कोरोना वायरस: जैक मा की मदद क्या जिनपिंग को खटक रही है?
कोविड-19 की महामारी के बीच चीन के सबसे दौलतमंद व्यक्ति जैक मा ने पिछले महीने ही ट्विटर पर अपना एकाउंट खोला है. अभी तक उन्होंने जितने भी ट्वीट किए हैं, वो सब के सब दुनिया भर के देशों को भेजी जा रही मेडिकल सप्लाई के बारे में हैं. चीनी उद्योगपति जैक मा की इस बेमिसाल मुहिम से दुनिया का शायद ही कोई देश अब तक अछूता रहा है. अपने पहले संदेश में जैक मा ने बड़े उत्साह से लिखा
कोविड-19 की महामारी के बीच चीन के सबसे दौलतमंद व्यक्ति जैक मा ने पिछले महीने ही ट्विटर पर अपना एकाउंट खोला है.
अभी तक उन्होंने जितने भी ट्वीट किए हैं, वो सब के सब दुनिया भर के देशों को भेजी जा रही मेडिकल सप्लाई के बारे में हैं.
चीनी उद्योगपति जैक मा की इस बेमिसाल मुहिम से दुनिया का शायद ही कोई देश अब तक अछूता रहा है.
अपने पहले संदेश में जैक मा ने बड़े उत्साह से लिखा, "एक दुनिया, एक लड़ाई!" उनका दूसरा संदेश था, "हम साथ मिलकर ये कर सकते हैं!"
अरबपति उद्योगपति जैक मा की तरफ़ से भेजी जा रही मेडिकल सप्लाई अभी तक 150 से भी ज़्यादा देशों को मिल चुकी है. इस मेडिकल सप्लाई में फ़ेस मास्क से लेकर वेंटिलेटर तक शामिल हैं.
जीवन-रक्षक मेडिकल सप्लाई हासिल करने के लिए दुनिया भर में मची होड़ में पिछड़ जाने वाले देशों को भी इसका फ़ायदा हुआ है.
2020 has been a difficult year. We need more hope. Today is the International Day of Forests. Jack Ma Foundation will plant another 1 million trees in the desert this year. Together, let's make the earth greener and better! #IntlForestDay pic.twitter.com/CLrgN7TwYs
— Jack Ma Foundation (@foundation_ma) March 21, 2020
दरियादिली से हासिल क्या हो रहा है?
लेकिन जैक मा के आलोचक और यहां तक कि उनके कुछ समर्थक भी ये नहीं समझ पा रहे हैं कि इस दरियादिली से उन्हें हासिल क्या हो रहा है?
पूरी दुनिया के लिए परोपकार का झंडाबरदार बनने का जोख़िम उठाकर उन्होंने ख़ुद को चीन की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी के दोस्ताना चेहरे के तौर पर तो पेश नहीं कर दिया है?
या फिर क्या वे एक खुदमुख़्तार खिलाड़ी हैं जिनका इस्तेमाल कम्युनिस्ट पार्टी अपने प्रोपैगैंडा के लिए कर रही है?
जैक मा से ऐसे सवाल पूछने वालों में उनके आलोचकों से लेकर उनके समर्थक तक हैं.
ऐसा लग रहा है कि वे चीन की कूटनीति के नियम-क़ायदों पर ही चल रहे हैं. ख़ासकर जब वो ये तय करते हैं कि उनके दान का फ़ायदा किस देश को मिलना चाहिए.
लेकिन इसके ख़तरे भी हैं. चीन में जैक मा अपने बढ़ते रसूख की वजह से कम्युनिस्ट पार्टी की सत्ता में शीर्ष पर बैठे ईर्ष्यालु नेताओं का निशाना बन सकते हैं.
जैक मा 12वें नंबर पर
ऐसा नहीं है कि दरियादिली दिखाने वाले उद्योगपतियों की भीड़ में जैक मा सबसे ऊपर हैं.
दूसरे कई उद्योगपतियों ने कोरोना वायरस की महामारी से लड़ने के लिए कहीं ज़्यादा पैसा दान में दिया है.
ट्विटर के जैक डॉर्सी ने एक अरब डॉलर देने की घोषणा की है.
उद्योगपतियों के प्राइवेट एकाउंट से दिए जाने वाले चंदे पर नज़र रखने वाली अमरीकी निगरानी संस्था 'कैंडिड' का कहना है कि कोविड-19 के डोनर्स की लिस्ट में जैक मा 12वें नंबर पर हैं.
लेकिन इस लिस्ट में महत्वपूर्ण मानी जानी वाली मेडिकल सप्लाई का जिक्र नहीं है.
कोविड-19 की महामारी की आज जो स्थिति है, उसमें तो कुछ देशों के लिए पैसे की मदद से ज़्यादा महत्वपूर्ण तो मेडिकल सप्लाई है.
एक सच तो ये भी है कि उद्योगपतियों की इस लिस्ट में केवल जैक मा ही ऐसे हैं जो मेडिकल सप्लाई ज़रूरतमंद देशों को पहुंचा सकते हैं.
राजनीतिक रूप से संवेदनशील
मार्च से ही 'जैक मा फाउंडेशन' और उससे जुड़े 'अलीबाबा फाउंडेशन' ने अफ्रीका, एशिया, यूरोप, लातिन अमरीका और यहां तक कि राजनीतिक रूप से संवेदनशील कहे जाने वाले ईरान, इसराइल, रूस और अमरीका मेडिकल सप्लाई वाले कार्गो विमान भेजना शुरू कर दिया था.
जैक मा ने कोरोना वायरस की वैक्सीन रिसर्च के लिए भी लाखों रुपए की मदद दी है.
उनके गृह राज्य जेजियांग में कोरोना वायरस संक्रमण का इलाज करने वाले डॉक्टरों की मेडिकल सलाह की हैंडबुक का चीनी भाषा से 16 अन्य भाषाओं में अनुवाद कराया गया है.
लेकिन सुर्खियां जैक मा की तरफ़ से भेजे जा रही मेडिकल सप्लाई को ही मिल रही है.
जैक मा की जीवनी लिखने वाले डंकन क्लार्क कहते हैं, "जैक मा के पास वो पैसा, रसूख और काबिलियत है कि हांगझु से मेडिकल सप्लाई लेकर कोई प्लेन इथोपिया की राजधानी आदिस अबाबा में या फिर दुनिया में जहां कहीं भी इसकी ज़रूरत हो, लैंड कर सकता है. ये लॉजिस्टिक का बिज़नेस है. उनकी कंपनी यही करती है. उनके लोग, उनका राज्य सबका यही काम है."
एक दोस्ताना चेहरा
जैक मा की शोहरत एक ऐसे करिश्माई इंग्लिश टीचर की है जिसने चीन की सबसे बड़ी टेक्नॉलॉजी कंपनी खड़ी कर दी.
जैक मा के अलीबाबा को कुछ लोग 'पूरब का अमेजॉन' भी कहते हैं.
साल 1999 में चीन के प्रोडक्शन हब कहे जाने वाले तटीय शहर हांगझु के एक छोटे से अपार्टमेंट में जैक मा ने अपनी कंपनी शुरू की थी.
उसके बाद से अलीबाबा ने तरक्की की राह पर आगे बढ़ते हुए दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था की अहम कंपनियों में अपनी जगह बना ली.
अली बाबा की मौजूदगी चीन के इंटरनेट बिज़नेस, बैंकिंग और इंटरटेनमेंट इंडस्ट्री, सभी जगहों पर है.
जैक मा की खुद अपनी हैसियत 40 अरब डॉलर से ज़्यादा है.
साल 2018 में उन्होंने आधिकारिक रूप से अलीबाबा के चेयरमैन का पद छोड़ दिया था.
तब उन्होंने कहा था कि वो परोपकार पर फोकस करने जा रहे हैं. लेकिन अलीबाबा के बोर्ड में उन्होंने अपनी एक स्थाई जगह बना रखी है.
दौलत और शोहरत, दोनों ही पैमानों पर वो चीन की सबसे ताक़तवर शख़्सियतों में से एक हैं.
चीन की कूटनीति
ऐसा लगता है कि जैक मा की दरियादिली में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के दिशानिर्देशों का पूरी तरह से ख़याल रखा जा रहा है.
जैक मा और अलीबाबा फाउंडेशन ने ऐसे किसी भी देश को कोई मदद नहीं दी है जिनका ताइवान से किसी तरह का औपचारिक संबंध है.
ताइवान चीन का पड़ोसी और कूटनीतिक प्रतिद्वंद्वी है.
जैक मा ने ट्विटर पर बताया कि वो लातिन अमरीका के 22 देशों को मदद पहुंचा रहे हैं.
ताइवान का पक्ष लेने वाले होंडुरास और हेती जैसे देशों ने चीन से मेडिकल सप्लाई की मदद मांगी थी लेकिन ये देश के जैक मा की 150 देशों की लिस्ट में अपनी जगह नहीं बना सके.
बार-बार मांगे जाने के बावजूद जैक मा और अलीबाबा फाउंडेशन ने मदद पाने वाले देशों की पूरी लिस्ट जारी करने से मना कर दिया.
उनका कहना है कि फ़िलहाल वे इतने विस्तार से जानकारी शेयर नहीं कर रहे हैं.
हालांकि इसमें कोई दो राय नहीं है कि जिन देशों को ये मदद हासिल हुई है, वहां चीन की साख काफ़ी मज़बूत हुई है.
Following donations to 150+ countries & regions, we will provide 100M masks, 1M N95 masks, and 1M test kits to @WHO. The supplies will be distributed to those in most need. Together, we must move faster and with confidence to overcome this global challenge. #OneWorldOneFight
— Jack Ma Foundation (@foundation_ma) April 21, 2020
शी जिनपिंग के बराबर जैक मा का ज़िक्र
क्यूबा और इरिट्रिया में मेडिकल सप्लाई पहुंचाने में हुई परेशानी को छोड़ दें, तो जैक मा और अलीबाबा फाउंडेशन की तरफ़ से भेजे गए शिपमेंट्स अपनी मंज़िल पर पहुंचे और उनका वहां काफ़ी स्वागत भी हुआ.
इस क़ामयाबी से जैक मा को लेकर की जाने वाली सकारात्मक बातें और बढ़ी हैं.
चीन की सरकारी मीडिया में राष्ट्रपति शी जिनपिंग का जितना ज़िक्र होता है, जैक मा का नाम भी तक़रीबन उतनी बार ही लिया जाता है.
ये एक असहज स्थिति है जिसके लिए शायद जैक मा तैयार नहीं हैं.
जहां एक तरफ़ जैक मा को सिर्फ़ वाहवाही ही मिल रही होती है, शी जिनपिंग को सवालों का सामना भी करना पड़ता है.
जिनपिंग से ये सवाल पूछे जाते हैं कि महामारी की शुरुआत के वक़्त उन्होंने इसका सामना कैसे किया था.
चीन की सरकार ने मेडिकल टीमें और दूसरे ज़रूरी सामान कई प्रभावित देशों को भेजे हैं.
मदद पाने वाले ज़्यादातर देश यूरोप और दक्षिण पूर्वी एशिया के हैं.
एजेंडे में फ़ोकस अफ्रीका पर
हालांकि कई मेडिकल सप्लाई पहुंचाने की कोशिश नाकाम भी हुई है.
कई देशों ने चीन पर ख़राब क्वॉलिटी वाली मेडिकल सप्लाई भेजने का इल्ज़ाम लगाया है. ऐसे देशों ने इसका इस्तेमाल करने से मना कर दिया.
कहीं-कहीं तो मेडिकल मदद को लेकर नकारात्मक प्रतिक्रियाओं का भी सामना करना पड़ा है.
लेकिन इसके ठीक उलट जैक मा के शिपमेंट्स ने हर जगह उनकी प्रतिष्ठा को और बढ़ाया ही है.
वेबसाइट और पॉडकास्ट 'चाइना अफ्रीका प्रोजेक्ट' के मैनेजिंग एडिटर एरिक ओलांडर कहते हैं, "ये कहना ग़लत नहीं होगा कि जैक मा की मदद को पूरे अफ्रीका में सराहा गया है."
जैक मा ने सभी अफ्रीकी देशों की यात्रा करने का वादा किया है और वे रिटायरमेंट के बाद से नियमित तौर पर यहां आते भी रहे हैं.
एरिक ओलांडर का कहना है, "जब किसी देश में एक बार मेडिकल सप्लाई पहुंच जाती है तो वो इसका कैसे इस्तेमाल करते हैं, ये उस देश की सरकार पर निर्भर करता है. इसलिए ये शिकायतें की नाइजीरिया में इस मेडिकल सप्लाई का किस तरह से वितरण किया गया, ये पूरी तरह से नाइजीरिया की घरेलू समस्या है. रवांडा के नेता पॉल कागेम ने जैक मा की पहल को बड़ी मदद बताया है. सभी देख रहे हैं कि ये मदद दुनिया के उन इलाक़ों में पहुंच रही हैं जहां इसकी बेहद ज़रूरत है और कोई दूसरा शख़्स इतने बड़े पैमाने पर ये कर पाने में सक्षम ही है."
मुश्किल डगर पर जैक मा
लेकिन जैक मा राजधानी बीजिंग में टकराव का जोखिम भी उठा रहे हैं. शी जिनपिंग को उन लोगों में से नहीं गिना जाता है जो किसी दूसरे के साथ सुर्खियां शेयर कर लेते हों. उनकी सरकार ने अतीत में पहले भी मशहूर चेहरों को निशाना बनाया है.
हाल के सालों में चीन की एक मशहूर अभिनेत्री, एक लोकप्रिय न्यूज़ एंकर और कई दूसरे अरबपति उद्योगपति 'लंबे समय के लिए ग़ायब हो गए' थे.
उस लोकप्रिय न्यूज़ एंकर समेत इनमें से कुछ तो अब जेल की सज़ा काट रहे हैं. कुछ हिरासत में रहने के बाद वापस लौट आए हैं.
लेकिन उन्हें इसके लिए पार्टी की वफादारी की कसमें खानी पड़ी.
वॉशिंगटन डीसी स्थित थिंकटैंक 'सेंटर फ़ॉर न्यू अमरीकन सिक्योरिटी' की रिसर्च एसोशिएट एशली फेंग कहती हैं, "साल 2018 में अलीबाबा ग्रुप के चेयरमैन का पद छोड़ते वक़्त जैक मा के बारे में अफ़वाह उड़ी थी कि उन्हें ऐसा इसलिए करना पड़ा क्योंकि उनकी लोकप्रियता कम्युनिस्ट पार्टी से भी बढ़ गई थी."
उनके रिटायरमेंट के फ़ैसले ने बहुत से लोगों को चौंका दिया था और वे लगातार इस बात से इनकार कर रहे थे कि चीन की सरकार ने उन्हें ऐसा करने के लिए मजबूर किया.
ट्रंप और जैक मा की वो मुलाक़ात
उनकी जीवनी लिखने वाले डंकन क्लार्क को भी उन रिपोर्टों के बारे में मालूम है कि जनवरी, 2017 की एक घटना की वजह से जैक मा को अलीबाबा ग्रुप से किनारे कर दिया गया था.
उस वक़्त जैक मा ने ट्रंप टावर में नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मुलाक़ात की थी.
मुलाक़ात की वजह चीन-अमरीका व्यापार के बारे में बातचीत बताई गई थी. राष्ट्रपति ट्रंप से राष्ट्रपति शी जिनपिंग इसके कई महीनों बाद मिले थे.
डंकन क्लार्क कहते हैं, "उस वक़्त इसे लेकर बहुत सारी अफ़वाहें चल रही थीं. कहा जा रहा था कि जैक मा ने जल्दबाज़ी दिखा दी. मुझे ऐसा लगता है कि दोनों ही पक्षों को समन्वय स्थापित करने की ज़रूरत के बारे में इससे सबक मिला है."
"जैक मा एक हद तक इंडस्ट्री की सॉफ़्ट पावर की नुमाइंदगी करते हैं. हालांकि इसकी चुनौतियां भी हैं क्योंकि सरकार ऐसे लोगों से ईर्ष्या करती है जो पार्टी में किसी पद पर नहीं हैं और ऐसी ज़िम्मेदारियां उठा रहे हैं."
तकनीकी रूप से कहें तो जैक मा बाहर से कहीं भी कम्युनिस्ट नहीं दिखते. हालांकि चीन का सबसे धनी उद्योगपति अस्सी के दशक से ही कम्युनिस्ट पार्टी का सदस्य है. तब वे यूनिवर्सिटी स्टूडेंट हुआ करते थे.
सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी से रिश्ते
लेकिन चीन की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी के साथ जैक मा के रिश्ते हमेशा से ही जटिल रहे हैं.
कहा तो ये भी जाता है कि अलीबाबा का कम्युनिस्ट पार्टी को लेकर रवैया कुछ ऐसा है कि "मोहब्बत तो करते हैं पर शादी नहीं करनी" है.
भले ही जैक मा और उनके चैरिटी संगठन सरकार के आशीर्वाद के बिना फ़ैसले कर रहे हों, लेकिन इस उद्योगपति की दरियादिली का फ़ायदा चीन ने ज़रूर उठाया है.
सियरा लियोन से कंबोडिया तक चीन के राजदूत एयरपोर्ट पर जैक मा की तरफ़ से भेजे गई मेडिकल सप्लाई को उस देश की सरकार को सौंपने के औपचारिक कार्यक्रम में शरीक होते रहे हैं.
अमरीका की आलोचना में भी चीन ने जैक मा की दरियादिली का इस्तेमाल किया है.
अप्रैल की शुरुआत में चीन के विदेश मंत्रालय ने ट्वीट किया, "अमरीकी विदेश मंत्रालय ने ताइवान को सच्चा दोस्त बताया है और 20 लाख मास्क दिए हैं. लेकिन अमरीकी विदेश मंत्रालय ने जैक मा की तरफ़ से भेजे गए दस लाख मास्क और 500 टेस्टिंग किट्स पर कोई टिप्पणी नहीं की."
जैक मा की असली ताक़त क्या है
सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी की तिरछी नज़र का निशाना बने दूसरे लोगों के साथ जो कुछ भी हुआ, शायद जैक मा इससे उबर जाएं.
चीन को दुनिया में उनके जैसे ही एक लोकप्रिय चीनी चेहरे की ज़रूरत है.
इस लिहाज से जैक मा उस मुकाम पर हैं, जहां कोई दूसरा चीनी नागरिक नहीं पहुंच सकता. ये बात उन्हें ज़रूरी बना देती है.
एरिक ओलांडर बताते हैं, "अफ्रीका में कई विदेशी आते हैं, बड़े वादे करते हैं और अक्सर नाकाम हो जाते हैं. लेकिन जैक मा जब कहते हैं कि वो कुछ करेंगे तो उसे पूरा करते हैं. कोविड-19 की महामारी में भी उन्होंने ख़ुद को साबित किया है. उन्होंने कहा कि वे मदद करेंगे और हफ्तों के भीतर ही हेल्थ वर्कर्स के हाथ में मास्क पहुंच गए."
डंकन क्लार्क का मानना है कि अलीबाबा की कारोबारी हैसियत के दम पर जैक मा पहले ही चीन के शीर्ष लोगों की कतार में अपनी जगह बना चुके हैं.
क्लार्क कहते हैं, "वैश्विक राजनीति में जब चीन अपनी छवि सुधारने की कोशिश करता है तो दुनिया भर के नेताओं के साथ जैक मा के रिश्ते उन्हें चीन के लिए बेहद महत्वपूर्ण बना देते हैं."
चीन के लिए छवि सुधारने का मौक़ा
क्लार्क बताते हैं, "उन्होंने अपनी काबिलियत दिखलाई है. उनके नेतृत्व में कई आईपीओ कामयाब रहे हैं. विदेशों में उनके कई दोस्त हैं. दोस्त बनाने और लोगों को प्रभावित करने का हुनर उन्हें आता है. वे चीन के डेल कार्नेगी हैं. और इसमें कोई दो राय नहीं कि हमने चीन सरकार के कुछ लोगों को उनसे चिढ़ते हुए देखा है. लेकिन अभी तो वैसे भी मिलजुलकर काम करने का समय है."
इसमें कोई संदेह नहीं कि जैक मा और दूसरे धनी उद्योगपतियों के परोपकार से चीन को अपनी छवि सुधारने का मौक़ा मिल रहा है.
निगरानी संस्था 'कैंडिड' के एंड्रूय ग्रेबोइस का कहना है कि चीनी उद्योगपतियों की तरफ़ से मिल रहे दान को नज़रअंदाज़ करना नामुमकिन है.
वो कहते हैं, "चीनी उद्योगपति आगे बढ़कर नेतृत्व कर रहे हैं. ऐसा पहले कभी अमरीका किया करता था."
कोरोना वायरस की महामारी ने चीनी उद्योगपतियों को ये मौक़ा दिया है.
एंड्रूय ग्रेबोइस कहते हैं, "वे अपनी सॉफ़्ट पावर को सीमाओं के बाहर ले जा रहे हैं. कोरोना प्रभावित इलाक़ों में जा रहे हैं. मदद दे रहे हैं. पैसा और विशेषज्ञता मुहैया करा रहे हैं."
इसलिए जैक मा की राह में चीन के खड़े होने का ये सही वक़्त नहीं है.
और जैसा कि डंकन क्लार्क कहते हैं, "आप जानते हैं कि ये दुनिया के लिए संकट का समय है. बाक़ी दुनिया से चीन के रिश्ते भी संकट में हैं. इसलिए उन्हें एक ऐसे आदमी की ज़रूरत है जो उन्हें इन दबावों में मदद कर सकता है."