Chipko Andolan in Germany: जंगल बचाने निकले लोगों ने पेड़ों पर बनाए अपने घर
पर्यावरण और जंगल को बचाने के लिए उत्तराखंड का चिपको आंदोलन तो याद होगा, जब 70 के दशक में गौरा देवी के नेतृत्व में कई महिलाएं जंगलों बचाने के लिए पेड़ों से लिपट गई थी।
बर्लिन। पर्यावरण और जंगल को बचाने के लिए उत्तराखंड का चिपको आंदोलन तो याद होगा, जब 70 के दशक में गौरा देवी के नेतृत्व में कई महिलाएं जंगलों बचाने के लिए पेड़ों से लिपट गई थी। ऐसा ही कुछ आंदोलन इन दिनों जर्मनी में भी चल रहा है, जब लोगों ने जंगलों को बचाने के लिए पेड़ो पर ही अपने घर बना दिए हैं। उत्तराखंड की तरह जर्मनी में भी लोग अपने जगंलों को बचाने के लिए पूंजीवादी व्यवस्था का ना सिर्फ विरोध कर रहे हैं, बल्कि पेड़ों के खातिर अपनी जान भी देने के लिए तैयार है। पेरिस समझौते से अमेरिका के बाहर होने के बाद पीएम मोदी ने ट्रंप को दिया कड़ा संदेश
इन दिनों जर्मनी के बॉन शहर में जलवायु परिवर्तन को लेकर दुनिया के कई बड़े देश चर्चा कर रहे हैं। वहीं, बॉन से चंद किलोमीटर दूर जर्मनी के हम्बख जंगल को बचाने के लिए कई एक्टिविस्ट प्रदर्शन कर रहे हैं। जर्मनी के बॉन शहर में जहां एक तरफ दुनिया के तमाम बड़े देश साफ ऊर्जा और पर्यावरण को बचाने की नसिहत दे रहे हैं, वहीं इस शहर से मात्र 50 किमी दूरी पर कई लोग बर्बाद होते हम्बख जंगलों को बचाने के लिए सरकार की नीतियों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं।
एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, एक्टिविस्ट यूरोप के उस सबसे पुराने जंगल को बचाने के लिए निकले हैं, जो अब खतरे में है। रिपोर्ट्स के अनुसार, जर्मनी की दूसरी सबसे बड़ी माइनिंग कंपनी RWE ने इस जंगल से ब्राउन कोल निकालने में जुटी है। इस जंगल का 90 प्रतिशत हिस्सा काटा जा चुका है और करीब 1,50,000 लोगों को पलायन होने के लिए मजबूर होना पड़ा है।
जर्मनी के हम्बख जंगल को बचाने के लिए निकले कई लोगों ने पेड़ों पर ही अपने मकान बना दिए हैं, ताकि इन्हें कटने से रोका जा सके। इस जंगल में एक्टिविस्ट सक्रिय है जो ना सिर्फ जर्मनी से है, बल्कि यूएस और यूके से भी कई एक्टिविस्ट शांतिपूर्वक प्रदर्शन कर रहे हैं।
बता दें कि दुनिया को पर्यावरण को बचाने के लिए नसीहत देने वाला देश जर्मनी पूरे यूरोप का 20 प्रतिशत कार्बन उत्सर्जित करता है। हम्बख जंगल 80 वर्ग किमी से भी ज्यादा क्षेत्र में फैला हुआ है, जहां सबसे ज्यादा ब्राउन कोल पाया जाता है। इस जंगल को बचाने निकले कई एक्टिविस्ट को सरकार ने जेल में भी डाल दिया है।