ट्रंप सरकार ने हर चौथे शख्स का रद्द किया H-1B आवेदन, आईटी कंपनियों को भारी नुकसान
नई दिल्ली। अमेरिकी निकाय के मुताबिक, डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व वाले अमेरिकी प्रशासन ने वित्तीय वर्ष 2018-19 (अक्टूबर से जून) की तीसरी तिमाही में सभी नए एच -1बी वीजा आवेदनों में से लगभग एक चौथाई को खारिज कर दिया है। इस वीजा को अस्वीकार करने की दर 2019 में 2015 की तुलना में तीन गुना बड़ी है। अमेरिकी सिटिजनशिप एंड इमिग्रेशन सर्विसेज के एच -1बी डेटा के विश्लेषण के मुताबिक वीजा को अस्वीकार करने की दर वित्त वर्ष 2019 में वित्त वर्ष 2015 की तुलना में तीन गुना बड़ी है।
यूएससीआईएस ने अप्रूवल के लिए नियम बदल दिए
इकनॉमिक टाइम्स में छपी एक खबर के मुताबिक, सभी एच -1बी वीजा होल्डर्स में लगभग 70 पर्सेंट भारतीय हैं क्योंकि क्योंकि वैश्विक प्रौद्योगिकी कंपनियां अमेरिका में ऑनसाइट काम करने के लिए इस तरह की प्रतिभा पर भरोसा करती हैं। यूएस सिटिजनशिप एंड इमिग्रेशन सर्विसेज (यूएससीआईएस) अक्टूबर से सितंबर के वित्त वर्ष का पालन करती है। यूएससीआईएस के लिए H-1B डेटा का विश्लेषण करने वाली नेशनल फाउंडेशन फॉर अमेरिकन पॉलिसी के मुताबिक, H-1B आवेदनों को अस्वीकार करने की दर बढ़ी है क्योंकि यूएससीआईएस ने अप्रूवल के लिए नियम बदल दिए हैं।
विशेषतौर पर नए कर्मचारियों के अस्वीकार किए जा रहे हैं
नेशनल फाउंडेशन फॉर अमेरिकन पॉलिसी के मुताबिक, वित्त वर्ष 2015 में H-1B आवेदनों को अस्वीकार करने की दर लगभग 6 फीसदी थी। इस तरह के वीजा के लिए विशेषतौर पर नए कर्मचारियों के अस्वीकार किए जा रहे हैं, लेकिन यह स्पष्ट है कि यूएससीआईएस ने कड़ी पॉलिसी को लागू करने के लिए विशेषतौर पर आईटी कंपनियों को चुना है। कॉग्निजेंट के लिए अस्वीकृति की दर 60 पर्सेंट से अधिक रही। इसके अलावा केपजेमिनी, एक्सेंचर, विप्रो और इन्फोसिस के आवेदनों को भी बड़ी संख्या में रिजेक्ट किया गया है।
टेक्नॉलजी सर्विस कंपनियों को हो सकता है बड़ा नुकसान
आंकड़ों के मुताबिक, 2018 में टॉप छह भारतीय कंपनियों को केवल 16 पर्सेंट यानि 2,145 एच -1बी वर्क परमिट मिले थे। दुनिया की सबसे बड़ी ऑनलाइन रिटेलर अमेजॉन को अपने कर्मचारियों के लिए 2,399 एच -1बी वीजा मिले थे। वहीं एप्पल, कमिंस और वॉलमार्ट ऐसी तीन कंपनियां हैं जिनके वीजा के आवेदनों को अस्वीकार नहीं किया गया। अमेरिका में वर्क परमिट के लिए आवेदनों को अस्वीकार करने की इतनी अधिक दर से टेक्नॉलजी सर्विस कंपनियों को नुकसान हो सकता है।
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