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ढाका: जहां मुर्दों को दो ग़ज़ ज़मीन तक नसीब नहीं

आबादी बढ़ रही है, जगह कम पड़ रही है, ऐसे में मरने वाले हर शख़्स को क़ब्र के लिए ज़मीन कहां से मिले?

By BBC News हिन्दी
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घनी आबादी वाले ढाका में अधिकतर कब्रें अस्थाई हैं क्योंकि बांग्लादेश की राजधानी में इस समय मुर्दा लोगों के लिए कोई जगह खाली नहीं है.

लेकिन तब आप क्या करेंगे जब आपके चहेते की क़ब्र में कोई और आ जाता है?

सुरैया परवीन अपने पिता की क़ब्र पर नहीं जा सकती हैं क्योंकि उस जगह अब किसी अजनबी का शरीर दफ़न है.

ढाका के एक छोटे से अपार्टमेंट में उन्होंने कहा, "बड़ी बेटी होते हुए मैं हर चीज़ का ख़्याल रखती हूं. एक दिन मैंने अपने भाई से पूछा कि वह आख़िरी बार कब्र पर कब गए थे?"

कुछ देर संकोच करने के बाद उन्होंने परवीन से कहा कि उनके पिता की जगह अब एक नई क़ब्र आ गई है.

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क़ब्र की जगह

"वह जगह अब दूसरे परिवार के पास है और उन्होंने उसे पक्का कर दिया है. यह ख़बर बिजली की तरह मुझ पर गिरी. मैं कुछ देर के लिए बात भी नहीं कर सकती थी."

ये कहते हुए सुरैया की आंखें नम हो गई थी और चेहरा उदास.

"अगर मुझे मालूम चलता तो मैं उसे बचाने की कोशिश करती. ये क़ब्र मेरे पिता की आख़िरी निशानी थी और अब मैं उसे खो चुकी हूं."

हालांकि, वह अभी भी कलशी क़ब्रिस्तान जाती हैं लेकिन अब उनके पिता की क़ब्र की जगह वहां किसी और को दफ़ना दिया गया है.

सुरैया के साथ ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. इससे पहले वह इसी तरीके से अपने पहले बच्चे के अलावा अपनी मां और चाचा की क़ब्रों को खो चुकी हैं.

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मुस्लिम बहुल बांग्लादेश

ऐसा संकट राजधानी ढाका में और दूसरे लोगों पर भी बीता है. कई लोग अपने रिश्तेदारों और दोस्तों के लिए स्थाई 'आरामगाह' सुरक्षित नहीं रख पाए.

शव को दफ़नाने के लिए जगह तलाशना मुश्किल नहीं है लेकिन यह जगहें अस्थाई और सस्ती होती हैं और शहर के नियमों के अनुसार हर दो साल के बाद इसमें दूसरा शव दफ़ना दिया जाता है.

अस्थाई क़ब्रों में कई शव दफ़न होते हैं और इसी तरह से ढाका शहर में क़ब्रों को लेकर प्रबंधन चलता है.

लोगों को मुश्किल होती है लेकिन कइयों के पास विकल्प नहीं होते. कई बार बहुत से परिवार के लोग एक ही क़ब्र को साझा करते हैं.

मुस्लिम बहुल बांग्लादेश में दाह-संस्कार विकल्प नहीं है क्योंकि आमतौर पर इस्लाम इसकी अनुमति नहीं देता है.

ढाका, कब्रिस्तान
AFP/Getty Images
ढाका, कब्रिस्तान

निराशाजनक स्थिति

साल 2008 से ढाका शहर का प्रशासन स्थाई क़ब्रें आवंटित करना बंद कर चुका है.

हालांकि, अगर कोई अर्द्ध-स्थाई तौर पर एक क़ब्र चाहे तो उसकी कीमत तकरीबन 12.86 लाख रुपये आती है. वहीं, इस देश की प्रति व्यक्ति आय कुल एक लाख रुपये है.

पुराने ढाका के नज़दीक अज़ीमपुर में मज़दूर घास साफ़ कर रहे हैं.

यह शहर के सबसे बड़े और जाने-माने क़ब्रिस्तानों में से एक है और इसमें हर दिशा में हज़ारों क़ब्रें हैं जो काफ़ी निराशाजनक स्थिति में हैं.

क़ब्रों पर एक बोर्ड होता है जो इसकी जानकारी देता है कि उसमें कौन-कौन दफ़न है. क़ब्रिस्तान की ज़मीन का हर हिस्सा इस्तेमाल हो चुका है.

क़ब्रिस्तान की देखरेख

सबीहा बेगम की बहन ने 12 साल पहले आत्महत्या कर ली थी और उन्हें यहीं दफ़नाया गया था.

पिछले 10 सालों से वह इस क़ब्र को बचाने में लगी हैं और स्वीकार करती हैं कि क़ब्रिस्तान की देखरेख करने वालों को इसके लिए वह रिश्वत देती हैं.

वह कहती हैं, "मैं उन्हें हर दिन याद करती हूं और विश्वास करती हूं कि वह लौटकर आएंगी. मैं कभी-कभी उनकी क़ब्र पर जाती हूं और उनसे बात करती हूं."

"मैंने जो नई फ़िल्में देखी होती हैं या गाना सुना होता है, मैं उसके बारे में बात करती हूं. यह महसूस कराता है कि वह इस समय क़ब्र में हैं."

"इस भावना के बारे में विस्तार से बताना काफ़ी मुश्किल है."

क़ब्रिस्तान के कर्मचारी

हर साल जब उनकी बहन की क़ब्र पर ख़तरा मंडराता है तो वह काम पर रखे गए क़ब्रिस्तान के कर्मचारी को फ़ोन करती हैं.

क़ब्रिस्तान के कर्मचारी उन्हें विश्वास दिलाता है कि उनकी बहन की क़ब्र में किसी और का शव नहीं दफ़नाया जाएगा.

सबीहा कहती हैं, "जब हमने उन्हें दफ़न किया था तब हम जानते थे कि हमें स्थाई क़ब्र नहीं मिलेगी."

"18 या 22 महीनों तक मुझे ठीक से याद नहीं है, उन्होंने मुझसे कहा कि उनकी क़ब्र को ढहा दिया जाएगा. इसके बाद मैंने क़ब्र को बचाने के तरीके आज़माने शुरू कर दिए."

"जिस शख़्स को मैंने क़ब्र पर नज़र रखने के लिए काम पर रखा था उसने कहा कि पैसों के ज़रिए इसे बचाया जा सकता है. तो इसी कारण मैं उसे कई सालों से बचा रही हूं."

ढाका, कब्रिस्तान
ED JONES/AFP/Getty Images
ढाका, कब्रिस्तान

ढाका में ये संभव नहीं

"हर साल अगस्त या फ़रवरी में जब क़ब्र को ढहाने का वक़्त आता है तो मेरे पास देखभाल करने वाले का कॉल आता है."

"और उस समय में मैं उसकी महीने के पैसों के अलावा कुछ और पैसे देती हूं. और इसी तरह से मैं पिछले 12 सालों से क़ब्र की देखभाल कर रही हूं."

बांग्लादेश में धार्मिक विद्वानों के अनुसार, इस्लाम एक क़ब्र में एक से अधिक शवों को दफ़न करने की अनुमति देता है.

हालांकि, लोगों की इच्छा होती है कि उनके प्रियजनों की अपनी क़ब्रें हों जो किसी और के साथ न बांटी जाए.

लेकिन ढाका में ऐसा संभव नहीं है और कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि किसी का विश्वास क्या है.

बांग्लादेश
AFP/Getty Images
बांग्लादेश

पवित्र जगह

होली रॉज़री ढाका का सबसे बड़ा कैथोलिक चर्च है. शहर के वाणिज्यिक ज़िले में इसके शांत इसाई क़ब्रिस्तान में ताज़ा हवा महसूस होती है.

मुख्य पादरी फ़ादर कोमोल कोराया कहते हैं कि यहां भी ताज़ी कटी घास है और हर क़ब्र एक गंभीर कहानी छिपाए हुए हैं.

"यह काफ़ी कठिन हो गया है क्योंकि ढाका में पलायन बढ़ा है. हम क़ब्रिस्तान की देखभाल अच्छे से करते हैं."

"अधिकतर लोग चर्च के क़ब्रिस्तान में ही दफ़न होना चाहते हैं क्योंकि उनका विश्वास है कि यह पवित्र जगह है. लेकिन हमारे पास सीमित जगह है."

"इस वजह से हर पांच साल में हम इस क़ब्र में दूसरे शव दफ़न करते हैं. इसलिए जब हम क़ब्र खोदते हैं तो हम हड्डियां पाते हैं जो गली नहीं होती हैं."

केवल आठ क़ब्रिस्तान

300 स्क्वेयर किलोमीटर में फैले 1.6 करोड़ की आबादी वाले ढाका शहर की यह एक कठोर हक़ीक़त है.

यूएन हैबिटेट डाटा के अनुसार, धरती पर ढाका सबसे घनी आबादी वाला शहर है, जहां पर हर स्क्वेयर किलोमीटर में 44,000 लोग रहते हैं.

बांग्लादेश की राजधानी में केवल आठ सार्वजनिक क़ब्रिस्तान हैं जिसमें से कुछ निजी भी हैं. इस वजह से मांग से निपटने का कम ही तरीका है.

ढाका शहरी निगम दक्षिणी ज़िले के सीईओ ख़ान मोहम्मद बिलाल कहते हैं कि शहरी प्रशासन जगह ढूंढने को लेकर संघर्ष कर रहा है और लोगों से अपील कर रहा है.

"लोगों से कहा जा रहा है वह अपने परिजनों के शव अपने पैतृक गांवों में दफ़नाएं और जो ऐसा करते हैं हम उन्हें कुछ प्रोत्साहन राशि देने पर भी विचार कर रहे हैं."

बिलाल के मुताबिक़, "शायद ढाका में ऐसे परिवार हैं जो अपने परिजनों के शव अपने गृहनगर में दफ़नाना चाहते हैं. लेकिन शव को लेकर जाना ख़ासा महंगा पड़ता है."

"इसलिए हम परिवहन की व्यवस्था कर शव को वहां तक पहुंचाने की व्यवस्था करेंगे. हम रस्मो-रिवाज को पूरा करने के लिए कुछ पैसे भी देंगे."

"शायद इस तरीके से कई लोग ढाका में लोगों को दफ़नाने में इच्छा नहीं जताएंगे."

यह तरीका शायद बिगड़ती समस्या को कम करने में मदद करे लेकिन मालूम नहीं कि यह सुरैया परवीन या उन लोगों की कितनी मदद करेगा जो अपने चहेतों की अंतिम 'आरामगाह' को खो चुके हैं.

BBC Hindi
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English summary
Dhaka Where the dead do not have two gaaz land
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