भूख और बेरोजागारी के बीच अफगानों ने कैसे मनाई ईद? क्या दुनिया अफगानिस्तान को भूल गई?
काबुल, मई 02: पूरे अफ़ग़ानिस्तान में लोगों ने रविवार को ईद तो मनाई, लेकिन लाखों अफ़गानों के लिए ये एक अन्य दिनों की तरह ही साधारण दिन था, क्योंकि भोजन की थाल के लिए उन्हें इस दिन भी संघर्ष करना था। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, 90 प्रतिशत से ज्यादा अफगान, भोजन की कमी का सामना कर रहे हैं। अलजीजरा से बात करते हुए जमाल, जो अपना असली नाम साझा नहीं करना चाहते थे, उन लोगों में से है, जिनके लिए ईद थोड़ी खुशी लेकर आई है।

अफगानिस्तान की कैसी है स्थिति?
पिछले अगस्त में तालिबान के अधिग्रहण के बाद से अफगानिस्तान में एक गंभीर मानवीय संकट शुरू हुआ था, जिसमें तमाम अफगान पिस रहे हैं, जिसमें 38 साल के जनाल भी हैं, जो ईद के मौके पर खुश तो हैं, लेकिन चिंता इस बात की है, कि परिवार का पेट कैसे भरेंगे। उन्हें ईद मनाने के लिए दिन में काफी काम करना पड़ेगा। जमाल के परिवार में 17 सदस्य हैं और उन्हें खिलाने लिए पास की बेकरी से जमाल रोटी के कुछ टुकड़े ही ला पाए। पड़ोसियों ने खाना भेजा, तो पूरे परिवार का पेट भरा। अलजजीरा से बात करते हुए जमाल बताते हैं, "मुझे उम्मीद नहीं है, कि हमें ईद के लिए भी कुछ मिलेगा। मुझे पैसे या खाना कौन देगा? पूरा शहर गरीबी में जी रहा है। मैंने शरणार्थी शिविरों में भी ऐसा कुछ कभी नहीं देखा, जहां मैं बड़ा हुआ'। उन्होंने पड़ोसी पाकिस्तान में शरणार्थी शिविरों में अपनी परवरिश का जिक्र करते हुए ये बातें कहीं।

कैसा बीता रमजान का महीना?
तालिबान शासन से पहले जमाल अफगानिस्तान सराकर में एक जूनियर स्तर का कर्मचारी हुआ करते थे, लेकिन तालिबान द्वारा काबुल पर कब्जे के बाद से सैलरी बंद हो चुकी है। जमाल बताते हैं, रमजान के महीने का ज्यादातर समय सेहरी (अरबी में सुहूर) भोर से पहले के भोजन और इफ्तार के लिए भोजन खोजने के लिए काम या समर्थन की तलाश में बिताया। आपको बता दें कि, रमजान इस्लामिक कैलेंडर का सबसे पवित्र महीना है और इस महीने में मुसलमान सुबह से शाम तक रोजा रखते हैं। जमाल बताते हैं, रोजा रखकर उन्होंने कड़ी धूप में घंटो तक काम किया, ताकि इफ्तारी के लिए कुछ घर ले जा सकें। घरवाले जमाल के घर लौटने का इंतजार करते रहते थे, ताकि कुछ पकाया जा सके और रोजा तोड़ा जा सके।

'मेरे जीवन का सबसे खराब रमजान'
अलजजीरा से बात करते हुए जमाल का कहना था, कि उनकी स्थिति हमेशा इतनी विकट नहीं थी। वह पिछले रमज़ान को याद करते हैं, जो काफी अच्छा बीता था। जिसमें उन्होंने खुदा की इबादत की और अपने परिवार के साथ काफी अच्छा समय बिताया था। जमाल बताते हैं, 'हर रमजान और ईद में हम परिवार और समुदाय के साथ इबादत करने के लिए आते हैं। यह महीना और ईद हमेशा हमारे लिए एकता के बारे में रहा है, लेकिन इस साल यह विपरीत रहा है'। जमाल बताते हैं, कि 'यह मेरे जीवन का सबसे खराब रमजान रहा है, न केवल हम भूखे मर रहे हैं, बल्कि अब हमारे बीच एकता नहीं है, न ही हम शांति से खुदा की इबादत कर सकते हैं'। अलजीजार से बात करते हुए जमाल बताते हैं, कि स्थिति अब ये है, कि मस्जिद जाने में डर लगता है, कि पता नहीं कौन दहशतगर्द कब बम फोड़ दे।

तालिबान की तरफ से बधाई संदेश
तालिबान नेता हैबतुल्लाह अखुंदजादा ने रविवार को पूर्वी शहर कंधार में ईद की नमाज में शामिल होने के दौरान अफगान लोगों को 'जीत, आजादी और सफलता' की बधाई दी। लेकिन मानवीय संकट और बिगड़ती सुरक्षा स्थिति का जिक्र उनके संबोधन में नहीं था। तालिबान के अधिग्रहण के बाद जमाल को उनकी सरकारी नौकरी से निकाल दिया गया था। वो बताते हैं, 'मैं हमेशा अपने देश की सेवा करना चाहता था। लेकिन मैं सेना में नहीं था, न ही मैं किसी राजनीतिक समूह से जुड़ा था। और उन्होंने (तालिबान) मुझे नौकरी से निरकाल दिया'। जमला अपने परिवार में अलेके कमाने वाले थे, लिहाजा एक झटके में परिवार आर्थिक तौर पर अपंग हो गया। जमाल बताते हैं, 'तालिबान के अधिग्रहण के बाद से मेरे परिवार ने भरपेट भोजन नहीं किया है। और इस रमजान में हम सिर्फ पानी और रोटी से अपना रोजा तोड़ रहे थे। और हमारे लिए ईद भी अलग नहीं था'। जमाल बताते हैं, कि 'पिछले रमजान हम बच्चों के लिए खरीदारी कर रहे थे, और यहां तक कि परिवार को आखिरी इफ्तार रात के खाने के लिए भी बाहर ले गए थे। लेकिन इस साल हम सिर्फ इतना कर सकते हैं कि वो भूख से न मरें।

अफगानिस्तान में भारी खाद्य संकट
तालिबान के अधिग्रहण के बाद अफगानिस्तान को दुनिया से आर्थिक मदद मिलनी बंद हो गई और भारत जैसे चंद देश ही हैं, जो अभी भी मानवीय सहायता भेज रहे हैं। यूनाइटेड नेशंस के मार्च के आंकड़ों से पता चलता है, कि अफगानिस्तान में रहने वाले 2 करोड़ 40 लाख अफगान जीवित रहने के लिए मानवीय सहायता पर निर्भर हैं। देश में खाद्य सुरक्षा का स्तर गिर गया है, जो संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रतिबंधों से उत्पन्न हुआ है, जिसने एनजीओ के लिए भी अफगानिस्तान तक मानवीय सहायता पहुंचाना काफी कठिन कर दिया है। जैसे-जैसे स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है, अफगानिस्तान के अंदर सक्रिय कई एनजीओ रिपोर्ट कर रहे हैं, कि सहायता मांगने वाले परिवारों की संख्या बढ़ती जा रही है। नंगरहार प्रांत के एक सामाजिक कार्यकर्ता अब्दुल मनन मोमंद ने कहा, 'हम रमजान के दौरान पिछले पांच साल से भोजन दान के लिए अभियान चला रहे हैं, लेकिन यह साल सबसे खराब रहा है।" उन्होंने अनुरोध किया, कि उनके संगठन का नाम गुप्त रखा जाए। उन्होंने कहा कि, "पिछले साल, हमने सिर्फ एक प्रांत में लगभग 3,000 परिवारों को सहायता वितरित की थी, लेकिन इस साल अब तक, हमने 12,000 से अधिक परिवारों को सहायता प्रदान की है।"

अच्छे-अच्छे परिवार हुए बर्बाद
मोमंद ने कहा कि, समर्थन के लिए उनके पास आने वाले कई नए परिवार ऐसे हैं जो पहले अच्छी तरह से संपन्न थे लेकिन तालिबान के अधिग्रहण के बाद वो आर्थिक तौर पर बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं। उन्होंने कहा कि, "बहुत से लोगों ने अपनी नौकरी खो दी और कई परिवार पीड़ित हैं क्योंकि उनके पास कमाने के कोई साधन नहीं हैं। उनमें से कई विधवाएं भी हैं, जिन्होंने अपनी नौकरी खो दी है'। उन्होंने कहा कि, पिछले साल उनके दान अभियान में शामिल एक महिला को इस बार खुद दान लेने के लिए मजबूर होना पड़ा है। वह एक एनजीओ के साथ काम करती थी, और हमारे पिछले अभियानों में उदारता से योगदान करती थी, लेकिन इस साल उसने अपनी नौकरी खो दी है और समर्थन मांग ही है। मोमंद बताते हैं, कि यह देखना दिल दहला देने वाला है, कि परिवार कैसे संघर्ष कर रहे हैं।

भीषण महंगाई, भयानक बेरोजगारी
अफगानिस्तान के बाजारों में आग लगी है और सामानों की कीमत इतनी है, कि सुनने से ही कानों से धुआं निकलने लगे। पूर्व सरकारी अधिकारी और सह-लेखक अहमद जमाल शुजा ने कहा कि, 'क्षेत्रीय देशों में रमज़ान के दौरान कीमतों में हमेशा कुछ वृद्धि होती है, लेकिन रमज़ान की कीमतों में बढ़ोतरी अफगानिस्तान में पहले से ही काफी ज्यादा हो चुकी महंगाई को और बढ़ा रही है, क्योंकि तालिबान ने देश पर कब्जा कर लिया है।" रिपब्लिकन अफगानिस्तान सरकार का पतन हो चुका है। इस बीच, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार विशेषज्ञों के एक समूह ने सोमवार को अमेरिकी सरकार से अफगानिस्तान के केंद्रीय बैंक की संपत्ति को अनब्लॉक करने का आह्वान किया गया है, जिसे अगस्त 2021 में पिछली सरकार के पतन के बाद फ्रीज कर दिया गया है। आपको बता दें कि, अमेरिका ने अफगानिस्तान के केन्द्रीय बैंक की 7 अरब डॉलर की संपत्ति फ्रीज कर दी है।

भूख से आगे विचारधारा
जमाल शुजा कहते हैं, कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय खुद को सर्वश्रेष्ठ साबित करने की कोशिश कर रहा है, जिसमें प्रतिबंधों में ढील देना और तालिबान को प्रतिबंधों को कम करने का मौका देना शामिल है... लेकिन, तालिबान लड़कियों की माध्यमिक शिक्षा पर भी प्रतिबंध लगा रहा है। "शुजा ने देश में लड़कियों की उच्च शिक्षा को लगातार बंद करने का जिक्र करते हुए कहा कि, ' तालिबान अपनी विचारधारा को भूख से मर रही अफगान आबादी की जरूरतों के आगे रख रहा है'। जमाल जैसे लोग, जिन्हें पहले 15000 अफगान मुद्रा सैलरी के तौर पर मिलती थी और जो कुछ हद तक सही जीवन जी रहे थे, अब सड़कों पर आ चुके हैं। लेकिन, उन्हें भूखे पेट भी तालिबान के सख्त इस्लामी आदेश को मानना पड़ रहा है। जमाल ने कहा, 'भले ही मैंने पहले बहुत कुछ नहीं कमाया था, लेकिन यह पर्याप्त था। अभी हमारे परिवार में कोई आय नहीं है। और सारे सामान के दाम बढ़ गये हैं। पहले हम 1,600 (अफगान मुद्रा) में आटे का एक बैग खरीदते थे और अब इसकी कीमत 2,700 हो चुकी है। खाना पकाने का तेल अब 1000 में आता है।
मुश्किल
में
फंसे
पाकिस्तान
को
फिर
सऊदी
ने
बचाया,
8
अरब
डॉलर
का
कर्ज
देगा,
शहबाज
शरीफ
को
बड़ी
कामयाबी