सऊदी और यूएई से पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान ख़ान क्यों हुए निराश
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष में जाने से पाकिस्तान की नई सरकार हिचक रही थी, लेकिन बाक़ी विकल्प काम नहीं आए, इसलिए जाना पड़ा. पाकिस्तान को लगता था कि खाड़ी के देशों से उसे मदद मिल जाएगी, इसलिए इमरान ख़ान ने दौरा भी किया, लेकिन कुछ फ़ायदा नहीं मिला.
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि पाकिस्तान को आर्थिक संकट से निपटने के लिए तत्काल 12 अरब डॉलर की ज़रूरत है. यह व्यापार घाटे और विदेशी मुद्रा भंडार में आई कमी को पाटने के लिए बेहद ज़रूरी है.
इमरान ख़ान ने प्रधानमंत्री बनने के बाद पहली विदेश यात्रा के लिए सऊदी अरब को चुना था. सऊदी की यात्रा इमरान ने अपने ही वादों को तोड़ किया था, क्योंकि उन्होंने वादा किया था कि वो पीएम बनने के बाद तीन महीने तक विदेश यात्रा नहीं करेंगे.
अपने ही संकल्प को तोड़ने पर इमरान ने सऊदी अरब जाने पर कहा था कि वो किंग सलमान के आग्रह पर आए हैं और हर मुसलमान के लिए सऊदी जाना उसकी चाहत होती है.
ज़ाहिर है इमरान ख़ान का सऊदी जाना उनकी डिप्लेमेसी का हिस्सा रहा होगा. किसी भी विदेश यात्रा में द्विपक्षीय संबंधों का आकलन होता है. सऊदी और पाकिस्तान दशकों से क़रीब रहे हैं.
इमरान ने इस दौरे पर कहा था कि पाकिस्तान सऊदी पर किसी बाहरी देश को आक्रमण नहीं करने देगा. इमरान के इस बयान से उसका पड़ोसी देश ईरान ख़ुश नहीं हुआ होगा क्योंकि ईरान और सऊदी अरब में शत्रुता चरम पर है. सऊदी के बाद इमरान ख़ान संयुक्त अरब अमीरात पहुंचे थे. हालांकि इमरान का यह बयान सऊदी के लिए काफ़ी साबित नहीं हुआ.
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अब सवाल उठ रहे हैं कि पाकिस्तान ऐतिहासिक रूप से आर्थिक संकट में फँसा हुआ है तो इस दौरे से क्या हासिल हुआ?
मंगलवार को पाकिस्तान के सूचना मंत्री चौधरी फ़वाद हुसैन ने कहा कि सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात ने पैसे देने के बदले अस्वीकार्य शर्त रखी थी. उन्होंने यह नहीं कहा कि आख़िर वो शर्त कौन सी थी, जिसे पाकिस्तान के लिए स्वीकार करना मुश्किल था.
हालांकि अंतरराष्ट्रीय विश्लेषकों का कहना है कि भले चौधरी फ़वाद हुसैन ने उन शर्तों को सार्वजनिक नहीं किया, लेकिन यह कोई रहस्य नहीं है.
पिछले कुछ सालों से पाकिस्तान पर सऊदी अरब का दबाव है कि वो यमन में ईरान समर्थित हूती विद्रोहियों के ख़िलाफ़ लड़ाई में शामिल हो. यमन में पिछले तीन सालों से सऊदी, बहरीन और संयुक्त अरब अमीरात में साथ मिलकर लड़ रहे हैं, लेकिन कोई जीत नहीं मिली.
सऊदी का मानना है कि इस लड़ाई में पाकिस्तान के शामिल होने से वो जीत लेगा और ईरान को अलग-थलग करने में आसानी होगी. दूसरी तरफ़ पाकिस्तान नहीं चाहता है कि वो भारत के बाद एक और देश से टकराए जिससे उसकी सीमा लगती है.
सऊदी पाकिस्तान का क़रीबी रहा है, लेकिन वो ईरान को भी नाराज़ नहीं करना चाहता है. चौधरी फ़वाद हुसैन ने सऊदी और यूएई की शर्तों पर एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में कहा कि मुफ़्त में कुछ भी नहीं मिलता है. उन्होंने कहा कि हर देश के अपने-अपने हित होते हैं.
चौधरी फ़वाद ख़ान की टिप्पणी पर सऊदी और यूएई से कोई तत्काल प्रतिक्रिया नहीं आई है.
मंगलवार को पाकिस्तान ने जैसे ही अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) से मदद मांगने का फ़ैसला किया वैसे ही उसकी मुद्रा रुपये में ऐतिहासिक गिरावट आई. एक डॉलर की तुलना में पाकिस्तानी रुपया 124 से 133 तक पहुंच गया. आईएमएफ़ से पाकिस्तान को अगर मदद मिलती है तो उसे कड़े आर्थिक फ़ैसले लेने होंगे.
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष में जाने से पाकिस्तान की नई सरकार हिचक रही थी, लेकिन बाक़ी विकल्प काम नहीं आए, इसलिए जाना पड़ा. पाकिस्तान को लगता था कि खाड़ी के देशों से उसे मदद मिल जाएगी, इसलिए इमरान ख़ान ने दौरा भी किया, लेकिन कुछ फ़ायदा नहीं मिला.
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि पाकिस्तान को आर्थिक संकट से निपटने के लिए तत्काल 12 अरब डॉलर की ज़रूरत है. यह व्यापार घाटे और विदेशी मुद्रा भंडार में आई कमी को पाटने के लिए बेहद ज़रूरी है. पहले पाकिस्तान को लगता था कि बॉन्ड बेचकर और विदेशों में बसे पाकिस्तानियों की मदद के साथ खाड़ी के देशों से कुछ पैसे लेकर विदेशी क़र्ज़ों को चुका देगा.
चीन पाकिस्तान का सदाबहार मित्र रहा है और इस संकट की घड़ी में उससे भी उम्मीद थी. पाकिस्तानी अधिकारियों का कहना है कि पिछले दो सालों में चीन ने पाकिस्तान को कई अरब डॉलर क़र्ज़ दिए हैं. ये क़र्ज़ छोटी अवधि के हैं.
इमरान ख़ान ने चुनावी अभियानों में लाखों नई नौकरियां पैदा करने और कल्याणकारी इस्लामिक राज्य बनाने का वादा किया था. हालांकि आईएमएफ़ फंड देगा तो पाकिस्तानियों पर टैक्स का बोझ और बढ़ेगा.
पीएम बनने से पहले ही अमरीका ने बढ़ाई इमरान की मुश्किलें
आईएमएफ़ से क़र्ज़ लेने के बाद पाकिस्तान को कई तरह की आर्थिक पाबंदियों में बंध जाना होगा. पाकिस्तानी मुद्रा रुपया और कमज़ोर होगा, जिससे महंगाई बढ़ेगी.
पाकिस्तानी अधिकारियों ने वॉल स्ट्रीज जर्नल से कहा है कि पाकिस्तान का संकट की घड़ी में आईएमएफ़ के पास जाना, चीन के लिए भी शर्मिंदगी का कारण है क्योंकि पाकिस्तान में चीन वन बेल्ट वन रोड के तहत जिन प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहा है, उसकी शर्तें आईएमएफ़ से सार्वजनिक करना होगा.
आईएमएफ़ चीन की वित्तीय मदद की निगरानी करेगा और यह चीन के लिए भी असहज करने वाला होगा. चीन पाकिस्तान में 62 अरब डॉलर के प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है. इसमें चीन पाकिस्तान में रोड, बिजली और रेलवे लाइन बनाने काम कर रहा है.
चीन और अमरीका के बीच जारी ट्रेड वॉर के बीच पाकिस्तान का आईएमएफ़ के पास जाने से चीन पर यह भी आरोप लगेगा कि वो क़र्ज़ के बोझ तले दबाने वाली नीति को आगे बढ़ा रहा है. अमरीका ने जुलाई महीने में इसी तरह का आरोप चीन पर लगाया था.
अमरीका ने आईएमएफ़ को चेतावनी दी थी कि वो पाकिस्तान की मदद नहीं करे. पाकिस्तान के व्यापार घाटे में तेल आयात को छोड़ दें तो इसमें चीन का सबसे बड़ा योगदान है.
पाकिस्तान में अब ये सवाल भी उठ रहे हैं कि चीन के साथ मुक्त व्यापार समझौते पर विचार करना चाहिए. मंगलवार को पाकिस्तानी रुपये में 10.2% फ़ीसदी की गिरावट आई. इससे पहले अक्तूबर 1998 में पाकिस्तान ने परमाणु परीक्षण किया था तो वहां की मुद्रा में 11 फ़ीसदी की गिरावट आई थी.