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पाकिस्तान के नियंत्रण वाले गिलगित बल्तिस्तान में चुनाव और फ़ौज से जुड़ा फरमान

गिलगित बल्तिस्तान में आख़िरी बार विधानसभा का चुनाव जून 2015 में हुआ था. इस साल की जून में इस सरकार की पांच साल की अवधि समाप्त हो गई थी.

By शब्बीर मीर
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पाकिस्तान के नियंत्रण वाले गिलगित बल्तिस्तान में चुनाव और फ़ौज से जुड़ा फरमान

गिलगित बल्तिस्तान के मुख्य चुनाव आयुक्त शाहबाज़ ख़ान ने एक अधिसूचना जारी कर राजनीतिक दलों को पाकिस्तानी फ़ौज के प्रमुख और दूसरे फ़ौजी अधिकारियों की तस्वीरें चुनाव प्रचार के दौरान इस्तेमाल नहीं करने को कहा है.

राजा शाहबाज़ ख़ान ने इस बाबत 3 अक्टूबर को चिट्ठी जारी की है. इसके एक दिन पहले केयरटेकर मुख्यमंत्री मीर अफज़ल ने फ़ौज की मदद के बिना चुनाव कराने का एलान किया था.

अधिसूचना के मुताबिक कोई भी राजनीतिक दल आर्मी चीफ़ जनरल क़मर जावेद बाजवा और दूसरे फ़ौजी अधिकारियों की तस्वीर चुनाव प्रचार में नहीं इस्तेमाल कर सकता है.

इसमें साफ़ तौर पर लिखा हुआ है कि "इस आदेश को नहीं मानने वाले को चुनाव क़ानून, 2017 की धारा 232 के तहत चुनाव लड़ने से अयोग्य करार दिया जाएगा."

दिलचस्प बात यह है कि कई दिनों तक इस आदेश पर राजनीतिक पार्टियों का ध्यान ही नहीं गया क्योंकि वो चुनाव में व्यस्त थे. जब मीडिया ने यह मसला उठाया तब राजनीतिक दलों का ध्यान इस ओर गया.

इस आदेश पर प्रतिक्रिया देते हुए नवाज़ शरीफ़ की पार्टी पीएमएल-एन के पूर्व क़ानून मंत्री औरंगज़ेब ख़ान ने इसे एक संवेदनशील क़दम बताया है. उन्होंने कहा, "हम किसी भी फ़ौजी अधिकारी की तस्वीर का इस्तेमाल चुनाव के दौरान नहीं करने जा रहे थे लेकिन अच्छा है कि चुनाव आयोग ने साफ़ तौर पर इसे लेकर आदेश जारी कर सभी पार्टियों को ऐसा करने से रोक दिया है."

गिलगित बल्तिस्तान
Getty Images
गिलगित बल्तिस्तान

गिलगित बल्तिस्तान की राजनीतिक व्यवस्था

गिलगित बल्तिस्तान का आधुनिक इतिहास 19वीं सदी का है. 1846 में कई लड़ाइयों के बाद डोगराओं ने इस इलाके को जम्मू-कश्मीर में समाहित कर लिया था. 1947 तक यह व्यवस्था कायम रही थी लेकिन इसके बाद गिलगित बल्तिस्तान डोगराओं को खदेड़ पाकिस्तान के साथ बिना किसी शर्त जाने को तैयार हो गया.

गिलगित बल्तिस्तान संयुक्त राष्ट्र की प्रस्तावना के मुताबिक एक विवादित क्षेत्र है. अब तक इसकी क़िस्मत भारत-पाकिस्तान के बीच जम्मू-कश्मीर के अनसुलझे विवाद के साथ जुड़ी हुई थी. लेकिन स्थानीय जनता की मांग को ध्यान में रखते हुए पाकिस्तान इसे राजनीतिक तौर पर पूरी तरह से अपने साथ मिलाने को लेकर कदम उठा रहा है.

अभी यह क्षेत्र गिलगित बल्तिस्तान आदेश-2018 के अंतर्गत आता है. 2018 में उठाए गए इस क़दम के तहत गिलगित बल्तिस्तान सशक्तिकरण और स्वशासन आदेश 2009 को निरस्त कर दिया गया था. गिलगित बल्तिस्तान आदेश-2018 के अंतर्गत पहली बार यहाँ मुख्यमंत्री और गवर्नर की व्यवस्था बनाई गई. हालांकि इन दोनों ही व्यवस्थाओं के अंतर्गत पाकिस्तान की संसद में इस क्षेत्र से कोई भी नुमाइंदगी की व्यवस्था नहीं तय की गई है.

गिलगित बल्तिस्तान में आख़िरी बार विधानसभा का चुनाव जून 2015 में हुआ था. इस साल की जून में इस सरकार की पांच साल की अवधि समाप्त हो गई थी लेकिन महामारी को देखते हुए 15 नवंबर तक चुनाव टाल दिया गया था. अब यहाँ करीब एक महीने रह गया है चुनाव में. इमरान ख़ान की तहरीक-ए-इंसाफ़, भुट्टो की पाकिस्तान पीपल्स पार्टी और पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ की पार्टी पीएमएल-एन एड़ी-चोटी का दम यहाँ के चुनाव में लगाए हुए हैं.

जून तक यहां पीएमएल-एन की सरकार थी लेकिन अब चुनाव तक के लिए केयरटेकर सरकार बनाई गई है.

यहाँ करीब सात लाख से ज्यादा वोटर हैं. 15 नवंबर को विधानसभा की 24 सीटों के लिए चुनाव होने वाले हैं. विधानसभा में अभी कुल 33 सदस्य हैं. इसमें से 24 सीधे तौर पर चुने जाते हैं. आठ सीट महिलाओं के लिए आरक्षित हैं तो वहीं तीन सीटें टेक्नोक्रैट्स के लिए रखी गई हैं.

गिलगित-बल्तिस्तान
Getty Images
गिलगित-बल्तिस्तान

फ़ौज के अधिकारियों के पोस्टर पर बैन क्यों लगाया गया?

गिलगित के पूर्व मुख्यमंत्री हफीज़-उर्र-रहमान का एक वीडियो अभी सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है. हफीज़-उर्र-रहमान पीएमएल-एन के प्रदेश अध्यक्ष भी हैं. इस वीडियो में उन्हें पार्टी प्रमुख नवाज़ शरीफ के साथ बात करते हुए दिखाया गया है, जिसमें वो एक वीडियो लिंक के हवाले से यह कह रहे हैं कि पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी जीतने की संभावना वाले उम्मीदवारों की इमरान ख़ान की पीटीआई के लिए हॉर्स ट्रेडिंग कर रही है.

'जीतने वाले उम्मीदवारों' से मतलब यह है कि वो चाहे जिस भी पार्टी से खड़े हो लेकिन उनकी जीत की संभावना प्रबल है.

रहमान वीडियो में कहते हैं, "पीटीआई ने अब तक 21 उम्मीदवारों को टिकट दिए हैं इनमें से 19 के साथ इस तरह की संभावना है. ये उम्मीदवार अलग-अलग दलों से थे लेकिन ख़ुफ़िया एजेंसियों ने उन्हें इमरान ख़ान की पार्टी पीटीआई के साथ आने को मजबूर किया है."

आगे उन्होंने यह भी आरोप लगाया है कि, "प्रशासन को कश्मीर और गिलगित बल्तिस्तान मामलों के केंद्रीय मंत्री अली अमीन गैंदापुर ने हाइजैक कर लिया है ताकि पीटीआई की जीत सुनिश्चित की जा सके."

हालांकि हाफीज़-उर्र-रहमान ने अपने आरोपों को लेकर कोई सबूत नहीं पेश किया है. लेकिन मुख्य विपक्षी दल पीएमएल-एन ने 26 सूत्रीय मांगों की एक सूची इस्लामाबाद में हुए सर्वदलीय कांफ्रेंस के दौरान जरूर जारी की थी जिसमें उन्होंने गिलगित बल्तिस्तान में निष्पक्ष चुनाव कराने की भी मांग की थी.

गिलगित बल्तिस्तान के मुख्य चुनाव आयुक्त ने फ़ौजी अधिकारियों की तस्वीर के इस्तेमाल पर रोक को लेकर कोई साफ़ कारण नहीं दिया है. हालांकि राजनीतिक विशेषज्ञ अब्दुल मुजीब का मानना है कि विपक्षी दलों की सर्वदलीय बैठक को देखते हुए मुख्य चुनाव आयुक्त यह फ़ैसला लेने पर मजबूर हुए हैं.

वो कहते हैं कि बैन लगाने के पीछे यह मकसद भी है कि इससे इस अवधारणा को खारिज किया जाए कि चुनाव और गिलगित की राजनीति में फ़ौज की कोई भूमिका नहीं है.

गिलगित बल्तिस्तान में फ़ौज का दख़ल

गिलगित बल्तिस्तान में 2015 में फ़ौज की देखरेख में आम चुनाव हुए थे. इस चुनाव में नवाज़ शरीफ की पार्टी को साफ़ तौर पर बहुमत हासिल हुआ था. हालांकि ऐतिहासिक तौर पर देखे तो कभी भी नवाज़ शरीफ़ और उनकी पार्टी के साथ फ़ौज के अच्छे कामकाजी ताल्लुकात नहीं रहे हैं. लेकिन पीपीपी नेता जमील अहमद का दावा है कि पीएमएल-एन की जो पिछली जीत हुई थी वो इसलिए संभव हो पाई थी क्योंकि तब तत्कालीन आर्मी चीफ़ राहील शरीफ और प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ के बीच एक समझ विकसित हुई थी.

वो आरोप लगाते हैं, "फ़ौज गिलगित बल्तिस्तान में एक स्थायी सरकार चाहती थी इसलिए फ़ौज ने पीएमएल-एन को 2015 में मदद पहुँचाई."

राजनेताओं का एक-दूसरे पर इस तरह से चुनाव के दौरान आरोप-प्रत्यारोप लगाना बहुत आम बात है ताकि अपने विपक्षी की विश्वसनीयता को शक के घेरे में लाया जा सके. फ़ौज ने हमेशा किसी भी राजनीतिक दल को समर्थन देने की बात से इनकार किया है. हालांकि उस पर अप्रत्यक्ष तौर पर नतीजों को प्रभावित करने का आरोप लगता रहा है लेकिन यह भी सच है कि कभी भी ऐसे आरोपों के लिए किसी भी तरह के सबूत नहीं पेश किए गए हैं.

वरिष्ठ पत्रकार ईमान शाह कहते हैं कि भू-राजनीतिक दृष्टि से देखे तो गिलगित बल्तिस्तान हमेशा से पाकिस्तान की सुरक्षा के लिए अहम रहा है और वहाँ पर मज़ूबत फ़ौजी मौजूदगी की जरूरत रही है.

ईमान शाह कहते हैं कि पहाड़ी क्षेत्र होने की वजह से गिलगित बल्तिस्तान तक पहुँच फ़ौज को छोड़कर दूसरों के लिए दुरूह रही है. फ़ौज की हमेशा से वहाँ बेहतर पहुँच रही है.

"राजनीतिक जागरूकता के अभाव में भी मुख्यधारा के नेता इस क्षेत्र से दूर ही रहे हैं. आपदा के वक़्त हमेशा स्थानीय लोगों को मदद पहुँचाने की जिम्मेवारी फ़ौज पर छोड़ी जाती रही है. इसलिए स्वभाविक तौर पर यहाँ पर नेताओं की ओर से पैदा किए गए राजनीतिक शून्य को फ़ौज ही भरती रही है."

वरिष्ठ पत्रकार अब्दुल रहमान ईमान शाह की इस बात से इत्तेफाक़ रखते हैं और कहते हैं कि कारगिल की जंग इस बात का बेहतरीन नजीर है कि स्थानीय लोगों ने कैसे पाकिस्तानी फ़ौज को मदद पहुँचाई थी.

वो कहते हैं, "कारगिल की जंग के वक्त मैंने वॉलिंटियर्स को बाज़ार में चंदा इकट्ठा करते और फ़ौज के लिए खाना और कंबल जमा करते हुए देखा है."

"कारगिल के बाद जनरल मुशर्रफ ने कारगिल के दौरान जो गिलगित बल्तिस्तान की भूमिका रही, उसके लिए इस क्षेत्र पर खासा तवज्जो दिया. उन्होंने इस इलाके में पहली यूनिवर्सिटी बनाई. यहाँ की राजनीतिक हैसियत में इजाफा किया और ग़ीज़र और अस्तोरे जैसे सुदूर इलाकों तक के लिए सड़कें बनाईं."

अब्दुल रहमान कहते हैं, "मुशर्रफ़ के वक़्त यहाँ किया गया विकास कार्य अभूतपूर्व था और उसे लंबे वक्त तक याद किया जाएगा."

ईमान शाह मानते हैं कि स्थानीय लोगों में फ़ौज के लोगों के लिए सम्मान का भाव है इसलिए फ़ौज का राजनीति और प्रशासन पर अच्छा प्रभाव है.

वो कहते हैं,"लोग मानते हैं कि राजनीतिक दल भ्रष्ट हैं और फ़ौज ही उम्मीद की एक किरण है. अगर राजनीतिक दल वाकई में लोकतांत्रिक है और उनके पास नैतिकता है तो उन्हें आर्मी चीफ़ की तस्वीर की जरूरत अपने पोस्टर-बैनर पर नहीं पड़ेगी."

फ़ौज को लेकर आलोचना

हाल ही में पाकिस्तानी फ़ौज को 'राजनीति में दख़ल' देने के मुद्दे पर विपक्षी पार्टियों की ओर से आलोचना झेलनी पड़ी है. फ़ौज के ऊपर 'धांधली' से इमरान ख़ान की सरकार को 'समर्थन' देने के आरोप लगे हैं.

पाकिस्तान में पूर्व में चार फ़ौजी हुक्मरान रह चुके हैं और नागरिक सरकारों के दौर में भी सरकार और नीतियों पर फ़ौज के असर की बात कोई छिपी हुई नहीं है. हालांकि पहली बार विपक्षी दल इस बात को लेकर इतना मुखर दिखाई पड़ रहे हैं.

नवाज़ शरीफ ने अपने हालिया भाषण में कहा है कि राजनीति में फ़ौज का दख़ल अस्वीकार्य है और उन्होंने सुरक्षा संस्थाओं को संवैधानिक दायरे में रहकर काम करने की नसीहत भी दी है.

वहीं दूसरी ओर बिलावट भुट्टो ने बार-बार गिलगित बल्तिस्तान के चुनाव में धांधली को लेकर गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी दी है.

पिछले महीने जब आर्मी चीफ़ क़मर जावेद बाजवा ने विपक्षी नेताओं की गोपनीय बैठक बुलाई थी तब गिलगित बल्तिस्तान में निष्पक्ष चुनाव का मुद्दा उस बैठक के दौरान विपक्ष की ओर से संयुक्त तौर पर उठाया गया था.

राजनीतिक टिप्पणीकारों का मानना है कि चुनाव के दौरान पोस्टर पर फ़ौज के अधिकारियों की तस्वीरें इस्तेमाल करने पर पाबंदी लगाने का फ़ैसला फ़ौज को निष्पक्ष दिखाने की एक कवायद है.

BBC Hindi
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English summary
Elections and military orders in Pakistan-controlled Gilgit Baltistan
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