ब्रिटेन की संसद में कश्मीर पर हुई चर्चा, भारत का जवाब- तथ्यों को किया गया नजरअंदाज
Debate on Kashmir In UK Parliament: लंदन। जम्मू कश्मीर को लेकर ब्रिटेन की संसद में चर्चा हुई जिसमें ब्रिटेन की सरकार ने अपना पुराना पक्ष दोहराया जिसमें कहा गया कि कश्मीर मुद्दे का हल भारत-पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय मामला है और लंदन की इसमें कोई भूमिका नहीं है। लेकिन विदेश मंत्री ने कश्मीर की स्थिति पर चिंता जताई। वहीं संसद की इस बहस पर भारतीय उच्चायोग ने जवाब दिया और कहा कि ब्रिटिश सदन में चर्चा के दौरान तथ्यों को नजर अंदाज किया गया।
लेबर पार्टी की सांसद सारा ओवेन ने इस चर्चा का प्रस्ताव रखा था। चर्चा में कंजर्वेटिव, लेबर और डेमोक्रेटिक यूनयनिस्ट पार्टी के सांसदों ने हिस्सा लिया। चर्चा में ब्रिटेन की सरकार का पक्ष रखते हुए विदेश मामलों के राज्य मंत्री नाइजल एडम्स ने कहा कि ब्रिटेन की सरकार भारत के साथ संपर्क में हैं लेकिन इस बारे में ब्रिटेन का कोई सलाह देना उचित नहीं होगा। उन्होंने ब्रिटेन के पुराने स्टैंड पर कायम होने की बात कही।
चर्चा
में
ब्रिटेन
सरकार
का
पक्ष
एडम्स
ने
कहा
"कश्मीर
की
स्थिति
पर
आज
यहां
कई
सदस्यों
ने
विशेष
चिंता
जताई
है।
खासतौर
पर
2019
में
भारत
सरकार
द्वारा
संविधान
से
अनुच्छेद
370
हटाने
और
राज्य
में
विधानसभा
और
संचार
के
साधनों
पर
प्रतिबंध
लगाने
के
मुद्दे
को
कई
सदस्यों
ने
उठाया
है।
हम
समझते
हैं
कि
इनमें
से
कई
प्रतिबंध
हटाए
गए
हैं
जैसे
ब्राडबैंड
इंटरनेट
फिर
से
बहाल
किया
गया
है
और
कुछ
सोशल
मीडिया
प्लेटफॉर्म
को
फिर
से
खोला
गया
है।
ये
स्वागत
योग्य
खबर
है
लेकिन
अभी
और
किया
जाना
चाहिए।"
एडम्स ने आगे कहा कि यह सरकार (ब्रिटेन) के लिए उचित नहीं होगा कि वह इसके हल के लिए सुझाव दे या फिर इसमें मध्यस्थ की भूमिका निभाए लेकिन ये गलत होगा कि हम इसे स्वीकार न करें कि भारत प्रशासित और पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में मानवाधिकार को लेकर गंभीर चिंता है।
भारतीय
उच्चायोग
ने
दिया
जवाब
कश्मीर
को
लेकर
ब्रिटिश
संसद
में
चर्चा
पर
भारतीय
उच्चायोग
ने
भी
अपना
जवाब
दिया
है।
उच्चायोग
ने
इस
पूरी
बहस
को
गलत
तथ्यों
पर
आधारित
बताया
और
एक
जवाब
जारी
किया
जिसमें
कहा
गया
"भारत
के
केंद्र
शासित
प्रदेश
जम्मू
कश्मीर
को
लेकर
दिए
गए
संदर्भों
में
सार्वजनिक
क्षेत्र
में
उपलब्ध
जानकारी
और
तथ्यों
के
बावजूद
जमीनी
हकीकत
को
नजरअंदाज
कर
दिया
गया।
बावजूद
इसके
एक
तीसरे
देश
द्वारा
प्रचारित
नरसंहार,
उग्र
हिंसा
और
यातना
के
निराधार
आरोपों
को
प्रतिबिंबित
किया
गया।"
भारतीय उच्चायोग ने दावा किया कि कश्मीर भारत का एक आंतरिक मुद्दा है, फिर भी वह ब्रिटिश सांसदों की किसी भी तरह की गलतफहमी को दूर करने के लिए उनके साथ संपर्क को हमेशा तैयार हैं। उच्चायोग के बयान में कहा "किसी दूसरे देश की संसद के भीतर चर्चा में रुचि लेना भारत की नीति नहीं है। भारतीय उच्चायोग सभी संबंधित पक्षों, जिसमें ब्रिटिश सरकार और सम्मानित सांसद शामिल हैं, के साथ संपर्क में है ताकि भारत के बारे में गलत जानकारी और गलत सूचना से बचा जा सके।"
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