दुनिया का वो गरीब देश जिसने दौलत को ठुकरा प्रकृति को अपनाया
क्विटो। दुनियाभर में इस वक्त हर कोई प्रकृति कि दिन प्रतिदिन खराब होती दशा को लेकर चिंतित है। लेकिन विकास और धन के कारण अधिकतर देश इसके हनन से पीछे नहीं हट रहे हैं। हालांकि दुनियाभर में जलवायु परिवर्तन को लेकर कई जगह प्रदर्शन किए जा रहे हैं। लेकिन बावजूद इसके प्रकृति की भलाई के लिए ना के बराबर काम हो रहा है।
वहीं दुनिया में एक देश ऐसा भी है जो चाहे तो अमीर बन सकता है, लेकिन इसके लिए उसे प्रकृति से दूर होना पड़ेगा। ऐसे में इस देश ने दौलत को ठुकरा प्रकृति को अपनाया है। हम बात कर रहे हैं, लातिन अमेरिका के दूसरे सबसे गरीब देश इक्वाडोर की। इस देश में तेल के कई भंडार हैं, लेकिन फिर भी इस देश ने तेल का लालच छोड़ प्रकृति को चुना है।
हराभरा जंगल और साफ पानी
इस देश ने अरब देशों की तरह पैसे कमाने की बजाय पर्यावरण को जरूरी समझा है। यही वजह है कि यहां आपको हराभरा जंगल और साफ पानी मिल जाएगा। यहां के मूल निवासी नेपो और किचवा हैं। हालांकि यहां हाल के दशकों से तेल निकालने का काम किया जा रहा है, जिससे यहां के लोग काफी डरे हुए हैं। इन्हें ऐसा लगता है कि अगर तेल निकालने का काम जारी रहा, तो इनकी जान को खतरा हो सकता है।
85 करोड़ बैरल तेल छिपा हुआ है
अमेजन नदी के दूसरी ओर यहां यासुनी के काफी करीब तेल निकालने का काम शुरू हो गया है। लेकिन इक्वाडोर सरकार चाहती है कि ये देश ऐसा ही रहे। खासतौर पर यहां के लोग अपने पर्यावरण को बचाना चाहते हैं। ऐसा माना जाता है कि इन हरीभरी झाड़ियों और घने जंगलों के नीचे करीब 85 करोड़ बैरल तेल छिपा हुआ है। लेकिन उसकी बजाय यहां चिड़ियों की चहचहाट को बनाए रखने का फैसला लिया गया है।
तेल एक दिन खत्म हो जाएगा
यहां के यासुनी पार्क को यूनेस्को ने साल 1979 में विश्व जैव विविधता वाला क्षेत्र घोषित किया था। यहां के लोगों का मानना है कि तेल एक दिन खत्म हो जाएगा और हम महज तेल के दम पर अर्थव्यस्था को नहीं बनाना चाहते। ये देश सीमित तरीके अपने संसाधनों का प्रयोग करना चाहता है। जैव विविधता और जंगल को बचाए जाने के देश के फैसले की दुनिया के बाकी देश सराहना कर रहे हैं। यहां लोगों का कहना है कि वह शांत लहरों के बीच संगीत की लहरों पर थिरकते रहना चाहते हैं।
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