कि फरवरी महीने में रूस की आर्मी यूक्रेन पर चढ़ाई कर देगी। यूक्रेन की मदद के लिए अमेरिका और नाटो सेना की तरफ से मदद भेजी गई है और अमेरिका इस संभावित लड़ाई को टालने के लिए मध्यस्तता भी कर रहा है, लेकिन सवाल ये उठ रहे हैं, कि क्या रूस और यूक्रेन के बीच लड़ाई थम पाएगी और क्या दुनिया से विश्वयुद्ध का खतरा टल पाएगा? आइये समझने की कोशिश करते हैं, रूस और यूक्रेन के बीच विवाद क्या है और रूस-यूक्रेन तनाव को लेकर पूरी दुनिया को टेंशन में क्यों आना चाहिए?
रूस-यूक्रेन संघर्ष की मूल वजह क्या है?
यूक्रेन रूस का एक पड़ोसी देश है, जिसका क्षेत्रफल 603,628 वर्ग किलोमीटर है, जो रूस और यूरोप के बीच स्थित है। यह 1991 तक सोवियत संघ का ही हिस्सा था, लेकिन सोवियत संघ के पतन के बाद यूक्रेन एक अलग देश बन गया, जिसका अर्थव्यवस्था तुललात्मक तौर पर सुस्त रही है और यूक्रेन की विदेश नीति कहने के लिए पूरी तरह से लोकतांत्रिक और संप्रभु रहा है, लेकिन अमेरिका और नाटो देश का प्रभाव दिखाई देता रहा है और यूक्रेन के साथ रूस के विवाद की सबसे बड़ी वजह यही रही है कि, आखिर यूरोपीय देश यूक्रेन के इतने करीबी क्यों हैं? नवंबर 2013 में यूक्रेन की राजधानी कीव में यूरोपीय संघ के साथ अधिक से अधिक आर्थिक एकीकरण की योजना को रद्द करने के यूक्रेनी राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच के फैसले के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए थे।
यूरोप-रूस के बीछ फंसा यूक्रेन
यूक्रेन की सरकार ने जब यूरोपीय संघ के व्यापार फैसले का विरोध किया, तो रूस ने यूक्रेन के राष्ट्रपति यानुकोविच का समर्थन किया, जबकि यूरोपीय संघ ने यूक्रेन के प्रदर्शनकारियों का समर्थन किया। लेकिन, साल 2014 में यूक्रेन के राष्ट्रपति यानुकोविच को उस वक्त देश छोड़कर भागना पड़ा, जब देश की राष्ट्रीय सुरक्षा बल ही अपने देश के राष्ट्रपति के खिलाफ खड़ी हो गई। राष्ट्रपति का देश छोड़कर भागने की घटना ने देश के प्रदर्शनकारियों को और भी ज्यादा उत्साहित कर दिया, मगर यूक्रेन संकट को काफी ज्यादा बढ़ाकर रख दिया। देश के शासन को अस्थिर करने का आरोप यूरोप और अमेरिकी देशों पर लगा। यूरोपीय देश रूस पर दवाब बनाने के लिए यूक्रेन को अपने पाले में रखने की कोशिश करने लगे और 2014 में राष्ट्रपति के देश से छोड़कर भागने के साथ ही वो इसमें कामयाब भी हो गये।
क्रीमिया पर रूस का हमला
राजनीतिक स्थिरता के बीच यूक्रेन के क्षेत्र क्रीमिया में रूसी संघ में शामिल होना या नहीं होने को लेकर जनमत संग्रह किया गया, जिसमें लोगों ने रूसी संघ के साथ जाने के पक्ष में वोटिंग की और फिर रूसी सेना ने क्रीमिया पर हमलाकर उसे अपने नियंत्रण में कर लिया। क्रीमिया और दक्षिण पूर्व यूक्रेन में रूसी लोगों और रूसी भाषियों के अधिकारों को संरक्षित करने की आवश्यकता को रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने खास तौर पर रेखांकित किया था। यूक्रेन संकट ने इस जातीय तनाव को और बढ़ा दिया, और पूर्वी यूक्रेन के डोनेट्स्क और लुहान्स्क क्षेत्रों में रूसी समर्थक अलगाववादियों ने दो महीने बाद यूक्रेन से स्वतंत्रता की घोषणा करने के लिए एक जनमत संग्रह किया था, जिसमें रूस को जीत मिली और फिर क्रीमिया पर रूस का कब्जा स्थापित हो गया।
शांति के लिए कोशिशें
यूक्रेन के डोनेट्स्क और लुहान्स्क क्षेत्रों में कीव से स्वतंत्रता की घोषणा करने के लिए रूसी समर्थक अलगाववादियों के कदम के बाद कई महीनों तक भीषण रक्तपात किया गया था, जिसमें स्वतंत्र विश्लेषकों के मुताबिक, कम से कम 14 हजार लोग मारे गये थे। इन सबके बीच यूक्रेन और रूस के बीच साल 2015 में फ्रांस और जर्मनी द्वारा आयोजित मिन्स्क में एक शांति समझौते के दौरान दस्तखत भी किए गये, लेकिन उसके बाद भी दोनों देशों के बीच संघर्ष विराम का उल्लंघन किया जाता रहा। संयुक्त राष्ट्र के अनुमानों के अनुसार, मार्च 2014 से संघर्ष के परिणामस्वरूप पूर्वी यूक्रेन में तीन हजार से ज्यादा नागरिक मारे गए हैं। रूस, यूक्रेन, फ्रांस और जर्मनी के नेताओं ने दिसंबर 2019 में पेरिस में 2015 शांति समझौते के लिए अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि करने के लिए बुलाया, लेकिन राजनीतिक समझौते पर कुछ खास प्रगति नहीं हो पाई।
नाटो को लेकर पुतिन की नाराजगी क्यों?
सोवियत संघ का मुकाबला करने के लिए ही साल 1949 में नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन यानि नाटो की स्थापना की गई थी और उसके बाद नाटो गठबंधन में लिथुआनिया, एस्टोनिया और लातविया सहित 30 राष्ट्र शामिल हो गए हैं, जो सभी कभी सोवियत गणराज्य थे। संधि के अनुसार, अगर नाटो के सदस्यों में से किसी एक पर तीसरे पक्ष द्वारा हमला किया जाता है, तो पूरा गठबंधन उसकी रक्षा के लिए जुट जाएगा। क्रेमलिन चाहता है कि नाटो यह सुनिश्चित करे, कि यूक्रेन और जॉर्जिया (एक और पूर्व सोवियत गणराज्य) जिस पर रूस ने 2008 में आक्रमण किया था, नाटो गठबंधन में शामिल नहीं होंगे। बाडेन प्रशासन और नाटो भागीदारों का कहना है कि, यूक्रेन को नाटो में शामिल होने के फैसले को पुतिन रोक नहीं सकते हैं, लेकिन उनका ये भी कहना है कि, फिलहाल यूक्रेन को नाटो में शामिल करने का कोई इरादा नहीं है।
सीमा पर वर्तमान स्थिति क्या है?
यूक्रेन और उसकी सीमा पर लाखों रूसी सैनिकों की तैनाती को अमेरिका और नाटो खतरे के तौर पर देखा है और अमेरिका ने रूसी सैनिकों की तैनाती को असामान्य करार दिया है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और यूरोपीय नेताओं की चेतावनियों के बावजूद, कि पुतिन का यूक्रेन पर आक्रमण विनाशकारी साबित होगा, यूक्रेनी सीमा के पास एक लाख रूसी सैनिक तैनात हैं। दिसंबर में जारी अमेरिकी खुफिया निष्कर्षों के अनुसार, रूस 2022 में यूक्रेन में एक सैन्य अभियान शुरू कर सकता है। अमेरिकी रिपोर्ट में कहा गया है कि, रूस सिर्फ एक मौके की तलाश में है और मौका बनाने के लिए रूस 'फॉल्स ऑपरेशन' भी शुरू कर सकता है, यानि रूसी अलगाववादी यूक्रेन की तरफ से रूसी सेना पर फर्जी हमला कर दें और जवाब देने के नाम पर रूस यूक्रेन पर हमला कर दे।
पूर्ण युद्ध की आशंका
यदि रूस यूक्रेन या नाटो देशों में अपने सैनिकों की तैनाती बढ़ाता है, तो यूक्रेन में संघर्ष और बिगड़ने और एक चौतरफा युद्ध में बढ़ने की आशंका काफी बढ़ जाती है। रूस की गतिविधियों ने पूर्वी यूरोप, अमेरिका और दूसरे देशों में रूस के इरादों को लेकर सभी को आशंका में भर दिया है और नाटो क्षेत्र में रूसी हस्तक्षेप, नाटो सहयोगियों को प्रतिक्रिया करने के लिए मजबूर करेगा। वहीं, अगर रूस यूक्रेन पर हमला कर देता है, तो फिर अमेरिका और यूरोपीय देशों को यूक्रेन को बचाने के लिए बीच में आना पड़ेगा, जिससे एक भीषण लड़ाई की शुरूआत हो सकती है, जिससे आतंकवाद, हथियार नियंत्रण और सीरिया में राजनीतिक समाधान जैसे अन्य क्षेत्रों में सहयोग की संभावनाओं को नुकसान पहुंचा सकता है।
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