DRDO ने इंडियन नेवी को दिया पानी का ब्रह्मास्त्र, चीन-पाकिस्तान की नाक में दम करेगा ये ‘साइलेंट किलर’
DRDO ने AIP टेक्नोलॉजी का तोहफा इंडियन नेवी को दिया है। डीआरडीओ ने मुंबई में एआईपी तकनीक यानि एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन तकनीक का परीक्षण किया है।
मुंबई: डीआरडीओ ने एक और कामयाबी हासिल करते हुए इंडियन नेवी के हाथों में पानी का ब्रह्मास्त्र सौंप दिया है। यानि, इंडियन नेवी की शक्ति समंदर में और भी ज्यादा बढ़ गई है। अब इंडियन नेवी पानी में दुश्मनों को पलभर में पानी पिला सकती है। डीआरडीओ से ये तोहफा मिलने के बाद अब भारत की पनडुब्बियां बेहद घातक हो जाएंगी। इस टेक्नोलॉजी को हासिल करने के लिए पाकिस्तान काफी लंबे अर्से से कोशिश कर रहा था लेकिन पाकिस्तान को भारत के सामने मुंह की खानी पड़ी है।
समंदर का शिकंदर होगा भारत
डीआरडीओ ने मुंबई में एआईपी तकनीक यानि एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन तकनीक का परीक्षण किया है। डीआरडीओ ने ये परीक्षण आईएनए करंज पनडुब्बी को भारतीय नौ-सेना में शामिल करने के एक दिन पहले मुंबई में किया है। भारतीय नौ-सेना के लिए डीआरडीओ के इस परीक्षण को बड़ा और ऐतिहासिक कदम माना जा रहा है क्योंकि इससे पहले ये तकनीक सिर्फ अमेरिका, रूस, ब्रिटेन और चीन के पास ही थी। एआईपी तकनीक की मदद से भारतीय नेवी समंदर में और भी ज्यादा घातक हो जाएंगी। एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन यानि एआईपी तकनीक समंदर के अंदर पनडुब्बियों को ज्यादा देर तक रहने की इजाजत देता है और इसकी सबसे बड़ी खासियत है इसका साइलेंट किलर होना। यानि, इस टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से समंदर के अंदर पनडुब्बी से आवाज निकलनी बंद हो जाएगी और दुश्मनों को इसका पता भी नहीं चल पाएगा। जिसकी वजह से ये सब-सरफेस यानि समंदर की सतह पर मौजूद दुश्मनों के लिए खतरनाक हो जाएगी।
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आत्मनिर्भर भारत की तरफ कदम
डीआरडीओ से अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी का तोहफा मिलने के बाद अब इंडियन नेवी ने अपने सभी कलवरी क्लास के गैर-परमाणु अटैक को एआईपी टेक्नोलॉजी से बदलने की प्लानिंग कर ली है। माना जा रहा है कि इंडियन नेवी अपनी सभी पनडुब्बियों में 2023 तक एआईपी टेक्नोलॉजी लगा देगी। जिसके बाद इंडियन नेवी की समंदर में ताकत काफी ज्यादा बढ़ जाएगी और पाकिस्तान, जो हमसे काफी पीछा है और और भी ज्यादा पीछा चला जाएगा। डीआरडीओ ने उपलब्धि आत्मनिर्भर भारत के तहत हासिल की है। ये स्कीम डीआरडीओ ने इंडिया में ही बनाया है।
नौसेना होगी और शक्तिशाली
1615 टन की कलवरी क्लास की पनडुब्बी मजागॉन डॉकयार्ड्स लिमिटेड द्वारा फ्रांसीसी नेवल ग्रुप की मदद से बनाई जा रही है जो स्कॉर्पीन डिजाइन पर आधारित है। आत्मनिर्भर भारत की दिशा में डीआरडीओ द्वारा बनाया गया एआईपी टेक्नोलॉजी एक बड़ा कदम है। इससे पहले सिर्फ अमेरिका, फ्रांस, चीन, ब्रिटेन और रूस के पास ही एआईपी टेक्नोलॉजी मौजूद थी। डीआरडीओ की एआईपी टेक्नोलॉजी फॉस्फोरिक एसिड फ्यूल सेल पर आधारित है और आखिरी में बनाए गये दोनों कलवरी क्लास की पनडुब्बियों में इसका इस्तेमाल किया गया है।
एआईपी टेक्नोलॉजी की खासियत
एआईपी यानि मरीन प्रोपल्शन टेक्नोलॉजी नन-न्यूक्लियर पनडुब्बियों को सतह पर मौजूद ऑक्सीजन का इस्तेमाल किए बिना ही लंबे वक्त कर पानी में रहने की शक्ति प्रदान करता है। इसके साथ ही इस टेक्नोलॉजी की मदद से पनडुब्बियों की डीजल इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन सिस्टम यानि संचालन क्षमता भी बढ़ाती है। जिसका मतलब ये कि एआईपी टेक्नोलॉजी की मदद से पनडुब्बियों को अपनी बैक्ट्री चार्ज करने के लिए सतह पर आने की जरूरत नहीं होगी और ये काफी लंबे वक्त तक समंदर की गहराई में शांति के साथ रह सकता है और दुश्मन इसकी मौजूदगी से बेखबर रहेंगे।
पाकिस्तान को फ्रांस से झटका
न्यूक्लियर पनडुब्बियों में न्यूक्लियर रिएक्टर होने की वजह से काफी ज्यादा आवाज निकलती रहती है। पनडुब्बी का रिएक्टर लगातार इंजन को ठंढ़ा रखने के लिए पानी की सप्लाई करता रहता है लेकिन एआईपी टेक्नोलॉजी आने के बाद पनडुब्बियां पूरी तरह शांत हो सकती है जिससे वो काफी खतरनाक बन जाती हैं। डीआरडीओ ने एआईपी टेक्नोलॉजी फ्रांस के साथ मिलकर बनाया है और कलवरी पनडुब्बी का निर्माण भी दोनों देशों ने साथ मिलकर किया है। ऐसे में पाकिस्तान के आपातकालीन रिक्वेस्ट के बाद भी फ्रांस ने एआईपी टेक्नोलॉजी पाकिस्तान को देने से मना कर दिया है। पाकिस्तान अकोस्टा-90 पनडुब्बी में एआईपी टेक्नोलॉजी लगाना चाहता था मगर फ्रांस से इनकार के बाद अब पाकिस्तान को चीन की तरफ ही हाथ पसारना पड़ेगा।
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