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क्या ब्रिटिश सैनिकों ने अफ़ग़ानिस्तान में निहत्थे लोगों को मारा था?

ब्रिटिश सेना के पास ऐसी ख़बरें पहुँचीं कि अफ़ग़ानिस्तान में उनकी विशेष टुकड़ी स्पेशल फोर्सेज़ के हाथों अवैध रूप से लोगों को मारा जा रहा है. फिर क्या हुआ?

By BBC News हिन्दी
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अफ़ग़ानिस्तान में ब्रितानी सैन्य बल
Reuters
अफ़ग़ानिस्तान में ब्रितानी सैन्य बल

2011 में अफ़ग़ानिस्तान में जब जंग चरम पर थी, उसी दौरान ब्रिटिश सेना की स्पेशल फोर्सेज़ के दो सीनियर अफ़सर ब्रिटेन के डोरसेट में ख़ुफ़िया तौर पर मिले.

इन्हें आशंका थी कि यूके के सबसे प्रशिक्षित सैनिकों में से कुछ जानबूझकर निहत्थे लोगों की हत्या कर रहे हैं. अब जो चीज़ें सामने आ रही हैं उनसे ज़ाहिर हो रहा है कि इन अफ़सरों की आशंका गलत नहीं थी.

ये दोनों वरिष्ठ अफ़सर अफ़ग़ानिस्तान के हेलमंद प्रांत के धूल और खतरे के माहौल से हज़ारों मील दूर बैठे थे.

इनमें से एक अफ़सर की हाल में ही युद्ध से वापसी हुई थी जहां उनके सैनिकों ने बताया था कि स्पेशल फोर्सेज़ के लोग सज़ा देने के लिए लोगों की हत्या करने की नीति पर चल रहे हैं.

दूसरे अफ़सर हेडक्वार्टर में तैनात थे जहाँ युद्ध के मैदान से जिंताजनक रिपोर्ट आ रही थीं. उन्हें स्पेशल फोर्सेज़ की कार्रवाई में मारे गए दुश्मनों (एनिमी किल्ड इन एक्शन या एकिया) की संख्या में तेज़ बढ़ोतरी दिखाई दी थी.

स्पेशल फोर्सेज़ यूके के उच्च दर्जे के खास सैनिक होते हैं. इनकी ट्रेनिंग में स्पेशल एयर सर्विस (एसएएस) और स्पेशल बोट सर्विस (एसबीएस) दोनों शामिल होती हैं.

ब्रितानी रक्षा मंत्रालय के दस्तावेज
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ब्रितानी रक्षा मंत्रालय के दस्तावेज

माना जाता है कि बातचीत के बाद यूके स्पेशल फोर्सेज के सबसे वरिष्ठ अफ़सरों में एक के लिखे एक ब्रीफिंग नोट को सेना के उच्च स्तर तक भेजा गया.

यह संदेश स्पेशल फोर्सेज के सर्वोच्च स्तर के लिए एक स्पष्ट चेतावनी थी और इसमें आखिर में कहा गया था कि ये "चिंताजनक" आरोप "गहराई से जांच" होने लायक हैं ताकि इस तरह के "आपराधिक व्यवहार पर रोक लगाई जा सके."

हाईकोर्ट में पहले से चल रहे एक मामले में ये दस्तावेज़ सॉलिसिटर लीघ डे को मुहैया कराए गए. इस मुक़दमे में ये पड़ताल होनी है कि स्पेशल फोर्सेज पर लगे ग़ैरकानूनी हत्याओं के आरोपों की ठीक तरह से जांच हुई है या नहीं.

इस केस से हिल गई यूके की मिलिटरी

यह मुक़दमा सैफ़ुल्ला गारेब यार ने डाला है. उनका कहना है कि 16 फरवरी 2011 के तड़के उनके परिवार के चार सदस्यों को मार डाला गया था.

इस घटना पर पिछले साल बीबीसी पैनोरमा ने एक प्रोग्राम किया था. यह कार्यक्रम संडे टाइम्स इनसाइट टीम के साथ मिलकर किया गया था. इसका मकसद यूके स्पेशल फोर्सेज के हाथों की जा रही अवैध हत्याओं के एक पैटर्न का खुलासा करना था.

सरकार इस बात पर कायम है कि सैफ़ुल्ला के परिवार के चार सदस्यों की हत्या आत्मरक्षा में हुई थी.

लेकिन, अब नए जारी हुए दस्तावेजों से पता चल रहा है कि यूके स्पेशल फोर्सेज के मिशन को लेकर कुछ लोगों ने गंभीर चिंता जताई थी.

स्पेशल फोर्सेज के सैनिकों के बेस पर वापस लौटने के चंद घंटों के भीतर ही दूसरे ब्रिटिश सैनिक आपस में भेजे गए ईमेल्स के जरिए उस रात के घटनाक्रम को "हालिया नरसंहार" के तौर पर बता रहे थे.

खौफ़ की रात

हेलमंद के देहाती इलाके नावा में 16 फरवरी 2011 की सुबह 1 बजे सैफ़ुल्ला का परिवार अपने घर में गहरी नींद में था.

अचानक हेलिकॉप्टर की गड़गड़ाहट की आवाज से उनकी नींद खुल गई. इसके बाद मेगाफोन पर चिल्लाने की आवाजें उन्हें सुनाई दीं. सैफ़ुल्ला उस वक्त एक किशोर थे, लेकिन जल्द ही वे स्पेशल फोर्सेज के "मारने या पकड़ने" के मिशन के बीचोंबीच आने वाले थे.

एक वक्त पर रात में डाले जाने वाले ये छापे एक आम तरीका था. आमतौर पर इन मिशन को अफ़ग़ान फोर्सेज के साथ मिलकर रात के अंधेरे में अंजाम दिया जाता था. इनका मूल मकसद तालिबान के बड़े लड़ाकों को निशाना बनाना होता था.

सैफ़ुल्ला ने बीबीसी पैनोरमा को बताया, "मेरा पूरा शरीर डर के मारे कांप रहा था. हर कोई डरा हुआ था. सभी महिलाएं और बच्चे रो रहे थे और चिल्ला रहे थे."

सैफ़ुल्ला के चाचा
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सैफ़ुल्ला के चाचा

वे बताते हैं कि किस तरह से उनके हाथ बांध दिए गए थे और उन्हें महिलाओं और बच्चों के साथ अलग जगह रख दिया गया था. कुछ देर बाद उन्होंने गोलियों की आवाज सुनी.

जब सैनिक चले गए तो उनके घर के पास के खेतों से उनके दो भाइयों के मृत शरीर मिले. उनके चचेरे भाई की लाश पड़ोस की बिल्डिंग में मिली.

घर आकर देखा तो सैफ़ुल्ला के पिता ज़मीन पर पड़े हुए थे. सैफ़ुल्ला बताते हैं, "उनके सिर, उनके माथे पर कई गोलियां मारी गई थीं. उनका पैर गोलियों से टूट गया था."

पिछले साल पैनोरमा ने खुलासा किया था कि किस तरह से इन छापों के लिए टारगेट्स की पहचान करने वाली खुफिया जानकारी अक्सर वास्तव में निशाना बने लोगों से अलग होती थी.

इस तरह की हत्याओं पर यूएन के विशेष दूत फिलिप एल्सटन ने प्रोग्राम को बताया था, "मुझे इस बात में कोई शक नहीं है कि इनमें से कई आरोप सत्य हैं और हम यह कह सकते हैं कि इन रात में डाले गए छापों में बड़ी तादाद में नागरिकों की मौत हुई थी."

गैरकानूनी हत्याएं

फ्रैंक लेडविज
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फ्रैंक लेडविज

सैफ़ुल्ला का कहना है कि उनके परिवार को ग़लत तरीके से निशाना बनाया गया और उनकी ग़ैरकानूनी तरीके से हत्या की गई.

नावा ज़िले में इन हत्याओं के खिलाफ काफी विरोध-प्रदर्शन हुए थे. हेलमंड के गवर्नर का मानना था कि मारे गए लोग निर्दोष नागरिक थे.

रेड के बाद ब्रिटिश मिलिटरी के ईमेल्स से पता चलता है कि अफ़ग़ान सेना के चश्मदीदों ने भी सैफ़ुल्ला की बातों की तस्दीक की थी.

अफ़ग़ानी सेना के एक कमांडिंग अफ़सर ने कहा था कि ब्रिटिश सैनिकों पर कोई भी फायरिंग नहीं कर रहा था, इसके बावजूद परिवार के चार सदस्यों को मार दिया गया. अफ़सर ने कहा था कि उनका मानना है कि ये निर्दोष लोग थे जिन्हें मार दिया गया.

अफ़ग़ान कमांडर ने कहा कि दो लोगों को भागने की कोशिश करने के दौरान मार दिया गया और बाकी दो लोगों को पकड़ने और उनकी तलाशी लिए जाने के बाद निशाना लगाकर मार दिया गया.

अफ़ग़ानिस्तान में ब्रिटेन की साख पर धब्बा

अफ़ग़ानिस्तान युद्ध के दौरान सैन्य बल रात में अभियान चलाते थे.
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अफ़ग़ानिस्तान युद्ध के दौरान सैन्य बल रात में अभियान चलाते थे.

पत्राचार से पता चलता है कि इन घटनाओं ने हेलमंड से लेकर लंदन तक ब्रिटिश फौज को हिलाकर रख दिया था.

स्पेशल फोर्सेज के एक वरिष्ठ अफ़सर ने टिप्पणी की कि इस तरह की घटनाएं अफ़ग़ानिस्तान में यूके के प्रभाव के स्थायित्व पर बुरा असर डाल सकती हैं.

हेलमंद में जस्टिस एडवाइजर के तौर पर सेवाएं दे चुके एक पूर्व मिलिटरी इंटेलिजेंस अफ़सर फ्रैंक लेडविज कहते हैं, "अपने अफ़ग़ान सहयोगियों को हमसे दूर करने के साथ ही हत्यारी ब्रिटिश फौज का तर्क गढ़ने में विद्रोही कामयाब रहे. स्पेशल फोर्सेज के कुछ लोगों के कामों ने चरमपंथ को रोकने की पूरी मुहिम को गड़बड़ा दिया है."

आधिकारिक रिपोर्ट में क्या दर्ज है?

कोर्ट को दिए किए गए दस्तावेज़ों में से कुछ को गोपनीय के तौर पर बताया गया था.

इसमें गोपनीय ऑपरेशनल समरी भी है जिसमें सैफ़ुल्ला के घर उस रात क्या हुआ था इसका आधिकारिक ब्यौरा दर्ज है.

यूके स्पेशल फोर्सेज ने खबर दी थी कि परिसर को सुरक्षित करने के बाद वे कमरों में तलाशी के लिए जा रहे थे और उन्होंने एक अफ़ग़ान को पकड़ लिया था.

वहां पर उस शख्स ने अचानक पर्दे के पीछे पड़े ग्रेनेड को उठाने की कोशिश की. रिपोर्ट में कहा गया है, "वह एक खतरा था. टीम को कवर लेना पड़ा. ग्रेनेड फट नहीं पाया."

यह शख्स सैफ़ुल्ला के पिता थे.

ब्रितानी रक्षा मंत्रालय के दस्तावेज
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ब्रितानी रक्षा मंत्रालय के दस्तावेज

गोली चलाने के बाद एक अन्य अफ़ग़ान पड़ोस की बिल्डिंग में घुस गया. रिपोर्ट में कहा गया है कि उसने हथियार उठाने की कोशिश की और उसी में वह मारा गया. यह शख्स सैफ़ुल्ला का चचेरा भाई था.

रिपोर्ट में कहा गया है कि सैफ़ुल्ला के दोनों भाई भाग गए. एक भाई झाड़ियों में छिप गया, उसके हाथ में ग्रेनेड था, इसके बाद उसे गोली मार दी गई.

दूसरा भाई थोड़ी ही दूरी पर मशीन गन के साथ छिपा हुआ था. जब वह हथियार के साथ बाहर निकला तो उसे भी गोली मार दी गई.

ऐसा माना जाता है कि इस घटना के बाद सैनिकों के आपस में भेजे गए ईमेल्स में इस घटना पर चिंता जताई गई थी.

डिफेंस मिनिस्ट्री के एक प्रवक्ता ने कहा, "यह कोई नया साक्ष्य नहीं है और इस ऐतिहासिक केस की जांच स्वतंत्र रूप से रॉयल मिलिटरी पुलिस कर चुकी है. इसकी एक स्वतंत्र समीक्षा टीम ने चार बार समीक्षा भी की है."

"सर्विस पुलिस और सर्विस प्रोसीक्यूटिंग अथॉरिटी निश्चित रूप से नए साक्ष्यों के सामने आने पर आरोपों की जांच करने के लिए तैयार हैं."

न्याय की राह में बाधा

इसी तरह के अन्य मामलों में भी एक जैसे पैटर्न ने यूके स्पेशल फोर्सेज के इंग्लैंड में मुख्यालय में कई लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा है.

कोर्ट के दस्तावेज दिखाते हैं कि एक रिव्यू का आदेश दिया गया था.

स्पेशल फोर्सेज के एक मेजर ने दिसंबर 2010 से अप्रैल 2011 के बीच स्पेशल फोर्सेज द्वारा मारे गए लोगों की सभी आधिकारिक रिपोर्टेस की पड़ताल की.

उन्होंने अन्य वरिष्ठ अधिकारियों को लिखा कि मारे गए लोगों की संख्या उन्हें इस नतीजे पर ले जाती है कि "हमें इस वक्त कुछ गलत चीजें हासिल हो रही हैं."

उनकी रिपोर्ट में इस तरह के 10 वाकयों का जिक्र है. इनमें आधिकारिक कागजी कार्यवाही में एक तरह के ब्योरे डाले गए हैं जिनसे शक पैदा होता है.

सभी मामलों में जिन लोगों को मार दिया गया उन्हें पहले पकड़ लिया गया था और बिल्डिंग की तलाशी के दौरान अचानक से उन्होंने एक हथियार उठा लिया था.

मेजर ने यह भी पाया कि कम से कम पांच अलग-अलग मामलों में मरने वालों की तादाद उनके बरामद हुए हथियारों के मुकाबले ज्यादा थी. इसका मतलब है कि या तो हथियार गायब हो गए या फिर जो लोग मारे गए उनके पास हथियार नहीं थे.

एक मामले में नौ लोगों की हत्या हुई और केवल तीन हथियार बरामद हुए.

पैनोरमा ने रिपोर्ट की थी कि रॉयल मिलिटरी पुलिस (आरएमपी) की एक बड़े पैमाने पर खोजबीन को ऑपरेशन नॉर्थमूर का नाम दिया गया. इस जांच में रात में मारे गए छापों में दर्जनों हत्याएं शामिल थीं. इन्हीं में सैफुल्ला के परिवार के चार सदस्यों की हत्या भी शामिल थी.

16 फरवरी 2011 की रेड में हिस्सा लेने वाले स्पेशल फोर्सेज के सैनिकों से आरएमपी ने बातचीत की. इस बातचीत में इन सभी सैनिकों ने दावा किया कि वे उस रात के मिशन के ब्योरे को सटीक रूप से याद नहीं कर पा रहे हैं.

लेकिन, सरकार ने ऑपरेशन नॉर्थमूर को बंद कर दिया. सभी आरोप हटा दिए गए और इसमें एक भी केस नहीं चला.

फ्रैंक लेडविज कहते हैं, "ऐसा जान पड़ता है कि ब्रिटिश स्पेशल फोर्सेज की एक खासियत यह है कि वे वास्तव में किसी के भी लिए जवाबदेह नहीं हैं."

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English summary
Did British soldiers kill unarmed people in Afghanistan?
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