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इस देश में ढह रही है अर्थव्यवस्था, भूख मिटाने के लिए अब बच्चों को बेचने पर मजबूर परिवार

यूनाइटेड नेशंस में सौंपी गई एक रिपोर्ट में कहा गया है कि, अफगानिस्तान में करीब 1 करोड़ 80 लाख लोगों को भयानक संकट का सामना करना पड़ सकता है।

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काबुल, अक्टूबर 18: अफगानिस्तान में परिवारों को कर्ज चुकाने के लिए अपने बच्चों को बेचने के लिए मजबूर किया जा रहा है। देश की अर्थव्यवस्था करीब करीब ढह चुकी है, तमाम उद्योग धंधे जो पिछले 20 सालों में लगाए गये थे, वो बंद हो गये हैं और अफगान परिवारों का कोई पुरसानेहाल नहीं है। ऐसी स्थिति में मजबूर मांओं ने अपने बच्चों को बेचना शुरू कर दिया है। बच्चों को बेचने के बाद अफगानिस्तान की मांओं की जो रोती कहानियां सामने आ रही हैं, वो बेहद दर्दनाक हैं।

बच्चों को बेचने पर मजबूर माएं

बच्चों को बेचने पर मजबूर माएं

द वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के मुताबिक, अफगानिस्तान के पश्चिमी शहर हेरात में काम करने वाली एक महिला दिन का सिर्फ 50 पैसे कमाती है और उसने अपने परिवार को पालने के लिए एक शख्स से करीब 40 हजार रुपये कर्ज ले चुकी है और अब उसके पास कोई रास्ता नहीं बचा है। द वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के अनुसार, महिला का नाम सालेहा है और उससे कहा गया है कि, अगर वो अपनी तीन साल की बेटी नजीबा को बेच देती है, तो फिर उसका कर्ज माफ कर दिया जाएगा। 40 साल की सालेहा अगर अगले तीन महीने में कर्ज का भुगतान नहीं करती है, तो फिर उसकी 3 साल की बेटी को कर्ज देने वाला शख्स ले जाएगा।

नहीं है कोई सहारा

नहीं है कोई सहारा

द वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट में कहा गया है कि, सालेहा सिर्फ अकेली अफगान महिला नहीं है, जिसके सामने इस तरह का मानवीय संकट खड़ा हो गया है। अफगानिस्तान में नकदी मिल नहीं रहे हैं और अंतर्राष्ट्रीय सहायता अब रोक दी गई है, लिहाजा अफगानिस्तान के गरीब लोगों के लिए एक एक दिन गुजारना मुश्किल हो रहा है। हेरात के दर्जनों परिवार के लोगों ने द वॉल स्ट्रीट जर्नल से बात करते हुए कहा कि, उनके ऊपर भारी कर्ज हो गया है, सामान काफी महंगा बिक रहा है और उन्हें कहा गया है कि, अगर उन्होंने कर्ज नहीं चुकाया तो फिर अपने घर के बच्चे को बेचने के लिए तैयार हो जाएं।

ढहने के कगार पर अर्थव्यवस्था

ढहने के कगार पर अर्थव्यवस्था

अगस्त में जब से तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा किया है, देश की अर्थव्यवस्था चरमराने के कगार पर है। अफगानिस्तान में रुपये की कीमत डॉलर के मुकाबले बुरी तरह से गिर चुकी है और देश में नकदी का भयानक संकट खड़ा हो चुका है। हर एक बुनियादी सामानों की कीमत इतनी ज्यादा बढ़ चुकी है, कि उसे खरीदने में लोगों के पसीने छूट जाते हैं। वहीं, अब संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि अफगानिस्तान में भयानक स्तर पर भूख का संकट पैदा हो सकता है और लाखों लोगों की भूख से मौत हो सकती है।

'टूटने' के कगार पर पहुंचा देश

'टूटने' के कगार पर पहुंचा देश

इसी हफ्ते यूनाइटेड नेशंस प्रमुख को सौंपी गई एक रिपोर्ट में कहा गया है कि, 'अफगानिस्तान को बचाने या फिर टूटने' का पल आ गया है, और अफगानिस्तान में तत्काल आपातकालीन स्थिति में कैश फ्लो जारी करने की जरूरत है। आपको बता दें कि, अफगानिस्तान की जीडीपी में 75 प्रतिशत हिस्सा विदेशी मदद से आता था, जो अगस्त में तालिबान के देश पर अधिग्रहण के बाद बंद हो चुका है। अफगानिस्तान बैंक की 10 अरब डॉलर की संपत्ति को अमेरिका ने फ्रीज कर रखा है, और आईएमएफ, वर्ल्ड बैंक समेत सभी अंतर्राष्ट्रीय संगठनों ने काबुल को दी जाने वाली आर्थिक मदद पर रोक लगा दी है, जिसकी वजह से देश की हालत बुरी तरह से खराब हो चुकी है।

आर्थिक पतन के घातक परिणाम

आर्थिक पतन के घातक परिणाम

अफगानिस्तान में आर्थिक पतन के बेहद घातक परिणाम देखने को मिल रहे हैं और देश की करीब 35 प्रतिशत आबादी 150 रुपये प्रतिदिन से कम खर्च पर रह रही है। मजबूर मां सालेहा को अब किसी भी कीमत पर या तो 40 हजार रुपये का कर्ज चुकाना होगा, या फिर हमेशा के लिए अपनी 3 साल की बेटी नजीबा को खोना होगा। साहेला और उसका परिवार एक खेत में काम करते थे, लेकिन सूखा पड़ने की वजह से खेत में काम बंद चुका है और मजबूरन उन्हें कर्ज लेकर परिवार का पेट पालना पड़ा। तालिबान के सत्ता संभालने के बाद अफगानिस्तान में आटा, दाल और तेल के कीमत दोगुना से ज्यादा बढ़ चुके हैं और मध्य वर्ग के लोगों को घर का कीमती सामान माटी के मोल बेचना पड़ रहा है। काबुल के बाजारों में लोग अपना टीवी और फ्रीज बेचने के लिए पहुंच रहे हैं।

'बच्चे को मारने का ख्याल'

'बच्चे को मारने का ख्याल'

सालेहा ने 'वाल स्ट्रीट जर्नल' से बात करते हुए कहा कि, ''अगर जीवन इतना ज्यादा भयानक रहा तो मेरे पास अपनी बेटी तो मारने के अलावा कोई और रास्ता नहीं बचेगा। बेटी को मारने के बाद मैं आत्महत्या कर लूंगी। मैौं ये भी नहीं जानती हूं कि हम आज रात में क्या खाएंगे''। वहीं, सालेहा के पति अब्दुल वहाब ने कहा, 'मैं अपनी बेटी की जान बचाने के लिए पैसे खोजने की कोशिश कर रहा हूं, लेकिन कहीं से कोई मदद नहीं मिल रहा है। वहीं, कर्ज देने वाले शख्स खालिद अहमद ने इस बात की पुष्टि की है, कि 3 साल की बेटी के बदले वो सालेहा के परिवार का कर्ज माफ कर देगा। खालिद अहमद ने कहा कि, ''मेरे पास भी पैसे नहीं हैं और अगर उन्होंने मुझे पैसे वापस नहीं लौटाए तो फिर मेरे पास कोई और विकल्प नहीं बचेगा'।

खतरे में एक करोड़ 80 लाख लोग

खतरे में एक करोड़ 80 लाख लोग

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने चेतावनी दी है कि, अफगानिस्तान में मानवीय संकट विकराल हो रहा है और देश के करीब एक करोड़ 80 लाख से ज्यादा लोगों की जिंदगी बुरी तरह से प्रभावित हो रही है और अब लोगों को पैसे कमाने के लिए अलग अलग उपायों का सहारा लेना पड़ रहा है। वहीं, तालिबान के एक अधिकारी ने कहा कि, ''अफगानों को कुछ महीने तक संघर्ष करने की आदत डालनी पड़ेगी''। एक तालिबान अधिकारी ने कहा कि, 'हम 20 साल तक जिहाद लड़ते रहे, हमने अपने परिवारों के सदस्यों को खो दिया, हमारे पास भी भोजन नहीं था, और अंत में हमें सरकार बनाने का मौका मिला है, ऐसे में अगर लोगों को कुछ महीने संघर्ष करना पड़े, तो क्या?' अधिकारी ने कहा। 'तालिबान के लिए लोकप्रियता महत्वपूर्ण नहीं है।'

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English summary
Families in this country are forced to sell their children under the burden of debt.
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