कोरोना: क्या अब दुनिया में जवान लोग फैला रहे हैं संक्रमण?
लॉकडाउन खुलने के बाद से लोगों का बाहर जाना शुरू हो गया है और युवाओं में इसके सबसे ज़्यादा मामले सामने आए हैं.
''तुम अपने 20वें साल में हो तो इसका मतलब ये नहीं कि तुम्हें कोई हरा नहीं सकता.''
युवाओं में बेफिक्री होना कोई हैरानी की बात नहीं. लेकिन, एमी शिरसेल इसे लेकर चेतावनी देती हैं क्योंकि वो अपने दोस्तों को सोशल डिस्टेंसिंग के नियम तोड़ते और ग्रुप फोटोज़ को सोशल मीडिया पर डालते देखती हैं.
22 साल की एमी को कोरोना वायरस हो चुका है. वो इसकी तकलीफों और प्रभावों से गुज़र चुकी हैं. इसलिए वो लोगों को कहना चाहती हैं कि वायरस को फैलने से रोकने के लिए वो नियमों का पालन करें.
एमी अमरीका में यूनिवर्सिटी ऑफ़ विस्कॉन्सिन-मेडिसन से ग्रेजुएट हैं. वो मार्च में पुर्तगाल की यात्रा के दौरान वो कोरोना वायरस से संक्रमित हो गईं. उन्हें बहुत तेज़ बुखार हो गया और वो बेहोश हो गईं.
एमी को लगातार उल्टी आ रही थी और वो सो नहीं पा रही थीं. इसके चलते एमी बहुत कमज़ोर हो गईं और उनके शरीर में पानी की कमी हो गई. फिर उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा. यहां उन्हें कभी शरीर में कंपन होती तो कभी वो बीच रात पसीने में भीगी हुईं अचानक जाग उठतीं.
वह कहती हैं, ''वो समय मेरे लिए, मेरे दोस्तों और परिवार के लिए बहुत मुश्किल था.'' उन्होंने लक्षण दिखने के 12वें दिन अस्पताल से ही इसे लेकर ट्वीट्स भी किए थे.
I’m 22 and I tested positive for COVID-19. Take it from me - you do NOT want to catch this
Hopefully hearing about my experience will help the rest of you to stay home (for real)
— Amy (@AmyShircel) March 28, 2020
इस डरवाने अनुभव के बाद एमी युवाओं को कोरोना वायरस के ख़तरे को लेकर जागरुक कर रही हैं, चाहे वो सेहतमंद ही क्यों ना हों.
लेकिन, एमी कहती हैं कि वो लोगों को समझा तो रही हैं लेकिन कई लोग बहुत लापरवाह लगते हैं.
उन्होंने, ''जब पता चलता है कि मुझसे मिलने आने वाले दोस्त और लोग बिना सावधानी बरते बाहर घूम-फिर रहे हैं तो ये चेहरे पर एक तमाचा जड़ने जैसा लगता है. मेरी उम्र के कई लोग फिर से बार जाना चाहते हैं और दोस्त के साथ ड्रिंक करना चाहते हैं. यह देखना वाकई मुश्किल है.''
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क्या नौजवान और उनकी 'पार्टियां' संक्रमण बढ़ा रहे हैं?
इंग्लैंड से लेकर जापान और जर्मनी से लेकर ऑस्ट्रेलिया तक कई देशों में नौजवानों को कोरोना वायरस के नए मामलों में बढ़ोतरी के लिए ज़िम्मेदार ठहराया जा रहा है.
कई अधिकारियों का कहना है कि इस उम्र के लोग लॉकडाउन में बोर हो गए हैं इसलिए अब वो सोशल डिस्टेंसिंग का पालन ना करते हुए बाहर निकल रहे हैं.
हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का ये भी कहना है कि बड़ी संख्या में नौजवान अलग-अलग क्षेत्रों में नौकरी भी करते हैं. कई क्षेत्र ऐसे हैं जिनमें काम शुरू हो गया है इसलिए नौजवान काम के लिए भी बाहर निकल रहे हैं.
इंग्लैंड में ग्रेटर मैनचेस्टर के डिप्टी-मेयर रिचर्ड लीस ने पिछले हफ़्ते पत्रकारों से कहा था, ''नौजवानों के कोरोना पॉजिटिव होने के मामलों में काफी बढ़ोतरी हुई है.'' इसे देखते हुए सरकार ने स्थानीय लॉकडाउन भी लागू किया था.
डिप्टी-मेयर रिचर्ड लीस ने कहा था कि शहर में ज़्यादातर नए संक्रमण नौजवानों में पाये जा रहे हैं. कई लोग ऐसे व्यवहार कर रहे हैं जैसे महामारी ख़त्म हो चुकी है. वो घरों में होने वालीं पार्टियों या गैर-क़ानूनी रेव पार्टियों में जा रहे हैं.
नौजवानों में बढ़ रहा कोरोना
टोक्यो में कोरोना वायरस के मामलों में तेज़ी की एक वजह यह मानी जा रही है कि युवाओं ने अब बार में जाना शुरू कर दिया है.
जापान में 20 और 29 साल के लोगों में सबसे ज़्यादा संक्रमण पाया गया है.
इसी तरह की स्थिति ऑस्ट्रेलिया में भी देखी गई है. अब ऑस्ट्रेलियाई राज्य विक्टोरिया में लोगों को ज़रूरी कामों को जैसे खाने का सामान, किसी देखभाल, कसरत और काम के लिए बाहर जाने की इजाजत दी गई है. वो भी तब जब ये काम घर से ना हो पाएं. साथ ही रात 8 बजे से सुबह 5 बजे तक नाइट कर्फ़्यू भी लगाया गया है.
यूरोप में गर्मियों की छुट्टियां मनाने के लिए पसंदीदा जगहों बार्सेलोना से लेकर उत्तरी फ्रांस और जर्मनी में मामलों में बढ़ोतरी हुई है. ऐसे में स्पेन और जर्मनी ने भी नाइट कर्फ़्यू लगा दिया है.
फ्रांस मे 15 और 44 साल के लोगों में कोरोना वायरस के मामलों में सबसे ज़्यादा बढ़ोतरी हुई है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन में यूरोप के लिए रीजनल डायरेक्टर डॉ. हांस क्लूज ने बीबीसी को बताया, ''हमें नागरिक और स्वास्थ्य अधिकारियों से रिपोर्ट मिली है कि संक्रमण के नए मामलों में सबसे ज़्यादा संख्या युवाओं की है. हालांकि, फिलहाल इसके स्पष्ट प्रमाण नहीं हैं.''
लेकिन, वो कहते हैं कि युवाओं को दोषी ठहराने के बजाए ये सोचना ज़्यादा महत्वपूर्ण है कि उन्हें कोरोना वायरस का संक्रमण रोकने की कोशिशों में शामिल कैसे किया जाए.
डॉ. हांस क्लूज कहते हैं, ''वह समझते हैं कि युवा अपनी गर्मियों को यूं ही नहीं जाने देना चाहते. लेकिन, उनकी अपने लिए, अपने माता-पिता और समुदाय के लिए एक ज़िम्मेदारी भी है. ऐसे में हमें जानना चाहिए कि स्वास्थ्य संबंधी अच्छी आदतों को कैसे अपनाया जाए.''
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कोरोना वायरस की गंभीरता समझें
अब भी नौजवानों में कोरोना वायरस के गंभीर लक्षण कम देखने को मिल रहे हैं लेकिन कोरोना वायरस के मरीज़ों के अनुभव बताते हैं कि युवा भी इस बीमारी के गंभीर लक्षणों से पूरी तरह सुरक्षित नहीं हैं.
जून में शिकागो नॉर्थवेस्टर्न मेमोरियल हॉस्पिटल के सर्जन्स ने एक 28 साल की महिला का डबल-लंग ट्रांस्प्लांट किया था. उस महिला के फेफड़े कोरोना वायरस के कारण ख़राब हो गए थे.
मायरा नाम की वह महिला वैसे तो स्वस्थ बताई जा रही थीं लेकिन अस्पताल लाने के बाद उन्हें 10 मिनट के अंदर ही वेंटिलेटर पर ले जाना पड़ा. उन्हें छह हफ़्तों तक वेंटिलेटर पर रखा गया.
उनकी मेडिकल टीम के डॉक्टर बेथ मेलसिन का कहना है कि वायरस ने मायरा के फेफड़ों को पूरी तरह ख़राब कर दिया था. वह आईसीयू में या शायद पूरे अस्पताल में सबसे बीमारी मरीज़ थीं.
मायरा जैसे मौत की कगार पर पहुंच चुकी थीं लेकिन डॉक्टरों की कोशिश ने उनकी जान बचा ली.
मायरा ने पत्रकारों से कहा था, ''मैं अपने आपको पहचान भी नहीं पा रही थी. मैं चल नहीं सकती थी, मैं अपनी अंगुली तक नहीं हिला पा रही थी. कोरोना वायरस कोई भ्रम नहीं है, ये असलियत है और मैंने इसे झेला है.''
युवाओं को भी जान का ख़तरा
विश्व स्वास्थ्य संगठन के डायरेक्टर जनरल टेडरस एडनॉम गैब्रिएसिस कहते हैं, ''हमारे सामने ये चुनौती रहती है कि युवाओं को कोरोना वायरस के ख़तरे के बारे में कैसे समझाएं. हमने पहले भी ये कहा है और अब भी कहते हैं कि युवाओं की भी कोरोना से जान जा सकती है और वो दूसरों में भी इसे फैला सकते हैं.''
एमी शिरसेल भी लोगों को यही संदेश देना चाहती हैं.
वह कहती हैं कि अपने दोस्तों और परिवार को जब वो समझाने की कोशिश करती हैं तो बातचीत बहुत मुश्किल हो जाती है. कई लोग कहते हैं कि उन्हें कोई कोरोना वायरस हो जाने की कोई परवाह नहीं. उन्हें डर नहीं लगता.
एमी ये भी कहती हैं कि किसी भी बीमारी की तरह कोरोना वायरस भी उन लोगों को ज़्यादा प्रभावित कर रहा है जो कमज़ोर वर्ग से हैं जैसे काले और हिस्पैनिक लोग.
वह कहती हैं, ''मैं लोगों से पूछती हूं कि जब वो सावधानी बरतने और मास्क लगाने से इनकार करते हैं तो ब्लैक लाइव मैटर्स अभियान को कैसे समर्थन दे सकते हैं. आखिर आप खुद इस बीमारी को फैला रहे हैं जिसका सबसे बुरा असर काले लोगों को ही झेलना पड़ रहा है. युवा इस बात को फिर भी समझ जाते हैं लेकिन मध्यम उम्र के लोग और बुर्जुग नहीं.''
एमी का कहना है कि लोगों को यह समझाना होता है कि वो बहुत स्वार्थी हो रहे हैं और उनका व्यवहार दूसरों को प्रभावित कर रहा है. हालांकि, ये बात आप उन लोगों को कैसे समझाएं जो कहते हैं कि उन्हें कोई परवाह नहीं.