चरमपंथ से लड़ना नहीं, सैन्य ताक़त बढ़ाना प्राथमिकता: अमरीका
अमरीका ने अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा नीति में बड़े बदलाव के संकेत देते हुए कहा है कि अब उसकी प्राथमिकता रूस और चीन पर सैन्य बढ़त हासिल करना होगी.
अमरीका के रक्षा मंत्री जेम्स मैटिस ने कहा है कि अमरीकी सेना को अब अपना ध्यान चरमपंथ से लड़ने के बजाय रूस और चीन जैसी प्रतिस्पर्धी ताक़तों पर बढ़त हासिल करने पर लगाना चाहिए.
राजधानी वाशिंगटन में अमरीका की रक्षा नीति में बड़े बदलाव का संकेत देते हुए उन्होंने कहा कि रूस और चीन अमरीका की सुरक्षा के लिए बड़ा ख़तरा बनते जा रहे हैं.
जेम्स मैटिस ने रूस का हवाला देते हुए कहा कि किसी को भी अमरीका की लोकतांत्रिक प्रक्रिया में प्रयोग के बारे में नहीं सोचना चाहिए.
उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा, "अगर आप हमें चुनौती देंगे तो ये आपका सबसे लंबा और बुरा दिन होगा."
क्या ट्रंप के पास वाक़ई कोई 'परमाणु बटन' है?
रूस पर साल 2016 में अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव में दखलअंदाज़ी का आरोप है और इसे लेकर अमरीकी सियासत में रह-रहकर आरोपों प्रत्यारोपों के दौर चल रहे हैं.
रक्षा बजट बढ़ाने की अपील
अमरीकी रक्षा मंत्री ने संसद से सेना को पर्याप्त बजट देने की अपील भी की और कहा कि सेना को केंद्रीय बजट में कटौती से दूर रखना चाहिए.
राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप इस साल के अपने प्रस्तावित रक्षा बजट में 10 फ़ीसदी का इजाफा करना चाहते हैं और उन्होंने कहा है कि वो इसके लिए दूसरी मदों में कटौती करेंगे, फिर चाहे इसके लिए विदेशी सहायता में ही कुछ कटौती क्यों न करनी पड़े.
बीबीसी के रक्षा और कूटनीतिक संवाददाता जोनाथन मार्कस के मुताबिक अमरीका की राष्ट्रीय सुरक्षा नीति में ये बड़े बदलाव का इशारा है.
9/11 के हमलों के बाद तकरीबन दो दशक तक अमरीकी सेना का पूरा ध्यान चरमपंथ के ख़िलाफ़ लड़ने पर रहा. अमरीकी सेना ने अफ़ग़ानिस्तान, इराक़ और सीरिया में चरमपंथ विरोधी अभियानों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया.
लेकिन अब अमरीकी सेना रूस और चीन जैसे अपने परंपरागत प्रतिद्वंद्वियों के मुक़ाबले ख़ुद को मजबूत करने की तरफ बढ़ रही है.
अमरीकी रक्षा मंत्री का ये बयान बिल्कुल सही है कि अमरीका की सैन्य बढ़त अपने प्रतिद्वंद्वियों की मुक़ाबले तेज़ी से घट रही है. अब ज़रूरत नई तकनीकी के लिए निवेश बढ़ाने की है ताकि जंग के मैदान में विरोधियों को चित किया जा सके.
लेकिन ये इतना आसान नहीं है और बात सिर्फ़ अधिक धन खर्च करने की भी नहीं है. उन्होंने इशारों-इशारों में कहा कि दिक्कत ये है कि पिछले कुछ वर्षों में रक्षा बजट सीधे सेना तक नहीं पहुंचा है और इसने अमरीकी सेना की तैयारियों को जंग के मैदान में दुश्मनों के मुकाबले अधिक नुक़सान पहुँचाया है.
अमरीका की रक्षा प्राथमिकताएं कितना बदलेंगी?
यह पहली बार है जब ट्रंप प्रशासन की रक्षा नीतियों पर खुलकर बात हुई है.
जो आशंकाएं और ख़तरे गिनाये जा रहे हैं, अमरीकी प्रशासन में भी वो मौजूद थे, लेकिन तब प्राथमिकताएं अलग थीं.
पहले, कथित इस्लामिक स्टेट या अल क़ायदा जैसे चरमपंथी संगठन अमरीकी सेना के निशाने पर थे, लेकिन धीरे-धीरे अमरीका के शीतयुद्ध के प्रतिद्वंद्वियों रूस और चीन ने सामरिक तौर पर खुद को प्रभावशाली बना दिया.
मैटिस ने कहा, "हमें चीन और रूस के रूप में अलग-अलग संशोधनवादी शक्तियों से बढ़ते खतरों का सामना करना पड़ता है, जो कि राष्ट्रों को अपने सत्तावादी मॉडल के अनुरूप बनाना चाहते हैं."
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रूस और चीन कितना बड़ा ख़तरा?
शीत युद्ध के बाद से ही ये तीनों परमाणु संपन्न ताक़तें एक-दूसरे के लिए स्थाई ख़तरा बनी हुई हैं.
पिछले कुछ सालों में अमरीका और रूस, सीरिया और यूक्रेन में एक-दूसरे से टकराए हैं. अमरीकी रक्षा उप मंत्री एलब्रिज कोल्बी कहते हैं, "चीन और रूस हमारी सैन्य बढ़त को चुनौती देने के इरादे से पिछले कई वर्षों से अपनी सैन्य क्षमता लगातार बढ़ाते रहे हैं."