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उल्का पिंड के बाद अब पृथ्वी के पास से गुजरेगा धूमकेतु, चंद घंटों बाद दिखेगा अदभुत नजारा

कोरोना वायरस के संकट के बीच अंतरिक्ष में इन दिनों अदभुत और हैरान कर देने वाली घटनाएं सामने आ रही हैं...

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नई दिल्ली। कोरोना वायरस की महामारी के बीच आप लोग भले ही घरों में बंद हों, लेकिन अंतरिक्ष में इन दिनों अदभुत और हैरान कर देने वाली घटनाएं सामने आ रही हैं। अभी हाल ही में एक विशाल उल्का पिंड पृथ्वी के पास से गुजरा, जिसे लेकर कई तरह की बातें सामने आईं। हालांकि नासा के वैज्ञानिकों ने स्पष्ट तौर पर कहा कि अगले कम से कम 200 सालों तक इस उल्का पिंड से पृथ्वी को किसी तरह का कोई खतरा नहीं है। अब एक धूमकेतु, जिसका नाम कॉमेट स्वान है, 13 मई को पृथ्वी के पास से गुजरने वाला है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह धूमकेतु इतना चमकदार है कि इसे नग्न आंखों से देखा जा सकता है। (तस्वीरें साभार: NASA)

27 मई को सूर्य के सबसे निकट होगा कॉमेट स्वान

27 मई को सूर्य के सबसे निकट होगा कॉमेट स्वान

हालांकि, खगोल वैज्ञानिकों के मुताबिक इस धूमकेतु के पृथ्वी के पास से गुजरने के समय को लेकर अभी पुख्ता तौर पर कोई जानकारी नहीं है। वैज्ञानिकों का कहना है कि 13 मई को यह धूमकेतु पृथ्वी से करीब 83 मिलियन किलोमीटर (52 मिलियन मील) की दूरी से गुजरेगा और 27 मई को सूर्य से 64 मिलियन किलोमीटर (40 मिलियन मील) की दूरी पर परिधि में आएगा। इस धूमकेतु को पूर्व-उत्तर पूर्व में देखने का सबसे बेहतर समय सूरज निकलने से ठीक पहले है, जब रात अपने सबसे गहरे अंधरे में होती है।

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कॉमेट स्वान में है हरे रंग की चमकीली रोशनी

कॉमेट स्वान में है हरे रंग की चमकीली रोशनी

वेबसाइट 'द सन' के मुताबिक, अगले महीने ब्रिटेन और अमेरिका में यह धूमकेतु अपने सबसे चमकते स्तर पर होगा। दक्षिणी गोलार्ध में, यह मई के मध्य तक अच्छी स्थिति में बना रहता है, इसलिए जो लोग इस हिस्से में रहते हैं, वो कॉमेट स्वान को नग्न आंखों से देख पाएंगे। अंतरिक्ष में मौजूद यह धूमकेतु आश्चर्यजनक रूप से चमकदार है, जिसमें एक हरे रंग की चमकीली रोशनी के साथ-साथ, एक पूंछनुमा नीली रोशनी है। चट्टानों से बने उल्का पिंड के विपरीत धूमकेतु हाफी हद तक बर्फ से बने होते हैं और इसलिए अपने पीछे मलबे को पूंछ की तरह छोड़ते रहते हैं।

क्या भारत में इस नग्न आंखों से देख पाएंगे?

क्या भारत में इस नग्न आंखों से देख पाएंगे?

पृथ्वी से इस धूमकेतु की दूरी वर्तमान में 85,071,778 किलोमीटर है, जो 0.568670 खगोलीय इकाइयों के बराबर है। इसकी रोशनी कॉमेट स्वान से पृथ्वी तक पहुंचने में 4 मिनट, 43.7689 सेकंड का समय लेती है। 13 मई को यह पृथ्वी से अपनी सबसे निकटतम दूरी पर होगा और 27 मई को सूर्य के सबसे नजदीक। दक्षिणी गोलार्ध में पड़ने वाले देशों को इस धूमकेतु का सबसे बेहतर नजारा मिलेगा। हालांकि भारत में इस धूमकेतु को नग्न आखों से देखना संभव नहीं होगा। इसकी वजह ये है कि भारत भूमध्य रेखा के उत्तर में है।

23 मई को पृथ्वी के पास से गुजरेगा कॉमेट एटलस

कॉमेट स्वान को वास्तव में पहली बार मार्च के आखिर में माइकल मैटियाज़ो नाम के एक खगोलशास्त्री ने देखा था, जो नासा के सोलर एंड हेलिओस्फेरिक ऑब्जर्वेटरी यानी SOHO के डेटा को देख रहा था। अपनी खोज के बाद से यह धूमकेतु दक्षिणी गोलार्ध के एक काफी चमकदार धूमकेतु के तौर पर नजर आया है। 11 अप्रैल 2020 को SOHO के सोलर विंड एनिसोट्रोपिस इंस्ट्रूमेंट ने इसकी पहली तस्वीर ली, जिसके बाद इस धूमकेतु को कॉमेट स्वान नाम दिया गया। कॉमेट स्वान नाम से एक ट्विटर हैंडल भी बना हुआ है। इसके अलावा एक और धूमकेतु, जिसका नाम कॉमेट एटलस है, 23 मई को पृथ्वी के पास से गुजरेगा।

हाल ही में पृथ्वी के निकट से गुजरा था उल्का पिंड

हाल ही में पृथ्वी के निकट से गुजरा था उल्का पिंड

आपको बता दें कि पिछले महीने 29 अप्रैल को ही एक विशाल उल्का पिंड पृथ्वी के नजदीक से गुजरा था। भारतीय समय के मुताबिक, 1998 OR2 नाम का यह उल्का पिंड दोपहर करीब 3 बजे पृथ्वी के पास से गुजरा। इस दौरान नासा ने यह पूरी तरह स्पष्ट किया था कि इस उल्का पिंड से फिलहाल पृथ्वी को किसी तरह का कोई नुकसान नहीं है। इसके बावजूद इस उल्का पिंड को एक 'संभावित खतरनाक उल्कापिंड' की श्रेणी में रखा गया था। इसके अलावा वैज्ञानिकों ने कहा कि बेहद सटीकता के साथ 1998 OR2 के कक्षीय प्रक्षेप पथ का अध्ययन किया है और इस अध्ययन के बाद विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि अगले कम से कम 200 सालों तक पृथ्वी पर इस उल्का पिंड का कोई प्रभाव पड़ने की आशंका नहीं है।

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English summary
Comet Swan Will Pass Through Earth, Can Be Seen From Naked Eyes.
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