Climate Change: जैसी तबाही मंगल और शुक्र ग्रह पर मची थी, क्या पृथ्वी का भी वही भविष्य है? टेंशन में वैज्ञानिक
वाशिंगटन, 3 मई: वैज्ञानिक इस तलाश में जुटे हैं कि सौर मंडल में पृथ्वी के बाहर किस ग्रह पर जीवन होने की जरा भी संभावना है या फिर कहां यह किसी समय मुमकिन रहा होगा। इसके लिए कई अंतरिक्ष अभियानों पर काम चल रहा है। लेकिन, इस बीच नासा के वैज्ञानिकों ने एक ऐसा प्रयोग किया है, जिससे उनकी दिमाग की बत्ती भी जल गई है और उनकी टेंशन भी बढ़ गई है। वैज्ञानिकों ने पाया है कि ज्वालामुखी विस्फोट भी कभी पृथ्वी पर कयामत का कारण बन सकता है। यह उसी तरह की तबाही हो सकती है, जो लाखों-करोड़ों साल पहले कभी मंगल और शुक्र ग्रह के बर्बाद होने की वजह रही होगी।
नए क्लाइमेट सिमुलेशन से बढ़ी टेंशन
प्रशांत के दूरस्थ द्वीपसमूह के पास जब हुंगा टोंगा-हुंगा ज्वालामुखी फटा था तो उसका असर दुनिया के कई हिस्सों में महसूस हुआ था। आसपास के इलाके तो जबर्दस्त सुनामी से तबाह ही हो गए थे। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी (नासा) ने एक नया क्लाइमेट सिमुलेशन किया है, जिससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि पृथ्वी का भविष्य तय करने में ज्वालामुखी क्या भूमिका निभा सकता है। वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में पाया है कि अगर बहुत भयानक ज्वालामुखी विस्फोट हुआ तो उसके असर से ओजोन की सतह पूरी तरह बर्बाद हो सकती है। नया क्लाइमेट सिमुलेशन पिछले अध्ययनों के उन दावों का खंडन करते हैं, जिसमें संकेत दिया गया था कि ज्वालामुखी विस्फोट जलवायु को ठंडा करने के लिए काम कर सकते हैं।
ओजोन लेयर क्यों है महत्वपूर्ण ?
सूर्य के प्रकाश और पृथ्वी की जलवायु के बीच ओजोन लेयर एक सुरक्षा कवच की तरह है, जो कि उसके खतरनाक अल्ट्रावॉयलेट किरणों को हम तक पहुंचने से रोक देता है। अगर ओजोन लेयर नहीं रहे तो धरती की जलवायु अध्यधिक गर्म हो जाएगी और यहां जीवन संभव नहीं रह जाएगा। वैज्ञानिकों को नए क्लाइमेट सिमुलेशन से जिस खतरे की भनक मिली है, उसे फ्लड बसॉल्ट इरप्शन कहते हैं, जिसके बारे में माना जाता है कि शुक्र और मंगल ग्रह आज जिस स्थिति में हैं, उसके पीछे ऐसी ही प्राकृतिक घटना रही होगी। इस शोध का परिणाम जर्नल जीयोफिजिकल रिसर्च लेटर में प्रकाशित हुआ है।
फ्लड बसॉल्ट इरप्शन क्या है ?
फ्लड बसॉल्ट इरप्शन ज्वालामुखी विस्फोट की वह स्थिति है, जिसमें इसके धमाकों की एक शृंखला होती है, जो कई सदियों तक चल सकती है और लाखों वर्षों की अवधि में देखने को मिल सकती है और कई बार इससे भी ज्यादा समय लग सकता है। नासा के मुताबिक ऐसी घटनाएं बड़े पैमाने पर जीवन विलुप्त होने की स्थिति से जुड़ी रही हैं और धरती के इतिहास की बात करें तो यह अध्यधिक गर्म अवधि से जुड़ी रही हैं। नासा के मुताबिक, 'हमारे सौर मंडल की दूसरी दुनिया में भी यह सामान्य रूप से प्रतीत होते हैं, जैसे कि मंगल और शुक्र।' शोधकर्ताओं ने इसके लिए कोलंबिया रिवर बसॉल्ट विस्फोट के चार साल लंबे चरण को गोड्डार्ड अर्थ ऑब्जर्विंग सिस्टम केमिस्ट्री-क्लाइमेट मॉडल का इस्तेमाल किया है। यह विस्फोट अमेरिका के उत्तर-पश्चिमि प्रशांत में 1.5 करोड़ से 1.7 करोड़ साल पहले हुआ था। नासा के गोड्डार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर के वैज्ञानिक स्कॉट गुजेविच ने कहा है, 'हम अपने सिमुलेशन में काफी ज्यादा ठंडे होने की उम्मीद कर रहे थे। लेकिन, हमने पाया कि कुछ समय के लिए ठंडी स्थिति के बाद बहुत ज्यादा गर्मी का प्रभाव देखा गया।'
तबाह हो जाएगा ओजोन लेयर
सिमुलेशन में यह बात सामने आई है कि ज्वालामुखी विस्फोट से किस तरह से पृथ्वी के आसपास मौजूद ओजोन की परत तबाह हो जाएगी। अभी सिर्फ मानवीय गतिविधियों की वजह से इस परत में छेद का पता चलने भर से दुनिया भर के वैज्ञानिकों की नींदें उड़ी हुई हैं और यह अगर खत्म ही हो जाएगा तो प्रकृति पर संकट आना स्वाभाविक है। शोध से पता चला है कि इस तरह के विस्फोट से जलवायु में बहुत बड़ी मात्रा में सल्फर डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होगा, जो कि एयरोसोल में बदल जाएगा। यह एयरोसोल दिखने वाले सूर्य के प्रकाश को तो रिफ्लेक्ट करता है, लेकिन इससे शुरुआती ठंड का असर दिखता है, लेकिन यह इंफ्रारेड रेडिएशन को भी सोख लेता है, जो कि आखिरकार वातावरण को अत्यधिक गर्म कर देता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि वातावरण के इस क्षेत्र के गर्म होने से 10,000 फीसदी ज्यादा जल वाष्प बनेंगे। इसी जल वास्प की वजह से ओजोन लेयर तबाह हो जाएगी।
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मंगल और शुक्र ग्रह पर कैसे आई थी तबाही ?
जलवायु परिवर्तन कैसे किसी ग्रह के विनाश का कारण बनता है, इसको लेकर शुक्र अभी दुनिया भर के वैज्ञानिकों के लिए एक बड़ा महत्वपूर्ण केस स्टडी बन चुका है। वैज्ञानिकों का कहना है कि मंगल और शुक्र ग्रह पर भी कभी पानी का महासागर मौजूद रहा होगा, लेकिन दोनों ग्रह आज पूरी तरह से सूख चुके हैं। वैज्ञानिक यही पता लगाने में जुटे हैं कि आखिर इन ग्रहों पर ऐसा क्या हुआ होगा कि यहां से पानी विलुप्त हो गया और ये ग्रह जीवन के लायक नहीं रह गए। यदि क्लाइमेट सिमुलेशन में पाया गया जल वाष्प का वायुमंडल के ऊपरी हिस्से में जमा होने की भविष्यवाणी सही है, तो माना जा सकता है कि अत्यधिक ज्वालामुखी की गतिविधियों ने ही उनके भविष्य पर विराम लगा दिया होगा। मानवीय जीवन के लिए एक लाइन में समझने लायक बात यही है कि जलवायु परिवर्तन की चिंता उचित है और उसे नियंत्रित करने की दिशा में हर मुमकिन कोशिशें आवश्यक हैं। (तस्वीरें- प्रतीकात्मक और फाइल)