पृथ्वी के घूमने की गति रहस्यमयी तरीके से पड़ी धीमी, अचरज में दुनियाभर के वैज्ञानिक, क्या हम मुश्किल में हैं?
पृथ्वी का अपनी धूरी पर घूमने की गति रहस्यमयी तरीके से धीमी पड़ गई है, जिसने पूरी दुनिया के वैज्ञानिकों को सकते में डाल दिया है।
नई दिल्ली, अक्टूबर 26: पिछले साल कोरोना वायरस संक्रमण की वजह से जब दुनियाभर के ज्यादातर देशों में लॉकडाउन लगा हुआ था, उस वक्त वैज्ञानिकों ने नोट किया कि पृथ्वी की अपनी घूरी पर घूमने की रफ्तार अपनी सामान्य रफ्तार से तेज हो गई है। वैज्ञानिकों के लिए धरती के घुमने की गति में इजाफा होना हैरान करने वाली बात थी, लेकिन अब फिर से वैज्ञानिकों ने नोट करना शुरू किया है, कि पृथ्वी की घूमने की गति में कमी आ गई है। ऐसे में वैज्ञानिकों के मन में सवाल उठ रहे हैं, कि क्या हम किसी मुश्किल में तो नहीं पड़ने वाले हैं?
पृथ्वी की बदलती रफ्तार
पिछले साल की शुरुआत में वैज्ञानिकों ने नोट किया कि पृथ्वी ने अपनी धुरी के चारों ओर थोड़ी तेजी से घूमना शुरू कर दिया है। 2020 की अराजकता और उथल-पुथल के बाद इस खबर का सबसे अधिक स्वागत किया गया क्योंकि इसका मतलब था कि नया साल उम्मीद से थोड़ा जल्दी आ जाएगा। स्पीड में इजाफा इस वर्ष की पहली छमाही तक जारी रहा, लेकिन अब एक बार फिर से पृथ्वी की रफ्तार में परिवर्तन हो गया है और अब पृथ्वी ने अपनी घूरी पर रहस्यमयी तरीके से घूमने की रफ्तार में कमी कर दी है।
पृथ्वी की घूमने की रफ्तार
एक्सप्रेस न्यूज की रिपोर्ट के मुताबिक, औसतन पृथ्वी अपनी धूरी पर एक चक्कर पूरा करने के लिए 86 हजार 400 सेकंड यानि पूरे 24 घंटे का वक्त लेती है। हालांकि, पृथ्वी के हर चक्कर को पूरा करने में कुछ समय का अंतर आ जाता है और समय के साथ ये अंतर कुछ सेकंड के लिए बदलता रहता है। हालांकि, अब जब टेक्नोलॉजी काफी ज्यादा उन्नत हो गई है और अब वैज्ञानिकों ने न्यूक्लियर वॉच की मदद से पृथ्वी की घूमने की गति पर नजर रखना शुरू कर दिया है, जिसके आधार पर वैश्विक स्तर पर वैज्ञानिकों को समय का निर्धारण करने में मदद मिलती है।
परमाणु घड़ी की मदद से गणना
आज, वैज्ञानिक परमाणु घड़ियों की सहायता से समय पर नज़र रखते हैं, जो यूनिवर्सल कोऑर्डिनेटेड टाइम (UTC) के लिए मानक निर्धारित करती हैं। ये अल्ट्रा-सटीक घड़ियां परमाणुओं में इलेक्ट्रॉनों की गति को पूर्ण शून्य (-273.15C) तक ठंडा करके समय का माप रखती हैं। परमाणु घड़ी एकदम सटीक समय बताती है और इसी घड़ी के जरिए धरती की बदलती रफ्तार पर वैज्ञानिक एकदम सटीकता के साथ नजर रखते हैं और अगर रफ्तार में थोड़ी सी भी बदलाव आती है, तो उसका पता चल जाता है।
लीप सेकंड का जोड़-घटाव
परमाणु घड़ियों द्वारा निर्धारित समय और पृथ्वी के घूमने के गति में लगने वाले समय के बीत अगर कोई अंतर आता है, तो इस अंतर को बराबर करने के लिए वैज्ञानिक लीप सेकंड जोड़ते या घटाते हैं। एस्ट्रोफिजिसिस्ट ग्राहम जोन्स ने इस साल की शुरुआत में बीबीसी को बताया था कि, "चूंकि लीप सेकंड की प्रणाली 1972 में शुरू की गई थी, इसलिए पृथ्वी का घूर्णन आमतौर पर थोड़ा धीमा रहा है और अब तक 27 लीप सेकंड को बढ़ाया जा चुका है, यानि अभी तक 27 बार एक एक सेकंड बढ़ाया जा चुका है, यानि अभी तक 27 बार धरती ने अपनी धूरी पर घूमने में निर्धारित समय से एक सेकंड का ज्यादा वक्त लिया है।
2016 में एक सेकंड ज्यादा
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्टैंडर्ड एंड टेक्नोलॉजी (एनआईएसटी) द्वारा संकलित लाइव साइंस और डेटा के मुताबिक, नए साल की पूर्व संध्या पर 2016 में घड़ी में एक ऐसा लीप सेकेंड जोड़ा गया था। औसतन, वैज्ञानिकों ने हर 18 महीने या उससे भी ज्यादा समय में घड़ियों में एक लीप सेकंड को जोड़ा है। यानि, मोटामोटी समझिए तो हर 18 महीने में वैज्ञानिकों ने एक सेकंड जोड़ा है।
पिछले साल बढ़ गई रफ्तार
जब 2020 में पृथ्वी की परिक्रमा तेज हो गई, तो वैज्ञानिकों ने अंतर बनाने के लिए एक निगेटिव जम्प सेकंड जोड़ने की संभावना पर विचार किया। पिछले साल 19 जुलाई को देखा गया था कि, पृथ्वी मे 86 हजार 400 सेकंड में अपनी धूरी पर एक चक्कर लगाया, लेकिन इस चक्कर को धरती ने 1.4602 मिलीसेकंड तेजी से एक दिन पूरा किया था, यानि दिन 1.4602 मिली सेकंड छोटा हो गया था। लेकिन टाइम एंड डेट की एक रिपोर्ट के अनुसार, 1 जुलाई से 30 सितंबर के बीच दिन की औसत लंबाई 2020 की तुलना में 0.05 मिलीसेकंड अधिक बढ़ने के बाद ग्रह एक बार फिर धीमा हो गया है।
फिर से धीमी हो गई रफ्तार
यानि, पृथ्वी 2021 की पहली छमाही की तुलना में धीमी गति से घूम रही है, हालांकि गति अभी भी औसत से ऊपर है। स्पिन की वर्तमान दर के आधार पर, वैज्ञानिकों को लगभग 10 वर्षों के समय में दूसरी नकारात्मक छलांग लगाने की आवश्यकता हो सकती है। हालांकि,पृथ्वी की अपनी धूरी पर घूमने की रफ्तार में क्यों परिवर्तन आ रहा है, इसको लेकर वैज्ञानिकों के पास अभी तक कोई जवाब नहीं है, लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि, गति में परिवर्तन आने से भूकंप आने की संभावना काफी बढ़ जाती है।
रफ्तार परिवर्तन से धरती पर असर
हालांकि, पृथ्वी की स्पीड में परिवर्तन के बारे में अभी वैज्ञानिकों के पास कोई जवाब नहीं है, और लगातार स्पीड में परिवर्तन ने वैज्ञानिकों के लिए इसे समझना और ज्यादा कठिन कर दिया है। वैज्ञानिक धरती के व्यवहार में आए इस परिवर्तन के पीछे की वजह को जानने की हर कोशिश कर रहे हैं, लेकिन नतीजे पर नहीं पहुंच पाए हैं। यूएस नेवल ऑब्जर्वेटरी के निक स्टैमाटाकोस ने टाइम एंड डेट को बताया कि, "हमने अगले दो या अधिक वर्षों के लिए आंतरिक रूप से मॉडलिंग करने की कोशिश की है। लेकिन हम छह महीने से अधिक या एक साल आगे की भविष्यवाणी नहीं कर सकते हैं।" वैज्ञानिक अनिश्चित हैं कि पृथ्वी के घूमने में इन दीर्घकालिक परिवर्तनों का क्या कारण है और इसके क्या परिणाम हो सकते हैं।
शक्तिशाली भूकंप आने का खतरा
वैज्ञानिकों का मानना है कि, पृथ्वी की रफ्तार में आया यह परिवर्तन शक्तिशाली भूकंप की वजह बनते हैं, क्योंकि, रफ्तार में परिवर्तन की वजह से पृथ्वी का भार एक बार फिर से व्यवस्थित होने लगता है। वैज्ञानिकों का यह भी मानना है कि, ग्रीनलैंड में बर्फ के पिघलने की रफ्तार काफी ज्यादा है और पिघले बर्फ का पानी पृथ्वी के ध्रुवों से दूर जाने लगते हैं, जिसकी वजह से पृथ्वी को रफ्तार में संभवत: कमी आ जाती है। वहीं, नासा के अनुसार, पृथ्वी के द्रव्यमान में बदलाव से एक दिन में मिलीसेकंड तक की भिन्नता हो सकती है। नासा की जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी में रिचर्ड ग्रॉस ने समझाया कि "पृथ्वी एक स्केटर की तरह है। और जो कुछ भी द्रव्यमान को पृथ्वी की धुरी के करीब ले जाता है, उसके घूमने की गति तेज हो जाती है, और द्रव्यमान को धुरी से दूर ले जाने से यह धीमा हो जाता है।"